Tuesday 21 July 2020

साल का पहला दिन-कहानी-देवेन्द्र कुमार


                   साल का पहला दिन—कहानी—देवेन्द्र कुमार    
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    तीन मार्च का दिन विशेष होता है जयंत और अचला परिवार के लिए। उस दिन घर में दो उत्सव मनाये जाते हैं—पहला है घर के पुरखों यानि अक्षत और जूही के पापा जयंत  के  दादा-दादी और पिता तथा माँ के  जन्मदिन, और दूसरा है जयंत और बच्चों की मम्मी अचला की मैरिज एनिवर्सरी।
  सो कर उठते ही अक्षत और  जूही  को अचला और जयंत की पुकार सुनाई देती है—‘हाथ मुंह धो कर दादा जी के कमरे में आ जाओ।’ वहां मेज पर चारों पुरखों  के फोटो रखे हुए हैं। चित्रों पर फूलों की मालाएं चढ़ी  हैं। हर फोटो के सामने दीपक जल रहा है। हवा में अगरबत्ती की सुगंध फैली है। अक्षत और जूही  सिर झुका कर चारों को प्रणाम करते हैं। बच्चों ने उन चारों में से केवल अपनी दादी को देखा है बाकी किसी को नहीं। कुछ देर चित्रों के सामने खड़े रहने के बाद, वे चुपचाप कमरे से बाहर आ जाते हैं। दोनों एक ही बात सोच रहे हैं—क्या पापा के दादा-दादी और माँ और पिता  का जन्म ३ मार्च को हुआ था,लेकिन ऐसा कैसे हो सकता है! पर यही तो  लगता है, नहीं तो परिवार के चारों बड़ों का जन्म दिन एक ही तारीख  यानि ३ मार्च को क्यों मनाया जाता। और मम्मी पापा की शादी की वर्ष गाँठ भी तो ३ मार्च को होती है।  
  अब दूसरे प्रोग्राम की बारी है। दो रसोइयों को बाहर से बुलाया गया है। आज के दिन अचला का सारा समय तो मेहमानों की अगवानी में ही बीत जायेगा। बच्चों के चाचा और मामा के परिवारों  के काफी लोग आने वाले हैं।एनिवर्सरी का कार्यक्रम सुबह के नाश्ते से शुरू होकर रात में केक काटने तक चलेगा।सारा दिन  खूब धमाल मचने वाला है। साढ़े आठ बजे तक सारे मेहमान आ चुके हैं।ड्राइंग रूम में खिल खिल और शोर गूँज रहा है। एक एक करके हर मेहमान दादाजी के कमरे में जाकर प्रणाम करता है।इस तरह चारों पुरखों के सम्मिलित जन्मदिन का प्रोग्राम पूरा हो जाता है।
    अब ब्रेक फ़ास्ट की बारी है।कई स्वदिष्ठ व्यंजन बने हैं एक रसोइया दादाजी के कमरे में चार प्लेटों में हर व्यंजन का एक एक कौर रख कर ले जाता है और चित्रों के सामने रख देता है।यही क्रिया लंच,दोपहर की चाय, डिनर और केक काटने के समय भी दोहराई जाती है। जयंत का कहना है कि घर के बड़ों को आज बने हर व्यंजन का स्वाद लेना चाहिए।
  अक्षत और जूही उलझन में हैं। उन्हें पता है कि सुबह एक बार चित्रों को प्रणाम करने के बाद फिर कोई भी दादा जी के कमरे में नहीं झांकता। हाँ रसोइया जरूर जाता है-व्यंजनों की प्लेटें रखने और उठाने के लिए। रसोइये के दादाजी के कमरे में आने जाने के बीच अक्षत और जूही भी वहां कई बार जाते हैं।और खड़े खड़े सोचते रहते हैं- क्या इन चारों पुरखों को मम्मी पापा के  मैरिज एनिवर्सरी प्रोग्राम में शामिल नहीं होना चाहिए।उनका सोचना है कि पुरखों के चित्रों को बाहर हाल में  सबके बीच तो रखा ही जा सकता है।
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  कैमरों की क्लिक,रंगारंग रोशनियों, संगीत के सुरों और शानदार दावत के साथ कार्यक्रम पूरा हुआ। मेहमान विदा हुए तो आधी रात बीत चुकी थी। अगला दिन रविवार था। आराम से चाय की चुस्कियां लेते हुए जयंत और अचला विवाह की वर्षगाँठ समारोह की चर्चा कर रहे थे।तभी अक्षत ने कहा-‘पापा,
‘क्या हमारे चारों पुरखों का जन्म एक ही दिन यानि ३ मार्च को हुआ था?
