Friday 16 March 2018

संजू --देवेन्द्र कुमार --बाल कथा




संजू
--देवेन्द्र कुमार

-उस सुबह बादल घिरे थे. हलकी बारिश हो रही थी. प्रतिमा देवी रोज की तरह मंदिर जा रही थीं, मंदिर के निकट पहुँचते ही उन्होंने पुजारी जी को किसी पर चिल्लाते हुए सुना, एक आदमी मंदिर की सीढ़ियों के पास सिर झुकाए खडा था. प्रतिमा देवी ने पूछा तो पुजारी ने उस आदमी की ओर संकेत करते हुए कहा—‘’  यह मंदिर में सेवा के समय कभी नहीं दिखाई देगा, लेकिन प्रसाद बंटते समय लाइन में सबसे आगे रहता है.’’
प्रतिमा देवी उसे जानती हैं. वह है संजू, उसका एक हाथ कलाई से कटा हुआ है.उसके पास कोई काम नहीं है. कहता है कि वह तो काम करना चाहता है, पर कोई काम देता ही नहीं. उसका  आधा हाथ देखते ही मना कर देते हैं. वह अपना आधा हाथ कुरते की बांह में छिपाए रहता है. सारा दिन टूटे पत्ते की तरह इधर से उधर फिरता रहता था. प्रतिमा  देवी ने अक्सर ही संजू को लोगों से झिडकियां खाते देखा है. उन्हें यह सोच कर बुरा लगता है कि कभी कभी कोई कितना बेचारा हो जाता है. उन्होंने कहा—‘ संजू, पुजारीजी ठीक कह रहे हैं. तुम्हारा एक हाथ खराब है, लेकिन ठीक  हाथ से भी तो बहुत कुछ किया जा सकता है.’’
संजू ने प्रतिमा देवी की ओर देखा जैसे पूछ रहा हो –आखिर मैं क्या कर सकता हूँ. उन्होंने कहा –‘’संजू, झाड़ू से मंदिर के आसपास सफाई कर डालो, यह काम एक हाथ से बखूबी किया जा सकता है. और इसके बाद मंदिर के चबूतरे को पोंछे से चमका दो.’ सुबह सुबह सफाई वाली मुन्नी मंदिर के आस पास झाड़ू—पोंछा कर जाती है, लेकिन कुछ देर बाद फिर से सफाई की जरूरत महसूस होने लगती है. मंदिर पर छतनार पेड़ से  पत्ते और परिंदों की गंदगी गिरती रहती है. मंदिर के फर्श पर गिरे फूल और प्रसाद के कण जमीन पर चिपक जाते हैं. इस बारे में मुन्नी का कहना था कि वह सारा समय मंदिर की सफाई करेगी तो पूरी सोसाइटी में झाड़ू कौन लगाएगा. उसकी बात गलत भी नहीं थी.
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संजू ने एक तरफ रखी झाड़ू उठाई और सफाई करने लगा. प्रतिमा देवी पूजा करने के बाद मंदिर से बाहर आईं तो संजू हाथ रोक कर उनकी तरफ देखने लगा.उन्होंने कहा—‘’संजू, रुक क्यों गए.’’                                         
     ‘’ मैंने संजू को पहली बार ढंग से काम करते देखा है.’’— पुजारीजी बोले फिर उसे प्रसाद दिया. प्रतिमा देवी ने संजू से कहा—‘’ जैसा मैंने कहा है उसी तरह रोज करोगे तो तुम्हारा जीवन आसान हो जायेगा, किसी से कुछ मांगना नहीं पड़ेगा.’ फिर उसे पीछे आने का इशारा करके अपने फ़्लैट की ओर  चल दी.
संजू सहमा सा उनके पीछे चल दिया, बात कुछ समझ में नहीं आ रही थी. प्रतिमा देवी संजू को ड्राइंग रूम में ले गईं, उसे बैठने को कहा. पर वह खड़ा ही रहा.कई बार कहने पर संजू जैसे जबरदस्ती कुर्सी पर बैठ गया. प्रतिमा देवी एक प्लेट में कुछ खाने को ले आईं ,वह संजू का संकोच समझ रही थीं. उन्होंने कहा—‘ संजू यह भीख नहीं, तुम्हारे काम का मेहनताना है. तुमने आज मंदिर के आसपास सफाई की है. मेरी बात का मान रखा है. क्या यह हाथ फ़ैलाने से अच्छा नहीं है? अब रोज मंदिर की सफाई करना.आज के बाद भीख मांगने की नौबत नहीं आएगी. तुम्हारे भोजन की जिम्मेदारी मेरी.’’
संजू अचरज से प्रत्तिमा देवी की और देखता रह गया. इतना ही कह पाया—‘’लेकिन आप ही क्यों.’’
--‘’ इस बात के फेर में मत पडो. इतना समझ लो कि मैं तुम्हें क्या, किसी को भी भीख मांगते हुए नहीं देखना चाहती. ‘’
‘’लेकिन मेरे जैसे तो न जाने कितने होंगे,तब आप...’’—संजू ने कहना चाहा .
जवाब प्रतिमा देवी की मुस्कान ने दिया,‘कहा-- ‘’मन लगा कर काम करो और  किसी के आगे हाथ फ़ैलाने की सोचना भी मत.’’  
प्रतिमा देवी अब रोज संजू को मंदिर के बाहर सफाई करते देखती और संतोष के भाव से मुस्करा देतीं. लेकिन एक दिन गड़बड़ हो गई. उस सुबह प्रतिमा देवी ने किसी औरत के चिल्लाने की आवाज सुनी. सफाई का काम करने वाली मुन्नी संजू को डांट रही थी और वह चुप खड़ा था. मुन्नी बहुत गुस्से में थी –‘’तू मेरे पेट पर लात मारने चला है, सोसाइटी में घुसना बंद न करा दिया तो मेरा नाम भी मुन्नी नहीं.’’
