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सोसाइटी में बड़े पैमाने पर मरम्मत का काम चल
रहा है। फ्लैटों के आगे लगी बल्लियों के ढाँचे पर खड़े
होकर राज-मजदूर काम कर रहे हैं। जगह जगह मलबे के
ढेर पड़े हैं। देवा भी एक मजदूर है। लेकिन वह काम
नहीं कर रहा है,एक तरफ चुप खड़ा है। उसे ठेकेदार
राजवीर का इन्तजार है। कुछ देर बाद राजवीर आता दिखाई दिया। उसने देवा को
देखा तो चिल्ला कर बोला—‘खाली क्यों खड़ा है, काम नहीं करना
क्या?’
‘पहले पिछला हिसाब साफ़ करो।’ देवा ने कहा।
‘तेरा कुछ बकाया नहीं है। वैसे भी आगे मुझे तुझसे काम नहीं करवाना,’ –कह कर राजवीर आगे
बढ़ गया। देवा समझ गया कि अब कहीं और काम ढूंढना होगा। उसने एक नज़र काम
करतेअपने साथियों पर डाली फिर बाहर की ओर
बढ़ गया।
तभी किसी
ने पुकारा –‘ ओ भैया,जरा रुकना। ’
देवा ने देखा एक छोटी लड़की मुस्कराती हुई उसकी
तरफ आ रही है। साथ में शायद उसकी माँ थी। देवा रुक गया। वे दोनों पास आ गयीं।लड़की
ने कहा—‘ तुम वही हो न जो एक दिन हमारी बालकनी में काम कर रहे थे। तब माँ ने
तुम्हें पानी पिलाया था।उस दिन खूब गर्मी थी।‘
देवा को कुछ याद न आया। पर ऐसा तो कई बार हुआ था|
किसी फ़्लैट की बालकनी में काम करते हुए प्यास लगने पर वह आवाज दे कर फ़्लैट वालों
से पानी पिलाने को कह देता था। पर उसने तुरंत हाँ कह दी और आगे की तरफ चला तो
बच्ची की माँ ने कहा –‘ मेरी बेटी तुमसे कुछ कहना चाहती है।‘
देवा ने मुस्करा कर बच्ची की और देखा। उसे देख
कर देवा को गाँव में रहने वाली अपनी मुनिया की याद आ गई। बोला—‘ हाँ, बोलो क्या बात है?’
लड़की की माँ ने कहा –‘भैया, यह मेरी बेटी रमा है।इसने
कई दिनों से अपनी गुडिया की शादी की धुन लगा रखी है। गुड्डा इसकी सहेली लता का है।‘
‘वाह ,तब तो खूब मज़ा आयेगा,’—देवा हंस पडा।
‘ वो तो ठीक है, लेकिन गुड्डे- गुडिया के इस खेल में घर खूब
फैल जाएगा। इसलिए मैं इससे कह रही हूँ कि यह खेल बालकनी में खेले, लेकिन बालकनी
में अभी सफाई नहीं हुई है।‘
1
अब देवा पूरी बात समझ गया। उसने कहा—‘ तब तो
गुडिया की शादी के लिए बालकनी की सफाई करनी होगी।‘
रमा झट बोल उठी –‘ हाँ तो तुम कर दो न।’
रमा की माँ ने कहा-‘’मैं ऊपर जाकर अपने फ़्लैट की
बालकनी से तुम्हें इशारा करुँगी तो तुम्हें पता चल
जाएगा।’
माँ के साथ जाते हुए रमा ने देवा से कहा—‘ चले
मत जाना। नहीं तो मेरी गुडिया की शादी कैसे होगी।’
देवा को मजा आ रहा
था। बोला—‘ रमा बिटिया, तुमने मुझे गुडिया की शादी का काम सौंपा है। उसे पूरा किये बिना कैसे जा सकता हूँ भला। मुझे
एक लड्डू तो जरूर मिलेगा।‘
रमा की माँ ने हँसते हुए कहा –‘ एक खाना और दो
ले जाना।’
देवा खड़ा हुआ ऊपर की तरफ देखता रहा। वह भी शादी
के खेल में शामिल हो गया था। कुछ देर बाद दूसरी मंजिल की एक बालकनी में रमा
अपनी माँ के साथ दिखाई दी।
देवा ने कहा—‘ मैं अभी ऊपर आकर बालकनी की सफाई
कर देता हूँ। ‘ और वह पाड़ पर चढ़ कर बालकनी में जा उतरा। सचमुच वहां बहुत मलबा पडा
था। उसने रमा की माँ से झाड़ू लाने को कहा फिर सफाई में जुट गया. देवा ने अच्छी तरह
धो कर बालकनी साफ़ कर दी।फिर रमा से कहा—‘’बिटिया,
अब तुम यहाँ आराम से अपनी गुडिया की शादी कर सकती हो।‘ और फिर जैसे ऊपर चढ़ा था उसी
तरह नीचे उतर कर चल दिया।
अब उसे काम की तलाश में जाना था।पर आज का दिन तो
बेकार हो गया। अब कल ही कुछ होगा।सोसाइटी के बाग़ में बच्चे खिलखिला रहे थे। वह बेन्च
