Friday 22 May 2020

छड़ी कबूतर-कहानी-देवेन्द्र कुमार


छड़ी कबूतरकहानी—देवेन्द्र कुमार
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अनुज दोपहर में दो बजे स्कूल से लौटता है। आते ही माँ गरम भोजन परोस कर कहती हैं खाकर कुछ देर आराम कर ले, फिर उसे ट्यूशन पर जाना होता है- ठीक चार बजे। इस दिनचर्या से रविवार को ही छुटकारा मिलता है। भोजन के बाद अनुज जैसे जबरदस्ती लेट जाता है। कभी नींद लग जाती है तो कभी इसी सोच में समय बीत जाता है कि रविवार के दिन दोस्तों के साथ कैसे मस्ती करेगा।                                        
इधर एक नई परेशानी खड़ी हो गई है कबूतरों की। जिस कमरे में अनुज खाना खा कर आराम करता है, उसकी छत का कुछ प्लास्टर गिर गया है। वहां मरम्मत हो रही है, इसलिए अनुज को दूसरे कमरे में जाना पड़ा ,  लेकिन पहले ही दिन कबूतरों की गुटर गूं और पंखों की फड़ फड़ के शोर ने उसे परेशान कर दिया।  कबूतर कमरे के बाहर बालकनी में शोर कर रहे थे। अनुज लेटा न रह सका। उठ कर बालकनी का दरवाजा खोला तो कबूतर उड़ गए। अनुज ने सोचाकबूतर अब नहीं आएंगे, लेकिन थोड़ी देर बाद ही गुटरगूं और पंखों की फड़ फड़ फिर सुनाई देने लगी। अनुज ने दरवाज़ा खोला तो कबूतर उड़ गए। कबूतरों और अनुज के बीच यह लुका छिपी इतनी बार हुई कि वह थक कर दूसरे कमरे में चला गया,तब तक ट्यूशन पर जाने का समय हो गया।
दूसरी दोपहर भी कबूतरों ने वही किया जो वे न जाने कब से करते आ रहे थे। अनुज ने जैसे ही बालकनी का दरवाजा खोला कबूतर फड़ फड़ करते उड़ गए, लेकिन पिछले दिन की तरह फिर लौट आये। आखिर अनुज को उठ कर बालकनी में जाना ही पड़ा। अब कबूतर उड़ गए। जितनी देर वह बालकनी में खडा रहा कबूतर नहीं आये, लेकिन जैसे ही अन्दर लौटा, उसके कुछ देर बाद ही पंखों की फड़ फड़ फिर शुरू हो गई। अनुज समझ नहीं पाया कि इस मुश्किल से छुटकारा कैसे मिले। आखिर वह उसी कमरे में चला आया जहां छत की मरम्मत हो रही थी।
माँ ने पूछा—‘क्या हुआ?’
कबूतर परेशान कर रहे हैं।’—अनुज ने बताया तो माँ हंसने लगीं—‘ कबूतर तो शोर करते ही हैं। तुम आँखें बंद करके लेटो तो नींद आ जायेगी।
मैं भी परेशान करूंगा शैतान कबूतरों को।’ –अनुज ने गुस्से से कहा और ट्यूशन के लिए चला गया। उसने कह तो दिया लेकिन वह समझ नहीं पा रहा था कि कबूतरों को उनकी शैतानी के लिए क्या और कैसे सजा दे। जब वह घर लौटा तो शाम ढल चुकी थी। वह सीधा बालकनी में गया। वहाँ सन्नाटा था, कबूतर कहीं नहीं थे। उसने चैन महसूस किया।तभी उसकी नजर एक तरफ पड़ी बांस की पतली छड़ी पर गई। अनुज ने तुरंत उसे उठा लिया। कुछ पल सोचता रहा फिर उसे हवा में इधर उधर घुमाने लगा।
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अगली दोपहर अनुज ने बालकनी के पल्ले खोलकर पर्दा डाल दिया। फिर उसके पीछे छिप कर खड़ा हो गया। वहां से छज्जे की रेलिंग दिखाई दे रही थी। उसने बांस की छड़ी को मजबूती से थामा हुआ था,अनुज ने सोच लिया था कि जैसे ही कबूतर छज्जे की रेलिंग पर उतरेंगे वह छड़ी से वार करेगा। किसी न किसी कबूतर को तो जरूर चोट लगेगी। अगर दो तीन बार ऐसा हुआ तो शैतान कबूतर इधर आने की भूल नहीं करेंगे।  लेकिन वैसा कुछ नहीं हुआ जैसा अनुज ने सोचा था। जैसे ही कबूतर रेलिंग पर उतरे अनुज ने छड़ी से वार किया लेकिन शायद किसी कबूतर को छड़ी की चोट नहीं लगी। क्योंकि कबूतर फिर लौट आये। अनुज ने कई बार छड़ी से वार किया लेकिन कोई असर नहीं हुआ। क्योकि थोड़ी देर बाद शैतान कबूतर फिर लौट आते थे। बस छड़ी हर बार रेलिंग से टकरा कर रह जाती थी।
परेशान होकर अनुज बालकनी में निकल आया। हाथ की छड़ी हिलाते हुए वह इधर उधर देखने लगा। उसका प्लान फेल हो गया था। शैतान कबूतर जीत गए थे। अब क्या करे? कुछ पल इसी तरह खड़े रहने के बाद वह कमरे में जाने के लिए मुड़ने लगा तो किसी की हंसी सुनाई दी। उसने आवाज़ की दिशा में देखा तो सामने वाले ब्लाक के फ़्लैट की खिड़की में एक लड़का दिखाई दिया। वही हंस रहा था। नजर मिलते ही उसने कहा—‘ तुम्हारी छड़ी कबूतरों का कुछ नहीं कर सकती। हाँ मेरे पास एक तरकीब है।
कैसी तरकीब?’—अनुज ने पूछ लिया। आखिर कौन था वह लड्का और उसे क्यों देख रहा था!
