Saturday 7 November 2015

बाल कहानी : मिठाई


                                                  

                                मिठाई 
                                           देवेन्द्र कुमार 
  
पूरे घर में जाग गए थे सब लोग. अमित को सुबह की गाड़ी से आगरा जाना था दफ्तर के काम से. जाने से पहले वह पिता के पास विदा लेने गया. उन्होंने अमित के हाथ में एक छोटा सा कागज़ थमा दिया. अमित ने बिना पढ़े जेब में रख लिया. वह सोच रहा था कहीं गाड़ी छूट न जाये.
तभी बेटे अमर ने कहा – “ पापा, आगरा जा रहे हो तो ताजमहल जरुर देखना.’  अमित बेटे का मतलब समझ गया, जैसे वह कह रहा था- पापा अकेले ताजमहल मत देख लेना.
अमर का कन्धा थपथपाते हुए उसने कहा – ‘बेटा मैं तुम्हारा मतलब समझ रहा हूँ. आज तो मैं केवल एक दिन के लिए जा रहा हूँ. उसमें ताज देखने का मौका नहीं मिलेगा. और वैसे भी ताजमहल मैं तुम सबके साथ ही देखूंगा- यह वादा रहा.” कहकर उसने पत्नी और पिता की ओर देखा.
तभी पिता ने कहा-‘ मैंने जो कागज तुम्हें दिया है उस पर मेरे बचपन के दोस्त शम्भू का पता  लिखा  है. मैं बहुत समय से उनसे नहीं मिला हूँ.  इधर खबर मिली है कि वह बीमार चल रहे हैं. अगर तुम समय निकाल कर उन्हें देखने जा सको तो अच्छा रहेगा.’  
‘ मैं पूरी कोशिश करूंगा .’ अमित ने कहा और बेटे अमर के गाल थपथपा कर घर से बाहर निकल गया. मन में बेटे की बात घूम रही थी. आगरा पहुँच कर अमित ने होटल में जाकर सामान रखा, फिर कुछ नाश्ता करके दफ्तर के काम से निकल पड़ा. दफ्तर के काम से फुर्सत पाते- पाते दोपहर बीत चुकी थी.  अब उसे पिता से मिले परचे का ध्यान आया. परचे पर एक पता लिखा था- e  502 आम्रपाली अपार्टमेंट्स . वह एक रिक्शा में बैठ कर चल दिया. फिर ध्यान आया कि किसी के घर पहली बार ख़ाली हाथ जाना ठीक नहीं रहेगा. हलवाई की दुकान के सामने रूककर उसने मिठाई ली और फिर आगे चल दिया.
आम्रपाली अपार्टमेंट्स एक बहुमंजिली इमारत थी. वह लिफ्ट से पांचवीं मंजिल पर पहुँच गया. जब वह फ्लैट नं 502 की ओर बढ़ा तो ठिठक गया. फ्लैट के दरवाज़े के आगे तथा गैलरी में काफी लोग जमा थे. हवा में बातों की भनभनाहट गूँज रही थी.
अमित के कदम अपनी जगह ठिठक गए. कुछ पल असमंजस में खड़ा रहा, फिर पास वाले आदमी से पूछा तो पता चला कि पिताजी के मित्र शम्भूजी की मौत हो गई है. वह काफी समय से बीमार चल रहे थे. अमित को धक्का लगा. वह पिता के बारे में सोचने लगा. मित्र की मौत की खबर से उन्हें काफी दुःख होगा. उसकी नज़र हाथ के मिठाई के डिब्बे पर गई. वह मन ही मन सकुचा गया. समझ नहीं पाया कि मिठाई का क्या करे.! उसकी आँखें बचने का रास्ता खोजने लगीं. तभी दिखाई दिया दरवाज़े के बाहर एक छोटी सी अलमारी रखी थी. अमित ने मिठाई का डिब्बा अलमारी के ऊपर टिका दिया, फिर जूते उतार कर अंदर चला गया. किसी ने उसकी ओर ज्यादा ध्यान नहीं दिया. अमित ने अंदर एक लड़के को देखा , शायद वही शम्भूजी का बेटा था. कुछ देर उससे बात करके वह बाहर निकल आया. न चाहते हुए भी उसकी नज़रें अलमारी की ओर चली गईं .मिठाई का डिब्बा अपनी जगह नहीं था. वह हैरान था कि ऐसे समय में कौन था जो मिठाई उठा ले गया! पर उसने ज्यादा नहीं सोचा ,और आगे चला आया. वैसे भी मिठाई अब उसके लिए बेकार थी ,पर फिर भी बात दिमाग से नहीं निकल रही थी.
