Friday 29 September 2017

ना अब नहीं



पक रही है कढ़ी
भूख सिर पर खड़ी
 भात है चांदनी
धूप सी  है कढ़ी

माँ कहे सब्र कर
भात में है कसर
ना अब नहीं
भूख सिर पर खड़ी

झट खिला दे मुझे
भात के संग कढ़ी

Friday 15 September 2017

चोट की दावत



आखिर किसी की चोट का दावत से क्या सम्बन्ध हो सकता है? लेकिन अगर हो तो ? हाँ कुछ ऐसा ही हुआ था सोनू और बालन के साथ. और फिर ....
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   दोपहर का समय – बच्चे स्कूलों से लौट रहे हैं. एक के बाद दूसरी बस आकर रूकती है,बच्चे शोर मचाते,हँसते-मुस्कराते उतरते हैं और प्रतीक्षा करते घर वालों के साथ चले जाते हैं. कुछ समय तक शोर और हड़बड़ी के बाद वातावरण शांत हो जाता है. सुबह और दोपहर में रोज यही क्रम चलता है. लेकिन वह दोपहर कुछ अलग थी.सोसाइटी के गार्ड रामबरन ने देखा गेट के बाहर वाली मुंडेर पर एक रोटी रखी है और उस तरफ नजरें गडाए एक लड़का खड़ा है.
     वह लड़का सोनू था. गार्ड सोनू को खूब जानता है. वह सड़क पर समय गुजारने और रात में फुटपाथ पर कहीं भी सो जाने वाले लड़कों में से है. सोनू कहाँ से आया था इस बारे में रामबरन भी औरो की तरह कुछ नहीं जानता. इन छोकरों के बारे में जानकारी जुटाने की जरूरत उसे कभी महसूस नहीं हुई. उसने सोनू को वहां आकर रुकने वाली कारों के शीशों पर झाडन फिरा कर कुछ मांगते और डांट खाकर पीछे हटते हुए कई बार देखा है. ऐसे में एक प्रश्न मन में उठता है—क्या इन बच्चों का कोई नहीं है.
     लेकिन इस समय सोनू मुंडेर पर रखी रोटी के पास पहरेदार की तरह क्यों खड़ा है भला. उसने पूछा —‘ अरे इस रोटी की पहरेदारी क्यों कर रहा है? खाता क्यों नहीं .
      ‘ रोटी मेरी नहीं किसी की है.’’
       ‘’किसकी?’
      ‘’बालन की.’’
      बालन को भी जानता है रामबरन. बालन भीख मांगता है. और कुछ ऐसे वैसे काम भी करता है जिन्हें कोई भी ठीक नहीं मानता. सोनू ने जो कुछ बताया उसका मतलब था—अभी  कुछ देर पहले स्कूल बस से उतरते हुए कोई बच्चा गिर पड़ा. तब सोनू और बालन वहीँ खड़े थे. बालन के हाथ में रोटी थी.उसने रोटी मुंडेर पर रखी और बढ़ कर रोते हुए बच्चे को उठा लिया और सोसाइटी के अन्दर की तरफ चल दिया. बच्चे की माँ भी आगे आगे चल रही थी. बालन ने सोनू से रोटी का ध्यान रखने को कहा और जल्दी लौटने की बात कह कर अन्दर चला गया. बालन को अन्दर गए काफी देर हो गई थी और वह अब तक नहीं लौटा था
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रामबरन ने कहा —‘ तू उसकी रोटी की पहरेदारी कब तक करेगा. इसे खा ले  मेरे खाने के डिब्बे में एक रोटी बची हुई है. मैं उसे दे दूंगा. ‘ तभी न जाने कहाँ से एक बच्चा दौड़ता हुआ आया और मुंडेर पर रखी रोटी उठा कर भाग गया. सोनू चोर चोर चिल्लाता हुआ उसके पीछे दौड़ गया. रामबरन को हंसी आ गई. तभी उसने बालन को आते देखा. उसके हाथ में एक थैली लटक रही थी. मुंडेर पर रखी रोटी और सोनू –को गायब देख कर वह चिल्लाया—‘’ चोर कहीं का. मेरी रोटी लेकर भाग गया.’
      रामबरन ने बालन को पूरी बात बता दी. कहा—‘’उसका कोई कसूर नहीं है. ‘’
      बालन ने हाथ की थैली अखबार के पन्ने पर उलट दी.हंस कर बोला—‘अपनी तो दावत हो गई’’. वह ठीक ही तो कह रहा था. अखबार पर ढेर सारी पूरियां और मिठाई दिख रही थीं. रामबरन कुछ पूछता इससे पहले ही बालन पूरी कहानी सुना गया. उसने कहा--; बच्चे की चोट मामूली थी. माँ ने दवा लगा दी. मैं चलने लगा तो उन्होंने रोक यह पूरी –मिठाई मुझे दे दी. साथ ही दस का नोट भी  दिया,’’
