Friday 13 April 2018

भूले बिसरे --देवेन्द्र कुमार-- बाल कहानी



     भूले बिसरे
            ---देवेन्द्र कुमार
फूलों के चित्र सुंदर थे. लेकिन क्या कोई उन्हें पहचान सकता था. कोई माली फूलों के नाम जरूर बता सकता था. पर डॉ, हरीश रायजादा उन फूलों के बारे में एकदम अनजान थे. हाँ यह और बात थी कि उनके दवाखाने की दीवारों पर उन खूबसूरत फूलों के फ्रेम मंडित कई चित्र लगे हुए थे, एक बच्चे ने इस बारे में पूछा तो उन्हें कुछ भूले बिसरे दिन याद आ गए.   

यश के पेट में दर्द था. वह स्कूल नहीं गया. माँ सरिता उसे फॅमिली डाक्टर हरीश रायजादा के पास ले गईं. डॉ.किसी मरीज को देख रहे थे. सरिता और यश उनके केबिन के बाहर प्रतीक्षा करने लगे. वहां दीवार पर फूलों के दो सुंदर फ्रेम मंडित चित्र लगे थे.यश देर तक उन चित्रों को देखता रहा, वह माँ से कुछ पूछने वाला था तभी उनका नंबर आ गया. डॉ. हरीश और यश के पिता विनय बचपन के दोस्त थे. एक दूसरे के परिवार में आना जाना था.
डॉ. हरीश ने यश को देखा और दवा दे दी.फिर सरिता से बातें करने लगे.यश ने देखा कि डॉ, की कुर्सी के पीछे भी फूलों का फ्रेम मंडित चित्र लगा था. उसने डॉ. हरीश से पूछ लिया—अंकल, ये फूल कौन से हैं?’’
डॉ, हरीश हंस पड़े—‘’ यश,सच कहूँ तो मैं इन फूलों के बारे में कुछ नहीं जानता.’’ फिर बताने लगे—एक दिन कोई मिलने वाले आये थे. उन्होंने मेरे पीछे लगे चित्र को देखा और बोले ‘’यह क्या!अब तुम गाँव में नहीं शहर के बड़े डाक्टर हो. ‘’ जहाँ आज फूलों का चित्र लगा है तब वहां गाँव के पुश्तैनी घर का पुराना चित्र लगा था. अगले दिन वह फूलों के तीन फ्रेम मंडित चित्र ले आये .दो बाहर और एक मेरे पीछे लगा दिया. मैंने उनसे फूलों के नाम पूछे तो उन्होंने कहा कि उन्हें मालूम नहीं. पहले हर दिन जब मैं अपने केबिन में प्रवेश करता था तो सबसे पहले नज़र गाँव के घर पर पड़ती थी.लेकिन...’—और डॉ. हरीश चुप हो गए.
उस् रात  डॉ. हरीश देर तक अपने गाँव वाले घर के बारे में सोचते रहे. अब गाँव में उनके परिवार का कोई नहीं रहता था. रह गया था बस पुराना पुश्तैनी मकान. वह तो बहुत वर्षों से गाँव नहीं गए थे. जाने का कोई अवसर ही नहीं था.जब अपना कोई गाँव में था ही नहीं तो क्यों जाते. लेकिन अब मन कह रहा था कि उन्हें कम से कम एक बार तो अपने पुश्तैनी गाँव जाना ही चाहिए.
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दो दिन बाद रविवार था, डॉ. हरीश परिवार के साथ गाँव की ओर चल दिए. उनकी कार अपने मकान के सामने रुकी तो जल्दी ही लोग इकट्ठे हो गए. हरीश कार से उतर कर दरवाजे के सामने खड़े होकर देखने लगे. दरवाजे की बदरंग लकड़ी में दरारें दिख रही थीं. दीवारें धसक रही थीं. खपरैल में जगह जगह छेद हो गए थे. कुंडे में जंग लगा पुराना ताला लटक रहा था.तभी वहां जमा लोगों के बीच से निकल कर एक बूढा आगे आया. वह गाँव का मुखिया था. डॉ. ने मुखिया के पैर छू  कर अपना परिचय दिया तो मुखिया ने डॉ. को बाहों में भर लिया. बोले –‘’जानते हो तुम्हारे दादा और मैं पक्के दोस्त थे. बाद में तुम्हारा परिवार शहर चला गया. आज कितने वर्षों बाद तुम्हें गाँव की याद आई है. तुम्हे देख कर मुझे पुराने दिन याद आ गए.’’
