Friday 26 October 2018

बताओ किसे दूं--देवेन्द्र कुमार--कहानी बच्चों के लिए




बताओ किसे दूं ?—देवेन्द्र कुमार—कहानी बच्चों के लिए
        
===उपहार,गिफ्ट प्रेजेंट –नाम कुछ भी हो,देने से पहले यह फैसला तो करना ही होगा कि वह किसे दिया जाये? वह कौन है जिसे उपहार दिया जा सकता है? यह निर्णय करना बहुत कठिन था. न कोई नाम सूझ रहा था और न इस समस्या का समाधान! और क्या उसे उपहार कहा भी जा सकता था

=== दादी पूजा कर रही थीं. अमिता बेसब्री से उनकी पूजा समाप्त होने की प्रतीक्षा कर रही थी. उसने माँ से आइसक्रीम के लिए पैसे मांगे थे, पर उन्होंने मना कर दिया--’’हर समय आइसक्रीम!नहीं आज नही.कल पापा से कहना, वह दिलवा देंगे.’’
        अमिता झट दादी के पास जा पहुंची.जब मम्मी-पापा किसी चीज के लिए मना कर देते हैं तब दादी ही उसकी फरमाइश पूरी करती हैं. आज भी वह इसीलिए दादी के पास आई थी. आखिर उनकी पूजा समाप्त हुई. अमिता ने देखा कि दादी उठते हुए लड़खड़ा गईं. उसने झट उन्हें सहारा दिया तो वह गिरने से बच गईं, पर उनके मुंह से एक कराह निकल गई. अमिता को मालूम है कि दादी के घुटनों में दर्द रहता है. इसलिए उन्हें दर्द कम करने वाली दवा लेनी होती है.’’दादी,लगता है आज आपके घुटनों में ज्यादा दर्द है.’’—अमिता ने कहा. एक पल के लिए वह आइसक्रीम की बात भूल गई.
        दादी दर्द में भी मुस्करा दीं, उन्होंने अमिता का सिर सहला दिया. बोलीं—‘’दर्द तो रहता ही है. भगवान् की जैसी मर्जी.’’
       अमिता ने कहा—‘’दादी, आप भगवान् की इतनी पूजा करती हैं,फिर भी वह आपकी बात नहीं सुनते. ऐसा क्यों.’’                   
       ‘’कौन सी बात?’’
        ‘’आप अपने घुटनों के दर्द के बारे में भगवाव से क्यों नहीं कहतीं. तुम कहती हो न कि भगवान् सबकी इच्छा पूरी करते हैं.’’
         ‘’हाँ करते तो हैं.’’
                                     1
      ‘’ तो भगवान् से कहो कि आपके घुटनों का दर्द ठीक कर दें.’’                                      
      ‘’भगवान् से हर समय अपने लिए कुछ न कुछ मांगते रहना तो ठीक नहीं. वह मुझे लालची समझेंगे. ‘’--कहते हुए दादी  मुस्करा दीं.
      अमिता ने कहा—‘’दादी.तुम ठीक कह रही हो. देखो मैंने आज तक भगवान् से कुछ नहीं माँगा. मुझे जो कुछ चाहिए वह सब मम्मी –पापा या आप दिला देती हैं.’’
      दादी समझ गईं. उन्होंने कहा—‘’मेरी बिटिया को आइसक्रीम खानी है-क्यों?’’
      अमिता मुस्करा दी. दादी ने अमिता को पैसे देते हुए कहा—‘’जाओ आइसक्रीम ले लो.’’
       ‘’ दादी, आइसक्रीम बाद में, मुझे पहले आपके घुटनों के दर्द के बारे में भगवान् से बात करनी है. मैं उनसे कहूँगी कि आपके घुटनों का दर्द झटपट ठीक कर दें.’’--कह कर अमिता आँखें मूँद कर भगवान् की प्रतिमा के सामने बैठ गई. 
        दादी दिलचस्पी से अमिता को देखती रहीं. उनके मन में अमिता के लिए प्यार उमड़ रहा था. वह छोटी बच्ची अपनी दादी के घुटनों के दर्द को लेकर बहुत परेशान थी. कुछ देर तक अमिता होठों ही होठों में कुछ बुदबुदाती रही फिर दादी की ओर देख कर मुस्करा दी.
        ‘’अमिता, तुमने भगवान् से क्या कहा.’’—उन्होंने पूछा.
        ‘’मैंने कहा—भगवान्,मेरी दादी के घुटनों का दर्द जल्दी से ठीक कर दो .’’
