Sunday 24 January 2016

बाल कहानी : खजाने की खोज

                                                             



                                  खजाने की खोज

अजय और रमेश स्कूल से घर लौट रहे थे। कुछ दूर तक रास्ता नदी के साथ-साथ जाता था। धूप में नदी का पानी चमचम कर रहा था। दोनों रोज देखते थे कि एक टूटी-फूटी नाव तट पर खड़ी रहती है। वे आपस में पूछते थे कि आखिर वह नाव किसकी है।
एक दिन जल्दी छुट्टी हो गई। उस दिनों दोनों ने नाव की जांच करने की सोची। दोनों नाव के पास जाकर देखने लगे। नाव टेढ़ी खड़ी थी। उसमें थोड़ा पानी भरा था और ढेर सारे पत्ते पड़े थे। जोर की बदबू आ रही थी। तभी रमेश को नाव में कुछ चमकता नजर आया। वह एक सिक्का था। अजय के मना करने पर भी रमेश नाव में कूद गया और सिक्का उठा लाया। हंसकर बोला-‘‘खजाना!’’
सिक्का एक रुपए का था। अजय ने कहा-‘‘यह तो नया सिक्का है। खजाना कैसे हो सकता है।’’ रमेश बोला-‘‘हमारी किताब में खजाने की खोज की कहानी है। तुमने भी तो पढ़ी होगी।’’
‘‘हां, पर वह तो सिर्फ कहानी है। भला ऐसे खजाना कहां मिलता है।’’
तभी एक आदमी उधर से गुजरा। उसने कहा-‘‘बच्चों, यहां क्या कर रहे हो। यहां सांप निकलते हैं।’’
‘‘यह नाव किसकी है?’’ अजय ने पूछा।
‘‘उसी बूढ़े झूलन की है। जैसा वह बूढ़ा वैसी बूढ़ी उसकी नाव। उससे मिलना है क्या? वह कहानियां खूब सुनाता है। और उसने पास में एक झोंपड़ी की ओर इशारा कर दिया।
अजय और रमेश झोंपड़ी के पास जा पहुंचे। अंदर कोई जोर-जोर से खांस रहा था। दोनों झोंपड़ी में घुस गए। अंदर एक बूढ़ा बैठा खांस रहा था। अजय ने झट बढ़कर बूढ़े की कमर सहलानी शुरू कर दी, फिर वहां रखे घड़े से पानी लेकर उसे पिलाया। बूढ़े को कुछ आराम मिला। उसने धीमे स्वर में पूछा-‘‘बच्चो, तुम कौन हो, यहां कैसे आ गए?’’
‘‘ऐसे ही।’’ अजय ने कहा-‘‘आप दवाई क्यों नहीं लेते!’’
बूढ़ा हंस पड़ा। ‘‘कौन दे दवाई। मैं तो अकेला पड़ा रहता हूं।’’
रमेश ने पूछ लिया-‘‘बाबा, पहले तो आप नाव चलाते थे। क्या अपने किसी खजाने के बारे में सुना है?’’
बूढ़ा हंस पड़ा-‘‘बच्चों, मैंने खजाने की कहानियां तो सुनी हैं, पर ये तो सिर्फ कहानी होती हैं।’’ दोनों चलने लगे तो बूढ़े झूलन ने कहा-‘‘बच्चों फिर आना, खजाने की कहानी सुनाऊंगा।’’