  ‘यह तुमसे किसने कहा कि मेरे दादा दादी और माता पिता ३ मार्च को  जन्मे थे!’-जयंत ने कुछ आश्चर्य से कहा।
  ‘कल हमने पुरखों  का जन्म दिन और अपने विवाह की वर्षगाँठ एक साथ जो  मनाई थी।उससे तो किसी को भी ऐसा ही लग सकता है।’-अचला ने कहा।
  जयंत ने कहा-‘अक्षत और जूही, मेरे दादा –दादी के जन्मदिन की तारीख मुझे पता नहीं। हाँ अपने माँ बाप के जन्मदिन की तिथि जरूर पता है’।३मार्च को पुरखों का जन्म दिन और अपने विवाह की वर्ष गाँठ एक साथ मनाने के पीछे यही भाव है कि हमारे सगे सम्बन्धी दोनों में शामिल हो सकें।’   
  ‘ अगर यही बात है तो चारों पुरखों के फोटोग्राफ हाल में सबके बीच होने चाहिएं।’जूही ने अपनी राय दी।
   ‘बच्चों की बात में दम है।’-अचला ने बच्चों का साथ दिया।
   ‘तो अगली बार से ऐसा ही होगा।’जयंत बोले।
    क्या किसी तरह आप अपने  दादा दादी की जन्म तिथि  का पता लगा सकते हैं?’-अचला ने पूछा।
  ‘मेरे दादा के मित्र जयराज जी से कुछ दिन पहले ही मेरी बात हुई थी।वे भी बहुत बूढ़े हैं,शायद उन्हें इस बारे में कुछ पता हो। कहो तो दिन में जाकर  उनसे मिल आऊँ।’ जयंत ने अचला से पूछा।
  ‘जरूर जाइए।’ माँ के बोलने से पहले ही अक्षत और जूही बोल उठे।
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  दोपहर में जयंत जयराज जी से मिलने चले गए। तीन चार घंटे बाद लौटे तो उन्होंने बताया-‘ मैं उनसे मिला तो सही पर वह मेरे दादा जविनाश जी की जन्म तिथि के बारे में कुछ नहीं बतासके। उन्होंने कहा कि उन्हें तो अपनी ही जन्म तिथि याद नहीं है। पर मैंने उनसे वादा करा लिया है कि वह अगले रविवार को  मेरे साथ हमारे घर आएंगे।’
  ‘वाह! तब तो उनसे मिल कर खूब मजा आएगा। वह आपके दादाजी के बारे में ऐसी बातें  बता सकते हैं जिन्हें आप ने भी कभी न सुना हो।’-अक्षत और जूही ने ख़ुशी भरे स्वर में कहा।
  रविवार का दिन विशेष था; दोपहर को जयंत जयराज जी  को लेकर आये।उनके साथ एक वृद्ध महिला और थीं। अचला ने उन वृद्ध महिला को सहारा देकर सोफे पर बैठा दिया।वह हांफ रही थीं।                                               
 अचला ने उन्हें ग्लूकोज मिला पानी पिलाया, कुछ देर में वह सामान्य हो गईं।पता चला कि उनका नाम कीर्तन देवी है। वह जयंत की दादी उर्मिला जी के बचपन की सहेली थीं।
  जयंत ने बताया कि जयराज जी ही उन्हें साथ लाये हैं।अक्षत और जूही ने दोनों के पैर छू कर आशीर्वाद लिया। जूही ने वृद्धा से पूछा –‘दादी,आप का यह नाम कैसे पड़ा?’