         ‘’फिर भगवान् ने तुम्हें क्या जवाब दिया?’’
        ‘’दादी,भगवान् की आवाज तो मुझे नहीं सुनाई दी,पर मुझे विश्वास है उन्होंने मेरी प्रार्थना जरूर सुनी होगी. अब देखना तुम्हारे घुटनों का दर्द जल्दी ही छूमंतर हो जायेगा.’’—अमिता ने हँसते हुए कहा.               
        उस रात सोने से पहले अमिता ने दादी से कई बार पूछा—‘’ आपके घुटनों का दर्द कैसा है? कुछ कम तो जरूर कर दिया होगा भगवान् ने.’’
        ‘’बेटी, तेरी प्रार्थना बेकार नहीं जाएगी. थोडा आराम तो है दर्द में.’’—दादी ने कहा.
       ‘’इसका मतलब यह हुआ कि भगवान् ने मेरी बात मान ली.’’ –-अमिता ने प्रसन्न स्वर में कहा.
                                       2
       ‘’हाँ बिटिया,भगवान तो सब की प्रार्थना सुनते हैं. अब आराम से सो जाओ.’’—दादी ने कहा. अमिता नींद की गोदी में गई तो जरूर लेकिन दादी से कहानी सुनने के बाद. यह रोज का नियम था.         अमिता की मम्मी जब रात में उससे सोने के लिए कहतीं तो वह झट दादी के पास दौड़ जाती. और दादी अपनी कहानी के झूले पर झुलाती हुई अमिता को सपनों की दुनिया में पहुंचा देतीं. अगली सुबह नींद खुलते ही अमिता दादी के पास दौड़ गई. दादी उस समय पूजा कर रही थीं. पर अमिता बैचैन थी. उसने पुकारा—‘’दादी,दादी! जल्दी से बताओ कि आपके घुटनों का दर्द अब कैसा है ?क्या दर्द कम नहीं हुआ है, तब तो मुझे भगवान् से आज फिर प्रार्थना करनी होगी कि आपके घुटनों का दर्द तुरंत छू मंतर कर दें.
        ‘’ बिटिया, दर्द तो अब भी हो रहा है.’’—दादी ने कहा और हंस पड़ीं.
         ‘’इसका मतलब है कि भगवान् ने मेरी बात नहीं मानी.’’—कहते हुए अमिता उदास हो गई.
         ‘’अमिता, कल रात भगवान् मेरे सपने में आये थे.’’
         ‘’क्या कहा भगवान् ने?’’—अमिता ने पूछा.
        ‘’उन्होंने कहा –‘’ तुम अमिता की प्यारी दादी हो.मुझे उसकी बात तो माननी ही होगी,पर एक समस्या है.’’
          अमिता ध्यान से दादी की बात सुन रही थी. ‘’कैसी समस्या दादी?’’
           दादी ने आगे कहा—‘’ भगवान् बोले--‘’ तुम्हारे घुटनों का दर्द तो मैं ठीक कर दूंगा, पर तुम्हारे दर्द को मैं अपने पास तो रख नहीं सकता. तुम्हारा दर्द किसी और को देना होगा. बताओ किसे दूं तुम्हारे घुटनों का दर्द?’’   
           अमिता बोली—‘’ इसमें क्या मुश्किल है. अगली बार जब भगवान् आपके सपने में आयें तो आप कह देना कि वह आपके घुटनों का दर्द किसी को भी दे दें.’’
          ‘’बिटिया, तुम जो नाम बताओगी वही मैं भगवान् से कह दूँगी.’’
          ‘’अमिता सोचती रही पर उसे कोई नाम नहीं सूझा. बोली—‘’ दादी, इतनी बड़ी दुनिया है,भगवान् आपके घुटनों का दर्द किसी को भी दे सकते हैं. बस आपका दर्द ठीक होना चाहिए.’’
           ‘’कोई नाम तो बताओ?’’—दादी ने कहा.
                                   3
         काफी समय इसी उलझन में बीत गया.दादी ने अमिता का सिर सहलाते हुए कहा—‘’बिटिया, दर्द या बीमारी कोई मिठाई नहीं जो भगवान् किसी को भी दे दें. वह तो सब को अच्छी अच्छी चीजें देते हैं. हमें ख़ुशी बांटनी चाहिए,दर्द या दुःख नहीं.’’
        ‘’ दादी,इस शहर में हम बहुत से लोगों को नहीं जानते. भगवान् उनमें से किसी को भी आपके घुटनों का दर्द दे सकते हैं.’’