रमेश के पिता एक वैध थे। उसने उन्हें झूलन के बारे में बताया और खांसी की दवा देने को कहा। उन्होंने कहा-‘‘मरीज को देखने बिना दवा देने का कोई फायदा नहीं।’’ लेकिन रमेश की जिद पर उन्होंने एक दवाई दे दी।
अगले दिन स्कूल से लौटते समय दोनों झूलन की झोंपड़ी के पास पहुंचे तो देखा एक आदमी झोंपड़ी से निकलकर भाग रहा है।
अजय बोला-‘‘जरूर कोई चोर है। इसे तो पकड़ना चाहिए। और दोनों चिल्लाने लगे-‘‘चोर-चोर।’’ तभी बूढ़ा झोंपड़ी से बाहर आया। बोला-‘‘जाने दो उसे।’’ लेकिन तब तक भागते हुए आदमी को सामने से आते दो लोगों ने पकड़ लिया और झोंपड़ी के पास ले गए।
‘‘बाबा, आपका चोर पकड़ा गया।’’ अजय बोला।
‘‘जाने दो इसे।’’ बूढ़ा बोला।
चोर को पकड़ने वाले लोग चकित थे। उन्होंने कहा-‘‘बाबा, चोर को छोड़ क्यों दें इसे तो पुलिस को सौंपना चाहिए। अगर ये बच्चे शोर न मचाते तो यह भाग जाता। आखिर यह क्या लेकर भागा था। तलाशी लेने पर उसकी जेब से सौ के कई नोट बरामद हुए।
बूढ़े ने कहा-‘‘यह मेरा बेटा है। अलग रहता है। कल मेरे एक पुराने मिलने वाले आए थे। वह पहले मेरी नाव में सवारी किया करते थे। ये रुपए उन्होंने ही दिए थे। तब मेरा बेटा यही था। आज इसने आकर मुझसे पैसे मांगे, पर मैंने मना कर दिया। इस पर यह रुपए लेकर भाग गया।’’
‘‘बेटा है तो क्या हुआ। इसने रुपए चुराए हैं। इसे सजा मिलनी चाहिए।’’ झूलन के बेटे को पकड़ने वालों ने कहा। ‘‘हां इसे पुलिस को देना चाहिए।’’ अजय और रमेशने भी वही बात कही।
‘‘यह आवारा है। अगर इसे पुलिस में दोगे तो इसके बच्चे भूखों मर जाएंगे। इसे जाने दो।’’ झूलन बोला।
‘‘बाबा, आपका बेटा आपका ध्यान नहीं रखता, फिर भी आप इसकी हिमायत कर रहे हैं।’’ अजय बोला। झुलन ने कुछ नहीं कहा। बस रोता रहा। आखिर उसके बेटे को छोड़ दिया गया। वह सिर झुकाए वहां से चला गया। रुपए झूलन को मिल गए।
झूलन के साथ अजय और रमेश झोंपड़ी में चले गए। रमेश ने झूलन को दवाई दे दी। ‘‘वह बोला-‘‘बेटा, मुझे कब तक दवा दोगे?
‘‘जब तक आपकी खांसी ठीक नहीं हो जाती। हम दोनों इसी रास्ते से रोज आया-जायाकरते हैं।’’ रमेश बोला।
कुछ देर बाद अजय और रमेश भी घर की ओर चल दिए।
‘‘मिल गया खजाना!’’ अजय ने कहा। वह धीरे-धीरे हंस रहा था।
‘‘हां, मुझे तो जरूर मिल गया है खजाना। तुम अपनी कहो।’’ कहकर रमेश खिलखिला उठा।
उसने तय कर लिया था कि जब तक झूलन को खांसी ठीक नहीं हो जाती, वह रोज आया करेगा झूलन के पास।
 

