Tuesday 30 June 2020

फोटोग्राफर--कहानी--देवेन्द्र कुमार


                   
                                  फोटोग्राफर—कहानी—देवेन्द्र कुमार
                         =====
    सोसाइटी के मंदिर के पट हर रोज नियम से ठीक बारह बजे बंद हो जाते हैं। फिर पुजारीजी चार बजे लौटते हैं संध्या -पूजा के लिए। इस क्रम में कोई बदलाव नहीं होता। लेकिन उस दिन नियम में बदलाव हुआ शायद पहली बार। लोगों ने देखा दोपहर एक बजे भी मंदिर के पट खुले थे और पुजारी जी किसी से बात कर रहे थे। वह था कोई विदेशी। वह अपने कैमरे से मंदिर में देव प्रतिमाओं के फोटो उतार रहा था। इसके बाद पुजारी जी मंदिर के द्वार के बीचोबीच खड़े हो गए और विदेशी फोटोग्राफर उनके फोटो क्लिक करने लगा। जल्दी ही वहां कई लोग जमा हो गए। उनमें बच्चे ज्यादा थे।वे शोर कर रहे थे—‘ फोटो ,फोटो! हम भी फोटो खिंचवायेंगे।’
   ‘ हाँ ,हाँ,जरूर जरूर।’—विदेशी फोटोग्राफर ने हिंदी में कहा और हंस पड़ा। एक विदेशी को हिंदी बोलते सुन सब चकित रह गए। पुजारी जी ने कहा—‘ इनका नाम फिलिप है। यह पूरे देश की फोटो—यात्रा कर चुके हैं,हिंदी ही नहीं कई प्रदेशों की बोलियाँ भी बोलते और समझते हैं। इसलिए चकित होने की कोई बात नहीं है।’ विदेशी फोटोग्राफर मुस्कराता हुआ खड़ा था। उसने कहा—‘सब लोग सामने खड़े हो जाएँ। बड़े पीछे रहें और बच्चे आगे। मैं फोटो लेने की तैयारी करता हूँ।’ तभी किसी ने पूछा--  ‘क्या हमारे फोटो विदेशी अखबारों में छपेंगे और वहां के टी वी चैनलों पर दिखाए जायेंगे?’
  ‘ मैं भारत पर एक फिल्म बना रहा हूँ, आप सब के चित्र उसमें शामिल किये जायेंगे।’—फिलिप ने कहा। सुन कर वहां खड़े लोग तालियाँ बजाने लगे। फिलिप सब को  ठीक से खड़ा होने के लिए कह रहा था,लेकिन सोसाइटी के सैक्रेटरी विलास बाबू पुजारी जी से बात कर रहे थे—‘ बात मामूली नहीं विदेशों में प्रचार की है, इसलिए बच्चे-बड़े सबको ठीक से सज संवर कर ही फोटो खिंचवाने होंगे। आप फिलिप से कुछ देर प्रतीक्षा करने को कहें।’       
    पुजारी जी ने फिलिप से कुछ देर प्रतीक्षा करने को कहा। वहां जमा सब  बच्चे-बड़े सजने सँवरने के लिए चले गए। फिलिप सोसाइटी के बाहर जाकर आस पास के फोटो उतारने लगा। यह देख कर सड़क पर कोई भी काम करके जैसे तैसे  जीवन जीने वाले कई बच्चे उसके पास आ खड़े हुए। वे भी फोटो उतरवाना चाहते थे पर कहने की हिम्मत नहीं हो रही थी। ऐसे में उनकी मदद की सोसाइटी के गार्ड परम ने। उसने फिलिप से बात की तो वह उन बच्चों के फोटो उतारने लगा। सड़क-छाप कहे जाने वाले वे  बच्चे खिलखिला रहे थे, उछल रहे थे। सड़क पर आते जाते लोग रुक कर देखने लगे। उन बच्चों के बदन पर फटे पुराने कपडे थे और कई नंगे पैर थे,पर हर बच्चा हंस रहा था।वे बहुत खुश थे। और फिलिप भी प्रसन्न था कई निश्छल मुस्कानों को अपने कैमरे में कैद करके। इतनी खिलखिलाती,निश्छल हंसी उसने पहले कम ही देखी थी।
