Thursday 17 May 2018

बड़ी-छोटी-- देवेन्द्र कुमार-- बाल कहानी



बड़ी-छोटी—देवेन्द्र कुमार –बाल कहानी
                बसंत का सुहाना मौसम था। हल्की हवा में फूल धीरे-धीरे सिर हिला रहे थे। दो तितलियां साथ-साथ फूलों पर मंडरा रही थीं। उनमें से एक का आकार बड़ा था और दूसरी का छोटा। दोनों के पंखों पर अनेक रंग उभरे हुए थे। ये दोनों साथ-साथ दिखाई देती थीं। फूलों ने कई बार पूछा-‘’अक्सर साथ-साथ आती हो, क्या तुम दोनों बहनें हो?”
                नहीं।बड़ी तितली ने कहा।
                हां, हम बहनें हैं।छोटी तितली बोली।
                फूल ने कहा-यह कैसी अजीब बात है। एक अपने को दूसरी की बहन बता रही है, पर दूसरी इस बात से मना कर रही है। क्यों भला?”
                सुनकर दोनों तितलियां परे चली गईं-बड़ी तितली ने छोटी से कहा-तुमने यह क्यों कहा कि हम दोनों बहनें हैं। झूठ नहीं बोलना चाहिए।‘’
                मैंने सच्चा झूठ बोला है।छोटी तितली बोली।
                सच्चा झूठ। यह क्या होता है।बड़ी ने कहा। सच्चा झूठ भी तो आखिर झूठ ही होता है।
                सच्चा झूठ वह होता है जिसमें सच की खुशबू होती है।मैंने अपने को तुम्हारी बहन बताया तो कुछ गलत नहीं कहा। जानती हो मेरी एक बड़ी बहन थी बिल्कुल तुम्हारे जैसी। एक दिन हम दोनों फूलों से बातें कर रही थीं, तभी कुछ बच्चे वहां चले आए। वे हंस रहे थे- हमें बच्चों की हंसी अच्छी लगी। बच्चे खेलकूद कर थक गए तो बाग के कोने में जा बैठे। मेरी बहन एक बच्चे के बहुत पास चली गई। बस यही गलत हो गया। बच्चे ने झट मेरी बहन को अपनी मुट्ठी में बंदकर लिया और वहां से भाग गया।
                सचमुच यह तो बहुत बुरा हुआ।बड़ी तितली ने कहा। फिर क्या हुआ?”
                छोटी तितली कहती रही-माली वहां काम रहा था। उसने बच्चे को भागते देखा तो पूछने लगा-तुमने जरूर कुछ गड़बड़ की है। बताओ क्या बात है।इस पर बच्चे के दोस्तों ने कहा-माली भैया, इसने एक तितली को अपनी मुट्ठी में बंद कर लिया है।
                अरे छोड़ दो, तितली को- नन्हा कोमल जीव है। वह दम घुटने से मर जाएगी।कहकर माली बच्चे को पकड़ने दौड़ा। मैं भी माली के साथ-साथ उड़ रही थी। मैं अपनी बहन को पुकार रही थी-दीदी,
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तुम ठीक तो हो? बताओ, जवाब दो।बच्चा मुट्ठी बंद किए हुए आगे-आगे दौड़ रहा था और माली पीछे-पीछे दौड़ता हुआ पुकार रहा था-ओ शैतान, छोड़ दो तितली को नहीं तो बाग में आना बंद कर दूंगा।
                बच्चा तेजी से बाग के चक्कर लगा रहा था। लेकिन माली उसके नजदीक पहुंच गया था। उससे बचने के लिए वह बच्चा और तेजी से दौड़ा तो ईंट से टकराकर लड़खड़ाया और घास पर गिर गया।
                यह तो बुरा हुआ।बड़ी तितली बोली।
                हां, जैसे ही वह गिरा, उसकी बंद मुट्ठी खुल गई। अरे यह क्या। उसकी मुट्ठी में मेरी दीदी थी ही नहीं। तो फिर वह कहां चली गईं? मैं यही सोच रही थी, तभी माली ने बच्चे को उठा लिया। वह मेरी बहन को भूल गया था, क्योंकि एकाएक गिरने से बच्चे के माथे से खून निकलने लगा था। माली ने आवाज दी तो बच्चे की मां दौड़ी हुई चली आई। कई लोग इकट्ठे हो गए। पर चोट ज्यादा नहीं थी। जल्दी ही खून रुक गया। बच्चा मां के साथ घर में चला गया और माली फिर से अपने काम में लग गया लेकिन...