बाल कहानी : एक नया सितारा

                                                   
                 
                                                     एक नया सितारा

मुझे गर्मियों की रातें बहुत अच्छी लगती हैं। इसलिए कि उन दिनों स्कूलों की छुट्टियां होती हैं। सुबह मां की पुकार पर बिस्तर से उठना नहीं पड़ता। और रात में हम देर तक बाबा से कहानियां सुनते रह सकते थे।
जैसे ही दिन ढलता हम यानी मैं और मेरी बहन राधा पानी की बाल्टी लेकर छत पर चले जाते और पानी के छपके मारकर छत को ठंडा करने लगते। पानी सूख जाता तो छत पर बाबा के लिए चटाई बिछा दी जाती। गर्मी के मौसम में बाबा शीतलपाटी पर सोया करते थे। उनके पास ही दूसरी चटाई पर मैं और राधा बैठ जाते। हमें बाबा की प्रतीक्षा रहती। कुछ ही देर में पड़ोस से मुन्नू और रमन भी आ पहुंचते। उन्हें भी बाबा से कहानी सुनना पसंद था। बाबा के छत पर आते ही हम उनसे कहानी सुनाने की फरमाइश करते।
तब बाबा कहते-‘‘तुम लोग कहानी अधूरी छोड़कर नींद के पास चले जाते हो। अब नींद ही कहानी सुनाएगी तुम्हें।’’ कुछ देर तक हां-ना होती रहती ओर फिर बाबा कहानी सुनाने लगते। सुनते-सुनते मैं शीतलपाटी पर लेट जाता और आकाश की ओर ताकने लगता। आकाश तारों से भरा होता और फिर न जाने कब नींद आंखों में आ जाती।
रोज ही ऐसा होता था। लेकिन उस दिन वैसा कुछ नहीं हुआ। उस रात बाबा देर से आए और चुपचाप शीतलपाटी पर बैठ गए। लगा जैसे वह कहानी सुनाने की तैयारी कर रहे हैं। फिर वह लेटकर आकाश में देखने लगे। मैंने कहा-‘‘बाबा, कहानी सुनाओ न।’’
कुछ देर चुप रहने के बाद बाबा ने कहा-‘‘कहानी बाद में, आज पहले तारे गिनेंगे।’’ मैंने आकाश में देखा-हर कहीं तारे बिखरे थे। भला असंख्य तारों को कौन गिन सकता था। राधा बोली-‘‘शायद आपको कहानी याद नहीं है इसीलिए तारों की बात कर रहे हैं।’’
‘‘कहानियां तो अनेक याद हैं मुझे पर आज हम तारे गिनेंगे। इनमें एक नया तारा शामिल हुआ है। चलो शुरू करो।’’ फिर बाबा खुद तारे गिनने लगे- एक, दो, तीन... हम चारों ने भी तारों की गिनती शुरू कर दी-छत पर आवाजें गूंजने लगीं-एक दो, दस, सत्रह...! क्या यह भी कोई कहानी थी। तारे गिनते गिनते कब नींद आ गई, पता न चला।
सुबह आंख खुली तो अभी हल्का अंधेरा था। बाबा शीतलपाटी पर नहीं थे। मैंने ऊपर से आंगन में झांका तो बाबा खड़े दिखाई दिए, फिर वह बाहर दरवाजे की तरफ चले गए। अब वह मुझे दिखाई नहीं दे रहे थे। मैंने राधा को जगाया और फिर हम नीचे जा पहुंचे। मम्मी-पापा एक तरफ बैठे थे, पर बाबा दिखाई नहीं दे रहे थे। मैंने मां से पूछा-‘‘बाबा कहां हैं?’’
‘‘वह गांव गए हैं।’’ पापा ने बताया।
‘‘दो दिन बाद आएंगे।’’ मां बोलीं।
‘‘गांव क्यों गए हैं? वहां तो कोई नहीं है हमारा।’’
‘‘तुम्हारी एक दादी रहती थीं। वह बीमार थीं। इसीलिए गए हैं।’’
‘‘लेकिन हमारी दादी तो यहां हमारे साथ रहती थीं।’’ मैं पूछ रहा था। दो साल पहले दादी हमें छोड़ गई थीं। तब फिर गांव में यह कौन सी दादी थीं जिनके पास बाबा गए थे।
‘‘तुम्हारे दादा की बहन जयवंती जो गांव में ही रहती थीं।’’ पापा ने जयवंती दादी के बारे में कुछ बताया, जो मेरी समझ में नहीं आया। मैंने उन्हें कभी देखा ही नहीं था।