       ‘ वाह तेरे तो मजे आ गए.’’ रामबरन ने कहा.’’ बच्चे को चोट लगी और तुझे पूरी,मिठाई और बख्शीश भी मिल गई. ‘’
       ‘’वह सब तो ठीक पर बच्चे को चोट नहीं लगनी चाहिए थी.’’ तभी सोनू भागता हुआ आ गया.उसकी मुट्ठी मैं रोटी का टुकड़ा झाँक रहा था.बोला –‘’ मैंने भी रोटी चोर को पकड़ कर ही दम लिया.छीना - झपटी में आधी रोटी उसके हाथ में ही रह गई.’’
      बालन ने हंस कर उसका कन्धा थपथपा दिया,बोला—‘ छोड़ रोटी की बात.ले पूरी और मिठाई खा.’’दोनों ने छक कर खाया फिर भी काफी खाना बच गया. बची हुई भोजन सामग्री को थैली में डालते हुए हंस कर बोला—‘ऐसा पहली बार हुआ कि दिन में छक कर खाने के बाद रात का भी इन्तजाम हो गया हो.’’
       ‘’क्या ऐसा रोज नहीं हो सकता?’’
       ‘’कम से कम भीख से तो कभी नहीं.’’—कहते हुए बालन सोनू का हाथ थाम कर चल दिया.
       ‘’तो फिर कैसे?’’
        सोनू को अपने सवाल का जवाब नहीं मिला. बालन एक पेड़ के नीचे बने छोटे से मंदिर के सामने हाथ जोड़ कर आँखें बंद कर खड़ा था. ‘’तुम भगवान् से भी मांगते हो.’’—सोनू बोला.
     ‘’अपने लिए कुछ नहीं .बच्चों के लिए माँगा.’’
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     ‘’क्या?’’
     ‘’यही कि सब बच्चे ठीक रहें,किसी को चोट न लगे.’’
     ‘’लेकिन अगर बच्चे को चोट न लगती तो दावत कैसे होती.’’
    बालन ने सोनू के गाल पर चपत लगा दी, चिल्ला कर बोला—‘’फिर कभी ऐसी गलत बात मत कहना,’’सुन कर सोनू सहम गया. वह सोच रहा था—आखिर मैंने ऐसा क्या गलत कह दिया. दावत की बात खुद बालन ने ही तो कही थी. पूरे दिन दोनों बालन और सोनू साथ साथ घूमते रहे.सोनू कुछ समझ नहीं पा रहा था. रात हुई तो भूख सताने लगी.रोज तो वह कारों के शीशे साफ़ करके या बोझ ढो कर रोटी का जुगाड़ कर लेता था,लेकिन उस दिन मौका नहीं मिला. लेकिन एक आशा थी कि जब बालन सुबह का बचा हुआ भोजन खाने बैठेगा तो उसे भी दावत में हिस्सा जरूर देगा. लेकिन उस रात भूखे ही रहना पड़ा. क्योंकि बालन ने भी कुछ नहीं खाया. क्या सोनू को  पता था कि उसने बचे भोजन की थैली कूड़े मैं फैंक दी थी.
       सुबह दोनों सोसाइटी के गेट पर खड़े थे. बच्चे हँसते मुस्कराते हुए स्कूल बसों मैं चढ़ रहे थे. बालन खुश था. दोपहर में बच्चों के लौटते समय भी बालन सोनू का हाथ थामे हुए वहीँ मौजूद था. बच्चों के सोसाइटी में चले जाने के बाद सोनू ने कहा—‘ आज किसी बच्चे को चोट नहीं लगी.’’
          ‘’मैंने भगवान् से यही तो माँगा था.’’—बालन ने हंस कर कहा. ‘’ आज तुम्हारी दावत नहीं होगी,’’—सोनू भी हंस रहा था.
          ‘’आज से दूसरे के आगे हाथ फैलाना बंद.’
           ‘’तो खाना कैसे मिलेगा?’’—सोनू ने जानना चाहां.
        ‘’कोई और काम करेंगे,’’
            क्या काम?’’
            सुबह और दोपहर बच्चों को देखेंगे. ‘’
            बच्चों को देखना---यह कैसा काम है?’’
         इससे ख़ुशी मिलेगी तो आधा पेट अपने आप भर जाएगा.’’
        ‘’और बाकी आधा?’’—सोनू ने पूछा
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           आधी भूख मिटाने के लिए काम करेंगे,’’    
         ‘’ हाँ काम करेंगे ,किसी से कुछ मांगेगे नहीं. ‘’
         अगली और उसके बाद आनेवाली हर सुबह और दोपहर के समय बालन और सोनू हँसते मुस्कराते बच्चों को देखते खड़े रहते थे. पता नहीं उन्हें कोई काम मिला या नहीं.पर बच्चों की  देख भाल का काम उन्होंने किसी से पूछे बिना संभाल लिया था. (समाप्त )