दोस्ती का घोंसला
--देवेन्द्र कुमार
खेल जोरों पर था. फ्लैटों
की दो कतारों के बीच वाली खाली जगह ऊबड खाबड़ है, एक कोने में कबाड़ का ढेर पड़ा है. लेकिन
खिलाडी बच्चों ने वहीँ क्रिकेट का पिच बना लिया है. शनिवार –इतवार को खूब धमाल
होता है. गेंद बल्ले से टकरा कर खूब उछलती है ,शोर गूंजता है. लोगों ने शिकायत की
है. लेकिन बच्चों का कहना है कि उन्हें पार्क में क्रिकेट खेलने की मनाही है, आखिर
वे कहाँ खेलें.
शिकायत और क्रिकेट साथ साथ
चलते हैं. उस दिन बूंदाबांदी हो रही थी. छुट्टी के बावजूद बच्चे घर से नहीं निकले
थे. पर फिर अजय और नयन बल्ले और गेंद के साथ आ पहुंचे और दलदल बने पिच पर ही हाथ
आजमाने लगे. नयन ने शॉट मारा ,गेंद उछली और दूसरी मंजिल के एक फ़्लैट की खिड़की के
आगे बनी छजली की पटिया पर जा गिरी.
‘’ यह तो मुश्किल हो
गई.वहां से गेंद को कैसे उतारें.’’—नयन ने छजली की ओर देखते हुए कहा.
‘’हाँ, इतनी ऊंची तो कोई
सीढ़ी भी नहीं मिलेगी.’’—अजय की भी यही राय थी. फिर बोला—एक तरीका है.’’
--‘क्या?’’
‘’ एक बांस ढूँढ कर उस
फ़्लैट की बालकनी में ले जाएँ , फिर उसकी मदद से गेंद को छ्जली से नीचे गिरा दें.’’
‘’आईडिय!’’—नयन ने ताली
बजाई.
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दोनों लम्बे से बांस की खोज
में इधर उधर देखने लगे. तभी आवाज़ सुनाई दी—‘ पहले ऊपर आकर देखो फिर कुछ करना,’’नयन
और अजय ने आवाज़ की ओर गर्दन उठा कर देखा. एक लड़का उस फ़्लैट की खिड़की में खड़ा था, जिसकी
छजली पर उनकी गेंद जा गिरी थी.
नयन और अजय ऊपर जा पहुंचे. वह
लड़का एक फ़्लैट के दरवाज़े पर खडा जैसे इनकी प्रतीक्षा कर रहा था. उसने कहा—‘मेरा
नाम विमल है.’’ और फिर दोनों को उस खिड़की के पास ले गया जहाँ खड़े होकर वह इन दोनों
से बात कर रहा था. बोला—‘ जरा देखो तो गेंद कहाँ है!’’
अजय और नयन ने देखा—उनकी
गेंद छजली की पटिया पर बने एक घोंसले में जा पड़ी थी. घोंसले में कई छोटे छोटे अंडे
नज़र आ रहे थे.
‘’अरे!’’—दोनों एक साथ बोल
उठे.
‘’ अगर तुम बांस से ठेल कर
गेंद को नीचे गिराओगे तो घोंसला भी नीचे जा गिरेगा और अंडे फूट जायेंगे ,इसीलिए
मैंने तुम दोनों को ऊपर आकर देखने को कहा था. ‘’
‘’यह तो तुमने बहुत अच्छा
किया.’’—नयन ने कहा.
‘’ लेकिन क्रिकेट बाल....
अब तो नई गेंद लानी होगी.’’-अजय बोला. ‘’क्योंकि हमारी गेंद तो घोंसले की कैद से
बाहर आने से रही.’’
‘’नई क्रिकेट बॉल ...’’—नयन
ने कहा,वह कुछ सोच रहा था.
‘’अरे क्रिकेट बाल की चिंता
मत करो . ‘’ विमल बोला—‘’मेरे पास कई क्रिकेट बाल्स हैं. तुम्हें नई गेंद नहीं
लानी पड़ेगी.’’
‘’क्या तुम भी क्रिकेट
खेलते हो ?’’—नयन और अजय ने एक साथ पूछा. ‘’ हमने तो तुम्हें कभी खेलते देखा
नहीं.’’
‘’हम लोग मेरा मतलब हमारा
परिवार कुछ दिन पहले ही यहाँ रहने आया है,’—विमल ने मुस्करा कर कहा, फिर एक बॉक्स
निकाल लाया, उसमें कई गेंदें थीं.देखने में नई सी लग रही थीं. ‘’ मैंने कहा था न,
तुम्हें नई गेंद नहीं लानी होगी.’’
