Monday 10 September 2018

जोकर काम पर--देवेन्द्र कुमार-- कहानी बच्चों के लिए


जोकर काम पर—देवेन्द्र कुमार—कहानी बच्चों के लिए
==जोकर तो सर्कस में करतब दिखाते हैं,लेकिन यह जोकर तो कुछ और ही करने पर मजबूर था.रामभज सिपाही के कहने पर उसने बेमन से खेल दिखाना शुरू तो किया लेकिन तभी...==     


सड़क पर काम चल रहा है. सड़क का एक हिस्सा नीचे धंस गया है. शायद नीचे पानी की पाइप लाइन फट गई है. गड्ढा खोदकर उसे घेर दिया गया है. लोहे के बोर्ड लगा दिए हैं, जिन पर लिखा  है-‘ सावधान, आदमी काम पर हैं.’ इसलिए वहां सड़क संकरी हो गई है. ट्रैफिक को नियंत्रित करने के लिए वहां सिपाही रामभज की ड्यूटी लगा दी गई है. 
दोपहर में एक घंटा काम बंद रहता है. तब रामभज भी वहां से चला जाता है. एक दोपहर वह लौटा तो देखा एक मजदूर बोर्ड पर कुछ लिख  रहा है ‘आदमी’ शब्द पर कागज चिपका कर उस पर ‘जोकर’ लिख दिया गया था. ‘जोकर काम पर’ – ‘’यह क्या है?’’ उसने पूछा.. जवाब में एक मजदूर ने कहा-‘’ मैने सही ही तो लिखा है, हमारे बीच एक जोकर मौजूद है.’’ जिसे जोकर कहा गया था वह उठ कर रामभज के पास आ खड़ा हुआ. उसने कहा-‘’ जी, पेशे से मैं जोकर हूँ, लेकिन सर्कस बंद हो गया और मैं बेरोजगार.’’  उस का नाम डेविड था.
रामभज. बोला-‘; अगर तू जोकर है तो वही करतब दिखा जो सर्कस में दिखाया करता था.’’
डेविड ने रामभज का डंडा थाम लिया और कुछ देर तक खामोश खड़ा रहा. सबकी आँखें उस पर टिकी थीं. एकाएक डेविड ने डंडा हवा में उछाला और फिर लपक कर पकड़ लिया. डेविड ने डंडे को एक बार फिर हवा में काफी ऊपर उछाल दिया और खुद भी उछला उसे हवा में पकड़ने के लिए. .  फिर न जाने क्या हुआ – डंडा फुटपाथ पर आ गिरा और डेविड गड्ढे में.. हवा में एक चीख गूंजी.
डेविड को बाहर निकाल कर पटरी पर लिटा दिया गया. वह बेहोश था.  अब तुरंत कुछ करना था. रामभज ने वहां से गुज़रती हुई एक कार को रोका फिर कई मजदूरों ने डेविड को सीट पर लिटा दिया. रामभज ने ड्राईवर से हॉस्पिटल चलने को कहा. डॉक्टर ने डेविड को देखा और उसे एडमिट कर लिया. डॉक्टर ने कहा कि डेविड को ठीक होने में कई दिन लगने वाले थे.  
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     नर्स ने दवा का परचा रामभज को थमा दिया. केमिस्ट की दुकान अंदर ही थी. दवाओं का बिल काफी ज्यादा था. रामभज की जेब में उतने पैसे नहीं थे. उसने केमिस्ट से कहा—‘‘मैं बाकी पैसे अभी लाकर देता हूं.’’ केमिस्ट मान गया. डेविड की मां गाँव में रहती थी. अब जो करना था उसे ही करना था.   
सुबह ड्यूटी से पहले हॉस्पिटल जाकर डेविड का हालचाल लिया. डॉक्टर से बात की. डॉक्टर ने कहा कि हालत पहले से ठीक है. वह ड्यूटी पर आ गया, तभी दिमाग में एक विचार आया. वह कुछ पल बोर्ड की ओर देखता रहा--’जोकर काम पर’ फिर बढ़ कर नया कागज़ चिपका कर उस पर लिख दिया—‘जोकर घायल है. उसे मदद चाहिए.’
 यह लिख कर रामभज ड्यूटी में व्यस्त हो गया. तभी वहां एक कार आकर रुक गई. कार से उतर कर एक आदमी रामभज के पास आया. उसने कहा—‘’ यह जोकर का क्या मामला है?’’ रामभज ने संक्षेप में पूरी बात बता दी. “ दवाओं की दुकान मेरी ही है.’’ उसने कहा—‘’आप वहां आकर मिल लें, मैं मदद करूंगा.” रामभज को इसकी आशा नहीं थी. एक बड़ी चिंता दूर हो गयी थी. डेविड की तबियत में काफी सुधार हो गया था. कुछ दिन बाद उसे हॉस्पिटल से छुट्टी मिल गई. ‘’अब क्या इरादा है?‘’-- रामभज डेविड से पूछ रहा था.
‘’‘सोचता हूँ गाँव चला जाऊं माँ के पास. उन्हें चिंता हो रही होगी.’’--डेविड ने कहा.
