Monday 12 July 2021

आंखें- -बाल गीत--देवेंद्र कुमार

 

आंखें- -बाल गीत--देवेंद्र कुमार

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आंखें मेरी मम्मी की

बड़ी-बड़ी सी

गीली गीली

जब जब देखें

प्यार जताएं

 

 

गुस्सा मेरी मम्मी का

पहले मारे

फिर पछताए

बिना बात ही

गले लगाए

 

 

रोटी मेरी मम्मी की

हम मिल खाएं

खाते जाएं

पेट भरे

पर मन रह जाए।

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Friday 13 November 2020

आपको जरूर आना है-कहानी-देवेंद्र कुमार =====

 

 

 

 

 

 

 

आपको जरूर आना है-कहानी-देवेंद्र कुमार   

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  अनुज खुश है और क्यों न हो। अगले रविवार को उसका जन्मदिन है। वह बेसब्री से दिन गिन रहा है। उसने उन मित्रों की लिस्ट बना ली है जिन्हें वह बुलाना चाहता है। मौसी, बुआ, मामा लोगों को बुलाना नहीं होता। वे अपने आप आ जाते हैं। पापा राजेश उसके लिए नई ड्रेस ले आये हैं। ड्रेस बहुत सुंदर है। अनुज का मन है कि तुरंत पहन ले। लेकिन उसे जन्मदिन की प्रतीक्षा करनी होगी। इसके साथ ही बाबा, मम्मी, बहन रश्मि के लिए भी नए कपडे आ गए हैं।

    उस शाम राजेश दफ्तर से आये तो बहुत खुश थे उन्होंने अनुज से कहा—‘’ हम लोग तुम्हें एक 

सरप्राइज देने की सोच रहे हैं।’’ फिर अनुज की मम्मी जया  को कमरे बुलाया और धीरे धीरे कुछ कहने लगे। अनुज ने देखा पापा मम्मी को एक कागज दिखा रहे हैं। फि र मम्मी की हंसी सुनाई दी। इसके बाद दोनों बाबा के कमरे में गए। बाबा बाहर आये। उन्होंने अनुज की पीठ थपथपा कर कहा— ‘’अनुज, तुम्हारे पापा बड़े अफसर बन गए हैं। इस ख़ुशी में इस बार तुम्हारे जन्मदिन की विशेष पार्टी होने जा रही है।’’                                                       

    ‘’ अरे वाह!’’ अनुज ने कहा। वह सोच रहा था—‘ कैसी होगी विशेष पार्टी। कौन- कौन आयेगा?’ हर बार वह अपने सब दोस्तों को बुलाना चाहता है लेकिन कर नहीं पाता। वह यही सोच रहा था, तभी पापा ने कहा—‘‘अनुज, इस बार तुम अपने सब मित्रों को पार्टी में बुला सकते हो, सोसाइटी के ग्राउंड में  होगी तुम्हारे जन्मदिन की पार्टी। ‘’ सुनते ही अनुज अपने दोस्तों की लिस्ट बनाने में जुट गया। फिर बारी-बारी से फ़ोन करने लगा। इस बीच पार्टी की तैयारियां चल रही थीं। टेंट वाला, हलवाई, फूलों की सजावट करने वालों को बुला कर काम समझा दिया गया था। अनुज खुद भी कई बार ग्राउंड   के चक्कर लगा कर देख आया था। वह बहुत खुश था। दोस्तों को बार  फ़ोन पर याद दिला रहा था   कि उन्हें जरूर आना है उसके जन्मदिन की पार्टी में, और यह भी कि कोई गिफ्ट भी नहीं लाना है। पर उसे अच्छी तरह पता था कि कोई भी खाली  हाथ नहीं आयेगा।

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  आखिर रविवार आ गया, अनुज पापा के साथ ग्राउंड में ही बना रहा। हलवाई के आदमी आ गए थे। टेंट लगना शुरू हो गया था। अनुज के दादाजी भी हर काम पर नजर रख रहे थे। शाम घिर आई। ग्राउंड रंगबिरंगी रोशनियों से जगमगा उठा। मेहमान आने लगे थे। सब अनुज को बधाई दे रहे थे। तभी अनुज के दादाजी ने बेटे राजेश को पास  बुला कर कहा—‘’ सब इंतजाम बहुत अच्छा है पर एक बात है। ‘’

