Thursday 13 June 2019

मेरा खिलौना--कहानी--देवेन्द्र कुमार


मेरा खिलौना—कहानी—देवेन्द्र कुमार  

पिंजरे में बंद तोता मुझे बहुत पसंद था, लेकिन उसकी आफत गई थी।
दो दिन पहले की बात है। मैँ घर के दरवाजे पर खड़ा था। एकाएक आवाज टबाआई, “बाबूजी, खिलौना ले लो।मैंने चौंककर देखा, एक तेरह -चौदह बरस का छोकरा खड़ा था। उसके हाथ में एक छड़ी थी। छड़ी से कुछ खिलौने झूल रहे थे। कुछ मिट्टी के, कुछ कागज के। देखने में एकदम साधारण।
मैंने कहा, “मैं क्या बच्चा हूँ जो खिलौने खरीदूँगा।
एक ले लो ना बाबू!” खिलौने वाले ने फिर कहा। उसने जैसे मेरी बात सुनी ही थी।
किसी बच्चे को दो।मैंने उसे सलाह दी।
किसी बच्चे ने नहीं खरीदा बाबू! सुबह से घूम रहा हूँ, एक भी नहीं बिका। ले लो ! भगवान् भला करेगा।
मैंने खिलौनों पर ध्यान दिया, पर कोई पसंद नहीं आया। मिट्टी के भालू, रीछ, खरगोश, डाल पर बैठी चिड़िया, चूहा और बिल्ली। एक था तोता पिंजरे में बंद। तार का पिंजरा बनाकर तोते को उसमें बंद कर रखा था। छोटा-सा पिंजरा, उसके अंदर नन्हा-सा तोता। ध्यान से देखने पर हरा-हरा मालूम पड़ता था, बस। ऐसे रद्दी खिलौने कौन बच्चा खरीदेगा भला।
मैंने वही तोता खरीदा-पिंजरे में बंद, दो रुपये में और अब उसी की आफत गई है। शैली उसे छोड़ना नहीं चाहती।
शैली हमारे मकान में ऊपर वाली मंजिल पर रहती है अपनी नानी के साथ। शैली की माँ दफ्तर में नौकरी करती है। शैली छोटी है, पीछे से कौन देखभाल  करे। इसीलिए उसने शैली को उसकी नानी के पास छोड़ा हुआ है। शैली की नानी  और वह, बस दो ही हैं।
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मैंने पिंजरे में बंद तोते को कील से लटका दिया। तभी शैली गई। वह रो रही थी। नानी ने मारा था इसीलिए। मैंने उसे गोद में उठा लिया। तभी शैली मुस्कराने लगी। वह रोना भूल गई। उसकी नजरें पिंजरे में बंद तोते पर टिकी थीं, शैली खिलौने की तरफ हाथ बढ़ाने लगी तो मैंने उसे गोद से उतार दिया।
अब वह गरदन ऊँची करके उसे ताक रही थी। सूखे हुए आँसू गालों पर चमक रहे थे। मैंने कहा, “ना बेटी, उसे नहीं लेते। तुम्हारे लिए और ला दूँगा।पर उसने मेरी बात नहीं सुनी, बस उसी तरह तोते की तरफ हाथ बढ़ाती रही, जैसे उसे अपने पास बुला रही हो।
मुझे मालूम था हाथ में लेते ही शैली इसे तोड़ देगी। दीवार पर कील के सहारे अटका, पिंजरे में बंद तोता अच्छा लग रहा था। मैं सोच रहा था, ‘क्या दुनिया में कहीं इतने छोटे तोते भी होते हैं। अगर होते हों तो उन्हें पिंजरे में फुदकते देखकर कितना मजा आए।
मैं शैली को वहीं छोड़ बाहर निकल गया। शाम को घर लौटा तो पत्नी ने बताया, “शैली तोते वाला खिलौना लेना चाहती है।
तुमने दे तो नहीं दिया।मैंने पूछा, फिर देखा, तोते वाला खिलौना कील पर वैसे ही झूल रहा था।
नहीं, दिया तो नहीं, पर वह मचल रही है।पत्नी ने कहा, तभी शैली गई। मैंने उसे गोद में उठा लिया। अब तोते से थोड़ी दूर पर शैली का सिर था। मैं उसे देख रहा था, वह लगातार तोते को घूरे जा रही थी।
और फिर एकाएक उसने झपट्टा मारकर खिलौना कील से खींच लिया। मैंने उसे पीछे हटाना चाहा तो खिलौना उसके हाथ से नीचे गिर गया। मैँने शैली को झट से नीचे खड़ा किया और तोते को उठा लिया। गिरने से पिंजरा हिल गया था। अंदर मिट्टी का तोता भी शायद टूट गया था। मैंने तारों को सीधा करके खिलौने को फिर से कील पर टाँग दिया।
क्यों तोड़ा। देखा, टूट गया !” मैंने जोर से कहा तो शैली रो पड़ी। उसकी आँखें अब भी खिलौने पर ही टिकी थीं।
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उसका रोना सुन पत्नी चली आईं। बोलीं, “बच्ची है, माँग रही है तो दे क्यों नहीं देते।
खिलौने घर में आते ही टूट जाते हैं, यह क्या अच्छी बात है! कुछ देर तक तो सही-सलामत रहना चाहिए उन्हें। मैं यह खिलौना नहीं दूँगा। आखिर वह इसी के पीछे क्यों पड़ी है।मैंने कहा।
पत्नी शैली को चुप कराने में लगी थीं। उन्होंने कहा, “इसकी नानी सुनेंगी तो उन्हें लगेगा हम इसे मारते हैं।
मैंने कुछ नहीं कहा, मैं खिलौने को देख रहा था। पिंजरा एक तरफ से टेढ़ा हो गया था। मुझे दुख हो रहा था। मैं सोच रहा था आखिर शैली इसी को क्यों लेना चाहती है।
कई दिन बीत गए। दफ्तर से लौटकर मैं हर रोज उसी खिलौने के बारे में पूछता था। पता चलता, शैली हर बार उसे माँगती है और मिलने पर रोती है।
उस शाम घर आया तो शैली कमरे में खड़ी दिखाई दी।
उसके हाथ हिल रहे थे। मैंने देखा, तोते वाला खिलौना कील पर नहीं था।
मैं तेज कदमों से कमरे में पहुँचा। खिलौना शैली के हाथ में था। उसकी उँगलियाँ चल रही थीं। मेरी समझ में नहीं आया खिलौना उसके हाथ कैसे लग गया। मन हुआ, जोर का थप्पड़ जमाऊँ और खिलौना छीन लूँ।
पर उसे जैसे मेरे आने का पता नहीं था। वह अपने काम में लगी रही। उसकी  उँगलियाँ पिंजरे के तार तोड़ रही थीं। तो इस शैतान लड़की को खिलौना इसीलिए चाहिए था कि उसे तोड़-मरोड़ सके। मैं देखता रहा, शैली ने पिंजरे के तार तोड़कर टूटा हुआ तोता अंदर से निकाल लिया। शायद अब उसे तोड़ देगी। लेकिन नहीं, वह तोते को होंठों से चूम रही थी। पिंजरे के तार उसके पैरों के पास पड़े थे। मैं एक तरफ चुप खड़ा था।(समाप्त)