         ‘’बिटिया,क्या यह बात ठीक होगी कि मेरे पैरों का दर्द किसी अनजान आदमी के पैरों में चला जाये?’’—दादी पूछ रही थीं.
        ‘’नहीं यह अच्छा तो नहीं होगा.पर फिर आपके घुटनों का दर्द कैसे ठीक होगा? ‘’
         दादी ने अमिता को गोद में भर लिया. उसके बाल सहलाती हुई बोलीं—‘’हम किसी के जन्मदिन पर बढ़िया उपहार देते हैं. लेकिन क्या दर्द भी उपहार में देना चाहिए?’’
         ‘’नहीं .’’—अमिता बोली.           
         ‘’बस इसीलिए मैंने भगवान् से दिया कि वह मेरा दर्द किसी को न दें. क्योंकि मेरी प्यारी अमिता यह एकदम अच्छा नहीं लगेगा. और फिर मेरी नींद टूट गई.’’ कह कर दादी हंसने लगीं.
           ‘फिर?’’ अमिता ने जानना चाहा.
            ‘’फिर यही कि समय पर दवा लूं और परहेज करूं.’’
             ‘’और आज आपने दवा नहीं ली.’’—कहती हुई अमिता दादी की दवा लेने दौड़ गई. दादी धीरे धीरे हंस रही थीं,  ( समाप्त )     
                   
           

Saturday 20 October 2018

सर्दी की चादर--देवेन्द्र कुमार --कहानी बच्चों के लिए


सरदी की चादर-----देवेन्द्र कुमारकहानी बच्चों के लिए
============= 


==क्या पेड़ चादर ओढ़ते हैं? क्या फूल बारिश में छतरी लगते हैं? हमें तो नहीं पता पर रचना कुछ ऐसा ही सोचती थी,और फिर...==
 
रचना के बारे में मोहल्ले भर में एक बात मशहूर है- वह अपनी मां पर गई है। रंगरूप में उतनी नहीं जितनी गुणों में। रचना की मां प्रतिभा अच्छी चित्रकार हैं। मां को देख-देखकर रचना भी अच्छे चित्र बनाने लगी है। अपने स्कूल में रचना के चित्रों को प्रायः की पुरस्कार मिलता है। जब प्रतिभा से रचनाकी प्रशंसा की जाती है तो वह कहती हैं—‘’अभी तो उसे बहुत मेहनत करनी होगी।‘’
बात ठीक भी है। प्रमिभा इस बात का ख्याल रखती हैं कि कहीं ज्यादा तारीफ़ सुनकर रचना का दिमाग चढ़ न जाए।
स्कूल में चित्रकला प्रतियोगिता हुई। सबसे अच्छे तीन चित्रों को पुरस्कार मिला। उसमें रचना का बनाया गुलाब के पौधे का चित्र भी था। स्कूल की ओर से तीनों विजेताओं को पुरस्कार दिए गए। समारोह समाप्त होने के बाद प्रतिभा स्कूल की प्रिंसिपल से मिलीं। पुरस्कार के लिए धन्यवाद दिया। फिर कहा- रचना बताती है कि स्कूल के बाग में गुलाब के बहुत सुंदर-सुंदर पौधे हैं।”dदेवेन्द्र
हां हैं तो सही। हमें बच्चों के साथ-साथ फूलों से भी प्यार हैं।प्रिंसिपल ने कहा। फिर प्रतिभा और रचना को प्रिंसिपल गुलाब वाटिका दिखाने ले गईं। वहां कई रंगों के गुलाब खिले थे। हवा में भीनी-भीनी खुशबू तैर रही थी। गुलाबों की क्यारियां थीं। बहुत से पौधे गमलों में भी लगे थे।
रचना एक छोटे से गमले में लगे सुंदर गुलाब के सामने जा खड़ी हुई और देर तक खड़ी देखती रही। लगा वह कुछ कहना चाहती है, पर कह नहीं पा रही है। प्रिंसिपल ने पूछा- रचना, क्या गुलाब का पौधा तुम्हें पसंद है? क्योंकि तुम काफी देर से इसके सामने खड़ी हो।‘’
उत्तर में रचना कुछ बोली नहीं, पर धीरे से हां में सिर हिला दिया। उसकी आंखें अब भी गुलाब के फूलों पर टिकी थीं। रचना की मां ने कहा- इसे फूलों से बहुत प्यार है। वैसे हमारी सोसायटी के बाग में भी खूब फूल खिलते हैं। पर यह कई बार कहती है- इनमें मेरे फूल कौन से हैं? क्या मैं गमले पर अपना नाम लिख सकती हूँ?”