जवाब में उस लड़के ने अपना हाथ आगे बढ़ा कर दिखाया।उसके हाथ में एक गुलेल थी।
गुलेल से क्या करोगे?’—अनुज ने पूछा।
गुलेल से निशाना लगाऊंगा तो किसी न किसी कबूतर को जरूर चोट लगेगी। फिर वे कभी तुम्हारी बालकनी की तरफ नहीं आयेंगे।’—उस लड़के ने कहा।
अनुज ने हडबडा कर कहा—‘ अरे नहीं नहीं , ऐसा मत करना। गुलेल की चोट से कबूतर घायल हो सकते हैं, शायद कोई मर भी जाए।     
तो फिर कबूतर तुम्हें परेशान करना बंद नहीं करेंगे। तुम अपनी छड़ी से चाहे कितने भी वार क्यों न करो ,कबूतरों का कुछ नहीं बिगाड़ सकोगे,’—उस लड़के ने कहा। इन शैतानों को गुलेल से ही भगाया जा सकता है।
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रुको अभी गुलेल मत चलाना।’—अनुज ने कहा। वह कुछ घबरा गया था। कबूतरों पर गुलेल से वार करना ठीक नहीं होगा. उस लड़के को गुलेल चलाने से रोकना होगा। यह ठीक है कि वह कबूतरों के शोर से परेशान था लेकिन गुलेल से कबूतरों को चोट पहुंचाने की तो सोच भी नहीं सकता था। उसने लड़के का नाम और फ़्लैट नम्बर पूछ लिया। वह तुरंत उससे मिलकर मना करना  चाहता था। चलने से पहले उसने एक किताब ले ली। अनुज के जन्मदिन पर उसके मामाजी ने पुस्तकें उपहार में दी थीं। उसके पापा कहते थे किसी के घर खाली हाथ कभी न जाओ।उस लड़के का नाम अजय था।
फ़्लैट का दरवाज़ा अजय की मम्मी ने खोला। अजय खिड़की के सामने बैठा था। उसके पैर पर पट्टी बंधी थी। उसने बताया कि फिसल कर गिरने से चोट लग गई थी। अब पहले से ठीक है। पास  ही गुलेल रखी थी। अनुज ने उसे किताब दी। कहा –‘ मेरे जन्म दिन पर मामाजी ने उपहार में दी हैं कई पुस्तकें।अजय किताब उलटपलट कर देखने लगा। इतने में अनुज ने गुलेल उठा ली। वहां से अपने फ़्लैट की बालकनी और रेलिंग पर बैठे कबूतर दिखाई दे रहे थे। अजय बोला—‘देखो यहाँ से कबूतरों को आसानी से निशाना बनाया जा सकता है।
अनुज ने अपने मन की बात कह दी—‘ मैं यही कहने आया हूँ कि कबूतरों पर गुलेल मत चलाना।
लेकिन
कबूतरों को चोट पहुंचाना ठीक नहीं। हाँ यह तो बताओ तुमने गुलेल कब खरीदी?’
‘’ मैंने नहीं खरीदी मेरे मामाजी ने दी थी।’—अजय ने बताया।
अनुज ने कुछ सोचा फिर बोला –‘मैंने तुम्हें  किताब दी है। क्या तुम मुझे कुछ नहीं दोगे?
