Friday 13 April 2018

भूले बिसरे --देवेन्द्र कुमार-- बाल कहानी



     भूले बिसरे
            ---देवेन्द्र कुमार
फूलों के चित्र सुंदर थे. लेकिन क्या कोई उन्हें पहचान सकता था. कोई माली फूलों के नाम जरूर बता सकता था. पर डॉ, हरीश रायजादा उन फूलों के बारे में एकदम अनजान थे. हाँ यह और बात थी कि उनके दवाखाने की दीवारों पर उन खूबसूरत फूलों के फ्रेम मंडित कई चित्र लगे हुए थे, एक बच्चे ने इस बारे में पूछा तो उन्हें कुछ भूले बिसरे दिन याद आ गए.   

यश के पेट में दर्द था. वह स्कूल नहीं गया. माँ सरिता उसे फॅमिली डाक्टर हरीश रायजादा के पास ले गईं. डॉ.किसी मरीज को देख रहे थे. सरिता और यश उनके केबिन के बाहर प्रतीक्षा करने लगे. वहां दीवार पर फूलों के दो सुंदर फ्रेम मंडित चित्र लगे थे.यश देर तक उन चित्रों को देखता रहा, वह माँ से कुछ पूछने वाला था तभी उनका नंबर आ गया. डॉ. हरीश और यश के पिता विनय बचपन के दोस्त थे. एक दूसरे के परिवार में आना जाना था.
डॉ. हरीश ने यश को देखा और दवा दे दी.फिर सरिता से बातें करने लगे.यश ने देखा कि डॉ, की कुर्सी के पीछे भी फूलों का फ्रेम मंडित चित्र लगा था. उसने डॉ. हरीश से पूछ लिया—अंकल, ये फूल कौन से हैं?’’
डॉ, हरीश हंस पड़े—‘’ यश,सच कहूँ तो मैं इन फूलों के बारे में कुछ नहीं जानता.’’ फिर बताने लगे—एक दिन कोई मिलने वाले आये थे. उन्होंने मेरे पीछे लगे चित्र को देखा और बोले ‘’यह क्या!अब तुम गाँव में नहीं शहर के बड़े डाक्टर हो. ‘’ जहाँ आज फूलों का चित्र लगा है तब वहां गाँव के पुश्तैनी घर का पुराना चित्र लगा था. अगले दिन वह फूलों के तीन फ्रेम मंडित चित्र ले आये .दो बाहर और एक मेरे पीछे लगा दिया. मैंने उनसे फूलों के नाम पूछे तो उन्होंने कहा कि उन्हें मालूम नहीं. पहले हर दिन जब मैं अपने केबिन में प्रवेश करता था तो सबसे पहले नज़र गाँव के घर पर पड़ती थी.लेकिन...’—और डॉ. हरीश चुप हो गए.
उस् रात  डॉ. हरीश देर तक अपने गाँव वाले घर के बारे में सोचते रहे. अब गाँव में उनके परिवार का कोई नहीं रहता था. रह गया था बस पुराना पुश्तैनी मकान. वह तो बहुत वर्षों से गाँव नहीं गए थे. जाने का कोई अवसर ही नहीं था.जब अपना कोई गाँव में था ही नहीं तो क्यों जाते. लेकिन अब मन कह रहा था कि उन्हें कम से कम एक बार तो अपने पुश्तैनी गाँव जाना ही चाहिए.