अमित लिफ्ट के आगे जा खड़ा हुआ. तभी उसने एक पुकार सुनी. मुड़कर देखा तो एक आदमी उसे इशारा कर रहा था. फिर वह पास चला आया. उसने कहा -’ आप शायद मिठाई का डिब्बा खोज  रहे हैं जिसे आपने अलमारी पर रखा था. मैंने आपको डिब्बा रखते हुए देखा था.’ अमित चुप खड़ा रहा, वह कहता भी क्या. फिर उसने पूरी बात बता दी. उस आदमी ने कहा-‘ मेरा नाम  रामसरन है. मैं शम्भूजी का रिश्तेदार हूँ. मैने एक लड़के को डिब्बा ले जाते हुए देखा था.
अमित ने कुछ नहीं कहा. वह जल्दी से जल्दी वहां से दूर चला जाना चाहता था. वह लिफ्ट से नीचे आया तो रामसरन भी उसके साथ था. वह कह रहा था –‘ वह लड़का फूलवाले का नौकर है . वह फूल देने आया था. मैं फूल वाले को अच्छी तरह जानता हूँ. ‘ अमित ने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया. वह सोच रहा था कि पिता को उनके मित्र के निधन की सूचना कैसे देगा. वह आगे बढ़ा तो पीछे से रामसरन की आवाज़ आई-‘ अरे वाह ! फूलवाला तो यहीं खड़ा है. चलो उसी से पूछते हैं.’ ‘अमित ने मुड़ कर देखा तो रामसरन किसी से बात कर रहा था. उसने अमित को इशारे से बुलाया तो अमित वहां चला गया.
उसने सुना -फूलवाला कह रहा था-‘यह तो बहुत गलत किया मेरे नौकर श्याम ने. मैं उस चोर को अभी नौकरी से निकाल दूंगा .’ फिर अमित से माफ़ी मांगता हुआ बोला-‘ वह काफी देर से गायब है. इसीलिए मुझे यहाँ आना पड़ा, उसका घर पास ही है. आइए बाबूजी, उसके घर चल कर खबर लेता हूँ.’
अमित ने कहा-‘ मुझे अभी दिल्ली लौटना है. मैं नहीं चल सकता. ‘ लेकिन फूलवाला बोला- ‘बाबूजी, बस पांच मिनट की ही तो बात है. आखिर वह आपका चोर है.’ रामसरन ने भी कहा तो अमित को मानना पड़ा . थोड़ी दूर जाकर फूलवाला एक दरवाजे के सामने रुक गया. उसने जोर से पुकारा-‘ओ श्याम, जरा बाहर तो निकल, देख मैं तेरा क्या हाल करता हूँ.’
दरवाज़ा खुला और एक आदमी बाहर निकला. उसने फूलवाले से कहा-‘ बाकी बातें बाद में ,लो पहले मुंह मीठा करो. आज हमारे घर लक्ष्मी पधारी है, श्याम के जन्म के इतने बरसों बाद बेटी
 हुई है.’ यह कहकर उसने मिठाई का डिब्बा आगे बढ़ा दिया. अमित चौंक उठा,  यह तो मिठाई का   वही डिब्बा था जो फ्लैट के बाहर रखी अलमारी के ऊपर से गायब हो गया था. उसे गुस्सा आ गया. फूलवाले ने मिठाई का डिब्बा परे ठेलते हुए कहा-‘ हम चोरी की मिठाई नहीं खाते. जरा श्याम को तो बुलाओ, उसने चोरी की है.’ फिर उसने अमित की ओर इशारा करके सारी घटना कह सुनाई.