नयन और अजय चुप खड़े रह गए.
फिर छजली पर घोंसले में पड़ी अपनी गेंद की ओर देखने लगे. कुछ देर बाद तीनों नीचे
उतर आये. बूंदाबांदी के बीच खेल फिर शुरू हो गया. विमल ने कहा—‘’ हमें घोंसले की
ओर पीठ करके शॉट मारने चाहिएं ताकि बाल फिर से घोंसले में न जा गिरे.’’ तभी बारिश
होने लगी,तीनों अपने अपने घर चले गए.
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नयन घर जाकर चुपचाप बैठा
सोचता रहा. ‘’घोंसले में पड़े अंडे भला किस पक्षी के हो सकते हैं?अण्डों से बच्चे
कब निकलेंगे,और कब उड़ जायेंगे ताकि घोंसले को गिरा कर गेंद को लिया जा
सके.कब..कब... उस रात वह देर तक जागता रहा.
अगली दोपहर स्कूल से लौटते
हुए उसने अजय से कहा—‘’चल कर घोंसले को देखेंगे.’’
‘’अब वहाँ देखने को क्या
है,हमारी बाल तो घोंसले में फंस कर रह गई है. वह तो निकल नहीं सकती.’’—अजय बोला
नयन समझ गया कि अजय की कोई दिलचस्पी नहीं है. बस्ता
घर में रख कर वह अकेला ही विमल के पास जा पहुंचा.
उसे देख कर विमल मुस्करा
उठा, फिर दोनों खिड़की में खड़े होकर घोंसले को देखने लगे, आकाश में कई पक्षी उड़ रहे
थे. ‘आखिर ये किस परिंदे के अंडे हैं?’—नयन ने विमल से जानना चाहा.
विमल ने मुस्करा कर कंधे
उचका दिए.--;’’क्या पता. पर तुम्हें इतनी बैचैनी क्यों है. अंडे फूटेंगे और बच्चे
बाहर निकलेंगे. उनकी माँ उन्हें तब तक दाना खिलाएगी जब तक वे बड़े होकर उड़ना नहीं
सीख जाते. और फिर वे उड़ कर कहाँ चले जायेंगे ,क्या पता.’’
‘’क्या पता.’’—नयन ने उसकी
बात दोहरा दी. फिर बोला—‘’ ये अंडे इस तरह खुले में पड़े रहेंगे तो बिल्ली इन पर
झपट सकती है , कोआ या कबूतर चोंच मार सकते हैं ,तब तो अंडे नष्ट हो सकते हैं
,इनमें मौजूद बच्चे जन्म लेने से पहले ही मर सकते हैं.’’
बात तो तुम्हारी ठीक है
लेकिन हम कर भी क्या सकते हैं.’’—विमल ने कहा.
‘’अगर हम इन अण्डों को किसी
तरह ढांक दें तब ये सुरक्षित रह सकते हैं.’’
‘’वह कैसे?क्या इन पर कोई
कपडा डाल दें.’’
‘’ कपडा नहीं , नीचे से कुछ
हरे पत्ते लाकर घोंसले पर डालने से काम बन जाएगा.’’—नयन ने सुझाव दिया. दोनों नीचे
जाकर पौधों से कुछ पत्ते तोड़ लाये और हाथ बढ़ा कर धीरे से घोंसले पर डाल दिए. ‘अब
ठीक है.’’ नयन ने संतोष के भाव से कहा और फिर घर लौट आया.उसे तसल्ली हो गई थी कि
अब कोई शिकारी परिंदा अण्डों पर झपट्टा नहीं मार सकेगा. वह सोच रहा था अब अण्डों
से बच्चे सुरक्षित बाहर आ सकेंगे. अगली दोपहर वह फिर से विमल के घर जा पहुंचा.
विमल ने हंस कर कहा—‘’तुम घोंसले में रखे अण्डों को लेकर बहुत चिंता कर रहे हो.
क्रिकेट खेलने की बात तो जैसे भूल ही गए हो,’’
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‘’तुम ठीक कह रहे हो. मैं
सोच रहा हूँ इन अण्डों से बच्चे सुरक्षित बाहर आ जाएँ ,इनकी माँ इन्हें दाना खिला
कर बड़ा कर दे .और फिर ये आकाश में उड़ जाएँ.’’—नयन ने कहा.