    ‘’वह क्या?’’—राजेश ने पूछा। अनुज के दादाजी ने कहा –‘’कई बार बच्चों और बूढों को वाश रूम की जरूरत पड़ती है। मैंने जाकर देखा है वाश रूम दूर एक कोने में है। वहाँ रोशनी  भी बहुत कम है। मेंहमानों को दिक्कत हो सकती है। ‘’

      राजेश सोच में पड़ गए। अनुज के दादाजी ठीक कह रहे थे। कुछ सोच कर बोले –‘’ मैंने सोसाइटी के गार्ड से तेज रोशनी  का बल्ब लगाने को कहा था, मैं अभी जाकर फिर कहता हूँ।’’  और तेज क़दमों से बाहरी गेट की बढ़ गए। गार्ड ने कहा— ‘’बाबूजी, इस समय तो बल्ब बदलना मुश्किल है। हाँ, मैं सुबह वाले गार्ड से वाश रूम के पास बैठने को कह सकता हूँ।’’ सुबह वाला गार्ड अभी गया नहीं था। उसने राजेश से कहा—‘’ आप जरा भी चिंता न करें। मैं वाश रूम के पास कुर्सी डाल कर बैठ जाऊँगा। आपके मेहमानों को कोई दिक्कत नहीं होगी। आप बस एक तौलिया और साबुन रखवा दें, आप मेहमानों का ख्याल रखें, यहाँ मैं संभाल लूँगा।’’ राजेश ने कहा—‘’इसके लिए मैं तुम्हें पैसे दे दूंगा। बस मेहमानों को दिक्कत न हो।’’

      राजेश निश्चिन्त होकर आने वाले मेहमानों के स्वागत सत्कार में जुट गए। केक काटा जा चुका था। मेहमान खाना खा रहे थे। तभी एक महिला राजेश के पास आईं। उन्होंने एक बच्चे का हाथ  पकड़ रखा था। बच्चा रो रहा था। महिला ने कहा –‘’राजेशजी, अब मुझे जाना होगा। गिरने से बच्चे के कपडे गंदे हो गए हैं।’’ राजेश ने देखा कि बच्चे की पोशाक गीली हो रही थी और उस पर कीचड के दाग लगे थे। उन्होंने राजेश को बताया कि वाश रूम के पास अँधेरा था, वहीँ उनका बेटा फिसल कर गिर गया। राजेश को अपने कान गरम होते लगे। बोले—‘लेकिन मैंने वहाँ गार्ड की ड्यूटी लगाईं थी। पता नहीं वह कहाँ चला गया, मैं आपसे माफ़ी मांगता हूँ।’’

‘’ नहीं नहीं इसमें आपका कोई दोष नहीं हैं।’’ -–कह कर महिला रोते हुए बच्चे को चुप कराती हुई समारोह से चली गईं। राजेश ने  एक बार घूम कर पंडाल में मौजूद मेहमानों की देखा और फिर तेज क़दमों से वाश रूम की ओर चले गए। गार्ड के प्रति मन में गहरा रोष उबल रहा था। वाश रूम के

पास पहुँच कर राजेश चौंक गए। कुर्सी पर गार्ड नहीं, कोई महिला बैठी थी, राजेश को देख कर वह उठ खड़ी हुई और मुस्करा दीं।

 

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        ‘’आप...आप... ‘’ राजेश हडबडा गए । ‘’ मैंने तो यहाँ गार्ड की ड्यूटी लगाईं थी लेकिन वह नहीं दिखाई दे रहा है, और आप...’’

        ‘’ मैं रमा हूँ और सामने पहली मंजिल वाले फ्लैट में रहती हूँ।’’-- महिला ने पहली मंजिल के एक फ्लैट की ओर इशारा कर दिया।

        ‘’लेकिन आप यहाँ क्यों और गार्ड...’’ -–राजेश कुछ समझ नहीं पा रहे थे| 

        रमा ने कहा -–‘’ मैं भोजन करने के बाद बालकनी में टहल रही थी, तभी मैंने किसी के कराहने की आवाज सुनी। पहले मैंने कुछ ध्यान नहीं दिया पर आवाज फिर आई तो मैंने आवाज की दिशा में  देखा-- वाश रूम के पास कुर्सी पर बैठा आदमी पेट पकडे हुए कराह रहा था।’’ 