हरीश चुप रहे , क्या कहते. मुखिया ने कहा –‘’आओ मेरे घर चलो. तुम्हारा घर तो खंडहर हो चुका है.’’
हरीश ने कहा—‘पहले घर के अंदर जाना चाहता हूँ. ’’ ताला हाथ लगाते ही गिर पड़ा. हरीश ने दरवाजे को ठेला और अंदर घुस गए. सब तरफ मलबा और कूड़ा बिखरा था.कच्चे आँगन में ऊँची घास उगी थी. आँगन के बीच उगे पेड़ के पत्ते हिल रहे थे,परिदों की आवाज़ सुनाई दे रही थी. डॉ. हरीश कुछ देर चुप खड़े रहे . आँखों के सामने पुराने दिनों की छवियाँ एक एक करके आ रही थीं. उनमें माँ का चेहरा सबसे उजला था. कोठों और दालान पर टूटे खपरैल से होकर धूप के टुकड़े गिर रहे थे. रसोई में चूल्हे के ऊपर दीवार पर गहरी कालिख जमी थी. माँ न होते हुए भी मौजूद थी.   
       मुखिया की पुकार सुनाई दी तो डॉ.हरीश बाहर आ गए. मुखिया डॉ. हरीश के परिवार को अपने घर की और ले चले. हरीश ने देखा गलियाँ कच्ची थीं , हर कहीं कूड़ा फैला था. घरों से निकला पानी जगह जगह जमा हो रहा था. ज्यादातर मकान कच्चे थे. गाँव में खूब हरियाली थी, दूर नदी झलकी दे रही थी. मुखिया जी के घर के बाहर गाँव वालों का झुण्ड जमा था. मुखिया जी ने डॉ, हरीश का परिचय दिया तो एक गाँव वाले ने हरीश से कहा—‘हमारे गाँव में इलाज के लिए कोई डाक्टर नहीं है. यह सुनकर अच्छा लगा कि आपका जन्म इसी गाँव में हुआ था. क्या आप हमारा इलाज करेंगे?’’
          और कुछ देर बाद डाक्टर हरीश कुछ मरीजों की जांच कर रहे थे. उन्होंने सभी मरीजों के पर्चे तैयार कर दिए लेकिन वह अपने साथ कोई दवा तो लेकर आये नहीं थे.तभी मुखिया जी ने बताया कि पास के कसबे में केमिस्ट की दुकान है. डॉ. हरीश ने ड्राईवर को पर्चे लेकर भेज दिया.साथ     में एक गाँव वाला भी गया. हरीश ने साधारण खांसी –बुखार की दवाओं के साथ मरहम पट्टी का  

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सामान तथा बच्चों के लिए कुछ टॉनिक भी मंगवा लिए, ड्राईवर को बता दिया कि सब पर्चो की दवाएं अलग अलग लिफाफों में मरीजों के नाम लिखवा कर लाये. ड्राईवर के लौटने के बाद सब रोगियों को समझा दिया कि दवाएं कैसे लेनी हैं. कुछ बच्चों की चोटों की मरहम-पट्टी भी कर दी गई.
     अब तक दिन ढलने लगा था. डॉ. चलने को तैयार हुए तो मुखिया जी ने पूछा —‘’घर का क्या करने की सोच रहे हो? क्या फिर कभी आओगे?’’