‘‘हाँ, यही ठीक रहेगा.’’-- रामभज ने कहा. डॉक्टर ने डेविड को कुछ दिन आराम करने की सलाह दी थी. बिना काम शहर में रुकने का कोई फायदा नहीं था. रामभज उसी दिन डेविड को उसके गाँव छोड़ आया. गाँव पास ही था. डेविड को सही-सलामत देख कर उसकी माँ बहुत खुश हुई.एक साधारण झोंपड़ी थी पर साफ़ सुथरी. आगे फूल लगे थे और पीछे फलों के पेड़ और साग-भाजी की  क्यारियाँ.
रामभज समझ गया कि डेविड को जल्दी ही कोई काम-धंधा करना होगा. चलते समय उसने डेविड से कहा-- ‘’कुछ दिन आराम कर लो फिर शहर आ जाना. कुछ तो हो ही जाएगा.’’ घर जाकर वह पत्नी को डेविड के बारे में बताने लगा, तभी उसका बेटा रजत वहां आ गया. डेविड के बारे में सुन कर बोला-‘’ पापा, हमारे स्कूल की बस रोज वहाँ से गुज़रती है जहां बोर्ड पर जोकर के बारे में लिखा हुआ है. हमारी क्लास ने जोकर भाई के लिए कुछ पैसे जमा किये हैं. हम वह पैसे उन्हे देना चाहते हैं.’’
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‘’ लेकिन उसे तो मैं अभी-अभी उसके गाँव छोड़ कर आ रहा हूँ.’’ पिता की यह बात सुनकर रजत कुछ देर चुप रहा फिर बोला-‘’ तब उन पैसों का क्या करें?’’
रामभज समझ नहीं पा रहा था कि रजत से क्या कहे. अगले दिन स्कूल से लौटने के बाद रजत ने रामभज को बताया कि प्रिंसिपल सर ने कल उसे मिलने के लिए बुलाया है. अगले दिन रामभज जाकर रजत के प्रिंसिपल से मिला. उन्होंने कहा-‘’ बच्चे गाँव जाकर डेविड से मिलना और उसे जमा की गई रकम देना चाहते हैं.’’
वह बच्चों की टोली को डेविड के पास ले जाने को तैयार हो गया. प्रिंसिपल ने स्कूल की ओर  से बस का प्रबंध कर दिया था. बच्चों की टोली को देख कर डेविड और उसकी माँ तो ख़ुशी से जैसे पागल हो गए. बच्चों को डेविड से मिल कर बहुत अच्छा लगा. वे डेविड को पैसे देने को उतावले थे पर रामभज ने उन्हें मना कर दिया. विदा लेते समय उसने डेविड से कहा –‘’ अब तुम ठीक हो गए हो. शहर आकर स्कूल के बच्चों से मिल लो.’’
कुछ दिन बाद डेविड गाँव से आ गया. रामभज उसे रजत के स्कूल ले गया. प्रिंसिपल ने ‘डेविड से कहा-‘’ हमारे स्टूडेंट्स तुम्हारे सर्कस वाले करतब देखना चाहते हैं.’’
डेविड ने कहा—‘’ काफी दिन हो गए सर्कस बंद हुए.’’
 ‘’ तो क्या हुआ. बच्चों के लिए क्या इतना भी नहीं करोगे.’’ कह कर प्रिंसिपल हंसने लगे. आखिर डेविड राजी हो गया. सर्दी का मौसम था. स्कूल के ग्राउंड पर गुनगुनी धूप बिखरी थी. पूरा स्कूल वहां जमा था. डेविड के लिए जोकर की पोशाक का बंदोबस्त कर लिया था. जोकर की पोशाक में डेविड सामने आया तो सब बच्चे तालियाँ बजाने लगे. डेविड को सर्कस के दिन याद आ गए. वह अपने करतब दिखाने लगा. पूरा ग्राउंड रह रह कर तालियों से गूंजने लगा. बाद में प्रिंसिपल ने उसे एक लिफाफा दिया. कहा—‘’यह बच्चों की ओर से तुम्हारे लिए है.’’
डेविड ने तुरंत लिफाफा लौटा दिया. बोला-‘’ मैं ये पैसे कभी नहीं ले सकता.’’ अब रामभज को अपनी बात कहने का अवसर मिला. उसने कहा—‘’ ये पैसे तुम्हारे लिए नहीं हैं. ये हैं तुम्हारी माँ और तुम्हारे मजदूर दोस्तों के लिए .’’
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प्रिंसिपल ने कहा-‘’ डेविड, तुम्हें गुजारे के लिए कुछ तो करना ही होगा, तब फिर यही क्यों नहीं. मैं कोशिश करूंगा कि दूसरे स्कूलों में भी तुम खेल दिखाओ. अपनी माँ और अपने दोस्तों की उसी तरह मदद करो जैसे उन्होंने तुम्हारी की है,’’ सड़क की मरम्मत हो चुकी थी. रामभज की ड्यूटी कहीं और लग गई थी,लेकिन जोकर वाला बोर्ड अब भी वहीँ लगा था. उस पर जोकर की सुंदर ड्राइंग बनी थी. उसके नीचे लिखा था--धन्यवाद.( समाप्त )