      रमा ने आगे कहा—‘’ मैं नीचे आई और उससे पूछा तो पता चला कि उसके पेट में दर्द हो रहा था। मैंने उसे घर से दवा लाकर दी। उससे एक तरफ लेटने को कहा। लेकिन वह कहने लगा कि आपने उसे ड्यूटी दी है। जब उसका दर्द कम नहीं हुआ तो मैंने उसे घर जाकर आराम करने को कहा। उसने कहा कि अगर वह ड्यूटी छोड़ कर चला गया तो आप उससे नाराज हो जायेंगे और पैसे भी नहीं देंगें।’’

       ‘’हाँ मैंने उसे पैसे देने की बात कही तो थी पर...’’

    ‘’ मैं समझ गई कि वह दर्द के बावजूद वहां से जाने वाला नहीं। इसलिए मैंने उसे कुछ पैसे देकर जबरदस्ती उसके घर भेज दिया और उसकी जगह खुद यहाँ आकर बैठ गई। ‘’—रमा ने कहा और मुस्करा दी।

    राजेश ने पूछा --‘’आपने कितने पैसे दिए गार्ड को?’’ और जेब में हाथ डालने लगे ।

      ‘’ बस बस रहने दीजिये।’’—रमा ने कहा। ‘’जो होना था हो गया। सुबह हमें गार्ड की खोज खबर लेनी होगी।’’                          

    ‘’ मैं खुद जाकर पता करूंगा उसके बारे में।’’ राजेश ने कहा फिर लज्जित स्वर में बोले —‘’मैं आपसे माफ़ी मांगता हूँ कि मैंने आपको बेटे की जन्मदिन पार्टी में आमंत्रित नहीं किया।’’

    रमा फिर हंस दी।बोलीं—‘’ राजेशजी, हमारी सोसाइटी में तीन सौ फ्लैट हैं। हर कोई हर किसी को नहीं बुला सकता। ‘’

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    राजेश ने कहा—‘’ जन्मदिन की पार्टी लगभग समाप्त हो चुकी है। फिर भी मैं आपको निमंत्रण दे रहा हूँ। अगर आप आएँगी तो मुझे अच्छा लगेगा।’’

   ‘’मैं जरूर  आऊँगी ।’’—रमा ने कहा। ‘’आप जाकर मेहमानों को देखिये, मैं तैयार होकर आती हूँ।’’ कहकर रमा अपने फ्लैट की ओर बढ़ गईं ।

     कुछ देर बाद राजेश ने रमा को एक लड़की का हाथ थामे हुए आते देखा।   रमा ने कहा—‘‘यह मेरी बेटी पायल है।’’ पायल ने अनुज के हाथ में एक गफ्ट देकर कहा —‘‘हैप्पी बर्थ डे।’’

      रमा ने राजेश को एक कार्ड दिया —‘’ राजेशजी, अगले रविवार को इसी जगह पायल का जन्मदिन मनाया जाएगा। समारोह के कार्ड आज ही छप  कर आये हैं। पहला निमंत्रण आपको दे रही हूँ।’’

    राजेश कार्ड हाथ में लिए खडे  रहे  देर तक। जाते जाते रमा ने कहा था—‘’ कल सुबह अगर गार्ड ड्यूटी पर न आये तो मैं आपके साथ उसके घर चलूंगी उसका हाल जानने के लिए। ‘’

      ''सुबह की प्रतीक्षा क्यों ,हम इसी समय चल सकते हैं। मैं उसका घर जानता हूँ| ''-राजेश ने कहा|

अगले ही पल वह और रमा बाहर की ओर चल दिए| अनुज के जन्म दिन की पार्टी इस तरह समाप्त होगी,इसकी कल्पना कौन कर सकता था भला.(समाप्त ) 

                                                                                                               

 