     ‘’मैं अगले रविवार को फिर आऊंगा. आना ही पड़ेगा. मैं मरीजों को बीच में कैसे छोड़ सकता हूँ भला. ‘’
     सुन कर मुखिया जी खुश हो गए. उन्होंने कहा –‘’बेटा, अगर ऐसा है तो मैं तुम्हारे घर की मरम्मत करवा देता हूँ. ‘’ गाँव से शहर लौटते हुए डॉ. हरीश पत्नी से इस बारे में बात करते रहे. वह गाँव के बारे में लगातार सोच रहे थे.
      अगले रविवार को डाक्टर की कार गाँव में अपने घर के आगे रुकी तो वह हैरान रह गए. पुराने घर का तो काया पलट हो चुका था. दीवारों की मरम्मत हो चुकी थी. नया छप्पर डाल दिया गया था. कार की आवाज़ सुनकर मुखिया जी अंदर से निकल आये. बोले .—अंदर आकर देखो.’’
      हरीश ने देखा आँगन से घास गायब थी .पूरा घर जैसे नया हो गया था. हवा में मीठी गंध तैर रही थी. मुखिया जी ने कहा—‘’ जब कोई शुभ कार्य होता है घर में हलवा बनता है. तुम्हारी दादी तुम्हारी माँ की रसोई में काम कर रही हैं.’’  आँगन में बड़ी दरी पर बहुत से गाँव वाले बैठे थे. हरीश के साथ सबने हलवा खाया. फिर हरीश ने अपने पुराने मरीजों की जांच की और कुछ नए लोगों को दे खा. इसके बाद हरीश ने मुखिया जी से एक नए आदमी का परिचय करवाया. वह था रामसरन   कम्पाउण्डर जिसे हरीश अपने साथ लेकर आये थे. उन्होंने मुखिया जी से कहा—‘’ अब से रामसरन यहीं रहेगा. इसका गाँव बिरसा पुर यहाँ से ज्यादा दूर नहीं है, दिन  में यह गाँव में रह कर मरीजों को दवा देगा और रात में साइकिल से अपने गाँव चला जाया करेगा. ‘’
          यह सुनकर मुखियाजी तो बहुत खुश हो गए. उन्होंने कहा—‘’इससे अच्छा कुछ नहीं हो सकता. रामसरन के आने जाने के लिए साइकिल का इंतजाम हो जाएगा. बारू माली का परिवार पास में ही रहता है. रामसरन के लिये भोजन उसकी पत्नी बना दिया करेगी. लेकिन कम्पाउण्डर और दवाओं का खर्च ...’ डॉ. हरीश ने बीच में ही टोक दिया और बोले—‘ मुखिया दादा, आपको इन सब के लिए चिंता नहीं करनी होगी. मैं इस गाँव का डाक्टर हूँ , मैं मानता हूँ कि गाँव से शहर जाकर मैं
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अपने गाँव को भूल गया था, पर अब एक डाक्टर के रूप में यहाँ के लिए कुछ करना चाहता हूँ . गाँव के लोग स्वस्थ रहें, इतना कर सकूं तो मुझे संतोष होगा.’’
         ‘’कुछ काम मुझे भी बता दो.’—मुखियाजी ने कहा.
         ‘आप पंचायत  के मुखिया हैं. आप गाँव की गलियों की मरम्मत और कूड़े के निपटान का इंतजाम कर सकें तो बीमारियाँ कम हो सकती हैं. सरकार इन के लिए मदद दे सकती है. गाँव के बच्चों के टीकाकरण का इंतजाम मैं करूंगा. कुछ हफ़्तों तक मैं हर रविवार को यहाँ आता रहूँगा. मुझे उम्मीद है कि अच्छा बदलाव आएगा. ‘’         
         शहर के लिए रवाना होने से पहले डॉ. हरीश ने घर के अंदर और बाहर गाँव वालों तथा बच्चों के साथ कई फोटो क्लिक किये. और फिर एक दिन विनय के पास फोन आया . डॉ. हरीश ने कहा ‘’–यश को लेकर आना मेरे क्लिनिक पर. ‘’
         ‘’यश तो ठीक है ’’—सरिता ने कहा और शाम के समय विनय और सरिता यश के साथ डॉ. हरीश के क्लिनिक पर जा पहुंचे. यश डॉ. हरीश के केबिन में गया तो चौंक पड़ा, डॉ. हरीश की कुर्सी के पीछे फूलों की जगह दूसरे ही चित्र लगे थे. हरीश ने कहा –‘’मैं जिन फूलों को नहीं पहचानता उनके चित्र हटवा दिए हैं मैंने. ये चित्र मेरे गाँव वाले घर और गाँव वालों के हैं. तुम इनके बारे में जो पूछना चाहो मैं बता सकता हूँ. तुम्हारे प्रश्न का उत्तर पाने के लिए मुझे अपने भूले बिसरे गाँव जाना पड़ा.’’ फिर उन्होंने विनय और सरिता को पूरी घटना कह सुनाई .यश ध्यान से गाँव के दोनों चित्रों को देख रहा था. विनय ने कहा—‘’अबकी बार हम लोग भी तुम्हारे गाँव चलेंगे.’