                लेकिन....बड़ी तितली ने पूछा।
                लेकिन मेरी बहन का कुछ पता नहीं था। मैं बहन को पुकारती हुई पूरे बाग में चक्कर लगा गई।
बस वह दिन था और आज का दिन है, मेरी बहन का कुछ पता नहीं है। उनका क्या हुआ, वह कहां गईं? मेरे पास वापस क्यों नहीं आई?”
                कहकर छोटी तितली चुप हो गई। फिर उसने उदास स्वर में कहा-मैं एकदम अकेली रह गई हूँ। पता नहीं बहन कहां है, किस हाल में है। आपकी सूरत मेरी बहन से बहुत मिलती है, इसीलिए मैं अपने को आपकी बहन बतलाती हूँ।
                बड़ी तितली ने दिलासा देते हुए कहा-अब मैं सारा मामला समझ गई। दुख मत करो। मुझे लगता है तुम्हारी बहन जरूर वापस आ जाएगी। हो सकता है वह किसी मुसीबत में फंस गई हो। समझो मैं तुम्हारी बड़ी बहन हूँ। तुम मुझ पर भरोसा कर सकती हो। मुझे अपनी बहन कहने के लिए मैं तुम्हें कभी नहीं डांटूगी।फिर दोनों साथ-साथ बाग में फूलों के ऊपर मंडराने लगीं
                एक फूल ने पूछा-क्या तुम दोनों में समझौता हो गया?”
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कैसा समझौता। हमारे बीच झगड़ा ही कब हुआ था। मैं अपनी छोटी बहन से बहुत  प्यार करती हूं। और मैं बड़ी हूं इसलिए इसे कभी कभी डांट भी देती हूं। लेकिन इससे क्या।कहकर दोनों तितलियां दूसरी क्यारी के फूलों के पास चली गईं। बड़ी तितली ने छोटी से कहा-कई फूल शरारती हैं वे उन मनुष्यों जैसे हैं जो दूसरां के झगड़े का मजा लेते हैं। हमें ऐसे फूलों से दूर रहना चाहिए।
                बिल्कुल ठीक।छोटी तितली ने कहा।
                आओ कहीं और चलें।बड़ी तितली ने कहा।
                कहां?” छोटी ने पूछा।
                बड़ी तितली छोटी को एक मकान की खुली खिड़की के पास ले गई। बोली-जानती हो, इस घर में एक बच्चा रहता है, जो बहुत बीमार है। जब वह स्वस्थ था जो रोज बाग में आकर फूलों से बातें किया करता था। बाकी बच्चे फूल तोड़ते थे तो वह उन्हें मना करता था। मैंने उसे कभी फूल तोड़ते नहीं देखा।
                वह कब स्वस्थ होगा?” छोटी तितली ने पूछा।
                यह तो कोई डाक्टर ही बता सकता है, पर पहले से उसकी तबीयत में सुधार है।बड़ी ने कहा।
                दीदी, तुम्हें कैसे मालूम है यह बात?” छोटी ने पूछा।
                जानती है छोटी, मैं सिर्फ फूलों से ही बातें नहीं करती, खिड़कियों से होकर घरों में भी जाती हूँ, वहां बच्चे रहते हैं। ऐसे लोग रहते हैं जो पेड़-पौधों से, हम तितलियों से प्यार करते हैं। ऐसे लोग हमारे मित्र होते हैं। उनकी खोजखबर तो लेनी चाहिए।
                इस तरह आपस में बातें करती हुई दोनेां तितलियां बीमार बच्चे के कमरे में जा पहुंची और खिड़की की चौखट से चिपककर देखने लगीं। सामने बच्चा बिस्तर पर लेटा था। अभी-अभी उसे डाक्टर देखकर गया था। जब डाक्टर देखने आया तो बच्चा फूलों और तितलियों के बारे में एक किताब पढ़ रहा था।
                पिता ने कहा-बेटा, डाक्टर साहब तुम्हें आराम करने के लिए कह गए हैं। अब किताब रख दो, नहीं तो थक जाओगे।