  वृद्धा ने बताया-‘ मेरे जन्म के समय घर में कीर्तन हो रहा था। बस मेरा नाम कीर्तन देवी रख दिया गया।’कह कर वह पोपले मुंह से हंस दीं।
  जयंत बोले-‘ मुझे तो आज पता चला है कि आप मेरी दादी की पक्की सहेली थीं।’ इतने में अचला जयंत के दादा और दादी के चित्र ले आई।जयराज जी और कीर्तन देवी ने उन चित्रों को सीने से लगा लिया। बच्चों ने देखा कि जयराज जी और कीर्तन देवी की आँखों में आंसू झलक रहे थे।दोनों बारी बारी से चित्रों को चूम रहे थे।कुछ देर बाद जयंत जयराज जी और कीर्तन देवी को  उनके घर छोड़ने चले गए। उनके लौटने तक अक्षत और जूही माँ अचला से बातें करते रहे।  
    जयंत के लौटने के बाद अचला ने पति से कहा-‘बच्चे सोचते हैं कि पुरखों का जन्मदिन और हमारे विवाह की वर्ष गाँठ के उत्सव  अलग अलग दिन मनाने चाहियें।मुझे भी इनकी बात ठीक लगती है।’
  ‘अब तो दोनों ही उत्सव बीत गए हैं,जो कुछ होगा अगले वर्ष ही हो सकता है।’-जयंत ने कहा।’तीन   मार्च हमारे विवाह की वर्ष गाँठ का दिन होता है,अगर पुरखों का जन्मदिन अलग से मनाना है तो उसे किस दिन मनाया जाये,यह कैसे तय होगा।’
 ‘हमने सोच लिया है।’-अक्षत और जूही ने कहा-‘ नए वर्ष का  पहला दिन इसके लिए सबसे अच्छा रहेगा।’
  ‘नए वर्ष का पहला दिन मतलब एक जनवरी। वाह, क्या आईडिया है।’जयंत बोले ’पर अगले वर्ष की एक जनवरी तो 9 महीने बाद ही आएगी। उसके लिए तो लम्बा इन्तजार करना होगा।’
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  ‘नहीं,बच्चे चाहते हैं कि पुरखों का नया जन्मदिन अगले या उसके बाद वाले रविवार को ही मनाया जाए।’-अचला ने कहा। ‘और उस उत्सव में जयराज  जी और कीर्तन देवी को जरूर बुलाया जाये, साथ में वे मेहमान भी रहें जो कल की हमारी  विवाह वार्षिकी आये थे।’
  प्रोग्राम बन गया। परिवार के पुरखों का पहला नया जन्मदिन अगले रविवार को मनाया गया। चारों के फोटोग्राफ ड्राइंग रूम की  मेज पर रखे गए। सब कुछ पहले की तरह हुआ। मेहमानों में जय्रराज जी  और कीर्तन देवी भी मौजूद थे।सब लोग उनके संस्मरण सुनते और तालियाँ बजाते रहे। सबसे ज्यादा खुश थे अक्षत और जूही। पुरखों का जन्मदिन निश्चित हो गया था-नए वर्ष का पहला दिन।==
 

Sunday 19 July 2020

चुटकुला मास्टर -कहानी-देवेन्द्र कुमार


      

               
                चुटकुला मास्टर--कहानी--देवेन्द्र कुमार        
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  उनका नाम था अनुज, पर न जाने क्यों उन्हें पूरा स्कूल चुटकुला मास्टर के नाम से पुकारता था। क्या स्टाफ और क्या छात्र सभी उन्हें इसी नाम से जानते थे। और अनुज सर को अपना यह उपनाम अच्छा लगता था। वैसे अनुज स्कूल के पी टी टीचर थे। उनका काम था छात्रों को शारीरिक शिक्षा देना  और खेल कूद के कार्यक्रम आयोजित करना।इसके अलावा उनकी एक ड्यूटी और थी- जब कोई टीचर छुट्टी पर होता था तो अनुज उसकी कक्षा में चले जाते थे-और फिर पूरी क्लास खिलखिलाने लगती थी।