         ‘’मैं तो खुद तुमसे यह कहने वाला था.’’—डॉ. हरीश ने कहा और मुस्करा दिए . यश ने इससे पहले कोई गाँव नहीं देखा था, उसने पूछा —‘’ हम कब चलेंगे आपके गाँव?’’
         ‘’जल्दी ही,’’—डॉ. हरीश ने कहा और मुस्करा दिए. यश की आँखें अब भी गाँव के चित्रों पर टिकी थीं. वह अनाम फूलों के चित्रों बारे में सोच रहा था.                (समाप्त )         

Sunday 1 April 2018

दोस्ती का घोंसला --देवेन्द्र कुमार --बाल कहानी




दोस्ती का घोंसला
--देवेन्द्र कुमार
खेल जोरों पर था. फ्लैटों की दो कतारों के बीच वाली खाली जगह ऊबड खाबड़ है, एक कोने में कबाड़ का ढेर पड़ा है. लेकिन खिलाडी बच्चों ने वहीँ क्रिकेट का पिच बना लिया है. शनिवार –इतवार को खूब धमाल होता है. गेंद बल्ले से टकरा कर खूब उछलती है ,शोर गूंजता है. लोगों ने शिकायत की है. लेकिन बच्चों का कहना है कि उन्हें पार्क में क्रिकेट खेलने की मनाही है, आखिर वे कहाँ खेलें.
शिकायत और क्रिकेट साथ साथ चलते हैं. उस दिन बूंदाबांदी हो रही थी. छुट्टी के बावजूद बच्चे घर से नहीं निकले थे. पर फिर अजय और नयन बल्ले और गेंद के साथ आ पहुंचे और दलदल बने पिच पर ही हाथ आजमाने लगे. नयन ने शॉट मारा ,गेंद उछली और दूसरी मंजिल के एक फ़्लैट की खिड़की के आगे बनी छजली  की पटिया पर जा गिरी.
‘’ यह तो मुश्किल हो गई.वहां से गेंद को कैसे उतारें.’’—नयन ने छजली की ओर देखते हुए कहा.
‘’हाँ, इतनी ऊंची तो कोई सीढ़ी भी नहीं मिलेगी.’’—अजय की भी यही राय थी. फिर बोला—एक तरीका है.’’
--‘क्या?’’
‘’ एक बांस ढूँढ कर उस फ़्लैट की बालकनी में ले जाएँ , फिर उसकी मदद से गेंद को छ्जली से नीचे गिरा दें.’’
‘’आईडिय!’’—नयन ने ताली बजाई.
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दोनों लम्बे से बांस की खोज में इधर उधर देखने लगे. तभी आवाज़ सुनाई दी—‘ पहले ऊपर आकर देखो फिर कुछ करना,’’नयन और अजय ने आवाज़ की ओर गर्दन उठा कर देखा. एक लड़का उस फ़्लैट की खिड़की में खड़ा था, जिसकी छजली पर उनकी गेंद जा गिरी थी.
