Saturday 30 December 2017

बूढी बुहारी



बूढ़ी बुहारी—देवेन्द्र कुमार –बाल गीत 


बूढ़ी बुहारी आफत की मारी
घूरे पर पड़ी हुई रोती है चुप-चुप
कौन पोंछे आंसू, किससे कहे दुख
जीवन में इसने पाया न सुख
सीकें घिसकर टूट गईं
बंधी डोरी टूटकर गिर गई
पर कभी थी सुंदर, चमकदार
लड़ती थी कूड़े से बार-बार
काम था घर को साफ सुथरा बनाना
फिर थक हार कर कोने में चले जाना

घिसते घिसते घिस कर टूट गई
तो फेंक दी गई घर से बाहर
चलो एक म्यूजियम बनाएं
बूढ़ी बदरंग झाड़ुओं को उसमें सजाएं
लोगों से कहें बूढ़ों को भूल मत जाओ
उन्हें परेशान देखो तो झट हाथ बढ़ाओ
                                  --देवेन्द्र कुमार

Tuesday 26 December 2017

गजब मिठाई



पापा थैले में कुछ लाए
बोले-यह है नई मिठाई
ना रसगुल्ले, ना यह बरफी
बालूशाही, नहीं इमरती
हलवाई से दूर रहे यह
ऐसी है यह अजब मिठाई

मैंने पूछा नाम बताओ
मां बोलीं-आंखों से खाओ

जल्दी से जो थैला खोला
हमें मिली क्या खूब मिठाई
दो नाटक और बीस कथाएं
कुछ पन्नों ने गीत सुनाए
पढ़कर मैं पापा से बोला
आंखें मांगें और मिठाई।
--देवेन्द्र कुमार

Friday 22 December 2017

देखो देखो फूल खिला



कूड़े पर एक फूल खिला
सुंदर पीला फूल खिला
       कैसा अद्भुत फूल खिला
       खूब खिला भई खूब खिला

वहाँ गली का कूड़ा पड़ता
बदबू   छाई   रहती   है
सब इससे बच कर चलते हैं
जाने  कैसे   फूल खिला
      
        कोई नहीं देखने वाला
        उसे मिला है देश निकाला
        खूब गंदगी में महका है
        कितना सुंदर फूल खिला
                     --देवेन्द्र कुमार        

Monday 11 December 2017

अजब किताब



छोटी-छोटी बातें मिलकर
एक बनेगी बड़ी किताब
पढ़ा लिखा था तुमने कितना
और बताओ कितना खेले
कब मम्मी की बात न मानी
कितनी बार झूठ बोले थे
काम न करने पर टीचर से
कब कब पड़ी कहो फटकार?
कैसे हंसे, रुलाया किसने
पड़े पीठ पर कितने मुक्के
पापा क्यों गुस्सा होते हैं
मम्मी कब हंसती हैं भैया
दादी के चश्मे का शीशा
कब टूटा था?
ऐसी ही कितनी ही बातें
खट्ठी-मीठी प्यारी बातें
याद करोगे तो फिर मिलकर
एक बनेगी बड़ी किताब
यह तो होगी प्यारी प्यारी
हंसनी-रोनी अजब किताब