Saturday 7 November 2020

भूले बिसरे-कहानी-देवेन्द्र कुमार

 भूले बिसरे-कहानी-देवेन्द्र कुमार     

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यश के पेट में दर्द था। वह स्कूल नहीं गया। माँ सरिता उसे फॅमिली डाक्टर हरीश रायजादा के पास ले गईं।  वह किसी मरीज को देख रहे थे। सरिता और यश उनके केबिन के बाहर प्रतीक्षा करने लगे। वहां दीवार पर फूलों के दो सुंदर फ्रेम मंडित चित्र लगे थे।यश देर तक उन चित्रों को देखता रहा। वह माँ से कुछ पूछने वाला था तभी उनका नंबर आ गया। डॉ. हरीश और यश के पिता विनय बचपन के दोस्त थे। एक दूसरे के परिवार में आना जाना था।

डॉ. हरीश ने यश को देखा और दवा दे दी।फिर सरिता से बातें करने लगे।यश ने देखा कि डॉ, की कुर्सी के पीछे भी फूलों का फ्रेम मंडित चित्र लगा था। उसने डॉ. हरीश से पूछ लिया—‘’अंकल, ये फूल कौन से हैं?’’

डॉ. हरीश हंस पड़े—‘’ यश,सच कहूँ तो मैं इन फूलों के बारे में कुछ नहीं जानता।’’ फिर बताने लगे—एक दिन कोई मिलने वाले आये थे। उन्होंने मेरे पीछे लगे चित्र को देखा और बोले- ‘’यह क्या! अब तुम गाँव के  नहीं शहर के बड़े डाक्टर हो।‘’ जहाँ आज फूलों का चित्र लगा है तब वहां गाँव के मेरे पुश्तैनी घर का पुराना चित्र लगा था। अगले दिन वह फूलों के तीन फ्रेम मंडित चित्र ले आये ।दो बाहर और एक मेरे पीछे लगा दिया। मैंने उनसे फूलों के नाम पूछे तो उन्होंने कहा कि वह नहीं जानते। पहले हर दिन जब मैं अपने केबिन में प्रवेश करता था तो सबसे पहले मेरी  नज़र गाँव के घर पर पड़ती थी।’’—और डॉ. हरीश चुप हो गए।

उस रात  डॉ. हरीश देर तक अपने गाँव वाले घर के बारे में सोचते रहे। अब गाँव में उनके परिवार का कोई नहीं रहता था। रह गया था बस पुराना पुश्तैनी मकान। वह तो बहुत वर्षों से गाँव नहीं गए थे। जाने का कोई अवसर ही नहीं था।जब अपना कोई गाँव में था ही नहीं तो क्यों जाते। लेकिन अब मन कह रहा था कि उन्हें कम से कम एक बार तो अपने पुश्तैनी गाँव जाना ही चाहिए।

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दो दिन बाद रविवार था, डॉ. हरीश परिवार के साथ गाँव की ओर चल दिए। उनकी कार अपने मकान के सामने रुकी तो जल्दी ही लोग इकट्ठे हो गए। हरीश कार से उतर कर दरवाजे के सामने खड़े होकर देखने लगे। दरवाजे की बदरंग लकड़ी में दरारें दिख रही थीं। दीवारें धसक गई  थीं। खपरैल में जगह जगह छेद हो गए थे। कुंडे में जंग लगा पुराना ताला लटक रहा था।तभी वहां जमा लोगों के बीच से निकल कर एक बूढा आगे आया। वह गाँव का मुखिया था। हरीश  ने मुखिया के पैर छू कर अपना परिचय दिया तो मुखिया ने डॉ. को बाँहों में भर लिया। बोले -–‘’जानते हो तुम्हारे दादा और मैं पक्के दोस्त  थे। बाद में तुम्हारा परिवार शहर चला गया। आज कितने वर्षों बाद तुम्हें गाँव की याद आई है। तुम्हे देख कर मुझे पुराने दिन याद आ गए।’’

हरीश चुप रहे , क्या कहते। मुखिया ने कहा –‘’आओ मेरे घर चलो। तुम्हारा घर तो खंडहर हो चुका है।’’