पर जा बैठा। गुनगुनी धूप बदन को जैसे सहला रही थी। वह अलसा गया। शायद नींद लग गई
थी। फिर झटके से उठ बैठा। बाहरकी तरफ चला तो फिर गुडिया के ब्याह की बात याद आ गई।
देखना चाहिए कि ब्याह का खेल कैसा रहा। देवा फिर से बालकनी मैं जा पहुंचा, देखा जमीन
पर कुछ फूल बिखरे हुए हैं।छोटी छोटी कटोरियों में रोली,हल्दी और चावल रखे थे। एक
तरफ एक दीपक जल रहा था। मतलब शादी पूरी हो गई थी। वह वापस चलने के लिए घूमा तो
आवाज़ आई—‘शादी तो हो गई। तुम कहाँ चले गए थे।’ और कमरे का दरवाजा खुल गया। वहाँ
रमा मुस्करा रही थी।
देवा
बोला—‘’ वह तो देख ही रहा हूँ।‘
2
‘’शादी हो गयी पर दावत अभी चल रही है।‘ यह रमा की माँ बोल
रही थीं। ‘आओ अंदर आजाओ, उन्होंने देवा से
अंदर आने को कहा।
देवा सकुचा गया। उसने अपने मैले कपड़ों पर नजर
डाली। हाथ-पैर भी धूल मिटटी से गंदे हो रहे थे। बोला—‘मैडम, मैं फिर आ जाऊँगा कपडे
बदलकर।’
रमा की माँ ने हंस कर कहा—‘ तुमने बालकनी की
सफाई की है। तुम सफाई न करते तो रमा की गुडिया की शादी कैसे होती। मेहनती आदमी के
कपडे तो काम में गंदे होते ही हैं.’ अब देवा मना न कर सका। उनके पीछे पीछे अंदर
चला गया। वहाँ कई बच्चे भोजन कर रहे थे। एक तरफ झूले मैं गुड्डा-गुडिया झूल रहे थे,
खूब चमकदार वस्त्रों में सजे धजे। झूले पर फूल मालाएं लटक रही थीं,बल्ब टिमटिमा
रहे थे।
माँ ने
रमा से कहा—‘’देवा भैया के हाथ पैर धुलवा दो।’
रमा
देवा को बाथ रूम में ले गई।जब देवा बाहर आया तो उसे आसन पर बैठने को कहागया. फिर उसके सामने एक प्लेट में भोजन परोस दिया गया।
छोटी छोटी कटोरियों में सब्जी व नन्ही नन्ही पूरियां। साथ में थे छोटे छोटे लड्डू।
छोटी पूरियों को देख कर देवा को बचपन के दिनयाद आ गये। उसकी माँ नन्ही नन्ही दो रोटियां बना कर
एक को आग में डालती थीं और दूसरी उसे देकर कहती थीं-- यह पंख पखेरू के लिए। बच्चे
देवा की तरफ देख रहे थे।रमा की माँ उन्हें बता रही थीं कि कैसे देवा के कारण ही गुड्डे –गुडिया की शादी
हो सकी है।
वह
सकुचा कर खड़ा हो गया। देखा एक तरफ रंगीन पन्नी में लिपटे कई पैकेट रखे थे।जरूर गुडिया की शादी में आये बच्चे लाये होंगे। पर वह
तो खाली हाथ था। उसने रमा से कहा—‘गुडिया, मैं तो शादी में कुछ लेकर नहीं आया।‘
रमा की माँ ने कहा- ‘देवा भाई, तुम्हारे कारण ही
रमा की गुडिया की शादी हो सकी है।तुम्हारा यही उपहार
है।‘
रमा ने कहा—भैया, गुड्डा-गुड़िया को देखो तो सही,
कितने सुंदर दिख रहे हैं।’ देवा ने पास में जाकर देखा। सचमुच संदर जोड़ी थी। देवा ने रमा के
सर पर धीरे से हाथ रख दिया। मन ही मन आशीर्वाद दिया।रमा से बोला –‘गुडिया के लिए
मैं एक दिन उपहार लेकर आऊंग’। रमा की माँ ने चलते समय देवा के हाथ में एक थैली थमा
दी। बोलीं--‘ लड्डू हैं। रमा और इसकी सहेलियों ने बनाए हैं अपने छोटे हाथों से। घर
जाकर बच्चों को जरूर खिलाना।’
‘जी,जरूर’। —कह कर देवा दरवाजे से बाहर आ गया। उसने नन्हे
लड्डुओं की थैली कस कर थाम ली। अभी तक उसका इरादा काम के लिए किसी के पास जाने का
था। पर लड्डू की थैली ने उसका मन बदल दिया। अब देवा बस अड्डे की तरफ चल दिया अपने
गाँव जाने केलिए उसका मन अपनी गुडिया से मिलने को मचल उठा। वह
उसे गुड्डे गुडिया की शादी के ये लड्डू आज ही
खिलाना चाहता था। गाँव में भी तो ऐसा खेल हो सकता है।‘हाँ,
जरूर हो सकता है।‘वह बुदबुदाया और तेजी से बढ़ चला। (समाप्त )
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