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दो दिन बाद रविवार था, डॉ. हरीश परिवार के साथ गाँव की ओर चल दिए. उनकी कार अपने मकान के सामने रुकी तो जल्दी ही लोग इकट्ठे हो गए. हरीश कार से उतर कर दरवाजे के सामने खड़े होकर देखने लगे. दरवाजे की बदरंग लकड़ी में दरारें दिख रही थीं. दीवारें धसक रही थीं. खपरैल में जगह जगह छेद हो गए थे. कुंडे में जंग लगा पुराना ताला लटक रहा था.तभी वहां जमा लोगों के बीच से निकल कर एक बूढा आगे आया. वह गाँव का मुखिया था. डॉ. ने मुखिया के पैर छू  कर अपना परिचय दिया तो मुखिया ने डॉ. को बाहों में भर लिया. बोले –‘’जानते हो तुम्हारे दादा और मैं पक्के दोस्त थे. बाद में तुम्हारा परिवार शहर चला गया. आज कितने वर्षों बाद तुम्हें गाँव की याद आई है. तुम्हे देख कर मुझे पुराने दिन याद आ गए.’’
हरीश चुप रहे , क्या कहते. मुखिया ने कहा –‘’आओ मेरे घर चलो. तुम्हारा घर तो खंडहर हो चुका है.’’
हरीश ने कहा—‘पहले घर के अंदर जाना चाहता हूँ. ’’ ताला हाथ लगाते ही गिर पड़ा. हरीश ने दरवाजे को ठेला और अंदर घुस गए. सब तरफ मलबा और कूड़ा बिखरा था.कच्चे आँगन में ऊँची घास उगी थी. आँगन के बीच उगे पेड़ के पत्ते हिल रहे थे,परिदों की आवाज़ सुनाई दे रही थी. डॉ. हरीश कुछ देर चुप खड़े रहे . आँखों के सामने पुराने दिनों की छवियाँ एक एक करके आ रही थीं. उनमें माँ का चेहरा सबसे उजला था. कोठों और दालान पर टूटे खपरैल से होकर धूप के टुकड़े गिर रहे थे. रसोई में चूल्हे के ऊपर दीवार पर गहरी कालिख जमी थी. माँ न होते हुए भी मौजूद थी.   
       मुखिया की पुकार सुनाई दी तो डॉ.हरीश बाहर आ गए. मुखिया डॉ. हरीश के परिवार को अपने घर की और ले चले. हरीश ने देखा गलियाँ कच्ची थीं , हर कहीं कूड़ा फैला था. घरों से निकला पानी जगह जगह जमा हो रहा था. ज्यादातर मकान कच्चे थे. गाँव में खूब हरियाली थी, दूर नदी झलकी दे रही थी. मुखिया जी के घर के बाहर गाँव वालों का झुण्ड जमा था. मुखिया जी ने डॉ, हरीश का परिचय दिया तो एक गाँव वाले ने हरीश से कहा—‘हमारे गाँव में इलाज के लिए कोई डाक्टर नहीं है. यह सुनकर अच्छा लगा कि आपका जन्म इसी गाँव में हुआ था. क्या आप हमारा इलाज करेंगे?’’
          और कुछ देर बाद डाक्टर हरीश कुछ मरीजों की जांच कर रहे थे. उन्होंने सभी मरीजों के पर्चे तैयार कर दिए लेकिन वह अपने साथ कोई दवा तो लेकर आये नहीं थे.तभी मुखिया जी ने बताया कि पास के कसबे में केमिस्ट की दुकान है. डॉ. हरीश ने ड्राईवर को पर्चे लेकर भेज दिया.साथ     में एक गाँव वाला भी गया. हरीश ने साधारण खांसी –बुखार की दवाओं के साथ मरहम पट्टी का  