नयन और अजय ऊपर जा पहुंचे. वह लड़का एक फ़्लैट के दरवाज़े पर खडा जैसे इनकी प्रतीक्षा कर रहा था. उसने कहा—‘मेरा नाम विमल है.’’ और फिर दोनों को उस खिड़की के पास ले गया जहाँ खड़े होकर वह इन दोनों से बात कर रहा था. बोला—‘ जरा देखो तो गेंद कहाँ है!’’
अजय और नयन ने देखा—उनकी गेंद छजली की पटिया पर बने एक घोंसले में जा पड़ी थी. घोंसले में कई छोटे छोटे अंडे नज़र आ रहे थे.
‘’अरे!’’—दोनों एक साथ बोल उठे.
‘’ अगर तुम बांस से ठेल कर गेंद को नीचे गिराओगे तो घोंसला भी नीचे जा गिरेगा और अंडे फूट जायेंगे ,इसीलिए मैंने तुम दोनों को ऊपर आकर देखने को कहा था. ‘’
‘’यह तो तुमने बहुत अच्छा किया.’’—नयन ने कहा.
‘’ लेकिन क्रिकेट बाल.... अब तो नई गेंद लानी होगी.’’-अजय बोला. ‘’क्योंकि हमारी गेंद तो घोंसले की कैद से बाहर आने से रही.’’
‘’नई क्रिकेट बॉल ...’’—नयन ने कहा,वह कुछ सोच रहा था.
‘’अरे क्रिकेट बाल की चिंता मत करो . ‘’ विमल बोला—‘’मेरे पास कई क्रिकेट बाल्स हैं. तुम्हें नई गेंद नहीं लानी पड़ेगी.’’
‘’क्या तुम भी क्रिकेट खेलते हो ?’’—नयन और अजय ने एक साथ पूछा. ‘’ हमने तो तुम्हें कभी खेलते देखा नहीं.’’
‘’हम लोग मेरा मतलब हमारा परिवार कुछ दिन पहले ही यहाँ रहने आया है,’—विमल ने मुस्करा कर कहा, फिर एक बॉक्स निकाल लाया, उसमें कई गेंदें थीं.देखने में नई सी लग रही थीं. ‘’ मैंने कहा था न, तुम्हें नई गेंद नहीं लानी होगी.’’
नयन और अजय चुप खड़े रह गए. फिर छजली पर घोंसले में पड़ी अपनी गेंद की ओर देखने लगे. कुछ देर बाद तीनों नीचे उतर आये. बूंदाबांदी के बीच खेल फिर शुरू हो गया. विमल ने कहा—‘’ हमें घोंसले की ओर पीठ करके शॉट मारने चाहिएं ताकि बाल फिर से घोंसले में न जा गिरे.’’ तभी बारिश होने लगी,तीनों अपने अपने घर चले गए.
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नयन घर जाकर चुपचाप बैठा सोचता रहा. ‘’घोंसले में पड़े अंडे भला किस पक्षी के हो सकते हैं?अण्डों से बच्चे कब निकलेंगे,और कब उड़ जायेंगे ताकि घोंसले को गिरा कर गेंद को लिया जा सके.कब..कब... उस रात वह देर तक जागता रहा.
अगली दोपहर स्कूल से लौटते हुए उसने अजय से कहा—‘’चल कर घोंसले को देखेंगे.’’
‘’अब वहाँ देखने को क्या है,हमारी बाल तो घोंसले में फंस कर रह गई है. वह तो निकल नहीं सकती.’’—अजय बोला
     नयन समझ गया कि अजय की कोई दिलचस्पी नहीं है. बस्ता घर में रख कर वह अकेला ही विमल के पास जा पहुंचा.
उसे देख कर विमल मुस्करा उठा, फिर दोनों खिड़की में खड़े होकर घोंसले को देखने लगे, आकाश में कई पक्षी उड़ रहे थे. ‘आखिर ये किस परिंदे के अंडे हैं?’—नयन ने विमल से जानना चाहा.