  क्लास में प्रवेश करते ही उनका सबसे पहला वाक्य होता था-‘ आज बहुत पढ़ चुके।किताबें बंद, अब आई हंसने की बारी।’और उनके इतना कहते ही सारे छात्र डेस्क थपथपाने लगते। तब चुटकुला मास्टर अनुज होंठों पर उंगली रख कर आवाजों को कम रखने का इशारा करके कहते –‘बाकी बच्चे डिस्टर्ब नहीं होने चाहियें।’ बच्चे भी अपने होठों को हथेली से ढँक लेते पर हंसी की शैतानी कम न होती।फिर चुटकुलों और रोचक किस्सों का दौर चलने लगता।
  हर बार ऐसा ही होता था। लेकिन उस दिन कुछ और हुआ।कक्षा छह ए में आये अनुज सर के हाथ में एक रजिस्टर था। उन्होंने कहा-‘ आज हर बच्चा अपना और परिवार का पूरा विवरण इस रजिस्टर में लिखेगा।मैं तुममें से हरेक के बारे में बहुत कुछ जानना चाहता हूँ। मैंने महसूस किया है कि सारा समय चुटकुलों और हंसी मजाक में ही बीत जाता है। तो आज यही खेल हो जाए।’
  अनुज के कहे अनुसार हर छात्र ने अपना और अपने परिवार का पूरा विवरण अनुज सर के रजिस्टर में लिख दिया। कक्षा में 22 छात्र थे लेकिन विवरण केवल 19 बच्चों का था। अनुज सर ने बाकी तीन बच्चों के बारे में पूछा तो पता चला कि अनिल, राजेश और गोपेश कई दिन से स्कूल नहीं आ रहे थे।शायद वे स्वयं या उनके परिवार में कोई बीमार था।
  अनुज ने पता किया तो मालूम हुआ कि अनिल को ज्वर आ रहा था।राजेश की माँ बीमार थीं।और गोपेश के दादाजी अस्पताल में थे। उसी शाम अनुज सर अनिल के घर गए।दरवाजा खोलने वाले ने अनुज का परिचय पूछा तो उन्होंने कहा-‘ बता दो कि अनिल के चुटकुला मास्टर आये हैं’।’सुनकर अनिल लगभग भागता हुआ आया और अनुज सर का हाथ पकड़ कर अंदर ले गया। उसकी माँ भी वहां आ गई। उन्होंने अचरज के भाव से कहा-‘ आपने क्यों तकलीफ की। अनिल ने मुझे आपके बारे में बता रखा है।एक बार मैं स्कूल आई थी तो अनिल ने मुझे आपसे मिलवाया था।’
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   अनुज ने अनिल की माँ से कहा-‘ अनिल के सहपाठियों ने इसके लिए शुभ कामनाएं भेजी है।’
  ‘क्या सच!’अनिल ने कहा।
  ‘इसे मेरा चुटकुला न समझो जो मैं तुम सब को क्लास रूम में सुनाया करता हूँ।’-अनुज ने हँसते हुए कहा। अनिल की माँ ने बताया कि अब अनिल की तबीयत में काफी सुधार है,और अनिल जल्दी  ही स्कूल आने लगेगा।’ कुछ देर अनिल के पास रुकने के बाद अनुज वापस लौट आये।