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प्रतिमा देवी ने मुन्नी को पास बुला कर पूछा तो वह बिफर उठी –‘’संजू मेरी रोजी छीनने की कोशिश कर रहा है तो मैं चुप रहने वाली नहीं. ‘’ प्रतिमा देवी को मालूम था कि मुन्नी को मंदिर की सफाई करने के लिए सोसाइटी की ओर से महीने की पगार के अलावा सौ रूपए अलग से मिलते थे. उसे लगता था कि संजू उसे मिलने वाले सौ रूपए हड़पने के लिए ही मंदिर की सफाई करने लगा है. प्रतिमा देवी ने कहा-‘’मुन्नी,तुम बेकार ही घबरा रही हो. संजू से मैंने यह काम करने को कहा है. सोसाइटी का इससे कुछ लेना देना नहीं है.मैं नहीं चाहती कि संजू या कोई और किसी मजबूरी की वजह से लोगों के सामने हाथ फ़ैलाने पर मजबूर हो. क्या तुम ऐसा चाहती हो?’’
‘’ नहीं कभी नहीं,मुझे तो खुद संजू को लोगों की झिडकियां खाते देख कर बुरा लगता है.’’—मुन्नी ने कहा.
उस दिन के बाद संजू को फिर कोई परेशानी नहीं हुई. वह सुबह –शाम दोनों समयं मंदिर के आसपास साफ़ सफाई करता था और प्रतिमा देवी ने उसके लिए भोजन  की  व्यवस्था कर दी थी.   वह सुबह शाम मंदिर आते समय उसके लिए पैकेट में भोजन ले आती थीं. अब किसी को संजू से कोई शिकायत नहीं थी. अब तो कई बार मुन्नी और संजू को आपस में हँसते- बोलते देखा जा सकता था. दोपहर में संजू सोसाइटी के पार्क में पेड़ की छाया में बैठ कर खाना खाता था, तो शाम को उसे सोसाइटी के गेट के बाहर सड़क पर आवारा घूमने वाले बच्चों से घिरे हुए देखा जा सकता था .उस समय गेट के बाहर मदिर का प्रसाद बांटा जाता था. संजू बच्चों को लाइन में खड़ा रहने में मदद करता था. और हुडदंगी बच्चे उसका कहा मान भी जाते थे.
        एक दिन प्रतिमाजी ने इस बारे में पूछा तो उसने कहा था—‘’वे सब मुझे अपने बच्चों जैसे लगते हैं. इन्हें देख करकर अपने बचपन की शरारतें याद आ जाती हैं.’’ फिर बताया—‘’गाँव में हमारे घर के पास से एक पगडण्डी नदी की तरफ जाती थी. उसके दोनों तरफ घनी झाड़ियाँ थीं.उनमें सांप बिच्छू निकलते थे.इसलिए उधर से कोई नहीं जाता था. जब मेरी किसी शरारत पर माँ मुझे मारने दौडती तो में उस पगडण्डी पर चल देता.और जोर जोर से कहता –‘ मैं नदी में जा रहा  हूँ.’’तब माँ भाग कर मुझे लिपटा लेती.गुस्सा भूलकर दुलार करने लगती.मैं भी हंस कर उसे गुदगुदा देता. तब माँ मेरा हाथ अपने सिर पर रख कर कसम खिलाती कि मैं फिर कभी उस सांप बिच्छू वाली पगडण्डी से नदी की तरफ नहीं जाऊँगा.’’ –कहते हुए उसकी आवाज भर्रा गई ,कुछ देर चुप बैठा रहा और फिर उठ कर चला गया. प्रतिमा देवी ने संजू से फिर कभी कुछ नहीं पूछा. 
       एक शाम प्रतिमाजी बाज़ार से लौट रही थीं तो उन्होंने देखा—गेट के पास चबूतरे पर खड़ा संजू नंगे बदन अपना आधा हाथ उठा कर गोल गोल घूम रहा था और बच्चों की टोली ताली बजा रही थी. शायद ये परम आनंद के पल थे संजू के लिए.
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         सुबह संजू रोज की तरह मंदिर के आसपास सफाई करता दिखा पर माथे पर पट्टी बंधी थी, उस पर खून के दाग थे. प्रतिमाजी ने पूछा तो बोला –‘’बच्चों के झगडे में बीच बचाव करते हुए चोट खा गया,’’ फिर सिर झुका कर काम में लग गया. प्रतिमाजी की आँखों के सामने कुछ दिन पहले की एक शाम घूम गई. चबूतरे पर नाचता संजू और ताली बजाते बच्चे. क्या ये वही बच्चे थे या कोई और बात थी.
         अगली सुबह प्रतिमाजी मंदिर आईं तो संजू नहीं दिखाई दिया. दूसरे दिन भी नहीं आया. प्रतिमाजी ने सोसाइटी के गेट पर पूछा तो गार्ड ने कहा –‘’कल रात को आया था ,साथ में दो बच्चे थे. कह रहा था कि बच्चों को छोड़ने जा रहा है. ‘’
         ‘’कुछ बताया कि बच्चों को कहाँ छोड़ने जा रहा है?कौन से बच्चे थे. ‘’
         --‘’कुछ बताया नहीं ,बस इतना ही कहा था.’’
            उस दिन के बाद संजू फिर कभी नहीं दिखाई दिया. आखिर कहाँ चला गया था. और वे  बच्चे कौन थे, बच्चों को कहाँ छोड़ने चला गया था . बच्चे जो शायद उसके कोई नहीं थे. (समाप्त )