विमल ने मुस्करा कर कंधे उचका दिए.--;’’क्या पता. पर तुम्हें इतनी बैचैनी क्यों है. अंडे फूटेंगे और बच्चे बाहर निकलेंगे. उनकी माँ उन्हें तब तक दाना खिलाएगी जब तक वे बड़े होकर उड़ना नहीं सीख जाते. और फिर वे उड़ कर कहाँ चले जायेंगे ,क्या पता.’’
‘’क्या पता.’’—नयन ने उसकी बात दोहरा दी. फिर बोला—‘’ ये अंडे इस तरह खुले में पड़े रहेंगे तो बिल्ली इन पर झपट सकती है , कोआ या कबूतर चोंच मार सकते हैं ,तब तो अंडे नष्ट हो सकते हैं ,इनमें मौजूद बच्चे जन्म लेने से पहले ही मर सकते हैं.’’
बात तो तुम्हारी ठीक है लेकिन हम कर भी क्या सकते हैं.’’—विमल ने कहा.
‘’अगर हम इन अण्डों को किसी तरह ढांक दें तब ये सुरक्षित रह सकते हैं.’’
‘’वह कैसे?क्या इन पर कोई कपडा डाल दें.’’
‘’ कपडा नहीं , नीचे से कुछ हरे पत्ते लाकर घोंसले पर डालने से काम बन जाएगा.’’—नयन ने सुझाव दिया. दोनों नीचे जाकर पौधों से कुछ पत्ते तोड़ लाये और हाथ बढ़ा कर धीरे से घोंसले पर डाल दिए. ‘अब ठीक है.’’ नयन ने संतोष के भाव से कहा और फिर घर लौट आया.उसे तसल्ली हो गई थी कि अब कोई शिकारी परिंदा अण्डों पर झपट्टा नहीं मार सकेगा. वह सोच रहा था अब अण्डों से बच्चे सुरक्षित बाहर आ सकेंगे. अगली दोपहर वह फिर से विमल के घर जा पहुंचा. विमल ने हंस कर कहा—‘’तुम घोंसले में रखे अण्डों को लेकर बहुत चिंता कर रहे हो. क्रिकेट खेलने की बात तो जैसे भूल ही गए हो,’’
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‘’तुम ठीक कह रहे हो. मैं सोच रहा हूँ इन अण्डों से बच्चे सुरक्षित बाहर आ जाएँ ,इनकी माँ इन्हें दाना खिला कर बड़ा कर दे .और फिर ये आकाश में उड़ जाएँ.’’—नयन ने कहा.
‘’हाँ हाँ बिल्कुल वैसा ही होगा जैसा तुम चाहते हो. अब अण्डों में सुरक्षित नन्हे जीवों की चिंता छोड़ कर जरा मुस्करा दो मेरे दोस्त.’’ विमल ने कहा और खिलखिला उठा. नयन भी हंस पड़ा. इस समय भी वह घोंसले की ओर ही देख रहा था. अगली दोपहर आने की बात कह कर नयन घर चला आया. लेकिन उसके बाद काफी समय तक उसका विमल के घर जाना न हो सका.उसी दिन खबर मिली कि गाँव में नयन के नानाजी बीमार हैं. अगली सुबह की गाडी से वह माँ के साथ नानाजी से मिलने चल दिया. स्कूल की छुट्टियाँ शुरू हो गई थीं.
नानाजी नयन को देख कर बहुत खुश हुए. ‘’में अब  और भी जल्दी ठीक हो जाऊँगा.’’ –कहते हुए उन्होंने नयन को बाँहों में भर लिया. उन्होंने नयन की दिनचर्या के बारे में पूछा तो उसने घोंसले में गेंद गिरने की घटना कह सुनाई. उसकी मम्मी ने कहा—‘आजकल तो यह हर समय यही बात करता रहता है. मुझसे पूछता रहता है कि अण्डों से बच्चे कब निकलेंगे.’’
नयन ने कहा—‘’नानाजी,आप तो गाँव में रहते हैं, आपने अण्डों से बच्चे निकलते हुए और फिर उन्हें बड़े होकर उड़ते हुए जरूर देखा होगा. मैं भी देखना चाहता हूँ.’’