                डैडी, मुझे ऐसी किताबों से थकान नहीं होती।बच्चा बोला- मैं कितने दिन से बाग में नहीं गया हूं, फूलों और तितलियों को नहीं देखा है। मुझे पलंग पर लेटे लेटे अच्छा नहीं लगता है।तभी बड़ी तितली
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 ने छोटी से कहा-तुमने सुना, बच्चा क्या कह रहा है। वह बेहद उदास है क्योंकि वह बाग में जाकर फूलों और तितलियों से बातें नहीं कर सकता।
                तब इसके लिए हम क्या कर सकते हैं?”- छोटी ने पूछा दोनों उड़कर बच्चे के पलंग पर मंडराने लगीं और फिर पलंग पर रखी पुस्तक पर जा उतरीं। पुस्तक के आवरण पर दो फूल और दो तितलियों के चित्र बने हुए थे। दोनों तितलियां ठीक तितलियों के चित्रों पर जा बैठी थीं। बच्चा उठा और उसने किताब की ओर देखा। तभी तितलियां पुस्तक पर बने चित्रों से उठकर हवा में उड़ने लगीं। बच्चा खुषी से चिल्ला उठा-डैडी-डैडी, यह तो जादू हो गया। पुस्तक के आवरण पर बनी तितलियां जीवित हो गईं। देखो, देखो ये हवा में उड़ रही हैं।
                बच्चे के पिता ने देखा तो वह भी चकित रह गए। दोनों पिता- पुत्र अचरज भरी आंखो से देख रहे थे। दोनों तितलियां पहले हवा में मंडरातीं फिर पुस्तक के आवरण पर बने तितली-चित्रों पर आ बैठतीं। ऐसा कई बार हुआ। तभी बच्चे ने कहा-ऐसा तो पहले कभी नहीं देखा। यह तो जादू हैं।
                हां, बेटा तितलियां तुमसे मिलने आई हैं। तुम बीमार हो और बाग में नहीं जा सकते। इसीलिए तितलियां तुमसे खुद मिलने आ गईं।कहकर बच्चे के पिता हंस पड़े। 
                बड़ी तितली ने छोटी से कहा-तुमने सुनी इनकी बातें। बच्चा कितना खुश है। मैं सोचती हूं जब तक बच्चा स्वस्थ न हो जाए, हमें रोज यहां आना चाहिए इससे मिलने के लिए।
                लेकिन अगर इसने भी उस शैतान बच्चे की तरह हमें अपनी मुट्ठी में कैद कर लिया तो?” छोटी ने शंकालु स्वर में पूछा।
                प्यार करने वाले दूसरों को कभी दुख नहीं देते, खास तौर से वे लोग जिन्हें फूलों और तितलियों से प्यार होता है।
                तभी बच्चे ने पिता से कहा-डैडी, तितलियां तो मुझसे मिलने आ गई हैं, पर फूल तो नहीं आ सकते।
                हां, बेटा, फूलों के पंख नहीं हैं। अगर उनके पंख होते तो वे भी जरूर आते तुमसे मिलने के लिए। वैसे तितलियां उड़ते हुए फूल ही तो हैं। देखो, इनके पंखों पर कितनी सुंदर चित्रकारी की है प्रकृति ने।
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इसके बाद दोनों तितलियां वहां से बाग में चली आईं। पीछे पीछे बच्चे के पिता भी  थे। वह माली से कुछ बात कर रहे थे, तितलियों ने माली को कहते सुना-हां, बाबूजी, जब तितलियां बीमार बेटे से मिलने पहुंचती है तो फूल भी जा सकते हैं वहां।
                छोटी तितली ने बड़ी से कहा-यह माली कैसी बात कर रहा है- क्या यह फूलों को तोड़कर उनका गुलदस्ता बीमार बच्चे के पास ले जाएगा?” बड़ी तितली भी माली की बात सुनकर कुछ परेशान हो गई थी।
                पर वैसा कुछ नहीं हुआ। माली ने फूलों के दो गमले उठाए और बीमार बच्चे के कमरे में ले गया। उसने बच्चे से कहा-लो भैया, आज फूल भी तुमसे मिलने आ गए हैं। अब ये रोज तुमसे बातें करने आया करेंगे।