‘क्या दे सकता हूँ मैं?’ – अजय पूछ रहा था।
गुलेल।’—अनुज ने कहा।
गुलेल किसलिए? तुम क्या करोगे इसका?’ –अजय ने अचरज से पूछा और गुलेल अनुज को थमा दी।
कुछ तो जरूर करूंगा लेकिन अभी नहीं बता सकता।’।अनुज ने कहा और मुस्करा उठा। वादा करो कि गुलेल को वापस नहीं मांगोगे और दूसरी खरीदोगे भी नहीं।
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तो तुम भी यह किताब वापस मत लेना।’—अजय ने कहा और मुस्कराने लगा।
यह किताब तो तुम्हारे लिए लाया हूँ। अगली बार और पुस्तकें लेकर आऊंगा। मेरे पापा पढने के शौकीन हैं। वह मेरे लिए नई नई किताबें लाते रहते हैं। मेरे पास भी बहुत किताबें जमा हो गई हैं। कभी आओ तो दिखाऊंगा, पढने को भी दे सकता हूँ।’—अनुज बोला। यह कहते हुए उसकी आँखें अपनी बालकनी पर टिकी थीं।वहां कई कबूतर रेलिंग पर बैठे थे। बार बार उड़ते और फिर लौट आते। सचमुच अजय की खिड़की से कबूतरों को गुलेल से निशाना बनाया जा सकता था। लेकिन वह ऐसा कभी नहीं होने देगा।
    अजय ने कहा—‘ पैर की चोट ठीक होने पर जरूर आऊंगा। तब देखूंगा तुम्हारी पुस्तकें।
कुछ देर बाद अनुज वहां से चला आया। अपने घर की ओर बढ़ते हुए उसने गुलेल का रबर निकाल कर फेंक दिया, फिर गुलेल भी नाली में डाल  दी। गुलेल पानी में खो गई। घर लौट कर सीधा बालकनी में गया। वहां गुटर गूं करते कबूतर तुरंत उड़ गए। वह मुस्करा कर अजय के फ़्लैट की ओर देखने लगा, वहां कोई नहीं था। उसे उम्मीद थी कि चोट ठीक होने पर अजय किताबों से मिलने आएगा। कुछ देर बाद कबूतर फिर लौट आये थे।अनुज ने दरवाज़ा खोल कर कबूतरों को भगाने की कोशिश नहीं की। माँ उसे समझाती हैं कबूतर जो करते हैं वही करेंगे ,तुम अपना काम करो।‘ अनुज ने पापा से मिली नई किताब खोल ली, बाहर बालकनी में गुटर गूं हो रही थी। ( समाप्त )

खाली गिलास-कहानी-देवेन्द्र कुमार


 खाली गिलासकहानी—देवेन्द्र कुमार
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 सवेरे का समय था, बलवान चाय वाले की दूकान पर काफी भीड़ थी रोज की तरह। वहीँ काम करता था रमुआ। उसका काम था झूठे गिलास धोना, टेबल पर कपडा मारते रहना और आस पास की दुकानों में  चाय दे कर आना। उसका कोई नहीं था इसलिये बलवान को ही बापू कहता था। वैसे बलवान उसका कौन था, यह बात उसे मालूम नहीं थी। पर उसने बलवान को कई बार ग्राहकों से इस बारे में  कहते सुना था। वह कहता था – “अरे साहब क्या बताऊँ रमुआ की कहानी। यह तो मुझे सड़क पर रोता हुआ मिला था।
बस मुझे दया आ गयी और मैं इसे साथ ले आया। कई बरस हो गए तब से इसे अपने बेटे की तरह पाल रहा हूँ।
   सुनने वाले बलवान की तारीफ़ करते और चाय पीकर चले जाते। इस बीच रमुआ  सर झुकाए काम में  लगा रहता। उसे अच्छी तरह पता था कि जरा हाथ रुके नहीं कि आफत आ जाएगी। बलवान के प्यार का कड़वा  सच उसे खूब मालूम था। बात बेबात रमुआ के गाल लाल करने में बलवान को जैसे मज़ा आता था। उसकी आँखों  में आंसू आते और सूख़ जाते, वह किस से अपना दुःख कहता, कहाँ जाता।
हर दिन एक ही ढंग से बीतता था। रात को चाय की दुकान बंद होने का कोई समय नहीं था, जब तक ग्राहक आते रहते दुकान चलती रहती, और रमुआ के हाथ और पैर भी काम में लगे रहते। वह जरा भी ढिलाई नहीं कर सकता था, फिर चाहे भूख लगी हो या सर दुःख रहा हो उसे छुटकारा नहीं मिलता था।
