Thursday 27 February 2020

वह कौन थी-कहानी-देवेन्द्र कुमार


वह कौन थी—कहानी—देवेन्द्र कुमार

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बाबा, परियाँ क्या सचमुच होती हैं?”  रामू ने बाबा से पूछा।
बाबा ने रोज की तरह रामू को परी की कहानी सुनाई थी। रोज रात में सोने से पहले रामू बाबा से कहानी सुनाने के लिए कहता था और फिर उनसे कहानी सुनते-सुनते सो जाता था, पर उसके बाबा को रात में बहुत देर तक नींद नहीं आती थी। तब वह लाठी लेकर घर के बाहर घूमने लगते थे।
कहानी सुनकर रामू सो गया और उसके बाबा हमेशा की तरह लाठी लेकर घर से बाहर निकल आए। बाबा टहल रहे थे तभी अचानक दूर रोशनी दिखाई दी।
रोशनी देखकर बाबा चौंक उठे। डर किस चिड़िया का नाम है, इसे तो वह जानते ही नहीं थे। उन्होंने लाठी सँभाली और दूर चमकती रोशनी की तरफ बढ़ चले। तभी पीछे से आवाज आई, “बाबा, रुको मैं भी रहा हूँ।
बाबा ने मुड़कर देखा, रामू पीछे-पीछे रहा था।
अरे शैतान, तेरी नींद कैसे खुल गई।जाओ, घर के अंदर जाओ, मैं अभी आता हूँ।लेकिन रामू ने बढ़कर उनका हाथ थाम लिया। बोला, “मैंने सपने में एक परी को आकाश से उतरते देखा था। वह हमारे गाँव के पास ही धरती पर उतरी है। मैंने सुना, वह कह रही थी, ‘रामू, मैं तुम्हारे गाँव के पास नीचे उतरूँगी। तुम मुझसे मिलने जरूर आना।बस फिर मेरी नींद टूट गई। आप उस परी से ही मिलने जा रहे हैं ! मैं भी चलूँगा आप के साथ।
 बाबा समझ गए कि रामू उनके साथ जरूर जाएगा। घर में कोई नहीं था। रामू के माँ-बाप दो दिन पहले शहर गए थे और एक सप्ताह बाद ही लौटने वाले थे।
                           