बाबा दो दिन बाद लौट आए। वह कुछ थके-थके लग रहे थे। शाम को मैंने और राधा ने रोज की तरह छत को पानी डालकर ठंडा किया, फिर बाबा के लिए शीतलपाटी बिछा दी। अब आकाश में तारे झिलमिल करने लगे थे। बाबा आकर शीतलपाटी पर बैठ गए। उन्होंने पूछा-‘‘आज कौन सी कहानी सुनोगे?’’
मैंने कहा-‘‘बाबा, आज हम सच्ची कहानी सुनेंगे?’’
‘‘यह सच्ची कहानी कैसी होती है?’’ उन्होंने पूछा।
‘‘जो सच होती है-वैसी कहानी सुनाइए हम जयवंती दादी की कहानी सुनेंगे।’’ हम दोनों ने एक साथ कहा।
बाबा कुछ देर चुप रहे फिर बोले-‘‘तो तुम्हारे पापा ने तुम्हें जयवंती दादी के बारे में बता दिया। हां, दो दिन पहले वह स्वर्ग चली गईं। मैं गांव गया तो सही पर उनका मुंह न देख सका।’’
मैंने कहा-‘‘बाबा, पापा को भी उनके बारे में ज्यादा पता नहीं है। आप ही बताइए उनके बारे में बाबा कुछ देर चुप बैठे रहे फिर कहने लगे-‘‘मैं और जयवंती कई वर्षों तक गांव में रहे। हमारा बचपन साथ-साथ बीता... हम देानों में बहुत प्रेम था। हम सदा साथ-साथ रहते थे। हमारे घर से नदी बस थोड़ी ही दूर थी हम अक्सर खेलते हुए नदी तट पर पहुंच जाते। पिता हम दोनों को वहां जाने से रोकते। कहते नदी में घडि़याल आ गया है। वह मनुष्यों को खा जाता है।
तब जयवंती ने कहा था-‘‘जब घडि़याल हमारी तरफ आएगा तो मैं भैया के सामने खड़ी हो जाऊंगी वह मुझे खाकर ही भैया के पास पहुंच सकेगा। और फिर रोते-रोते उसने मेरा हाथ कसकर पकड़ लिया।
मैंने कहा-‘‘जयवंती, रो क्यों रही हो। यहां हमारे घर में तो घडि़याल का कोई खतरा नहीं है।’’ यह सुनकर जयवंती हंस पड़ी। जब वह हंस रही थी तब भी उसकी आंखों से आंसू बह रहे थे। कहकर बाबा आंखें पोछने लगे।
मैंने पूछा-‘‘इसका मतलब जयवंती दादी आपसे बहुत प्यार करती थीं।
‘‘हां, वैसे ही जैसे तुम और राधा एकदूसरे से करते हो।’’ कहकर बाबा हंस पड़े। बोले-‘‘एक बार एक सांड जयवंती के पीछे पड़ गया। वह डरकर भागने लगी तो गिर पड़ी। मैं उसके साथ ही था। मैंने जयवंती को अपने पीछे छिपा लिया और सांड पर पत्थर फेंकने लगा। कुछ देर बाद वह मुड़कर चला गया। हम दोनों बच गए।’’
‘‘सांड आपको चोट भी पहुंचा सकता था।’’ मैंने कहा।
‘‘हां, यह तो था पर मैं जयवंती को खतरे से बचाने के लिए कुछ भी कर सकता था।’’
इसके बाद बहुत देर तक मैं और राधा जयवंती दादी के बारे में पूछते रहे और बाबा बताते रहे। बीच-बीच में वह पूछ लेते थे-‘‘जब नींद आए तो बता देना।’’
उस रात हम देर तक बाबा से उनकी बहन जयवंती दादी की बातें सुनते रहे पर नींद हमारे पास तक नहीं फटकी। बाबा ने हमें अपने गांव के बारे में बताया जहां मैं और राधा कभी नहीं गए थे। पर उनकी बातें सुनकर मुझे लग रहा था जैसे मैं उनके साथ उनके गांव की गलियों में घूम रहा हूं। मैंने कहा-‘‘बाबा, मैं आपके साथ जाकर गांव देखना चाहता हूं।’’
‘‘गांव तो जा सकते हैं पर तुम्हारी जयवंती दादी तो अब रही नहीं।’’ बाबा ने उदास स्वर में कहा और आंखें पोंछने लगे।
आकाश में सब तरफ चमकीले तारे बिखरे थे बाबा ने कहा था एक नया सितारा तारों के झुंड में शामिल हुआ है। मैं तारों को देखने लगा-क्या नया सितारा जयवंती दादी थीं। शायद हां, शायद... 