  अगले दिन अनुज आधी छुट्टी में कक्षा छह ए के छात्रों से मिले और अनिल के घर जाने और उन सबकी ओर से शुभ कामना सन्देश देने के बारे में बताया।सुन कर सब बच्चे हैरान रह गए फिर बोले-‘सर, लेकिन हमने तो अनिल के लिए कोई सन्देश नहीं भेजा था।’                              
  तो क्या हुआ। मैं पूरी क्लास का प्रतिनिधि बन कर अनिल को देखने गया था।और मुझे मालूम है कि तुम सब दिल से चाहते हो कि वह तुरंत स्वस्थ होकर स्कूल आने लगे।’
  ‘ आपने ठीक कहा।हम सब यही चाहते हैं कि वह जल्दी से ठीक हो जाये।’
  ‘आज मैं राजेश की माँ से मिलने जा रहा हूँ।’ अनुज सर के इतना कहते ही कई बच्चे बोल उठे-‘हम सब भी उनसे मिलना चाहते हैं।’
  ‘ मैं शाम को जाऊँगा,लौटने में देर हो सकती है।अपने घर वालों की अनुमति लिए बिना तुम सब कैसे जाओगे! हाँ, पूरी क्लास की ओर से शुभ कामना कार्ड उन्हें जरूर भेज सकते हो।’
  दो बच्चे कार्ड लेने तुरंत बाज़ार चले गए। कार्ड पर राजेश की माँ के शीघ्र स्वस्थ होने की शुभ कामना का सन्देश लिख कर हर बच्चे ने उस पर हस्ताक्षर किये। उसी शाम अनुज सर राजेश के घर पहुंचे और शुभ कामना वाला कार्ड उसकी माँ को दिया। वह भावुक हो कर बोली-‘ इतने बच्चों की शुभ कामनाएँ पाकर तो अब मैं और भी जल्दी स्वस्थ हो जाऊंगी। आप उन सभी बच्चों तक मेरा प्यार भरा आशीर्वाद अवश्य पहुंचा दें।’
  इसी बीच पता चला कि गोपेश के दादाजी अस्पताल से घर  लौट आये हैं। बच्चों ने अनुज सर से कहा-‘ अब कार्ड नहीं हम सब उनसे मिलने जायेंगे।’ अगले दिन रविवार था। अनुज ने गोपेश के पास यह सूचना भेज दी, और बच्चों से कहा कि वे अपने घरवालों की अनुमति लेकर सुबह 11 बजे स्कूल आ जाएँ। स्कूल से सब बच्चों के साथ अनुज गोपेश के घर जा पहुंचे। गोपेश के दादाजी ने खुद दरवाजा खोला और कहा-‘ मेरे नन्हे शुभ चिंतकों का स्वागत है।’
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  बच्चों ने देखा, कमरे में कई वाद्य यंत्र रखे हुए हैं। गोपेश ने बताया-‘ मेरे दादाजी बहुत अच्छा वायलिन बजाते हैं।’ उनके अनुरोध पर गोपेश के दादाजी ने वायलिन पर कई मधुर धुनें बजा कर सुनाईं। फिर कहा-‘अब मेरे नन्हे मित्रों की बारी है।’ बच्चों ने मिलकर कई गीत सुनाये। पूरा वातावरण खिल खिला रहा था। कक्षा 6 ए के छात्र बहुत खुश हो कर गोपेश के घर से लौटे। ऐसा आनंद उन्हें पहली बार मिला था अपने चुटकुला मास्टर अनुज सर के कारण।
   एक सप्ताह बीत गया। फिर एक पीरियड में अनुज सर को कक्षा 6 ए में आने का अवसर मिला। वह क्लास में आये तो बच्चों ने कहा-‘ सर, हमें आपसे शिकायत है।’
  ‘मेरा कसूर तो बताओ।’-अनुज ने हँसते हुए कहा।
  ‘आपने हम सबके बारे में तो सब कुछ जान लिया,पर अपने बारे में कुछ नहीं बताया।’
   ‘भई, मेरा नाम अनुज है और मैं तुम्हारा चुटकुला मास्टर हूँ। और क्या जानना चाहते हो?’
