Sunday 2 February 2020

भीख और प्यास-कहानी-देवेन्द्र कुमार


 भीख और प्यास—कहानी—देवेन्द्र कुमार

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जीवन को लोगों की उल्टी-सीधी बातें सुनने की आदत पड़ चुकी है। वह जाने कब से भीख माँगता रहा है। लोग अक्सर दुत्कार कर भगा देते। दस लोगों से माँगने पर कोई-कोई ही दयावान ऐसा मिलता जो भीख में पैसे या खाने की चीजें दे देता। वरना तो प्राय: भीख में डाँट-फटकार और शिक्षा ही मिलती है। जीवन इन बातों का बुरा नहीं मानता। वह खुद भी जानता है कि भीख माँगना बुरी बात है, लेकिन करे क्या! पढ़ा-लिखा है नहीं, एक हाथ और एक पैर ठीक से काम नहीं करता। लंगड़ाकर चलता है जीवन। अब तो यह भी याद नहीं रह गया है कि वह कब से भीख माँग रहा है। इस दुनिया में अकेला है जीवन।
लेकिन आज एक बच्चे की बात ने उसे सोचने पर मजबूर कर दिया है। सुबह बाजार में बच्चे के साथ जाती औरत के आगे उसने हाथ फैलाया। औरत ने एक सिक्का जीवन की बढ़ी हुई हथेली पर रख दिया था। लेकिन बच्चे ने माँ से जो कहा था, वह अभी तक जीवन के कानों में गूँज रहा है। वह बोला था, “माँ, तुमने तो इसे भीख दे दी। यह हरेक से माँगता है, क्या यह भी किसी को कुछ दे सकता है?”
जीवन को बच्चे की बात गहरी चुभ गई। वह बार-बार खुद से एक ही बात पूछ रहा है,‘मैं सबके आगे हाथ फैलाता हूँ। आखिर मैं क्या दे सकता हूँ किसी को?’ जीवन जितना सोचता है, उसका मन उतना ही परेशान होता जाता है- सचमुच यह बात तो कभी उसने सोची ही नहीं कि आखिर वह किसी के लिए क्या कर सकता है? यही सोचता हुआ कड़ी धूप में चला जा रहा था।
तभी जीवन की नजर सड़क के किनारे पड़े एक ओंधे मटके पर पड़ी। वह रुक गया। उसने झुककर मटके को सीधा किया। उसे उँगलियों से बजाया तो टन-टन की आवाज आई, इसका मतलब था कि मटका साबुत था। उसमें कोई दरार नहीं थी| खुद                                      
जीवन को जोरों की प्यास लग रही थी। सड़क के किनारे नल से जीवन ने पानी पिया। फिर सोचने लगा, ‘हाँ, यह काम हो सकता है। इस मटके को खाली नहीं रहना चाहिए।उसने नल से मटका भर लिया और फिर फुटपाथ पर बैठ गया। एक हलवाई से उसने कुल्हड़ माँग लिया। धूप तेज थी। वहाँ से गुजरने वाले लोगों ने मटके के पास बैठे भिखारी को देखा और बढ़ गए,  वहाँ पानी पीने कोई रुका। पास से
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गुजरने वाले कई लोग जीवन को जानते थे। एक ने रुककर कहा, “क्यों, भीख माँगना छोड़कर यह धंधा कर लिया क्या?”
नहीं, नहीं, यह धंधा नहीं। गरमी में लोगों को प्यास तो लगती ही है।जीवन बोला।
तो पानी पिलाकर भीख माँगेगा क्या?” उस आदमी ने व्यंग्य से कहा और आगे बढ़ गया।
जीवन को उसकी बात बुरी लगी, ‘क्या मैं सदा भिखारी बनकर भीख ही माँगता रहूँगा? नहीं, नहीं, मैं कुछ और भी तो कर सकता हूँ। जरूर कर सकता हूँ।यूँ ही सोच में बैठे-बैठे काफी समय बीत गया। पर कोई भी प्यासा आदमी अपनी प्यास बुझाने उसके पास नहीं रुका।
तभी कानों में एक आवाज आई, “अरे, देखो तो भिखारी का नाटक। प्याऊ लगाए बैठा है। कौन पिएगा इसका पानी।
सुनकर जीवन को अपने कान गरम होते लगे।क्या मैं ऐसा हूँ कि मेरे छूने से कोई भी चीज बेकार हो जाती है।उसे ऐसी गलत बात कहने वाले पर गुस्सा रहा था। साथ ही दुख भी हो रहा था। तभी उसने पंखों की फड़फड़ सुनी और सिर के ऊपर एक चिड़िया उड़ती नजर आई। चिड़िया नीचे उतरकर मटके पर बैठी और घेरे से झाँक-झाँककर पानी में देखने लगी। पर पानी उसकी चोंच तक नहीं सकता था।
जीवन झटके से उठ खड़ा हुआ। उसने जैसे अपने आप से कहा, “प्यासी है पर पानी पी नहीं पा रही है।उसने कुल्हड़ में पानी भरा और जमीन पर रख दिया। चिड़िया फुर्र से उड़ी और कुल्हड़ की गोलाई पर जा बैठी। तभी कुल्हड़ लुढ़क गया और सारा पानी फैल गया। चिड़िया जमीन पर बैठी और जमीन पर गिरे पानी में  
                                