श्याम का पिता जैसे सन्न खड़ा रह गया. फिर उसने तुरंत पुकारा –‘ ओ श्याम के बच्चे जरा बाहर तो निकल. तू घर में चोरी कि मिठाई कैसे लाया ! .आज तूने मेरी ख़ुशी ख़ाक में मिला दी. ‘ श्याम झट बाहर निकल आया. उसका सर झुका हुआ था. श्याम के पिता की आँखों में आंसू थे. उसने कहा-‘ बाबू , सच मुझे एकदम पता नहीं था कि यह चोरी की मिठाई है. आज मैं कितना खुश था कि घर में  लक्ष्मी आई है.मैने तो अपने मेह्मानों का मुंह बताशों से मीठा करवाया था. हम भला इतनी महंगी मिठाई कहाँ से ला सकते थे.’
फूलवाले ने श्याम से पूछा तो उसने जो बताया वह इतना ही था कि जब वह फूल देकर निकला  तो उसे मिठाई का डिब्बा नज़र आया था, उसने सोचा कि गम के माहौल में मिठाई भला कौन खायेगा.  .उसे लगा घर में बहन पैदा हुई है ,वह सबका मुंह मीठा करवा देगा. वह चोर नहीं है.उसने दूकान पर कभी चोरी नहीं की.
अमित ने देखा श्याम रो रहा था.उसका पिता किसी प्रतिमा की तरह खड़ा था. मिठाई का डिब्बा उसने जमीन पर टिका दिया था. कुछ पल सन्नाटा रहा.फिर अमित ने डिब्बा उठा कर फूलवाले की तरफ बढ़ा दिया-‘ फूलवाले भाई, तुम ने सुना नहीं आज श्याम की बहन ने जन्म लिया है. यह तो ख़ुशी का मौका है. गुस्सा थूक दो. ‘ और उसने मिठाई की एक डली उसके हाथ पर रख दी,फिर बारी बारी से डिब्बा सबके बीच घुमा दिया.अमित ने श्याम और उसके पिता से भी मिठाई खाने को कहा. उदासी की जगह मुस्कान ने ले ली. अमित ने श्याम के पिता से पूछा -‘तुमने बेटी का नाम क्या रखा है. ‘
‘जी अभी तो कुछ सोचा नहीं.’ लड़की तो लक्ष्मी होती है.’ वह बोला.
‘उसका नाम लक्ष्मी ही रखना.’ फिर अमित ने फूलवाले की ओर देख कर पूछा -‘ क्या कहते हो?’
‘जी बढ़िया रहेगा.’ फूलवाला हंस रहा था.
अमित ने उससे कहा-‘ श्याम ने चोरी नहीं की है.इसे नौकरी से मत निकालना.’
फूलवाले का गुस्सा दूर हो गया था.उसने श्याम से कहा-‘चल, दुकान पर चल. अगर तू मुझे सुबह बता देता तो मैं खुद मिठाई लेकर तेरे घर आ जाता.’
अमित का मन शम्भूजी की मौत से उदास हो गया था ,पर अब उदासी में मिठास घुल गई थी. =====

बाल कहानी : साइकिल

                                                                        

                            साइकिल    
                                                देवेन्द्र कुमार                            
राजीव के पैर में स्कूल से आते हुए चोट लग गई थी. कुछ समय तक प्लास्टर बंधा रहा. अब फिजियो थेरेपी के लिए जाना पड़ता है. पिता देव दफ्तर से आने के बाद क्लिनिक ले जाते हैं. एक्सरसाइज के बाद राजीव कुछ देर वहां रखी साइकिल चलाता है. एक दिन देव को जाने क्या सूझा वह जाकर खुद साइकिल चलाने लगे.यह देख वहां बैठे लोग हंसने लगे, तभी आवाज़ आई –‘ साइकिल तो मैं’ भी चला सकता हूँ. ‘
देव ने मुड़ कर देखा- एक सात -आठ साल का लड़का हाथ में चाय के दो खाली गिलास लिए खड़ा था. तभी कम्पाउण्डर ने जोर से कहा-‘ जा भाग . जाकर चाय के ग्लास धो. ‘ फिर बोला-‘ ढाबे का नौकर है. चाय देने आता है.’ देव ने कहा-‘ दो चार मिनट चलाने दो. क्या बिगड़ जाएगा.’ ‘ जी बिगड़ेगा कुछ नहीं पर फिर यह रोज परेशान करेगा.’ फिर लड़के से बोला-‘ चल जल्दी से एक दो पैडल मार ले . इन  साहिब के कहने पर पहला और आखिरी चांस दे रहा हूं .ज्यादा बकबक की तो तेरे मालिक से शिकायत कर दूंगा.’ इसके बाद चाय वाला छोकरा रुका नहीं, कम्पाउण्डर हंस कर बोला-‘ चाय वाले मालिक से बहुत डरता है. जरा से नुक्सान पर वह खूब कान लाल करता है इसके.’
