साइकिल
देवेन्द्र कुमार
राजीव के पैर में
स्कूल से आते हुए चोट लग गई थी. कुछ समय तक प्लास्टर बंधा रहा. अब फिजियो थेरेपी
के लिए जाना पड़ता है. पिता देव दफ्तर से आने के बाद क्लिनिक ले जाते हैं.
एक्सरसाइज के बाद राजीव कुछ देर वहां रखी साइकिल चलाता है. एक दिन देव को जाने क्या
सूझा वह जाकर खुद साइकिल चलाने लगे.यह देख वहां बैठे लोग हंसने लगे, तभी
आवाज़ आई –‘ साइकिल तो मैं’ भी चला सकता हूँ. ‘
देव ने मुड़ कर देखा-
एक सात -आठ साल का लड़का हाथ में चाय के दो खाली गिलास लिए खड़ा था. तभी कम्पाउण्डर
ने जोर से कहा-‘ जा भाग . जाकर चाय के ग्लास धो. ‘ फिर बोला-‘ ढाबे का नौकर है.
चाय देने आता है.’ देव ने कहा-‘ दो चार मिनट चलाने दो. क्या बिगड़ जाएगा.’ ‘ जी
बिगड़ेगा कुछ नहीं पर फिर यह रोज परेशान करेगा.’ फिर लड़के से बोला-‘ चल जल्दी से एक
दो पैडल मार ले . इन साहिब के कहने पर पहला और
आखिरी चांस दे रहा हूं .ज्यादा बकबक की तो तेरे मालिक से शिकायत कर दूंगा.’ इसके
बाद चाय वाला छोकरा रुका नहीं, कम्पाउण्डर हंस कर बोला-‘ चाय वाले मालिक से बहुत
डरता है. जरा से नुक्सान पर वह खूब कान लाल करता है इसके.’
देव राजीव को लेकर
बाहर निकले तो वह छोकरा एक दुकान में दिखाई दिया. कोई उसे मार रहा था, गालियाँ सुनाई दे रही थीं. घर आने
के बाद देव काफी देर तक उस अनजान छोकरे के बारे में सोचते रहे. अगली शाम देव राजीव
को क्लिनिक ले गए तो कुछ देर बाद चाय वाला छोकरा फिर वहां खड़ा दिखाई दिया. देव से
नज़रें मिलते ही वह मुस्कराया. बोला –‘ कल तो छोटे डॉक्टर साहब ने मुझे भगा दिया था.’
वह कम्पाउण्डर को छोटा डॉक्टर कह रहा था.’ क्या आज आप मुझे साइकिल चलाने देंगे. ‘
देव ने कम्पाउण्डर की ओर देखा तो वह बोला-‘ क्यों आफत गले लगा रहे हैं, काफी मरीज़
प्रतीक्षा में हैं.’
देव ने कहा;’ तुम
हमारे टाइम में से काट लेना.’ कम्पाउण्डर ने कंधे उचका दिए. चाय वाले छोकरे ने सीट
पर बैठ कर जल्दी- जल्दी दो चार बार पैर चलाये और फिर बाहर भाग गया. उसके जाने के
बाद कम्पाउण्डर ने कहा-‘ अब यह रोज तंग करेगा.’ देव ने कोई जवाब नहीं दिया और बेटे
के साथ क्लिनिक से बाहर निकल आये. राजीव ने पूछा ;’ पापा, क्या उसके पास साइकिल
नहीं है?’ देव ने जवाब दिया-‘ बेटा, इस जैसे लड़कों के पास तो बहुत कुछ नहीं होता
है.’ देव स्कूटर स्टार्ट करने लगे तो देखा चाय वाला छोकरा वहीँ खड़ा है. नज़रें
मिलते ही बोला-‘ बाबूजी, आप बहुत अच्छे हैं’.’ और फिर दूकान में भाग गया. देव देर
तक उधर देखते रहे.