   ‘आपका यह परिचय तो हम जानते हैं लेकिन आपके परिवार के बारे में तो हमें कुछ भी पता नहीं।’
  कक्षा में कुछ पल मौन छाया रहा।फिर अनुज ने कहा- ‘पिताजी की मृत्यु मेरे बचपन में ही हो गई थी।माँ ने हम दोनों भाइयों को कैसे बड़ा किया यह एक लम्बी कहानी है। मैं और शंकर जुड़वां भाई हैं। वह अम्ररीका जाकर बस गया है। वर्ष में एक बार कुछ दिनों के लिए आता है।घर में माँ के साथ मेरी पत्नी और एक बेटा है। इधर शंकर कुछ समय से बीमार है। स्वस्थ होते ही हम सब से मिलने भारत आएगा.’
  गोपेश ने कहा-‘सर, मैं सोचता हूँ कि हम सबकी ओर से आपके भाई साहब को एक शुभ कामना सन्देश वाला कार्ड भेजना चाहिए।’ पूरी क्लास ने गोपेश का समर्थन किया।
  ‘ बहुत अच्छा विचार है।’-अनुज सर ने कहा। ‘शंकर को भी तुम सबकी सम्मिलित शुभ कामनाएं पाकर ख़ुशी होगी।’
  कक्षा ६ ए के सब छात्रों ने मिलकर एक सुंदर कार्ड पर लिखा- ‘हम बाईस छात्र आपके शीघ्र स्वस्थ होने की शुभ कामनाएं भेज रहे हैं। हमें पूरी आशा है कि जब आप भारत आयेंगे तो हमसे अवश्य मिलेंगे।’ अनुज सर ने शुभ कामना कार्ड अपने भाई शंकर को भेज दिया। एक सप्ताह बाद शंकर का पत्र लेकर बच्चों के पास आये।उन्होंने पत्र पढ़ा। शंकर ने लिखा था—‘मेरे 22 नन्हे मित्रो, तुम्हारा शुभ कामना कार्ड पाकर मुझे अत्यंत सुखद आश्चर्य हुआ। मैं अब पहले से ठीक हूँ। आशा करता हूँ कि जल्दी ही भारत आकर आप सबसे अवश्य मिलूंगा।’
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    शंकर के पत्र के एक महीने बाद अनुज सर ने अपने भाई के आने की खबर कक्षा 6 ए के छात्रों को दी। सब बच्चे उनसे तुरंत मिलने को उत्सुक हो उठे। रविवार को शंकर जी से मिलने का प्रोग्राम बना। हर बार की तरह कक्षा 6 ए के 22 छात्र स्कूल में एकत्र हुए और अनुज सर उन्हें अपने घर ले गए। शंकर दरवाजे पर अपने नन्हे दोस्तों के स्वागत के लिये खड़े थे।शंकर और अनुज सर कोदेख कर सब बच्चे अपलक ताकते रह गए। दोनों के चेहरे हूबहू एक जैसे दिख रहे थे,’तिल भर का भी फर्क नहीं था। फर्क था केवल एक कि शंकर चश्मा लगाते थे।बच्चों की हैरानी देख कर शंकर और अनुज जोर से हंस पड़े।                                        
  शंकर ने बच्चों को अपने संस्मरण सुनाए फिर एक रजिस्टर दिखाते हुए कहा-‘यह रजिस्टर मैंने आपके प्रिय चुटकुला मास्टर अनुज से लिया है। मैं इसे अपने साथ अमरीका ले जाना चाहता हूँ लेकिन अभी यह अधूरा है।’
  ‘आप इसे अधूरा क्यों कह रहे हैं सर!’गोपेश ने पूछा।
  ‘हर बच्चे ने अपना और परिवार का परिचय तो दिया है पर उन सबके छाया चित्र या फोटोग्राफ कहाँ हैं?मैं चाहता हूँ कि हर बच्चा अपने घरवालों के फोटोग्राफ्स लाकर मुझे दे। मैं उनकीप्रतियाँ तैयार करके फोटोग्राफ वापस कर दूंगा। इसके अतिरिक्त हर बच्चे को  अपने परिवार से जुडा कोई रोचक संस्मरण भी लिख कर देना होगा।’
   ‘आप इस सब का क्या करेंगे।’-यह अनिल पूछ रहा था।
  ‘कुछ ऐसा करेंगे जिसे आप सब पसंद करेंगे।’-कहकर शंकर मुस्करा दिए। कक्षा ६ए  के छात्रों ने अपने अपने परिवार के फोटोग्राफ्स और संस्मरण शंकर जी को भेज दिए.