देव राजीव को लेकर बाहर निकले तो वह छोकरा एक दुकान में दिखाई दिया. कोई उसे   मार रहा था, गालियाँ सुनाई दे रही थीं. घर आने के बाद देव काफी देर तक उस अनजान छोकरे के बारे में सोचते रहे. अगली शाम देव राजीव को क्लिनिक ले गए तो कुछ देर बाद चाय वाला छोकरा फिर वहां खड़ा दिखाई दिया. देव से नज़रें मिलते ही वह मुस्कराया. बोला –‘ कल तो छोटे डॉक्टर साहब ने मुझे भगा दिया था.’ वह कम्पाउण्डर को छोटा डॉक्टर कह रहा था.’ क्या आज आप मुझे साइकिल चलाने देंगे. ‘ देव ने कम्पाउण्डर की ओर देखा तो वह बोला-‘ क्यों आफत गले लगा रहे हैं, काफी मरीज़ प्रतीक्षा में हैं.’
देव ने कहा;’ तुम हमारे टाइम में से काट लेना.’ कम्पाउण्डर ने कंधे उचका दिए. चाय वाले छोकरे ने सीट पर बैठ कर जल्दी- जल्दी दो चार बार पैर चलाये और फिर बाहर भाग गया. उसके जाने के बाद कम्पाउण्डर ने कहा-‘ अब यह रोज तंग करेगा.’ देव ने कोई जवाब नहीं दिया और बेटे के साथ क्लिनिक से बाहर निकल आये. राजीव ने पूछा ;’ पापा, क्या उसके पास साइकिल नहीं है?’ देव ने जवाब दिया-‘ बेटा, इस जैसे लड़कों के पास तो बहुत कुछ नहीं होता है.’ देव स्कूटर स्टार्ट करने लगे तो देखा चाय वाला छोकरा वहीँ खड़ा है. नज़रें मिलते ही बोला-‘ बाबूजी, आप बहुत अच्छे हैं’.’ और फिर दूकान में भाग गया. देव देर तक उधर देखते रहे.
अगले दिन क्लिनिक नहीं जाना था. देव किसी काम से उधर से निकले तो किसी ने पुकारा_ ‘ बाबूजी! ‘ पलट कर देखा तो वही छोकरा इशारे से बुला रहा था. आखिर क्यों बुला  रहा था वह उन्हें? शायद कम्पाउण्डर ने सही कहा था. ‘क्या बात है ?.’ देव ने पास जाकर पूछा. छोकरा बोला   -‘ एक मिनट अंदर तो चलिये .’ देव अनिच्छा के भाव से दुकान में चले गए. छोटी सी दुकान में एक आदमी गैस पर चाय बना रहा था. देव ने इधर उधर देखा- सब कुछ गन्दा लग रहा था. एक अजीब सी गंध फैली थी. देव ने कई बार ढाबों में चाय पी थी पर ऐसी दूकान में तो कभी नहीं . छोकरे ने देव से कहा-‘ बाबूजी आप बहुत अच्छे हैं. ‘ फिर चाय बनाते आदमी से बोला-‘ साहब के लिए बढ़िया चाय बना.’ ‘अभी बनाता हूँ तब तक तू यह चाय देकर आ. और खैर मना कि इस बीच कहीं मालिक न आ जाये. ‘ छोकरा चाय के ग्लास लेकर बाहर चला गया. देव ने देखा- मालिक का नाम सुनते ही उसका चेहरा बुझ गया था. पर जाने से पहले वह देव का हाथ पकड़कर बोलता गया-‘ आपको मेरी कसम ,मेरे आने तक यहाँ से जाना मत .’ सुनकर देव को झटका लगा. उन्होंने चाय बनाते आदमी की ओर देखा तो वह खिलखिला कर बोला-‘ ऐसी कसम तो मुझे वह दिन में कई बार देता है.’मेरे  पूछने पर कहता है कि घर पर जब माँ को उससे कोई काम करवाना होता था तो वह उसे  कसम दिला देती थी. और वह कसम कभी नहीं तोड़ता था. देव को कसम वाली बात अजीब लगी. वह सोच रहे थे –आखिर वह् मुझे अपना क्या समझ बैठा है.!  