           

Wednesday 5 September 2018

डबल ड्यूटी --देवेन्द्र कुमार--कहानी बच्चों के लिए



डबल ड्यूटी—देवेन्द्र कुमार—कहानी बच्चों के लिए

===क्या पाना चाहती है लखमा डबल ड्यूटी करके? कुछ ज्यादा पाने की इच्छा किसी से कुछ छीनने की इच्छा पर क्यों टिकी होनी चाहिए? और छीनना भी किससे/====.    

     लखमा तेजी से हाथ चला रही है. आज उसे जल्दी घर जाना है. कोई  मेहमान आने वाला हैं. लेकिन काम तो पूरा करना ही है. लखमा बाज़ार में तीन दुकानों में सफाई का काम करती है. पति मजदूर है. दोनों के काम करने पर भी घर मुश्किल से चलता है. एक बेटा है अमर.  
       दुकानों के बाहर बरामदे में पोंछा लगाते हुए लखमा की नज़र एक बच्चे पर पड़ी, जो कुछ आगे एक दुकान के बाहर सफाई कर रहा था. लखमा देखती रही- बच्चा सात आठ साल का लग रहा था. वह उसे देखती रही. बच्चा कोशिश कर रहा था पर सफाई उससे हो नहीं रही थी. पानी की बाल्टी खिसकाते हुए वह फिसल गया और बाल्टी उलट गई. अब लखमा रुक न सकी. उसने बढ़ कर बच्चे को गोदी में उठा लिया और सिर सहलाते हुए बोली-‘’ तेरा नाम क्या है?’’
     ‘’ जानी.’’-- उसने कहा.
    ‘’ तू यह काम क्यों कर रहा है? यह तेरे बस का नहीं है. ‘’ पूछने पर लखमा ने जान लिया कि जानी की माँ रेशमा बीमार है. वह भी लखमा की तरह दुकानों में सफाई का काम करती है. और उसने ही जानी को सफाई करने भेजा था. ऐसी स्थिति से कई बार लखमा को भी गुजरना पड़ा था. वह जानती थी कि ऐसे में काम हाथ से निकल जाता है. इसीलिए जानी की माँ ने उसे काम करने भेजा होगा.
    लखमा ने जानी से कहा-‘’ बेटा, तू रहने दे. जा बच्चों के संग खेल. मैं अभी निपटा देती हूँ. ‘’ जानी हंसने लगा और सडक पर खेलते बच्चों के बीच चला गया. हालांकि लखमा को घर जाने की जल्दी थी पर उसे जानी का अधूरा काम पूरा करना ही था. उसने जल्दी जल्दी काम निपटाया फिर घर की तरफ चल दी . उसने देखा जानी सड़क पर दूसरे बच्चों के साथ खेल रहा
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था, लखमा के होठों पर मुस्कान आ गई. उसे अच्छा लग रहा था. पर घर पहुँच कर मूड बिगड़ गया, उसे घर लौटने में देर हो गई थी. इसलिए मेहमान बिना मिले चला गया था.
    अगली सुबह लखमा काम पर पहुंची तो जानी फिर वहाँ दिखाई दिया. इसका मतलब था कि जानी की माँ अभी बीमार थी. ‘ मुझे न जाने कितने दिन डबल ड्यूटी करनी होगी. ‘ वह यह सोच कर पछता रही थी कि उसने क्यों यह मुसीबत अपने ऊपर ले ली. वह जानी को सफाई करते देखती रही. वह ठीक तरह से काम कर नहीं पा रहा था. पर लखमा ने उसकी मदद नहीं की. लेकिन पोंछा लगाते हुए जब जानी दो बार फिसल गया तो लखमा रह न सकी. उसने जानी का हाथ पकड़ कर जोर से अपनी ओर खींचा और चिल्ला कर बोली –‘’ कल तुझे मना किया था न कि तू यह काम नहीं कर सकता. बता फिर क्यों आया?’’