अगले दिन क्लिनिक नहीं जाना था. देव किसी काम से उधर से निकले तो किसी ने
पुकारा_ ‘ बाबूजी! ‘ पलट कर देखा तो वही छोकरा इशारे से बुला रहा था. आखिर क्यों
बुला रहा था वह उन्हें? शायद कम्पाउण्डर
ने सही कहा था. ‘क्या बात है ?.’ देव ने पास जाकर पूछा. छोकरा बोला -‘ एक मिनट अंदर तो चलिये .’ देव अनिच्छा के
भाव से दुकान में चले गए. छोटी सी दुकान में एक आदमी गैस पर चाय बना रहा था. देव
ने इधर उधर देखा- सब कुछ गन्दा लग रहा था. एक अजीब सी गंध फैली थी. देव ने कई बार
ढाबों में चाय पी थी पर ऐसी दूकान में तो कभी नहीं . छोकरे ने देव से कहा-‘ बाबूजी
आप बहुत अच्छे हैं. ‘ फिर चाय बनाते आदमी से बोला-‘ साहब के लिए बढ़िया चाय बना.’ ‘अभी
बनाता हूँ तब तक तू यह चाय देकर आ. और खैर मना कि इस बीच कहीं मालिक न आ जाये. ‘
छोकरा चाय के ग्लास लेकर बाहर चला गया. देव ने देखा- मालिक का नाम सुनते ही उसका
चेहरा बुझ गया था. पर जाने से पहले वह देव का हाथ पकड़कर बोलता गया-‘ आपको मेरी कसम
,मेरे आने तक यहाँ से जाना मत .’ सुनकर देव को झटका लगा. उन्होंने चाय बनाते आदमी
की ओर देखा तो वह खिलखिला कर बोला-‘ ऐसी कसम तो मुझे वह दिन में कई बार देता है.’मेरे पूछने पर कहता है कि घर पर जब माँ को उससे कोई
काम करवाना होता था तो वह उसे कसम दिला
देती थी. और वह कसम कभी नहीं तोड़ता था. देव को कसम वाली बात अजीब लगी. वह सोच रहे
थे –आखिर वह् मुझे अपना क्या समझ बैठा है.!
देव ने कहा-‘ मुझे
चाय नहीं पीनी है, ‘ और वह उस छोकरे के बारे में पूछने लगे. उस आदमी ने कहा कि कोई
एक दिन इसे दुकान पर छोड़ गया था. कोई नहीं जानता कि यह कौन और कहाँ का है. कई साल
से यहीं काम कर रहा है अपना नाम राम बताता
है. पर मालिक तो इसे ‘ओ रामू’ कहता है. ऐसा कोई दिन नहीं जाता जब इसकी पिटाई न होती
हो. कभी चाय छलक जाती है तो कभी गिलास टूट जाता है या फिर ग्राहक गन्दी मेज़ की
शिकायत कर देते है. और बस मालिक को इसकी ठुकाई करने का बहाना मिल ही जाता है. इसने
अपने गाँव का नाम बताया तो था पर याद नहीं.कहते हुए उसने चाय देव के सामने रख दी,
पर देव उठ खडे हुए.और बिना कुछ कहे बाहर निकल आये. इसके बाद कई दिन तक देव को शहर
से बाहर रहना पड़ा. उस दौरान राजीव की मम्मी उसे क्लिनिक ले जाती रहीं.
टूर से वापस आने के
बाद देव राजीव को क्लिनिक ले गए, रास्ते में राजीव ने कहा-‘ पापा, वह लड़का मुझसे
आपके बारे में पूछ रहा था.’ देव चुप रहे. जैसे ही वह क्लिनिक में घुसे राम वहां
खड़ा दिखाई दिया.आँखें मिलते ही वह मुस्कराया .पर देव ने जैसे देख कर भी नहीं देखा.
‘आखिर यह अनजान लड़का क्या चाहता है मुझ से – शायद कुछ पैसे .’ देव क्लिनिक से घर
लौट रहे थे तो वह चाय की दुकान के बाहर खड़ा था. इस बार वह मुस्कराया नहीं. देव को
कुछ आराम महसूस हुआ, शायद अब वह उन्हें परेशान नहीं करेगा. लेकिन ऐसा नहीं था.
दो दिन बाद की बात
है, देव किसी काम से उधर से गुज़रे तो किसी ने पुकारा-‘ बाबूजी, ‘ देव ने देखा वह
साइकिल वाले की दुकान पर खड़ा था. देव अनचाहे भाव से पास गए .राम ने हंस कर कहा-‘
बाबूजी, क्या आप मुझ से नाराज़ हैं.’ देव चुप रहे. उसने जैसे जबरदस्ती एक सम्बन्ध
जोड़ लिया था. राम ने कहा-‘ बाबूजी, इस दूकान पर साइकिल किराए पर मिलती है. यह मुझे
तो देगा नहीं . क्या आप दिलवा देंगे.’ ‘ तुम्हें कहाँ जाना है जो साइकिल मांग रहे
हो?’ देव ने हंस कर कहा. उन्हें हँसते देख
राम भी हंस दिया. ‘अभी तो नहीं पर एक दिन जरूर जाऊँगा ‘ बोला-‘मेरे बापू एक दिन साइकिल पर जो गए तो फिर
नहीं लौटे . माँ ने उन्हें बहुत खोजा पर बापू नहीं मिले, मिलते कैसे ! वह गए थे
साइकिल पर और माँ उन्हें पैदल ढूँढ रही थी और घर में बस एक ही साइकिल थी.’