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  उन बच्चों के अनेक फोटो लिए फिलिप ने और फिर सोसाइटी में चला आया। सड़क वाले बच्चे भी उसके पीछे पीछे अंदर आ गए। वे बहुत खुश थे। लगता था उनका मन अभी भरा नहीं था।फिलिप उन बच्चों को मंदिर बाहर खड़ा करके फोटो लेने लगा। तब तक सोसाइटी में रहने वाले बच्चे और बड़े लोग सज संवर कर फोटो सेशन के लिए आ गए थे | शानदार परिधान में सभी खूब अच्छे लग रहे थे।वे फिलिप के कैमरे का सामना करने के लिए पूरी तरह तैयार थे,लेकिन यह क्या! फिलिप तो सड़क पर आवारा फिरने वाले फटेहाल छोकरों के फोटो उतारने में व्यस्त था। विलास बाबू का मूड खराब हो गया। उन्होंने पुजारी जी से कहा—‘ यह तो ठीक नहीं हुआ।’   
    ‘क्या ठीक नहीं हुआ।’—पुजारी जी ने पूछा|                               
    आप इन विदेशियों को नहीं जानते। हमारे देश की गलत छवि पूरी दुनिया में दिखाने और प्रचारित करने में इन्हें आनंद आता है। भारत की गरीबी और गंदगी दिखाने का कोई मौका ये हाथ से नहीं जाने देते। अब इसी फिलिप को देख लीजिये। हमने इसे प्रतीक्षा करने को कहा था,ताकि हम लोग ढंग के कपडे पहन कर फोटो खिंचवा सकें, लेकिन यह फटेहाल,आवारा घूमने वाले शैतान छोकरों के फोटो उतारने में व्यस्त है। अब इन्हीं तस्वीरों को भारत की गलत छवि दिखाने में इस्तेमाल किया जाएगा।’
   ‘यह तो गलत है, इसे रोकना होगा।’ कह कर पुजारी जी ने फिलिप से सड़क पर आवारा घूमने वाले छोकरों के फोटो क्लिक करने से मना किया, फिर उसे विलास बाबू की शिकायत के बारे में बताया।सुन कर फिलिप ने कैमरा बंद कर दिया और विलास बाबू के पास जाकर खड़ा हो गया।
    विलास बाबू ने कहा—‘आपको मनचाहे फोटो मिल गए,अब हमारे फोटो खींचने की क्या जरूरत है भला।’
     फिलिप ने कहा—‘आपने मुझे गलत समझा है। मैंने सोचा था कि जब तक आप लोग आयें तब तक मैं कुछ और फोटो क्लिक कर लूं। बाहर कुछ बच्चे मेरे पास आये तो मैंने उनके फोटो खींच लिए। मैं पिछले कई वर्षो से आपके देश में आता रहा हूँ। मैंने भारत की हज़ारो छवियाँ कैमरे में कैद की हैं, पर कभी यहाँ की गलत छवि बाहर नहीं दिखाई और आगे भी कभी ऐसा नहीं करूंगा।’
      ‘लेकिन फटेहाल, आवारा छोकरों के फोटुओं में तो हमारे देश की गलत तस्वीर ही कैद की है   आपने।’ –विलास बाबू  ने कडवे स्वर में कहा।
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    ‘ मैं कल आपको दिखा सकता हूँ कि मैंने उन बच्चों के कैसे फोटू उतारे हैं।’
    ‘हाँ उसके बाद ही आपको अपने फोटो क्लिक करने देंगे।’विलास बाबू ने कह दिया।इसके बाद फिलिप चला गया।अगली दोपहर वह फिर दिखाई दिया।वह सड़क वाले बच्चों के फोटो प्रिंट लाया था। पुजारी जी ने विलास बाबू को बुला लिया और प्रिंट उन्हें दिखाए। उनमें केवल बच्चों के हँसते खिलखिलाते चेहरों की छवियाँ थीं, उनके फटे पुराने कपड़ों और नंगे पैरों का कोई फोटो नहीं था।   
  फिलिप ने कहा—‘ऐसी निश्छल हंसी वाले चेहरे मैंने बहुत कम देखे हैं। उनके फटे पुराने कपड़ों  और नंगे पैरों में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं थी। उनकी हंसी और खिलखिलाते चेहरों की ये अद्भुत छवियाँ  मैं  हमेशा संभाल कर रखूँगा।’
   अब विलास बाबू को कोई शिकायत नहीं थी। उन्होंने  तुरंत कल वाले लोगो को फोटो सेशन के लिए बुलवा लिया।आज सब बच्चे और बड़े रोजमर्रा की साधारण पोशाक में थे। सजने सँवरने की कोई कोशिश नहीं की गई थी।क्या वे अपने को निश्छल और खिल खिल हंसी के साथ जोड़ने की कोशिश कर रहे थे!