हरीश ने कहा—‘‘पहले घर के अंदर जाना चाहता हूँ।’’ ताला हाथ लगाते ही गिर पड़ा। हरीश ने दरवाजे को ठेला और अंदर घुस गए। सब तरफ मलबा और कूड़ा बिखरा था।कच्चे आँगन में ऊँची घास उगी थी। आँगन के बीच उगे पेड़ के पत्ते हिल रहे थे,परिदों की आवाज़ सुनाई दे रही थी| डॉ.    हरीश कुछ देर चुप खड़े रहे । आँखों के सामने पुराने दिनों की छवियाँ एक--एक करके आ रही थीं। उनमें माँ का चेहरा सबसे उजला था। कोठों और दालान पर टूटे खपरैल से होकर धूप के टुकड़े गिर रहे थे। रसोई में चूल्हे के ऊपर दीवार पर गहरी कालिख जमी थी।   

       मुखिया की पुकार सुनाई दी तो हरीश बाहर आ गए। मुखिया हरीश के परिवार को अपने घर की ओर ले चले। हरीश ने देखा गलियाँ कच्ची थीं , हर कहीं कूड़ा फैला था। घरों से निकला पानी जगह जगह जमा हो रहा था। ज्यादातर मकान कच्चे थे। गाँव में खूब हरियाली थी, दूर नदी झलकी दे रही थी। मुखिया जी के घर के बाहर गाँव वालों का झुण्ड जमा था। मुखिया जी ने हरीश का परिचय दिया तो एक गाँव वाले ने हरीश से कहा—‘‘हमारे गाँव में इलाज के लिए कोई डाक्टर नहीं है। यह सुनकर अच्छा लगा कि आपका जन्म इसी गाँव में हुआ था। क्या आप हमारा इलाज करेंगे?’’

        और कुछ देर बाद डाक्टर हरीश कुछ मरीजों की जांच कर रहे थे। उन्होंने सभी मरीजों के पर्चे तैयार कर दिए लेकिन वह अपने साथ कोई दवा तो लेकर आये नहीं थे। तभी मुखिया जी ने बताया कि पास के कसबे में केमिस्ट की दुकान है। डॉ० हरीश ने ड्राईवर को पर्चे लेकर भेज दिया।साथ में एक गाँव वाला भी गया। हरीश ने साधारण खांसी –बुखार की दवाओं के साथ मरहम   पट्टी का सामान तथा बच्चों के लिए कुछ टॉनिक भी मंगवा लिए। ड्राईवर को समझा दिया कि सब पर्चो की दवाएं अलग अलग लिफाफों में मरीजों के नाम लिखवा कर लाये। ड्राईवर के लौटने के बाद सब रोगियों को समझा दिया कि दवाएं कैसे लेनी हैं। कुछ बच्चों की चोटों की मरहम-पट्टी भी कर दी गई।

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     अब तक दिन ढलने लगा था। डॉ०  चलने को तैयार हुए तो मुखिया जी ने पूछा —‘’घर का क्या करने की सोच रहे हो? क्या फिर कभी आओगे?’’

     ‘’में अगले रविवार को फिर आऊंगा। आना ही पड़ेगा। मैं मरीजों को बीच में कैसे छोड़ सकता हूँ भला। ‘’

     सुन कर मुखिया जी खुश हो गए। उन्होंने कहा –‘’बेटा, अगर ऐसा है तो मैं तुम्हारे घर की मरम्मत करवा देता हूँ। ‘’ गाँव से शहर लौटते हुए डॉ०  हरीश पत्नी से लगातार इस बारे में बात करते रहे।

      अगले रविवार को डाक्टर की कार गाँव में अपने घर के आगे रुकी तो वह हैरान रह गए। पुराने घर का तो काया पलट हो चुका था। दीवारों की मरम्मत हो चुकी थी। नया छप्पर डाल दिया गया था। कार की आवाज़ सुनकर मुखिया जी अंदर से निकल कर  आये। बोले —‘’अंदर आकर देखो।’’

      हरीश ने देखा आँगन से घास गायब थी ।पूरा घर जैसे नया हो गया था। हवा में मीठी गंध तैर रही थी। मुखिया जी ने कहा-‘’ जब कोई शुभ कार्य होता है तो घर में हलवा बनता है। तुम्हारी दादी तुम्हारी माँ की रसोई में काम कर रही हैं।’’  आँगन में बड़ी दरी पर बहुत से गाँव वाले बैठे थे। हरीश के साथ सबने हलवा खाया। फिर हरीश ने अपने पुराने मरीजों की जांच की और कुछ नए लोगों को  देखा। इसके बाद हरीश ने मुखिया जी से एक नए आदमी का परिचय करवाया। वह था रामसरन  कम्पाउण्डर जिसे हरीश अपने साथ लेकर आये थे। उन्होंने मुखिया जी से कहा—‘’ अब से रामसरन यहीं रहेगा। इसका गाँव बिरसा पुर यहाँ से ज्यादा दूर नहीं है। दिन  में यह गाँव में रह कर मरीजों को दवा देगा और रात में साइकिल से अपने गाँव चला जाया करेगा। ‘’