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सामान तथा बच्चों के लिए कुछ टॉनिक भी मंगवा लिए, ड्राईवर को बता दिया कि सब पर्चो की दवाएं अलग अलग लिफाफों में मरीजों के नाम लिखवा कर लाये. ड्राईवर के लौटने के बाद सब रोगियों को समझा दिया कि दवाएं कैसे लेनी हैं. कुछ बच्चों की चोटों की मरहम-पट्टी भी कर दी गई.
     अब तक दिन ढलने लगा था. डॉ. चलने को तैयार हुए तो मुखिया जी ने पूछा —‘’घर का क्या करने की सोच रहे हो? क्या फिर कभी आओगे?’’
     ‘’मैं अगले रविवार को फिर आऊंगा. आना ही पड़ेगा. मैं मरीजों को बीच में कैसे छोड़ सकता हूँ भला. ‘’
     सुन कर मुखिया जी खुश हो गए. उन्होंने कहा –‘’बेटा, अगर ऐसा है तो मैं तुम्हारे घर की मरम्मत करवा देता हूँ. ‘’ गाँव से शहर लौटते हुए डॉ. हरीश पत्नी से इस बारे में बात करते रहे. वह गाँव के बारे में लगातार सोच रहे थे.
      अगले रविवार को डाक्टर की कार गाँव में अपने घर के आगे रुकी तो वह हैरान रह गए. पुराने घर का तो काया पलट हो चुका था. दीवारों की मरम्मत हो चुकी थी. नया छप्पर डाल दिया गया था. कार की आवाज़ सुनकर मुखिया जी अंदर से निकल आये. बोले .—अंदर आकर देखो.’’
      हरीश ने देखा आँगन से घास गायब थी .पूरा घर जैसे नया हो गया था. हवा में मीठी गंध तैर रही थी. मुखिया जी ने कहा—‘’ जब कोई शुभ कार्य होता है घर में हलवा बनता है. तुम्हारी दादी तुम्हारी माँ की रसोई में काम कर रही हैं.’’  आँगन में बड़ी दरी पर बहुत से गाँव वाले बैठे थे. हरीश के साथ सबने हलवा खाया. फिर हरीश ने अपने पुराने मरीजों की जांच की और कुछ नए लोगों को दे खा. इसके बाद हरीश ने मुखिया जी से एक नए आदमी का परिचय करवाया. वह था रामसरन   कम्पाउण्डर जिसे हरीश अपने साथ लेकर आये थे. उन्होंने मुखिया जी से कहा—‘’ अब से रामसरन यहीं रहेगा. इसका गाँव बिरसा पुर यहाँ से ज्यादा दूर नहीं है, दिन  में यह गाँव में रह कर मरीजों को दवा देगा और रात में साइकिल से अपने गाँव चला जाया करेगा. ‘’
          यह सुनकर मुखियाजी तो बहुत खुश हो गए. उन्होंने कहा—‘’इससे अच्छा कुछ नहीं हो सकता. रामसरन के आने जाने के लिए साइकिल का इंतजाम हो जाएगा. बारू माली का परिवार पास में ही रहता है. रामसरन के लिये भोजन उसकी पत्नी बना दिया करेगी. लेकिन कम्पाउण्डर और दवाओं का खर्च ...’ डॉ. हरीश ने बीच में ही टोक दिया और बोले—‘ मुखिया दादा, आपको इन सब के लिए चिंता नहीं करनी होगी. मैं इस गाँव का डाक्टर हूँ , मैं मानता हूँ कि गाँव से शहर जाकर मैं
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अपने गाँव को भूल गया था, पर अब एक डाक्टर के रूप में यहाँ के लिए कुछ करना चाहता हूँ . गाँव के लोग स्वस्थ रहें, इतना कर सकूं तो मुझे संतोष होगा.’’
         ‘’कुछ काम मुझे भी बता दो.’—मुखियाजी ने कहा.
         ‘आप पंचायत  के मुखिया हैं. आप गाँव की गलियों की मरम्मत और कूड़े के निपटान का इंतजाम कर सकें तो बीमारियाँ कम हो सकती हैं. सरकार इन के लिए मदद दे सकती है. गाँव के बच्चों के टीकाकरण का इंतजाम मैं करूंगा. कुछ हफ़्तों तक मैं हर रविवार को यहाँ आता रहूँगा. मुझे उम्मीद है कि अच्छा बदलाव आएगा. ‘’         
         शहर के लिए रवाना होने से पहले डॉ. हरीश ने घर के अंदर और बाहर गाँव वालों तथा बच्चों के साथ कई फोटो क्लिक किये. और फिर एक दिन विनय के पास फोन आया . डॉ. हरीश ने कहा ‘’–यश को लेकर आना मेरे क्लिनिक पर. ‘’
         ‘’यश तो ठीक है ’’—सरिता ने कहा और शाम के समय विनय और सरिता यश के साथ डॉ. हरीश के क्लिनिक पर जा पहुंचे. यश डॉ. हरीश के केबिन में गया तो चौंक पड़ा, डॉ. हरीश की कुर्सी के पीछे फूलों की जगह दूसरे ही चित्र लगे थे. हरीश ने कहा –‘’मैं जिन फूलों को नहीं पहचानता उनके चित्र हटवा दिए हैं मैंने. ये चित्र मेरे गाँव वाले घर और गाँव वालों के हैं. तुम इनके बारे में जो पूछना चाहो मैं बता सकता हूँ. तुम्हारे प्रश्न का उत्तर पाने के लिए मुझे अपने भूले बिसरे गाँव जाना पड़ा.’’ फिर उन्होंने विनय और सरिता को पूरी घटना कह सुनाई .यश ध्यान से गाँव के दोनों चित्रों को देख रहा था. विनय ने कहा—‘’अबकी बार हम लोग भी तुम्हारे गाँव चलेंगे.’
         ‘’मैं तो खुद तुमसे यह कहने वाला था.’’—डॉ. हरीश ने कहा और मुस्करा दिए . यश ने इससे पहले कोई गाँव नहीं देखा था, उसने पूछा —‘’ हम कब चलेंगे आपके गाँव?’’
         ‘’जल्दी ही,’’—डॉ. हरीश ने कहा और मुस्करा दिए. यश की आँखें अब भी गाँव के चित्रों पर टिकी थीं. वह अनाम फूलों के चित्रों बारे में सोच रहा था.                (समाप्त )         

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