(समाप्त)       






















 
 फोटोग्राफर—कहानी—देवेन्द्र कुमार
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    सोसाइटी के मंदिर के पट हर रोज नियम से ठीक बारह बजे बंद हो जाते हैं। फिर पुजारीजी चार बजे लौटते हैं संध्या -पूजा के लिए। इस क्रम में कोई बदलाव नहीं होता। लेकिन उस दिन नियम में बदलाव हुआ शायद पहली बार। लोगों ने देखा दोपहर एक बजे भी मंदिर के पट खुले थे और पुजारी जी किसी से बात कर रहे थे। वह था कोई विदेशी। वह अपने कैमरे से मंदिर में देव प्रतिमाओं के फोटो उतार रहा था। इसके बाद पुजारी जी मंदिर के द्वार के बीचोबीच खड़े हो गए और विदेशी फोटोग्राफर उनके फोटो क्लिक करने लगा। जल्दी ही वहां कई लोग जमा हो गए। उनमें बच्चे ज्यादा थे।वे शोर कर रहे थे—‘ फोटो ,फोटो! हम भी फोटो खिंचवायेंगे।’
   ‘ हाँ ,हाँ,जरूर जरूर।’—विदेशी फोटोग्राफर ने हिंदी में कहा और हंस पड़ा। एक विदेशी को हिंदी बोलते सुन सब चकित रह गए। पुजारी जी ने कहा—‘ इनका नाम फिलिप है। यह पूरे देश की फोटो—यात्रा कर चुके हैं,हिंदी ही नहीं कई प्रदेशों की बोलियाँ भी बोलते और समझते हैं। इसलिए चकित होने की कोई बात नहीं है।’ विदेशी फोटोग्राफर मुस्कराता हुआ खड़ा था। उसने कहा—‘सब लोग सामने खड़े हो जाएँ। बड़े पीछे रहें और बच्चे आगे। मैं फोटो लेने की तैयारी करता हूँ।’ तभी किसी ने पूछा--  ‘क्या हमारे फोटो विदेशी अखबारों में छपेंगे और वहां के टी वी चैनलों पर दिखाए जायेंगे?’
  ‘ मैं भारत पर एक फिल्म बना रहा हूँ, आप सब के चित्र उसमें शामिल किये जायेंगे।’—फिलिप ने कहा। सुन कर वहां खड़े लोग तालियाँ बजाने लगे। फिलिप सब को  ठीक से खड़ा होने के लिए कह रहा था,लेकिन सोसाइटी के सैक्रेटरी विलास बाबू पुजारी जी से बात कर रहे थे—‘ बात मामूली नहीं विदेशों में प्रचार की है, इसलिए बच्चे-बड़े सबको ठीक से सज संवर कर ही फोटो खिंचवाने होंगे। आप फिलिप से कुछ देर प्रतीक्षा करने को कहें।’       
    पुजारी जी ने फिलिप से कुछ देर प्रतीक्षा करने को कहा। वहां जमा सब  बच्चे-बड़े सजने सँवरने के लिए चले गए। फिलिप सोसाइटी के बाहर जाकर आस पास के फोटो उतारने लगा। यह देख कर सड़क पर कोई भी काम करके जैसे तैसे  जीवन जीने वाले कई बच्चे उसके पास आ खड़े हुए। वे भी फोटो उतरवाना चाहते थे पर कहने की हिम्मत नहीं हो रही थी। ऐसे में उनकी मदद की सोसाइटी के गार्ड परम ने। उसने फिलिप से बात की तो वह उन बच्चों के फोटो उतारने लगा। सड़क-छाप कहे जाने वाले वे  बच्चे खिलखिला रहे थे, उछल रहे थे। सड़क पर आते जाते लोग रुक कर देखने लगे। उन बच्चों के बदन पर फटे पुराने कपडे थे और कई नंगे पैर थे,पर हर बच्चा हंस रहा था।वे बहुत खुश थे। और फिलिप भी प्रसन्न था कई निश्छल मुस्कानों को अपने कैमरे में कैद करके। इतनी खिलखिलाती,निश्छल हंसी उसने पहले कम ही देखी थी।
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  उन बच्चों के अनेक फोटो लिए फिलिप ने और फिर सोसाइटी में चला आया। सड़क वाले बच्चे भी उसके पीछे पीछे अंदर आ गए। वे बहुत खुश थे। लगता था उनका मन अभी भरा नहीं था।फिलिप उन बच्चों को मंदिर बाहर खड़ा करके फोटो लेने लगा। तब तक सोसाइटी में रहने वाले बच्चे और बड़े लोग सज संवर कर फोटो सेशन के लिए आ गए थे | शानदार परिधान में सभी खूब अच्छे लग रहे थे।वे फिलिप के कैमरे का सामना करने के लिए पूरी तरह तैयार थे,लेकिन यह क्या! फिलिप तो सड़क पर आवारा फिरने वाले फटेहाल छोकरों के फोटो उतारने में व्यस्त था। विलास बाबू का मूड खराब हो गया। उन्होंने पुजारी जी से कहा—‘ यह तो ठीक नहीं हुआ।’   