सुनकर प्रिंसिपल हंस पड़ीं। फिर उन्होंने रचना के हाथ से ब्रश व पेंट लेकर गुलाब के गमले पर लिख दिया - रचना का गुलाब। फिर बोलीं-- अब यह गुलाब रचना का हो गया। यह इस गमले को घर ले जा सकती है। मुझे ऐसे बच्चे बहुत पसंद हैं जो पेड़-पौधों और पशु -पक्षियों से प्यार करें।
1
गुलाब का उपहार पाकर रचना फूली न समाई। स्कूल से घर तक के पूरे रास्ते में वह गुलाब के गमले को अपनी गोदी में लिए बैठी रही। मां ने कई बार कहा भी- रचना, गमले को नीचे रख दो। गमले का रंग कपड़ों पर लग जाएगा।
पर रचना ने गमला गोदी से नहीं उतारा। फिर सोसायटी में अपने फ्लैट तक जाते समय वह बच्चों को अपना गुलाब का गमला दिखाती गई। कोई पूछता- यह गुलाब का पौधा कितने का लिया तो कहती- यह तो मुझे उपहार में मिला है। यह तो अनमोल है।
रचना ने गुलाब का गमला अपने पलंग के पास टेबुल पर रख दिया। एक कपड़े से पत्तियों को साफ किया, फिर उसमें पानी डाला।
मां ने कहा-रचना, क्या तुम इस गुलाब के गमले को यहीं रखोगी?”
और क्या! यह मेरा दोस्त है। मैं रात को इससे बातें करूंगी।
गुलाब से बातें। क्या फूल बोलते हैं?” मां ने हंसते हुए कहा।
रचना बोली-मां, तुमने बताया था न पौधों में भी जीवन होता है। पता नहीं तुम किस वैज्ञानिक का नाम ले रही थीं।
वह वैज्ञानिक जगदीष चन्द्र वसु थे पर उन्होंने यह कभी नहीं कहा कि पौधे मेरी-तुम्हारी तरह बात कर सकते हैं।
बात चाहे न करें, पर मैं जो कहूंगी उसे मेरा गुलाब सुनेगा जरूर, यह मुझे पता है।” - रचना ने कहा।
मां हंसकर रह गईं। अब गुलाब का पौधा रचना के कमरे में ही रहता था। जब वह सुबह स्कूल जाती तो मां से कहना न भूलती- मां, मेरे दोस्त गुलाब का ध्यान रखना।मां कहती- जब गुलाब तेरा मित्र बनकर साथ में रहने लगा है तो इसका ध्यान रखना ही पड़ेगा।
मां ने कई बार रचना को समझाया कि गुलाब वाले गमले को सोसायटी के बाग में रखवा दे जहां तरह-तरह के फूलों के बहुत सारे गमले रखे हुए थे। उनकी देखभाल एक माली करता था। पर रचना उनकी बात मानने को तैयार ही नहीं हुई।
बीच में स्कूल में दो दिन की छुट्टी हुई तो रचना अपने मम्मी डैडी के साथ अपनी नानी के घर मिलने गई। नानी उसी शहर में लेकिन उनकी कालोनी से दूर रहती थीं। जाते समय रचना की मम्मी ने कहा-
2
हम दो दिन नहीं रहेंगे। हमें गुलाब को पौधे को नीचे बाग में रख देना चाहिए.माली दुसरे पौधों के साथ तुम्हारे गुलाब की भी देखभाल कर लेगा।
रचना ने गुलाब के गमले पर लिखे अपने नाम पर प्यार से हाथ फिराया, फिर बोली- कोई मेरे प्यारे गुलाब को चुराकर ले गया तो? नहीं, मैं इसे अपने कमरे में ही रखूंगी।मम्मी को रचना की जिद माननी पड़ी। रचना अपनी नानी के घर चली गई।
दो दिन नानी के घर मजे करने के बाद रचना लौटी तो सबसे पहले अपने गुलाब के पास गई। फिर जोर से चीखी- मम्मी, जल्दी आओ, देखो तो मेरे गुलाब को क्या हो गया!