     हाथ खींचने से जानी रो पड़ा. सुबकते हुए बोला-‘’ माँ ने भेजा है. उनकी तबीयत ठीक जो नहीं है.’’
    ‘’ चल मैं चलती हूँ तेरी माँ के पास. चाहे जो हो बस तुझे यहाँ नहीं आना है.’’-- लखमा ने कहा और जानी के साथ उसकी माँ से मिलने चल दी. उसने जानी का काम अधूरा छोड़ दिया. वह कुछ सोच रही थी.
     जानी की माँ छोटे से कमरे में जानी के साथ रहती थी. उसका पति दूसरे शहर में नौकरी करता था और कभी कभी ही यहाँ आया करता था. बीमारी में जानी की माँ की देखभाल करने वाला कोई नहीं था. लखमा जानी की माँ को देख कर समझ गई कि उसकी तबीयत जल्दी ठीक नहीं होगी. उसने कहा –‘’ जानी की माँ , तुम काम की चिंता मत करो. पर जानी को मत भेजा करो. अभी तो इसके पढने – खेलने के दिन हैं. ‘’ जानी की माँ रेशमा ने कोई जवाब नहीं दिया.
     अगली सुबह लखमा ने देखा कि जानी फिर वहां खड़ा था. लखमा को देखकर वह दूर चला गया, शायद जानी लखमा से डर गया था. लखमा उस दुकान वाले के पास गई जहाँ जानी सफाई कर रहा था. उसने कहा-‘’ जानी की माँ तो बीमार है. शायद वह काफी समय तक काम करने नहीं आ सकेगी ‘’ दुकान वाले ने कहा – ‘’ तो तुम कर लो उसकी जगह. हमारी दो दुकानें और हैं.’’ लखमा खुश हो गई . उसे अच्छे पैसे मिलने की उम्मीद हो गई. डबल ड्यूटी में मेहनत ज्यादा थी पर पगार भी तो दुगनी मिलने वाली थी. हाथों के साथ दिमाग भी भाग रहा था. वह सोच रही थी कि अतिरिक्त पैसों से क्या कुछ हो सकेगा. अब जानी दुकान पर नहीं आता था. बस एक चबूतरे पर बैठा लखमा को देखता रहता था. लखमा सोचती थी-- जानी यहाँ क्या कर रहा है? रेशमा के पास क्यों नहीं बना रहता. मन हुआ कि जानी से रेशमा का हाल पूछे पर चुप रह गई.
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     लखमा ने महीने के आखिरी सप्ताह में रेशमा के बदले काम किया था. दुकानवाले ने पैसे दिए तो बोली-‘’ रेशमा के पैसे भी दे दो, उसे जरूरत होगी.’’ दुकानवाले ने कहा-‘’ रेशमा के पैसे उसी को दूंगा.’’ सुन कर लखमा सोच में पड़ गई. वह रेशमा के बारे में सोच रही थी. एक तो काम नहीं ऊपर से बीमारी का खर्च. पिछले काम के पैसे भी नहीं मिल रहे हैं. बाज़ार में जानी दिखा तो पूछा-‘’ यहाँ क्या कर रहा है ? माँ के पास क्यों नहीं टिकता?’’