                क्या सच।बच्चे ने चहककर पूछा।
                हाँ , एकदम सच।कहकर बच्चे के पिता ने उसका माथा सहला दिया। माली ने उनसे कह दिया था-- जब तक बच्चा स्वस्थ होकर बाग में नहीं आने लगता, तब तक वह रोज थोड़े समय के लिए फूलों के गमलों को कमरे में ले आया करेगा।
                माली बीमार बच्चे के कमरे में हर दिन दो नए गमले रख आता और पुराने वापस ले जाता और तितली बहनें तो रोज ही उससे मिलने जाया करती थीं। बच्चे की उदासी भाग गई थी। वह तेजी से स्वस्थ हो रहा था। ( समाप्त )
               

Friday 11 May 2018

माँ नहीं-- देवेन्द्र कुमार-- मेरा बचपन



माँ नहीं
---देवेन्द्र कुमार

जब भी अतीत की गलियों में जाता हूँ तो सबसे पहली छवि माँ की दिखाई देती है. और मैंने संस्मरण का नाम रखा है _  माँ नहीं’ . यह कैसी उलटबांसी है! माँ थी, जीती जागती ,मुझे छूने को हाथ बढ़ाती , मेरी ओर आती हुई. लेकिन माँ जितना मेरी तरफ बढती थी मैं उतना ही पीछे खिसक जाता था, मन करता था जाकर उनकी गोद में लेटकर आँखें बंद कर लूं और उनकी स्नेहिल उंगलियाँ मेरे माथे को थपकती रहें और मुझे गहरी नींद आ जाए. लेकिन ऐसा न   हुआ. ऐसा होना चाहिए था पर नहीं हुआ.
मैंने नानी से सुना था मेरे पिता रामपुर में डाक्टर थे, मैं उन्हें नहीं देख सका. उन्हें न जाने किसने जहर दे दिया था. तब मैं एक वर्ष का भी नहीं था. माँ मुझे लेकर दिल्ली आ गई थीं नानी के पास. यह नानी का दूसरा दुःख था. क्या यह एक संयोग था ? मेरे नाना देहरादून में फारेस्ट अफसर थे. उनकी मौत भी जहर दिए जाने से हुई थी. कोई सम्पत्ति विवाद था. नानी मेरी माँ को लेकर दिल्ली आ गई थीं . तब मेरी माँ एक वर्ष की थीं.  
माँ की दूसरी शादी कर दी गई. माँ ने इसका बहुत विरोध किया था. वह मुझे पढ़ा- लिखा कर बड़ा करना चाहती थीं. ये बातें बाद में नानी मुझे टुकड़ों टुकड़ों में बताया करती थीं. माँ का दूसरा विवाह मंदिर में सादे ढंग से हुआ था. उस समय मुझे किसी के साथ कहीं भेज दिया गया था. माँ मेरे लिए जैसे एकदम गायब हो गईं थीं. मैं जब माँ को बुलाता था तब नानी कहती थीं –‘ कहीं काम से गई है तेरी माँ अभी आ जायेगी,’
माँ कुछ समय बाद आईं.  यह तो मेरी माँ नहीं थी. उनके साथ एक अनजान आदमी था. वह मेरा डाक्टर पिता नहीं था. माँ लाल साडी में थीं. उन्होंने कोठे में जाकर मुझे गोद में भर लिया और जोर से रो पड़ीं. मुझे प्यार करने लगीं. मैं उनकी पकड़ से छूट कर बाहर भाग आया.मुझे माँ पर बहुत गुस्सा आ रहा था. आखिर मुझे छोड़ कर वह कहाँ चली गई थीं? और वह अनजान आदमी कौन था? क्या वही माँ को मुझसे छीनकर ले गया था? माँ दो दिन घर में रहीं और फिर उस आदमी के साथ चली गई . इस बीच मैं माँ के पास नहीं गया. वह जब भी
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 मुझे गोद में भरतीं मैं छिटक कर दूर भाग जाता. और तब मैं उन्हें रोते हुए देखता.  मैं नाराज़  क्यों न होता. वह मुझे बिना बताये उस अनजान आदमी के साथ चली जो गई थीं.