रचना की मां प्रतिभा दौड़कर गईं तो देखा रचना गुलाब के गमले के पास उदास बैठी है। मां को देखते ही बोली- देखो मेरे गुलाब को।
प्रतिभा ने देखा- दो दिन में गुलाब के कई फूल झर गए थे। कई मुरझाकर लटक रहे थे। उन्होंने कहा- बेटी, मैंने कहा था न हमारे पीछे से कौन फूलों की देख-भाल करेगा। देखो पानी और ताजी हवा न मिलने से तुम्हारा पौधा बीमार हो गया है। पहले हमें इसे स्वस्थ करना है।
वह कैसे होगा?” रचना ने कहा।
प्रतिभा ने तब तक माली को बुला लिया था। उन्होंने रचना को समझाया- इसका तरीका यही है कि गुलाब के पौधे को हम माली भैया को सौंप दें। यह दूसरे पौधों की भी तो अच्छी तरह देखभाल करते हैं।मां के समझाने पर रचना मान गई। जब माली गुलाब के पौधे को उठाकर नीचे ले गया तो रचना भी उसके साथ गई, फिर माली को बताया कि वह गमले को कहां रखे। गमले को ऐसी जगह रखा गया था जो प्रतिभा के फ्लैट की बालकनी से साफ दिखाई देती थी। गमला रखवाने के बाद रचना ने बाल्कनी में जाकर स्वयं देखा तब कहीं उसकी तसल्ली हुई। उसके कहने पर माली ने गमला इस तरह रखा था कि उस पर लिखा रचना का नाम दूर से ही पढ़ा जा सकता था।
माली भैया, मेरे गुलाबों का ध्यान रखना।रचना ने कहा तो माली बोला- बेबी, बाग के सारे फूल मेरे बेटी-बेटों की तरह हैं। मैं तो सबका ध्यान रखता हूँ।
रचना बोली- पर मेरे फूलों का विशेष ध्यान रखना। इसके लिए मैं तुम्हें अपने जेब खर्च में से कुछ पैसे दे दिया करूंगी।माली हंसा और रचना का सिर सहलाकर नीचे उतर गया। रचना बहुत देर तक बालकनी में खड़ी अपने गुलाबों की ओर देखती रही। उसे उम्मीद थी कि माली अब उसके गुलाबों का
3
दूसरे फूलों से ज्यादा ध्यान रखेगा। जरूर रखेगा। रात में उसने कई बार उठकर खिड़की से नीचे झांका। पर अंधेरे में कुछ दिखाई न दिया। अंधेरे में तो सारे पौधे एक से लग रहे थे।
मौसम बदल रहा था। एकाएक रात को तेज ठंड पड़ने लगी थी। गमले में गुलाब का पौधा तो था, पर फूल नजर नहीं आते थे। उसके पूछने पर माली तसल्ली देता था- बेबी, जब मौसम कम ठंडा होगा तब फूल फिर से आयेंगे तुम्हारे गुलाब पर।
क्या सच?” रचना पूछती थी तो माली कहता था- हां जरूर।
रचना की बालकनी के सामने वाले हिस्से में धूप नहीं आती थी इसलिए माली गमले को उठाकर दिन में दूसरी तरफ धूप में रख देता था। शाम को फिर गमला पुरानी जगह पर लौट आता था। एक दिन रचना ने देखा तो गमला अपनी जगह नहीं था। घबराकर दौड़ी-दौड़ी माली के पास जा पहुँची। मेरे फूल, मेरा गमला!’’ वह इतना ही कह पाई थी कि माली उसका हाथ पकड़कर धूप में रखे गमले के पास ले गया। रचना ने गमले पर अपना नाम देखा तो खुश हो गई।
उस रात सोते-सोते रचना को एक सपना आया। उसने देखा ठंडी हवा चल रही है। उसके गुलाब की पंखुड़ियां थर-थर कांप रही हैं। आवाज आ रही है- रचना, मुझे ठंड लग रही है और तुम हो कि आराम से गरम बिस्तर में सो रही हो।
रचना चौंककर जाग गई। उसने उठकर खिड़की खोली तो तेज हवा का ठंडा झोंका उसे सिहरा गया, पर फिर भी वह खिड़की में खड़ी होकर नीचे अंधेरे में अपने गमले को देखने की कोशिश करती रही।
सुबह उसने प्रतिभा से कहा- मम्मी, मुझे रात को सपना आया था और फिर मैंने रात के अंधेरे में खिड़की से देखा तो सचमुच मेरा गुलाब हवा से कांप रहा था।
प्रतिभा हंसकर बोली- बेटी, पेड़ पौधे इसी तरह रहते हैं। आखिर उनके पैर तो हैं नहीं जो सर्दी लगने पर चलकर बंद जगह में पहुँच जाएं। दिन में इसीलिए तो माली गमलों को उठाकर धूप में रखता है ताकि उन्हें धूप मिल सके।
लेकिन रात में।
रात में क्या।
4
हमें अपने गुलाब के लिए कुछ तो करना चाहिए।रचना ने कहा और सारा दिन सोचती रही।शाम को उसने मम्मी की शाल उठाई और नीचे जाकर गुलाब के पौधे को अच्छी तरह ढक दिया.