 बाबा ने रामू का हाथ कसकर पकड़ लिया। बोले, “डरेगा तो नहीं?’’
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जब आप नहीं डरते तो भला मैं क्यों डरने लगा। और आप तो परी से मिलने जा रहे हैं। परियाँ तो अच्छी होती हैं|’’ बाबा समझ गए रामू के मन पर परियों का खासा असर पड़ा है, पर वह समय कुछ कहने का नहीं था। रामू का हाथ पकड़े हुए बाबा दूर चमकती रोशनी की ओर बढ़े जा रहे थे।
 चलते-चलते दोनों उस रोशनी के पास जा पहुँचे। रोशनी एक खंडहर में जल रही थी। उस खंडहर मकान में कोई नहीं रहता था। बाबा सोच रहे थे, ‘कहीं कोई चोर डाकू हो। तब तो मुसीबत हो सकती है।बाबा रामू के साथ खंडहर के अंदर चले गए। बिना छत और बिना दरवाजे वाले कमरे में उन्हें एक बुढ़िया  दिखाई दी।
बाबा, देखो परी।रामू धीरे से बोला।
बाबा ने देखा वह आग के सामने बैठी हाथ ताप रही थी। बाबा ने इधर-उधर देखा पर वहाँ और कोई नजर नहीं आया।
बाबा और रामू को देखकर बुढ़िया मुस्कराई। बोली, “आप लोग कौन हैं?”
यह तो मुझे तुमसे पूछना चाहिए।“  
बुढ़िया ने कहा, “मैं अगले गाँव जा रही थी पर मेरे पास पैसे कम पड़ गए। इसलिए गाड़ीवान ने यहीं उतार दिया। मैंने सोचा, रात में गाँव वालों को क्यों परेशान करूँ। इसलिए इसी खंडहर में रुक गई। पता नहीं आपने कैसे जान लिया मेरे बारे में?”
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रामू सोच रहा थाजानते कैसे नहीं तुम्हारे बारे में। मैंने सपने में देखा था तुम्हें। तभी तो गया हूँ यहाँ अपने बाबा के साथ।
बाबा ने बताया कि उन्होंने अँधेरे में दूर से रोशनी देखी थी और इसलिए चले आए थे।
रामू ने धीरे से कहा, “बाबा, यही परी है जो बुढ़िया बनकर आई है।
बुढ़िया ने बाबा से पूछा, “बच्चा क्या कह रहा है?”
बाबा हँसकर बोले, “बच्चे का दिमाग ठहरा। मैंने कुछ देर पहले इसे एक परी कथा सुनाई थी, फिर यह सो गया था। जब मैं यहाँ के लिए निकला तो यह भी जाग गया और जिद करके मेरे साथ चला आया।
तभी बुढ़िया जोर से कराह उठी और जमीन पर लेट गई। बाबा ने पूछा, “माई, क्या बात है।
पेट में दर्द हो रहा है।बुढ़िया ने कहा।
लेकिन परी को दर्द कैसे हो सकता है।रामू बोला। सुनकर बाबा हँस पड़े। पर  
बुढ़िया दर्द से कराह रही थी। बाबा समझ गए कि वह बुढ़िया को इस हालत में छोड़कर गाँव वापस नहीं नहीं जा सकते। लेकिन यहाँ खंडहर में वह कुछ कर भी नहीं सकते थे।
उन्होंने कहा, “माई, यह जगह गाँव से बाहर है। यहाँ हमें कोई मदद नहीं मिलेगी। तुम मेरे साथ गाँव चलो तो दवा दे सकता हूँ।उन्होंने  बुढ़िया का हाथ पकड़ा और धीरे-धीरे गाँव की तरफ लौट चले।
रामू ने भी बुढ़िया का दूसरा हाथ पकड़ लिया। वह रह-रहकर पूछ रहा था, “अम्मां, सच बताओ न। कह दो कि तुम परी लोक से आई हो।पर बुढ़िया  ने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया.
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बाबा उसे अपने घर ले आए, बिस्तर पर लिटा दिया और गरम पानी के साथ कोई दवा दी। उससे बुढ़िया का दर्द कम हो गया और वह सो गई। फिर बाबा ने कहा, “रामू, अब तुम सो जाओ, बहुत रात हो गई है।पर उसने तो जिद ठान ली। कहने लगा, “मैं तो परी के पास ही बैठूँगा।फिर भी कुछ देर बाद उसे नींद ने अपनी गांद में ले ही लिया।
बुढ़िया सारी रात आराम से सोती रही, पर बाबा जागते रहे। सुबह बुढ़िया की नींद खुली तो वह ठीक थी। उसने अपनी पोटली उठाई चलने लगी।
क्या परियाँ ऐसी होती हैं? वह तो बच्चों को उपहार देती हैं। पर इस परी ने...” रामू ने बाबा से कहा तो बुढ़िया ने पूछा...“बच्चा क्या कह रहा है?”
अब बाबा को पूरी बात बतानी पड़ी। बोले, “यह तो आपको आकाश से उतरी कोई परी समझ रहा है जो बुढ़िया का रूप बनाकर आई है। इसने सुना है परियाँ बच्चों से प्यार करती हैं, उन्हें उपहार देती हैं। इसीलिए कुछ निराश हो रहा हैं। पूछ रहा है क्या परियाँ ऐसी होती हैं?”
बुढ़िया ने बढ़कर रामू को प्यार किया। बोली, “परियाँ मेरे जैसी भी तो हो सकती हैं। मैं ऐसी परी हूँ जिसके प्राण तुमने और तुम्हारे बाबा ने बचाए हैं। अगर तुम लोग खंडहर में आते तो हो सकता है मैं पेट के दर्द से बेहोश हो जाती। मैं मर भी सकती थी।
क्या परी ऐसी भी हो सकती है जिसकी हम मदद करें?” रामू बोला।
हाँ, एकदम नई परी।बाबा और बुढ़िया, दोनों हँसकर बोले। इसके बाद वह  अपनी पोटली लेकर चली गई। रामू देर तक उसे जाते हुए देखता रहा।
ऐसी परी कथा आपने तो कभी नहीं सुनाई।रामू ने बाबा से कहा।
यह नई परी कथा तो परीलोक से बुढ़िया बनकर आई परी ने अपने मुँह से सुनाई है।कहकर बाबा हँस पड़े। रामू भी हँस रहा था।( समाप्त)