बड़ा विचित्र था माँ का और मेरा सम्बन्ध .मैं उन्हें अपना अपराधी मानता था. इसलिए जब वह कुछ दिनों के लिए मेरे साथ होतीं तो मैं उनसे दूर-दूर भागता. मैं उन्हें देखता दिन में कई बार नानी से लिपट कर रोते हुए. उनका सारा समय मुझे अपने पास बुलाने  और गोद में लेकर प्यार करने की कोशिश में बीत जाता था. मेरी नानी कहती-‘ अरे, पूरनजी से नमस्ते तो कर ले.’ पर मैं कभी ऐसा न करता. माँ के नए पति का नाम पूरन चन्द्र था. मैं उस आदमी को अपने पिता की जगह कैसे मान सकता था. मुझे बाद में पता चला था कि उसकी पहली पत्नी मर गई थी और मेरी माँ को उसके पांच बच्चों की सौतेली माँ बनना पड़ा था. उसकी सबसे बड़ी लड़की मेरी माँ की उम्र की थी.  यह सब बहुत बाद में बताया था नानी ने.
मैं नानी से पूछना चाहता था कि माँ मुझे अपने साथ क्यों नहीं ले गई थीं? यह बहुत बाद में समझ आया कि जबरदस्ती दूसरी शादी होने और मुझे साथ न जा सकने का कारण उनका औरत होना था.वह अपनी मर्जी से कुछ भी नहीं कर सकी थीं.
 एक रहस्य मेरे सामने राघव ने खोला था. वह हमारी गली के पास दूसरी गली में रहते थे . मैंने उन्हें कभी अपने घर में आते नहीं देखा था. वह जब जहां मुझे देखते तो प्यार करने लगते.एक दिन मैंने नानी से राघव के बारे में पूछा तो वह राघव को गालियाँ देने लगीं. कहा-राघव बहुत खराब आदमी है. उससे कभी मत मिलना. उनकी बात मेरी समझ में नहीं आई.  एक दिन पता चला राघव को चोट लगी है. मैं नानी से छिप कर उनके घर चला गया. राघव ने मुझे माँ का फोटो दिखाया. में हैरान रह गया. भला उनके पास मेरी माँ का फोटो कैसे था! उन्होंने खुद बताया कि वह माँ को पढ़ाने हमारे घर जाया करते थे. वह माँ से शादी करना चाहते थे. उन्होंने मुझे भी माँ के साथ ले जाने की बात कही थी. पर उनके हमारे घर में घुसने पर रोक लगा दी गई, और फिर माँ की शादी उम्र में माँ से काफी बड़े ,पांच बच्चों के पिता के साथ कर दी गई थी. पता नहीं ऐसी क्या मजबूरी रही होगी. नानी ने इस बारे में कुछ नहीं बताया.
माँ के इस तरह हो कर भी न होने का सबसे बुरा असर मेरी पढाई पर पड़ा. गणित के मास्टर जैमल सिंह बहुत मारते थे.और गणित मेरी सबसे बड़ी आफत था. ऐसा कोई दिन नहीं जाता था जब मार न पड़ी हो. इसका आसान हल यही सूझा कि मैं स्कूल ही न जाऊं. मैं स्टेशन चला जाता था और वहाँ सारा दिन बिता कर छुट्टी के समय घर पहुँच जाता था.