प्रतिभा ने खिड़की से बेटी का कारनामा देखा तो हंस पड़ी। रचना ऊपर आई तो उन्होंने कहा- बेटी, यह क्या खेल कर रही हो। आखिर तुम्हारा गुलाब का पौधा ही तो अकेला नहीं है। क्या सर्दियों में कोई पूरे जंगल को उढ़ाता है, या बारिश और तेज धूप में उन के ऊपर एक विशाल छतरी तानता है? यह पागलपन है। प्रकृति अपने तरीके से पेड़ पौधों की रक्षा करती है।
पर मां, वह तो मेरा गुलाब है। उसका ध्यान तो मुझे ही रखना होगा।रचना ने कहा।
उस रात रचना आराम से सोती रही। रात में उसने एक बार उठकर नीचे झांका पर साफ-साफ कुछ नजर न आया। पर उसे तसल्ली थी कि कम से कम उसका गुलाब तो सर्दी से बचा रहेगा। सुबह नींद खुलते ही उसने नीचे झाँका तो सन्न रह गई। रात को उसने जो शाल गुलाब पर डाला था, वह दूर जमीन पर पड़ा था। पास में ही माली पौधों की गुड़ाई कर रहा था।
रचना ने चिल्लाकर पुकारा- माली भैया, जरा ऊपर तो आना,’’ फिर उसके उत्तर देने से पहले ही खुद नीचे भाग गई। उसने पूछा- माली भैया, मेरे गुलाब पर से शाल किसने उतारा?”
रात में तेज हवा चल रही थी। इसीलिए उड़ गया होगा।माली ने कहा। रचना ने देखा माली के बदन पर केवल एक पतली कमीज थी, हवा उस समय भी तेज भी और वह ठंड से कंपकंपा रहा था।
तब तक प्रतिभा भी नीचे आ गईं । उन्होंने कहा- रचना, मैंने तुम्हें बताया तो था कि पेड़-पौधे सरदी में रजाई नहीं ओढ़ते। उनकी देखभाल प्रकृति अपने आप करती है या फिर हमारे माली भैया करते हैं।प्रतिभा ने जमीन पर पड़ी शाल उठा ली, फिर माली से ऊपर आने को कहा। उन्होंने माली को खाली कमीज में सर्दी में कंपकंपाते देखा लिया था।
माली कुछ देर बाद ऊपर आया तो प्रतिभा ने गरमागरम चाय और कुछ खाने को सामने रख दिया, फिर रचना के पापा की कमीज और स्वेटर निकालकर देते हुए कहा- इन्हें पहन लो। अगर तुम्हें ठंड लग गई तो फिर रचना के गुलाब कैसे ठीक रहेंगे।कहते हुए उन्होंने अपनी शाल रचना को थमा दी जिसे रचना ने रात में गुलाब के पौधे को उढ़ाया था। उनकी आंखें अब रचना पर टिकी थीं।
उनकी बात शायद रचना के मन तक पहुँच गई। रचना ने शाल माली को थमा दी। बोली- माली भैया, तुम सुबह बहुत सवेरे बाग में आ जाते हो। जब आओ तो यह षाल ओढ़कर आना। मम्मी ठीक कह रही हैं , अगर तुम बीमार पड़ गए तो फिर मेरे गुलाब की देखभाल कौन करेगा।‘’
5
माली ने हौले से रचना का माथा छू दिया। बोला- बेबी, मैंने कहा था न सब पौधे मेरे अपने बच्चों जैसे हैं, फिर तुम्हारा गुलाब तो मेरे लिए खास है।कहकर माली नीचे उतर गया।
रचना को मां ने गोद में भर लिया। पीठ थपथपाती हुई बोली- सब ठीक हो जाएगा, और सिर्फ तेरे गमले के गुलाब ही तो नहीं हैं। बाग के सारे फूल-पेड़, पौधे हम सबके हैं। हमें किसी एक का नहीं, सबका ध्यान रखना है।‘’
रचना चुप खड़ी थी। ( समाप्त )