देव ने कहा-‘ मुझे चाय नहीं पीनी है, ‘ और वह उस छोकरे के बारे में पूछने लगे. उस आदमी ने कहा कि कोई एक दिन इसे दुकान पर छोड़ गया था. कोई नहीं जानता कि यह कौन और कहाँ का है. कई साल से यहीं काम कर रहा है  अपना नाम राम बताता है. पर मालिक तो इसे ‘ओ रामू’ कहता है. ऐसा कोई दिन नहीं जाता जब इसकी पिटाई न होती हो. कभी चाय छलक जाती है तो कभी गिलास टूट जाता है या फिर ग्राहक गन्दी मेज़ की शिकायत कर देते है. और बस मालिक को इसकी ठुकाई करने का बहाना मिल ही जाता है. इसने अपने गाँव का नाम बताया तो था पर याद नहीं.कहते हुए उसने चाय देव के सामने रख दी, पर देव उठ खडे हुए.और बिना कुछ कहे बाहर निकल आये. इसके बाद कई दिन तक देव को शहर से बाहर रहना पड़ा. उस दौरान राजीव की मम्मी उसे क्लिनिक ले जाती रहीं.  
टूर से वापस आने के बाद देव राजीव को क्लिनिक ले गए, रास्ते में राजीव ने कहा-‘ पापा, वह लड़का मुझसे आपके बारे में पूछ रहा था.’ देव चुप रहे. जैसे ही वह क्लिनिक में घुसे राम वहां खड़ा दिखाई दिया.आँखें मिलते ही वह मुस्कराया .पर देव ने जैसे देख कर भी नहीं देखा. ‘आखिर यह अनजान लड़का क्या चाहता है मुझ से – शायद कुछ पैसे .’ देव क्लिनिक से घर लौट रहे थे तो वह चाय की दुकान के बाहर खड़ा था. इस बार वह मुस्कराया नहीं. देव को कुछ आराम महसूस हुआ, शायद अब वह उन्हें परेशान नहीं करेगा. लेकिन ऐसा नहीं था.
दो दिन बाद की बात है, देव किसी काम से उधर से गुज़रे तो किसी ने पुकारा-‘ बाबूजी, ‘ देव ने देखा वह साइकिल वाले की दुकान पर खड़ा था. देव अनचाहे भाव से पास गए .राम ने हंस कर कहा-‘ बाबूजी, क्या आप मुझ से नाराज़ हैं.’ देव चुप रहे. उसने जैसे जबरदस्ती एक सम्बन्ध जोड़ लिया था. राम ने कहा-‘ बाबूजी, इस दूकान पर साइकिल किराए पर मिलती है. यह मुझे तो देगा नहीं . क्या आप दिलवा देंगे.’ ‘ तुम्हें कहाँ जाना है जो साइकिल मांग रहे हो?’ देव  ने हंस कर कहा. उन्हें हँसते देख राम भी हंस दिया. ‘अभी तो नहीं पर एक दिन जरूर जाऊँगा ‘  बोला-‘मेरे बापू एक दिन साइकिल पर जो गए तो फिर नहीं लौटे . माँ ने उन्हें बहुत खोजा पर बापू नहीं मिले, मिलते कैसे ! वह गए थे साइकिल पर और माँ उन्हें पैदल ढूँढ रही थी और घर में बस एक ही साइकिल थी.’  