अपनी चोंच डुबाने की कोशिश करने लगी। पर सूखी धरती ने तुरंत गिरा हुआ पानी सोख लिया। चिड़िया की प्यास नहीं बुझ सकी। वह चोंच खोलकर चूँ-चिर्र करने लगी। जैसे कह रही हो- बहुत प्यास लगी है।
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जीवन तुरंत कुछ दूर बैठे कुम्हार के पास पहुँचा जो मिट्टी के बरतन बेचता था। जीवन ने उससे चौड़े मुँह का कम गहरा मिट्टी का बरतन माँगा। कुम्हार बोला, “पैसे लगेंगे, मैं भीख में किसी को कुछ नहीं देता।
जीवन ने उसे सारी बात बता दी। कहा, “भैया, मैं तुमसे भीख नहीं माँगता। मैं जो कुछ भी तुमसे ले रहा हूँ, उसके दाम जरूर दूँगा और वादा करता हूँ वे पैसे भीख के नहीं होंगे।
एक उथला और चौड़ा पात्र लेकर जीवन मटके के पास रुक गया। घड़े से गिरा पानी धरती में समा चुका था और चिड़िया भी प्यासी ही चली गई थी। जीवन ने घड़े को टेढ़ा करके मिट्टी के उथले पात्र को पानी से भर दिया। कुछ पल बाद चिड़िया फिर लौट आई। वैसे यह कहना कठिन था कि यह वही थी जो प्यासी ही चली गई थी।
जीवन देखता रहा- पहले एक चिड़िया आई, फिर धीरे-धीरे कई और गईं। वे मिट्टी के पात्र के घेरे पर बैठकर पानी में चोंच डालकर प्यास बुझा रही थीं। जीवन बड़े ध्यान से चिड़ियों को पानी पीते देख रहा था। वह सोच रहा था, अगर वे माँ-बेटे फिर कभी दिखे तो वह उन्हें जरूर बताएगा कि उसने काम करने की कोशिश की थी। एक अच्छा काम किया था उसने।­
जीवन को लग रहा था कि अगर मौका मिले तो वह कोई न कोई काम जरूर कर सकता है| कई चिड़ियां अपनी प्यास बुझा रही थीं| उसने आकाश की ओर देखा—अनेक परिंदे पंख फैलाये उड़ रहे थे| मनुष्य उससे बच कर निकलते थे लेकिन परिंदों को उससे कोई शिकायत नहीं थी| वह उन्हें अपना दोस्त बना सकता था.(समाप्त)  

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