    ‘क्या ठीक नहीं हुआ।’—पुजारी जी ने पूछा|                               
    आप इन विदेशियों को नहीं जानते। हमारे देश की गलत छवि पूरी दुनिया में दिखाने और प्रचारित करने में इन्हें आनंद आता है। भारत की गरीबी और गंदगी दिखाने का कोई मौका ये हाथ से नहीं जाने देते। अब इसी फिलिप को देख लीजिये। हमने इसे प्रतीक्षा करने को कहा था,ताकि हम लोग ढंग के कपडे पहन कर फोटो खिंचवा सकें, लेकिन यह फटेहाल,आवारा घूमने वाले शैतान छोकरों के फोटो उतारने में व्यस्त है। अब इन्हीं तस्वीरों को भारत की गलत छवि दिखाने में इस्तेमाल किया जाएगा।’
   ‘यह तो गलत है, इसे रोकना होगा।’ कह कर पुजारी जी ने फिलिप से सड़क पर आवारा घूमने वाले छोकरों के फोटो क्लिक करने से मना किया, फिर उसे विलास बाबू की शिकायत के बारे में बताया।सुन कर फिलिप ने कैमरा बंद कर दिया और विलास बाबू के पास जाकर खड़ा हो गया।
    विलास बाबू ने कहा—‘आपको मनचाहे फोटो मिल गए,अब हमारे फोटो खींचने की क्या जरूरत है भला।’
     फिलिप ने कहा—‘आपने मुझे गलत समझा है। मैंने सोचा था कि जब तक आप लोग आयें तब तक मैं कुछ और फोटो क्लिक कर लूं। बाहर कुछ बच्चे मेरे पास आये तो मैंने उनके फोटो खींच लिए। मैं पिछले कई वर्षो से आपके देश में आता रहा हूँ। मैंने भारत की हज़ारो छवियाँ कैमरे में कैद की हैं, पर कभी यहाँ की गलत छवि बाहर नहीं दिखाई और आगे भी कभी ऐसा नहीं करूंगा।’
      ‘लेकिन फटेहाल, आवारा छोकरों के फोटुओं में तो हमारे देश की गलत तस्वीर ही कैद की है   आपने।’ –विलास बाबू  ने कडवे स्वर में कहा।
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    ‘ मैं कल आपको दिखा सकता हूँ कि मैंने उन बच्चों के कैसे फोटू उतारे हैं।’
    ‘हाँ उसके बाद ही आपको अपने फोटो क्लिक करने देंगे।’विलास बाबू ने कह दिया।इसके बाद फिलिप चला गया।अगली दोपहर वह फिर दिखाई दिया।वह सड़क वाले बच्चों के फोटो प्रिंट लाया था। पुजारी जी ने विलास बाबू को बुला लिया और प्रिंट उन्हें दिखाए। उनमें केवल बच्चों के हँसते खिलखिलाते चेहरों की छवियाँ थीं, उनके फटे पुराने कपड़ों और नंगे पैरों का कोई फोटो नहीं था।   
  फिलिप ने कहा—‘ऐसी निश्छल हंसी वाले चेहरे मैंने बहुत कम देखे हैं। उनके फटे पुराने कपड़ों  और नंगे पैरों में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं थी। उनकी हंसी और खिलखिलाते चेहरों की ये अद्भुत छवियाँ  मैं  हमेशा संभाल कर रखूँगा।’
   अब विलास बाबू को कोई शिकायत नहीं थी। उन्होंने  तुरंत कल वाले लोगो को फोटो सेशन के लिए बुलवा लिया।आज सब बच्चे और बड़े रोजमर्रा की साधारण पोशाक में थे। सजने सँवरने की कोई कोशिश नहीं की गई थी।क्या वे अपने को निश्छल और खिल खिल हंसी के साथ जोड़ने की कोशिश कर रहे थे!
(समाप्त)       















     

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