Thursday 7 January 2016

बाल कहानी : पार्टी हो जाये

                                                                      
                                                                     पार्टी हो जाये



पुष्पा के घर किटी पार्टी चल रही थी. पुष्पा की सारी सखियाँ अपने परिवार के साथ आई थीं. डिनर हो चुका था. पर पार्टी ख़त्म होने पर नहीं आ रही थी. अब बच्चे बोर हो रहे थे. उन्होंने आपस में खुसफुस की फिर सबको सुना कर कहा –‘’ हम आइस क्रीम खाने जा रहे हैं.’’  फिर अमित, रमेश, विवेक और रचना दरवाज़े की ओर बढे. पुष्पा ने अपने बेटे रजत को इशारा किया तो वह बच्चों के साथ चल दिया. क्योंकि मेहमान बच्चे इलाके से अनजान थे,
बच्चे को बाहर आकर अच्छा लगा . रजत बच्चों को   अब आइसक्रीम के ठेले पर ले गया. वे चारों अपनी पसंद की आइसक्रीम चुनने लगे . तभी रचना को ठेले के ढक्कन पर एक कार्ड रखा दिखाई दिया. कार्ड पर लिखा था’’- अमित को जन्म दिन की बधाई .. तुम्हारा दोस्त - श्याम.’  उस कार्ड को बारी बारी से चारों ने पढ़ा फिर रजत ने भी देखा. सबके मन में एक ही बात घूम रही थी- आखिर यह अमित कौन है जिसका दोस्त श्याम बधाई कार्ड आइस क्रीम के ठेले पर भूल गया है. आइस क्रीम खाते हुए वे सब उस बधाई कार्ड के बारे में बातें करते रहे. कुछ देर के लिए जैसे भूल ही गए कि अब उन्हें घर जाना चाहिए .
विवेक बोला-‘’ हो सकता है कि अमित आस पास ही रहता हो. वर्ना श्याम यहाँ से आइस क्रीम न लेता.’’
‘’ इसका मतलब है कि इस समय अमित की बर्थ डे पार्टी चल रही होगी.’’- रचना बोली.
‘’ यानि हमें भी चल कर पार्टी में शामिल होना चाहिए. ‘’ विवेक ने मुसकरा कर कहा .
‘’ चलो आसपास देखते हैं. ‘’ और  पाँचों  आगे चलते हुए इधर उधर देखने लगे. दोनो ओर बने भवनों में उजाला था पर कुछ पता नहीं चल रहा था . तभी सामने एक  बैलून  वाला नज़र आया .
 अमित ने कहा-‘’ पार्टी में बैलून तो जरूर लगे होंगे . हो सकता है कि इसी गुब्बारे वाले से बैलून लिए गए हों. .’’ बच्चे गुब्बारे वाले से पूछने लगे कि क्या उसने किसी अमित या श्याम को गुब्बारे बेचे हैं?’ उसने कहा-‘’ अजी मुझे भला कैसे याद रह सकता है. मैं गुब्बारे खरीदने वालों के नाम नहीं पूछता.’हाँ, आपको लेने हों तो ले लो. बस दो ही बचे हैं.’’
रमेश ने गुब्बारे ले लिए . वे वापस मुड़ने लगे तो गुब्बारे वाले ने कहा-‘’ हाँ, याद आया कुछ देर पहले एक औरत मुझसे दो बैलून ले गई थी . शायद किसी के बर्थ डे के लिए. ‘’ और उसने एक गली की ओर इशारा कर दिया. ‘’ मिल गया. जरूर वह अमित की माँ होगी. चलो देखते हैं किसका जन्म दिन है, कहीं अमित का तो नहीं.’’ वे बढ़ चले . विवेक ने पुकारा       -‘’अमित.’’
तभी एक दरवाज़ा खुल गया और एक औरत ने बाहर झांक कर देखा. रजत ने पूछा-‘’आंटी, क्या आज अमित का जन्म दिन है ?’’
‘’कौन अमित? आज मेरी मुनिया का जन्म दिन तो है, आओ अंदर आ जाओ.’’  कह कर उस महिला ने दोनों पल्ले खोल दिए. ये पाँचों अंदर चले गए. एक कमरे में मद्धिम बल्ब जल रहा  था. एक चारपाई पर एक लड़की लेटी थी. एक खूँटी से दो गुब्बारे लटक रहे थे. रचना चारपाई पर लेटी हुई लड़की के पास बैठ गई. पूछा-‘’ क्या तुम्हारा ही नाम मुनिया है?’’