  शंकर को अम्ररीका वापस गए एक महीना बीत गया। जब भी अनुज क्लास में आते तो बच्चे उनसे पूछते-‘सर,आपके भाई साहब ने हमारे बारे में कोई सन्देश भेजा क्या?’
  अनुज कहते-‘ उनका फोन तो आया था पर आप सब के बारे में तो कोई बात नहीं हुई।’वह देखते कि उनके उत्तर से पूरी क्लास के चेहरे पर उदासी छा गई है। उन्हें दुःख होता लेकिन सच तो यह था कि अनुज सर को अच्छी तरह मालूम था कि शंकर बच्चों की सामग्री के साथ क्या कर रहे हैं। लेकिन शंकर ने उन्हें अभी 6 ए क्लास के बच्चों को कुछ भी बताने से मना कर दिया था। वह बच्चों को सरप्राइज देना चाहते थे।
                                       
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  और फिर एक दिन अनिल को कूरियर से एक पैकेट मिला। उसमें दो किताबें थीं।एक हिंदी में और दूसरी अंग्रेजी में।हिंदी की पुस्तक का शीर्षक था-‘ मेरे बाईस मित्र’| पुस्तक के कवर पर शीर्षक के नीचे एक चित्र छपा हुआ था। उसमें कक्षा 6ए के 22 छात्रों के साथ अनुज और शंकर खड़े मुस्करा रहे थे। अनिल ने जल्दी से पूरी पुस्तक को देख डाला। वह बहुत उत्साहित था,अनिल ने पुस्तक माँ को दिखाई तो वह भी चमत्कृत हो गईं। पुस्तक में हर छात्र का विवरण चार पृष्ठों में दिया गया था।एक पेज पर परिवार का विवरण,अगले दो पृष्ठों में परिवार के सब सदस्यों के फोटोग्राफ्स और अगले पेज पर अनिल की हस्तलिपि में एक संस्मरण दिया गया था।
  अगले दिन अनिल स्कूल पहुंचा तो देखा कि उसके हर सहपाठी के हाथ में वही पुस्तक थी। शंकर ने कक्षा 6 ए हर छात्र के पास पुस्तक का  पैकेट भेजा  था । अगली सुबह प्रार्थना सभा में स्कूल के प्रिंसिपल महोदय ने सब छात्रों को उस पुस्तक के बारे में बताया और कहा कि श्री अनुज के भाई शंकरजी ने स्कूल के पुस्तकालय के लिए इस पुस्तक के  हिंदी,अंग्रेजी संस्करणों की 25-25 प्रतियाँ भेजी हैं। जो छात्र चाहे वहां से लेकर पुस्तक पढ़ सकता है।
  पूरे स्कूल में उस पुस्तक की धूम मच गई। चुटकुला मास्टर सब बच्चों के हीरो बन गए थे। उन्होंने अपने भाई के साथ मिलकर  एक चमत्कार कर दिया था। (समाप्त)