इसमें क्या मुश्किल है. मैं माली से कह दूंगा,वह तुम्हें ले जाकर सब दिखा देगा.’’ अगले दिन माली रामधन नयन को अपने साथ ले गया. गाँव में बहुत हरियाली थी. इतने पेड़ नयन ने अपने नगर में देखे ही नहीं थे. रामधन एक पेड़ पर चढ़ गया.फिर अपने साथी की मदद से नयन को ऊपर चढा लिया. नयन कुछ डर रहा था. रामधन ने तसल्ली दी—‘’बबुआ, गिरने नहीं दूंगा. बस तुम डाल  को थामे रहो. मैंने सहारा दे रखा है,’’ उस पेड़ पर अनेक घोंसले थे. नयन ने देखा कि कई घोंसले   खाली थे तो कुछ में अंडे पड़े थे.एक घोंसले में कई छोटे नन्हे जीव चोंच खोले अजीब आवाजें कर रहे थे. निश्चय ही उन्हें अपनी माँ का इन्तजार था. नयन देर तक देखता रहा. वह सोच रहा था—‘’ हमारे घोंसले में पड़े अण्डों की माँ कहाँ होगी?’’
पूरी छुट्टियाँ नयन ने गाँव में मजे किये . वह रोज रामधन माली के साथ घूमने निकल जाता था. गाँव के लोगों के रहन सहन ,वहां के पेड पौधों और पशु पक्षियों के बारे में उसने खूब जानकारी जुटा ली. इस बारे में उसे पहले कोई जानकारी नहीं थी.लेकिन अब लौटने की बारी थी.उसके नानाजी अभी पूरी तरह स्वस्थ नहीं हुए थे , पर स्कूल खुलने वाले थे. इसलिए वापस जाना ही था.
नयन के पिता उन्हें लेने स्टेशन आये हुए थे. टैक्सी घर पहुंची तो नयन झट विमल से मिलने चल दिया. माँ ने पुकारा—‘ नयन, पहले घर चलो. ‘’ लेकिन तब तक तो वह विमल के घर की
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 सीढियां चढ़ कर काल बेल बजा चुका था. दरवाजा विमल ने खोला. बोला—‘’ मैंने खिड़की से तुम्हें आते हुए देख लिया था. आओ देखो अपने घोंसले को, लेकिन...’
‘’लेकिन क्या ...’ बाकी शब्द मुंह में ही रह गए. नयन ने देखा घोंसला खाली था, बस गेंद पड़ी थी. ‘’यह क्या विमल!’’
‘’ हाँ नयन, तुम अपने नाना जी से मिलने गए और यहाँ मौसीजी आ गईं ,फिर हम सब भी घूमने निकल गए. दो दिन पहले ही लौटे हैं. आकर देखा तो घोंसला खाली था.’
‘’घोंसला खाली था...’’नयन ने जैसे अपने आप से कहा. उसकी नज़रें घोंसले पर टिकी हुई थीं.कुछ देर दोनों चुप रहे.’ पता नहीं क्या हुआ होगा.’ नयन ने धीरे से कहा.
‘ क्यों चिंता कर रहे हो. सब कुछ अच्छा ही हुआ होगा. अब तुम अपनी गेंद ले सकते हो ‘’—विमल बोला.
‘’इस घोंसले को ऐसे ही रहने दो गेंद के साथ , मुझे अपनी क्रिकेट बाल नहीं चाहिए. ‘’—नयन ने कहा. कह कर वह जाने के लिए मुड़ा तो विमल ने कहा—‘ अब तो तुम मेरे घर आओगे नहीं क्योकि अण्डों से निकले बच्चे बड़े होकर उड़ गए हैं. अब क्या बचा है यहाँ तुम्हारे लिए. ‘
‘’परिंदे उड़ गए तो क्या , अपने पीछे दोस्ती का घोंसला तो छोड़ गए हैं.’—नयन बोला. कमरे में दोनों की हंसी खिलखिला रही थी.  ( समाप्त )