देव को उसकी बातें
बेसिर पैर की लग रही थीं. उन्होंने राम से पूछा-‘ तुम कब चलाओगे साइकिल ? तुम्हारा
मालिक तुम्हें कभी छुट्टी नहीं देगा.’ ‘ दोपहर में आधा घंटे की छुट्टी मिलती है,
उसी में साइकिल चलाया करूंगा. बस आप दिलवा दें.’ राम ने कहा. देव कुछ पल सोचते खड़े
रहे. फिर उन्होंने दुकान वाले से पूछा तो वह बोला-‘ बाबूजी, क्यों इन जैसों के
चक्कर में फँस रहे हो. आप दया करके इसे साइकिल किराए पर दिलवा देंगे और यह साइकिल
लेकर फुर्र हो जाऐगा .’ राम तुरंत बोल उठा .’ मैं चोर नहीं हूँ.’ देव ने दुकानदार
से कहा-‘ चलाने दो इसे साइकिल. पैसे मैं दे दूंगा.’
‘जी, आपकी गारंटी पर
दे रहा हूँ’ वर्ना...’ कहकर दुकानदार ने एक साइकिल की तरफ इशारा कर दिया’ राम से
बोला –‘ध्यान से चलाना. साइकिल में टूट फूट नहीं होनी चाहिए, ‘ राम ने साइकिल उठाई और पास के मैदान में ले गया.
बहुत खुश लग रहा था. देव कुछ पल साइकिल
चलाते राम को देखते रहे फिर साइकिल वाले को तसल्ली देकर घर चले आये.
उन्होंने साइकिल वाले को एक सप्ताह के किराए के पैसे अडवांस दे दिए थे. लग रहा था
कि अब कोई गड़बड़ नहीं होगी.
लेकिन भ्रम जल्दी
टूट गया. दो दिन बाद साइकिल वाला मिलने आया. उसने कहा-‘ बाबूजी, मैं तो पहले ही
आपको चेता रहा था. वह साइकिल समेत उड़न छू हो गया. अब क्या होगा. मेरा तो बड़ा
नुक्सान हो गया.’ वह बहुत गुस्से में था. देव को भी झटका लगा. उन्हें भी राम से
ऐसी आशंका नहीं थी. उन्होंने साइकिल वाले को दिलासा दिया.उससे साइकिल की कीमत पूछी
और उसे पैसे दे दिए. साइकिल वाले ने पैसे जेब में रख लिए फिर बोला-‘ लेकिन आप एक
बदमाश छोकरे के लिए नुक्सान क्यों भरें. ‘ देव कुछ बोले नहीं,हाथ के संकेत से जाने
का इशारा कर दिया. वह खुद को ठगा हुआ सा महसूस कर रहे थे. क्या उन्होंने राम को
पहचानने में गलती की थी.
अगले दिन देव उस चाय
की दुकान पर गये. राम के साथी को भी कुछ पता नहीं था. उसने कहा_’ इधर कई दिनों से वह जाने की बात करता
तो था. कहता था कि उसे अपने बापू को खोजने जाना
है.’
देव घर चले आये. शाम
ढल रही थी. वह खुली खिड़की के पास बैठे थे, पत्नी रसोई में थी और राजीव दोस्तों के
साथ खेलने गया था. तभी बिजली चली गई. कमरे में अँधेरा भर गया. देव ने उठ कर लाइट
नहीं जलाई, अंधरे में बैठे रहे. फिर अँधेरे में एक दृश्य उभर आया- शाम ढल रही
है.आकाश में अपने घोंसलों की ओर लौट रहे परिंदों का शोर गूँज रहा है. पेड़ों से
घिरी संकरी सड़क पर एक लड़का साइकिल पर चला जा रहा है. देव की तरफ उसकी पीठ है पर
उन्हें पता है कि वह कौन है,
वह राम ही है. वह कहाँ जा रहा है, इसका कुछ आभास
देव को है. पर क्या वह वहां तक पंहुंच सकेगा? इस बारे में वह कुछ नहीं जानते. सुनसान रास्ते
पर कोई उससे साइकिल छीन नहीं लेगा इस बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता. और फिर क्या
होगा ? क्या वह फिर उन्हे शहर में दिखेगा पहले
की तरह किसी चाय की दुकान में खटता हुआ. मन में पिता को खोजने का सपना संजोए . ( समाप्त )
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