        यह सुनकर मुखियाजी तो बहुत खुश हो गए। उन्होंने कहा—‘’इससे अच्छा कुछ नहीं हो सकता। रामसरन के आने जाने के लिए साइकिल का इंतजाम हो जाएगा। बारू माली का परिवार पास में ही रहता है। रामसरन के लिये भोजन उसकी पत्नी बना दिया करेगी। लेकिन कम्पाउण्डर और दवाओं का खर्च ...’’ डॉ, हरीश ने बीच में ही टोक दिया और बोले—‘’ मुखिया दादा, आपको इन सब के लिए चिंता नहीं करनी होगी। मैं इस गाँव का डाक्टर हूँ। मैं मानता हूँ कि गाँव से शहर जाकर मैं

 अपने गाँव को भूल गया था, पर अब एक डाक्टर के रूप में यहाँ के लिए कुछ करना चाहता हूँ । गाँव के लोग स्वस्थ रहें, इतना कर सकूं तो मुझे संतोष होगा।’’

         ‘’कुछ काम मुझे भी बता दो।’’—मुखियाजी ने कहा।

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         ‘‘आप पंचायत  के मुखिया हैं। आप गाँव की गलियों की मरम्मत और कूड़े के निपटान का इंतजाम कर सकें तो बीमारियाँ कम हो सकती हैं। सरकार इन कामों  के लिए मदद दे सकती है। गाँव के बच्चों के टीकाकरण का इंतजाम मैं करूंगा। कुछ हफ़्तों तक मैं हर रविवार को यहाँ आता रहूँगा। मुझे उम्मीद है कि अच्छा बदलाव आएगा। ‘’ शहर के लिए रवाना होने से पहले डॉ०  हरीश ने घर के अंदर और बाहर गाँव के बड़े बूढों  तथा बच्चों के साथ कई फोटो क्लिक किये।

     और फिर एक दिन विनय के पास फोन आया । डॉ०  हरीश ने कहा ‘’–यश को लेकर आना मेरे क्लिनिक पर। ‘’      

    ‘’यश की तबीयत अब ठीक है ’’—सरिता ने कहा और शाम के समय विनय और सरिता यश के साथ डॉ०  हरीश के क्लिनिक पर जा पहुंचे। यश डॉ०  हरीश के केबिन में गया तो चौंक पड़ा। डॉ०  हरीश की कुर्सी के पीछे फूलों की जगह दूसरे ही चित्र लगे थे। हरीश ने कहा -–‘’मैं जिन फूलों को नहीं पहचानता उनके चित्र हटवा दिए हैं मैंने। ये चित्र मेरे गाँव वाले घर और गाँव वालों के हैं। तुम इनके बारे में जो पूछना चाहो मैं बता सकता हूँ। तुम्हारे प्रश्न का उत्तर पाने के लिए ही  मुझे अपने भूले बिसरे गाँव जाना पड़ा।’’ फिर उन्होंने विनय और सरिता को पूरी घटना कह सुनाई| यश ध्यान से गाँव के चित्रों को देख रहा था। विनय ने कहा—‘’अबकी बार हम लोग भी तुम्हारे गाँव चलेंगे।’’

    ‘’मैं तो खुद तुमसे यह कहने वाला था।’’—डॉ०  हरीश ने कहा और मुस्करा दिए । यश ने इससे पहले कोई गाँव नहीं देखा था, उसने पूछा —‘’ हम कब चलेंगे आपके गाँव?’’

     ‘’जल्दी ही।’’—डॉ०  हरीश ने कहा और मुस्करा दिए। यश की आँखें अब भी गाँव के चित्रों पर टिकी थीं। वह क्लिनिक से हटाये गए अनाम फूलों के चित्रों बारे में सोच रहा था।                (समाप्त )