देव को उसकी बातें बेसिर पैर की लग रही थीं. उन्होंने राम से पूछा-‘ तुम कब चलाओगे साइकिल ? तुम्हारा मालिक तुम्हें कभी छुट्टी नहीं देगा.’ ‘ दोपहर में आधा घंटे की छुट्टी मिलती है, उसी में साइकिल चलाया करूंगा. बस आप दिलवा दें.’ राम ने कहा. देव कुछ पल सोचते खड़े रहे. फिर उन्होंने दुकान वाले से पूछा तो वह बोला-‘ बाबूजी, क्यों इन जैसों के चक्कर में फँस रहे हो. आप दया करके इसे साइकिल किराए पर दिलवा देंगे और यह साइकिल लेकर फुर्र हो जाऐगा .’ राम तुरंत बोल उठा .’ मैं चोर नहीं हूँ.’ देव ने दुकानदार से कहा-‘ चलाने दो इसे साइकिल. पैसे मैं दे दूंगा.’
‘जी, आपकी गारंटी पर दे रहा हूँ’ वर्ना...’ कहकर दुकानदार ने एक साइकिल की तरफ इशारा कर दिया’ राम से बोला –‘ध्यान से चलाना. साइकिल में टूट फूट नहीं होनी चाहिए, ‘ राम ने      साइकिल उठाई और पास के मैदान में ले गया. बहुत खुश लग रहा था. देव कुछ पल साइकिल  चलाते राम को देखते रहे फिर साइकिल वाले को तसल्ली देकर घर चले आये. उन्होंने साइकिल वाले को एक सप्ताह के किराए के पैसे अडवांस दे दिए थे. लग रहा था कि अब कोई गड़बड़ नहीं होगी.
लेकिन भ्रम जल्दी टूट गया. दो दिन बाद साइकिल वाला मिलने आया. उसने कहा-‘ बाबूजी, मैं तो पहले ही आपको चेता रहा था. वह साइकिल समेत उड़न छू हो गया. अब क्या होगा. मेरा तो बड़ा नुक्सान हो गया.’ वह बहुत गुस्से में था. देव को भी झटका लगा. उन्हें भी राम से ऐसी आशंका नहीं थी. उन्होंने साइकिल वाले को दिलासा दिया.उससे साइकिल की कीमत पूछी और उसे पैसे दे दिए. साइकिल वाले ने पैसे जेब में रख लिए फिर बोला-‘ लेकिन आप एक बदमाश छोकरे के लिए नुक्सान क्यों भरें. ‘ देव कुछ बोले नहीं,हाथ के संकेत से जाने का इशारा कर दिया. वह खुद को ठगा हुआ सा महसूस कर रहे थे. क्या उन्होंने राम को पहचानने में गलती की थी.    
अगले दिन देव उस चाय की दुकान पर गये. राम के साथी को भी कुछ पता नहीं था.  उसने कहा_’ इधर कई दिनों से वह जाने की बात करता तो था. कहता था कि उसे अपने बापू को खोजने जाना  है.’
देव घर चले आये. शाम ढल रही थी. वह खुली खिड़की के पास बैठे थे, पत्नी रसोई में थी और राजीव दोस्तों के साथ खेलने गया था. तभी बिजली चली गई. कमरे में अँधेरा भर गया. देव ने उठ कर लाइट नहीं जलाई, अंधरे में बैठे रहे. फिर अँधेरे में एक दृश्य उभर आया- शाम ढल रही है.आकाश में अपने घोंसलों की ओर लौट रहे परिंदों का शोर गूँज रहा है. पेड़ों से घिरी संकरी सड़क पर एक लड़का साइकिल पर चला जा रहा है. देव की तरफ उसकी पीठ है पर उन्हें पता है कि वह कौन है,  
   वह राम ही है. वह कहाँ जा रहा है, इसका कुछ आभास देव को है. पर क्या वह वहां तक पंहुंच सकेगा?  इस बारे में वह कुछ नहीं जानते. सुनसान रास्ते पर कोई उससे साइकिल छीन नहीं लेगा इस बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता. और फिर क्या होगा ? क्या वह फिर उन्हे शहर में दिखेगा  पहले की तरह किसी चाय की दुकान में खटता हुआ. मन में पिता को खोजने का सपना संजोए .                 ( समाप्त )
                                                        Devendrakumar755@gmail.com