जवाब में उस लड़की ने सिर हिला दिया और मुस्करा दी. औरत ने कहा-‘’ इसे कई दिन से बुखार आ रहा है. पर जन्म दिन मनाने की जिद पकडे हुए है, अभी इसके बापू आने वाले हैं , वही मनाएंगे इसका जन्म दिन.’’

‘’ अब तो मेरे फ्रेंड भी आ गये हैं.’’ कहती हुई मुनिया बैठ गई. ‘’इसके कपडे तो बदल दो’’ – रचना बोली.

माँ ने मुंह साफ़ करके मुनिया को नई फ्रॉक पहना दी. तभी दरवाज़े पर आहट हुई.एक आदमी अंदर आ गया.’’ बापू आ गए.’’ मुनिया ने कहा. वह इन पाँचों की ओर देख रहा था.

इन पाँचों को अपना परिचय देने की जरुरत नहीं पड़ी. मुनिया की माँ ने एक दरी बिछा दी. बच्चे बैठ गए. मुनिया ने कहा- ‘’ अब मेरे जन्म दिन का केक काटो.’’ पता चला सुबह जाते समय पिता ने केक लाने का वादा किया था. तब तक मुनिया की माँ प्लेट में हलवा ले आई. रमेश ने कुछ सोचा और् प्लेट में रखे हलवे को हाथ से गोल आकार दे दिया . बोला-‘’  केक तैयार हो गया. किसी दूकान में तो ऐसा केक मिलेगा नहीं.’’ तब मुनिया की माँ चाक़ू ले आई.

रचना ने चाक़ू मुनिया के हाथ में थमा कर कहा –‘ केक काटो.’’ सब बच्चे मुनिया को  घेर कर खड़े हो गए और ताली बजाने लगे. उन्होंने कहा-‘’ मुनिया, हैप्पी बर्थ डे.’’ कमरे में हंसी गूंजने लगी . सब ने हलवे का केक खाया. अमित ने कहा-‘’ मुनिया. तुम्हारा गिफ्ट उधार रहा,हम फिर आएँगे . ‘उसने मुनिया के पिता का मोबाइल लेकर सबके नंबर फीड कर दिए, मुनिया के पिता का नंबर भी ले लिया.

माँ ने कहा-‘’मेरी मुनिया का ऐसा जन्म दिन तो कभी नहीं मना  ,’’

अमित बोला-‘’ हम ने भी ऐसी अनोखी जन्म दिन पार्टी कभी नहीं देखी .’’ 

   रजत ने कहा -‘’ मुनिया, अगले महीने मेरा जन्म दिन है . मैं आप सबको लेने आऊंगा.’’ मुनिया ने कहा –‘’ भूल मत जाना. ‘’

‘’ कभी नहीं .’’
मुनिया की माँ ने सबके सिर पर हाथ फेरा.  कहा-‘’ मैं तो तुम सबको कुछ न दे सकी.’’
‘’ दिया तो है आशीर्वाद .’’ – रजत बोला. फिर वे बाहर निकल आये.  
अब बच्चे घर की तरफ् बढ़ रहे थे . सचमुच अनोखी बर्थ डे पार्टी से आ रहे थे वे.  (समाप्त )