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इस बीच माँ वर्ष में एक बार कुछ दिनों के लिए आती रहीं और मैं सदा दूर ही भागता रहा.अब तक यह समझ आ चुका था कि माँ पांच बच्चों के पिता से छूट कर कभी मेरे पास लौटने वाली नहीं. एक वर्ष माँ नहीं आईं .शायद कोई बीमार था. मैं उनसे मिलने को बैचैन हो उठा. नानी ने मेरी बैचेनी समझ ली. बोलीं-‘ जब वह आती है तब उससे दूर भागता रहता है. अब क्यों बैचैन हो रहा है .’ मैं भला क्या कहता. पर हर बीतते दिन के साथ मेरी परेशानी बढती जा रही थी. एक रात नींद खुल गई और ऐसा लगा कि अब माँ को कभी देख नहीं पाऊंगा. मेरी आँखों से आंसू बहने लगे .नानी को पता न चला. वह गहरी नींद में थीं. और मैंने निश्चय कर लिया कि माँ से मिलने जाऊँगा .
कैसे जाऊँगा ,किसके साथ जाऊँगा यह पता नहीं था. हाँ यह बात नानी को किसी कीमत पर नहीं बतानी थी. मैंने बहुत सोचा पर माँ के पास गुप चुप पंहुचने का कोई तरीका नहीं सूझा. उन दिनों माँ महू में रहती थीं जो इंदौर के निकट है. उस समय मैं इस बात को भूल गया था कि जब वह नानी के पास आती थीं तब मैं  उनकी छाया से भी दूर भागता था. पता नहीं क्यों यह बात मेरे मन में जड़ जमा कर बैठ गई थी कि माँ बीमार होने के कारण ही उस बार नानी के पास नहीं आई थीं. मैं जितना सोचता उतनी ही चिंता बढती जाती.
उस दिन मैं स्कूल न जाकर स्टेशन चला गया. पुल पर खड़ा हुआ आती-जाती गाड़ियों को देखता रहा. फिर मन में विचार कौंधा और मैं उछल पड़ा. अरे अगर मैं रेल लाइन के साथ साथ चलता जाऊं तो गाडी की तरह महू पंहुच सकता हूँ. मैंने इसी तरह माँ के पास पहुँचने का इरादा बना लिया. रात में मैंने सोच लिया कि कैसे क्या करना है. मैं जानता था कि नानी को इस बात  की भनक भी नहीं लगनी चाहिए. सुबह उठ कर मैंने बस्ते से किताबें निकाल कर कोठे में छिपा दीं फिर उसमें एक पाजामा -कमीज रख लीं. मेरे पास बस दो रूपये का नोट था. नानी पूजा कर रहीं थीं और मैं माँ से मिलने निकल पड़ा. उस समय मैं और कुछ नहीं सोच रहा था. स्टेशन पहुँच कर मै रेल लाइन के साथ वाली पगडण्डी पर चलने लगा. मेरे पास से थोड़ी थोड़ी देर बाद गाड़ियां गुजरती जा रहीं थीं.
जनवरी का महीना था. ठंडी हवा चल रही थी. धूप भली लग रही थी. चलते हुए नानी की याद भी आ रही थी. पता नहीं वह मुझे कहाँ- कहाँ ढूँढ रही होंगी. कहीं उन्हें बिना बताये आकर मैने गलती तो नहीं कर दी. लेकिन फिर माँ की याद आई और मैं बढता रहा. दोपहर ढलने लगी,धूप हलकी पड़ गई. हवा ठंडी हो गई थी. मैं एक स्टेशन के पास पहुंचा तो अँधेरा होने लगा था.अब याद नहीं कि वह कौन सा स्टेशन था. शायद ओखला था, मैं वेटिंग रूम में चला गया.
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 इतनी बात समझ में आ रही थी कि रात के अँधेरे में रेल लाइन के साथ- साथ नहीं चला जा सकेगा.