     एक दिन उसने भूख लगने की बात कह दी तो जोर का तमाचा गाल पर पड़ा था, एक भद्दी गाली सुनने को मिली थी। उस दिन बलवान ने साफ़ कह दिया था कि खाना दुकान का काम पूरा होने के बाद ही मिलेगा। रमुआ को पता चल गया था कि क्या बात बलवान से नहीं कहनी है। मतलब यह कि जब बलवान दे तभी खाना है, और जब छुट्टी दे तभी मेज कुर्सियों के बीच नंगी जमीन पर लेट जाना है।
  दो दिन से उसे नींद नहीं आ रही है, सर में  दर्द होता रहता है। सुबह दूध वाला आकर शटर बजाता है तो रमुआ अंदर से शटर उठा कर दूध ले लेता है। यह रोज का नियम है। दूध वाला सुबह बहुत जल्दी आ जाता है| तब तक दिन भी नहीं निकला होता है पर रमुआ का काम तभी से शुरू हो जाता है। उस दिन रमुआ को शटर उठाने में देर हो गई, पूरे बदन में  दर्द हो रहा था। उसे बुखार था। दूध वाले ने बलवान से देरी की शिकायत कर दी। फिर तो आफत ही आ गई, बलवान ने चांटों से उसके गाल लाल कर दिए। पर यह नहीं पूछा कि उठने में  देर क्यों हुई थी।
  रमुआ ने बुखार के बारे में  कुछ नहीं कहा, कहने से कुछ फायदा भी नहीं था| बुखार कोई पहली बार नहीं हुआ था। मार खाकर वह  काम में लग गया। पर काम में रोज जैसी फुर्ती नहीं थी। चाय बनाने वाले मुन्ना ने उसका हाथ छूकर देखा तो चौंक कर बोला- अरे, तुझे तो तेज बुखार है!पर वह इससे ज्यादा कुछ नहीं कह सका, क्योंकि बलवान उधर ही देख रहा था। मुन्ना को भी बलवान के गुस्से के बारे में खूब अच्छी तरह पता था। रमुआ की हिमायत लेकर उसे अपनी मुसीबत नहीं बुलानी थी।
  ग्राहक चाय-नाश्ते का मज़ा ले रहे थे, इस बीच रमुआ बाज़ार में भी कई बार चाय दे आया था, उसका मन कर रहा था कि गरमागरम चाय पी ले तो शायद तबीयत कुछ ठीक हो जाये, लेकिन पी नहीं सकता था।
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 तभी बलवान ने बाज़ार में चाय दे आने को कहा। रमुआ  चाय का गिलास लेकर चल दिया, वह ठीक से चल भी नहीं पा रहा था। आगे एक आदमी चबूतरे पर बैठा अखबार पढ़ रहा था, वह रमुआ को जानता था, उसे बलवान की दुकान पर लट्टू की तरह घूमते देखा था। उसने भी रमुआ के बारे में बलवान के मुंह से खुद की तारीफ कई बार सुनी थी, उसने रमुआ को डगमगाते आते देखा तो पुकार लिया – “सुन तो।फिर बढ़ कर उसका हाथ पकड़ लिया। चौंककर बोला- तुझे तो तेज बुखार है,रो क्यों रहा है? चाय पी ले|’” 
  रमुआ चुप बैठा रोता रहा पर उसने चाय नहीं पी, उसे अच्छी तरह पता था कि इसके बाद बलवान उसके साथ क्या करेगा। उस आदमी ने रमुआ के सर पर हाथ फिराया,बोला-तू आराम से चाय पी, फिर मैं तुझे डॉक्टर के पास ले चलूँगा, अब बलवान के पास जाने की कोई जरुरत नहीं।‘’
रमुआ एकटक उस की ओर देखता रहा, उसे अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था।
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  दुकान पर बलवान ने रमुआ को पुकारा तो मुन्ना ने कहा-वह तो चाय देकर लौटा  ही नहीं है।
सुनते ही बलवान  आग बबूला हो गया, मुन्ना से बोला-उसे पकड़ कर तो ला जरा, आज उसकी हड्डियाँ अच्छी तरह नरम करूंगा, तभी अक्ल ठिकाने आएगी उस बदमाश की।
मुन्ना समझ गया कि आज रमुआ की खैर नहीं, उसने सब जगह देख डाला, पर रमुआ कहीं नहीं था। एक दुकान के चबूतरे पर चाय का खाली  गिलास रखा था। पर चाय का खाली गिलास रमुआ के बारे में यह 
बताने वाला नहीं था कि वह एक डाक्टर के क्लिनिक में था और डाक्टर उसकी जांच कर रहा था। उसे वहां ले जाने वाला आदमी उसका कौन था?शायद कोई नहीं या उसका सब कुछ।    ( समाप्त)