    ‘’ माँ ने काम खोजने को कहा है.’’-- जानी बोला.
    ‘’ तुझे कौन काम देगा भला. ‘’ लखमा ने व्यंग्य से कहा. ‘’ चल मैं तेरी माँ से बात करती हूँ.’’ और उसके साथ रेशमा से मिलने चल दी. लखमा ने देखा कि रेशमा की तबीयत पहले से ज्यादा ख़राब है. साफ़ था कि उसे तुरंत काफी पैसे चाहिएं ताकि ठीक से दवा--दारु और देख भाल हो सके. लखमा ने कहा-‘’ तुम जानी को पढने भेजो, लेकिन सबसे पहले तुम मेरे साथ चलो.’’ फिर उसे सहारा देती हुई दुकानदार के पास ले गई. उसे रेशमा की बीमारी के बारे में बता कर तुरंत पैसे देने को कहा.     
     दुकानदार ने पैसे देते हुए कहा-‘’ तुम तो ऐसे सिफारिश कर रही हो जैसे तुम दोनों आपस में बहनें हों. लेकिन तुम दोनों के धर्म तो अलग अलग हैं, फिर बहनें कैसे हो सकती हो.’’ लखमा से पहले रेशमा बोल उठी-‘’ बहन होने के लिए धर्म एक होना जरूरी नहीं.’’ और मुस्करा दी. लखमा सोच रही थी कि कहीं दुकानदार काम के बारे में उसकी बात रेशमा को न बता दे. तब तो रेशमा उसे लालची समझ बैठेगी. पर वैसा कुछ न हुआ. लखमा रेशमा को उसके घर ले आई. रास्ते भर वह कुछ सोचती रही थी. और फिर उसने फैसला कर लिया. रेशमा ने उसे अपनी बहन कहकर उसके मन को छू लिया था. लखमा को अपनी छोटी बहन याद आ गई जो गाँव में रहती थी. लखमा काफी समय से बहन से मिल नहीं पाई थी.
     अगली सुबह काम पर जाने से पहले वह रेशमा के पास जा पहुंची. कहा-‘’ रेशमा, आराम कर, तेरा काम मैं संभाल लूंगी. पर एक शर्त है, आज के बाद जानी को काम पर मत भेजना.  उसे पढना चाहिए.’’
    ‘’ कौन पढ़ाएगा जानी को?’’ रेशमा ने उदास स्वर में कहा.
    ‘’मैं इसे मास्टरजी के पास ले जाऊँगी जो मेरे बेटे को पढ़ाते हैं. ‘’ –लखमा ने कहा. उसने आगे बताया कि मास्टरजी बच्चों को पढ़ाने के पैसे नहीं लेते. किताबें और कॉपी-- पेंसिल भी अपनी जेब से देते हैं. वे उन बच्चों को पढ़ाना चाहते हैं जो स्कूल नहीं जा पाते.
रेशमा को लखमा की बात माननी पड़ी. लखमा जानी को मास्टरजी के पास ले गई. और जब जानी पहले दिन मास्टरजी से पढ़ कर आया तो वह ख़ुशी से रो पड़ी. लखमा रेशमा के बदले
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काम करती रही. महीना पूरा हुआ तो लखमा ने रेशमा की दुकानों के पैसे लाकर रेशमा के हाथ में रख दिए. वह लेने को तैयार नहीं हुई. तब लखमा ने कहा-‘’ मान ले कल अगर मैं बीमार हो जाऊं तो क्या तू मेरी मदद नहीं करेगी?’’ इस बात ने रेशमा को चुप कर दिया. अब कहने को कुछ नहीं था, लखमा अपने घर की ओर चली तो मन पर बैठा बोझ उतर गया था.( समाप्त)