वेटिंग रूम सब तरफ से खुला हुआ था. बर्फ सी ठंडी हवा बदन में चुभने लगी. मेरे पास ओढने को कुछ नहीं था. मैंने देखा वहां बैठे सभी लोग चादर और कम्बल में लिपटे हुए थे. इस तरह घर से आकर शायद   मैंने बड़ी भूल कर दी थी. लेकिन अब भला क्या हो सकता था. मैं घुटनों  में सिर दबा कर बैठा रहा. मेरे दांत किटकिटा रहे थे.पता नहीं मैं कब तक इस तरह बैठा रहा. तभी किसी ने मुझे छुआ , एक आदमी मेरे पास खड़ा था. उसने मेरा हाथ पकड़ कर कहा-‘आओ बच्चे.’ वह मुझे वेटिंग हाल के कोने में ले गया. बोला-‘यहाँ बैठ जाओ.’ मैंने देखा वहां कम्बलों पर कई लड़के बैठे थे. वे चाय पीते हुए कुछ खा रहे थे.उस आदमी ने चाय का गिलास थमा कर कहा-‘ चाय पी लो.’ कुछ बिस्किट भी दिए. मुझे ठण्ड और भूख दोनों परेशान कर रही थीं. में चाय पी रहा था तो उसने मुझे कम्बल ओढा दिया.मुझे चैन मिला.
अब उसने पूछा-‘ घर से भाग कर आये हो?’
मैंने कहा-‘ नहीं, मैं भाग कर नहीं आया. मैं माँ के पास जा रहा हूँ. ‘
साथ में और कौन है?’
कोई नहीं.’
माँ कहाँ है?’
  मैंने कहा-‘ महू. ‘
वह मुझे घूरता रहा.’ जानते हो महू कितनी दूर है?’
मैंने बता दिया कि कैसे जा रहा हूँ.
मैं  भी महू से हूँ. ‘ फिर उसने बताया कि वह नाटक मण्डली लेकर जगह- जगह घूमता है. उसने वहां बैठे लड़कों की ओर इशारा किया. मैंने देखा- उनमे कई मेरे जितने थे. उस आदमी ने मेरे कंधे पर हाथ रख कर कहा-‘ बच्चे , अपनी नानी के पास लौट जाओ. माँ के पास इस तरह कभी नहीं पहुँच सकोगे. ‘
मैंने कहा-‘ मुझे माँ के पास जाना है.’ थकान से मेरी आँखें बंद हुई जा रही थीं.मैं कब सो  गया पता न चला. एकाएक इंजन की सीटी ने मुझे जगा दिया. मैं हडबडा कर उठ बैठा.मैरे उठते
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 ही एक लड़के ने बिछा हुआ कम्बल समेट लिया. मैंने देखा- वे तैयार खड़े थे. उस आदमी ने कहा-‘ बच्चे, हमें गाडी पकडनी है. जाओ नानी के पास लौट जाओ.’
मुझे माँ के पास जाना है.’ मैंने कहा. मैं उन्हें प्लेटफार्म पर लगी गाडी में सवार होते हुए देखता रहा. अब मुझे आगे जाना था, जाने से पहले उस आदमी ने मुझे कुछ पैसे दिए थे. कहा था-‘ नानी के पास लौट जाओ. ‘ मैं चुप खड़ा देखता रहा. लेकिन आगे जाना न हुआ. कुछ देर बाद मैंने नानी को वहां आते देखा .उनके साथ हमारे कुछ रिश्तेदार भी थे. नानी ने मुझे लिपटा  लिया और आंसू बहाने लगीं. मै हैरान था कि उन्हें मेरे वहाँ होने बात कैसे पता चली. उन्होंने बाद में बताया था कि गली के एक आदमी ने मुझे वहाँ देख लिया था और तुरंत जाकर नानी को खबर दे दी थी.
माँ को भी इस बात की खबर मिल गई थी. और दो दिन बाद वह नानी के पास आ गई  थीं.मुझे देख कर उन्होंने मेरी ओर हाथ बढाया तो मैं भाग कर गली में निकल आया , मैं उनसे नाराज था. उनसे बात नहीं करना चाहता था..
                                            ( समाप्त )