‘’हाँ हाँ बिल्कुल वैसा ही
होगा जैसा तुम चाहते हो. अब अण्डों में सुरक्षित नन्हे जीवों की चिंता छोड़ कर जरा
मुस्करा दो मेरे दोस्त.’’ विमल ने कहा और खिलखिला उठा. नयन भी हंस पड़ा. इस समय भी
वह घोंसले की ओर ही देख रहा था. अगली दोपहर आने की बात कह कर नयन घर चला आया. लेकिन
उसके बाद काफी समय तक उसका विमल के घर जाना न हो सका.उसी दिन खबर मिली कि गाँव में
नयन के नानाजी बीमार हैं. अगली सुबह की गाडी से वह माँ के साथ नानाजी से मिलने चल
दिया. स्कूल की छुट्टियाँ शुरू हो गई थीं.
नानाजी नयन को देख कर बहुत
खुश हुए. ‘’में अब और भी जल्दी ठीक हो
जाऊँगा.’’ –कहते हुए उन्होंने नयन को बाँहों में भर लिया. उन्होंने नयन की
दिनचर्या के बारे में पूछा तो उसने घोंसले में गेंद गिरने की घटना कह सुनाई. उसकी
मम्मी ने कहा—‘आजकल तो यह हर समय यही बात करता रहता है. मुझसे पूछता रहता है कि
अण्डों से बच्चे कब निकलेंगे.’’
नयन ने कहा—‘’नानाजी,आप तो
गाँव में रहते हैं, आपने अण्डों से बच्चे निकलते हुए और फिर उन्हें बड़े होकर उड़ते
हुए जरूर देखा होगा. मैं भी देखना चाहता हूँ.’’
इसमें क्या मुश्किल है. मैं
माली से कह दूंगा,वह तुम्हें ले जाकर सब दिखा देगा.’’ अगले दिन माली रामधन नयन को
अपने साथ ले गया. गाँव में बहुत हरियाली थी. इतने पेड़ नयन ने अपने नगर में देखे ही
नहीं थे. रामधन एक पेड़ पर चढ़ गया.फिर अपने साथी की मदद से नयन को ऊपर चढा लिया.
नयन कुछ डर रहा था. रामधन ने तसल्ली दी—‘’बबुआ, गिरने नहीं दूंगा. बस तुम डाल को थामे रहो. मैंने सहारा दे रखा है,’’ उस पेड़
पर अनेक घोंसले थे. नयन ने देखा कि कई घोंसले
खाली थे तो कुछ में अंडे पड़े थे.एक
घोंसले में कई छोटे नन्हे जीव चोंच खोले अजीब आवाजें कर रहे थे. निश्चय ही उन्हें
अपनी माँ का इन्तजार था. नयन देर तक देखता रहा. वह सोच रहा था—‘’ हमारे घोंसले में
पड़े अण्डों की माँ कहाँ होगी?’’
पूरी छुट्टियाँ नयन ने गाँव
में मजे किये . वह रोज रामधन माली के साथ घूमने निकल जाता था. गाँव के लोगों के
रहन सहन ,वहां के पेड पौधों और पशु पक्षियों के बारे में उसने खूब जानकारी जुटा
ली. इस बारे में उसे पहले कोई जानकारी नहीं थी.लेकिन अब लौटने की बारी थी.उसके
नानाजी अभी पूरी तरह स्वस्थ नहीं हुए थे , पर स्कूल खुलने वाले थे. इसलिए वापस
जाना ही था.
नयन के पिता उन्हें लेने
स्टेशन आये हुए थे. टैक्सी घर पहुंची तो नयन झट विमल से मिलने चल दिया. माँ ने
पुकारा—‘ नयन, पहले घर चलो. ‘’ लेकिन तब तक तो वह विमल के घर की
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सीढियां चढ़ कर काल बेल बजा चुका था. दरवाजा विमल
ने खोला. बोला—‘’ मैंने खिड़की से तुम्हें आते हुए देख लिया था. आओ देखो अपने
घोंसले को, लेकिन...’
‘’लेकिन क्या ...’ बाकी
शब्द मुंह में ही रह गए. नयन ने देखा घोंसला खाली था, बस गेंद पड़ी थी. ‘’यह क्या
विमल!’’
‘’ हाँ नयन, तुम अपने नाना
जी से मिलने गए और यहाँ मौसीजी आ गईं ,फिर हम सब भी घूमने निकल गए. दो दिन पहले ही
लौटे हैं. आकर देखा तो घोंसला खाली था.’
‘’घोंसला खाली था...’’नयन
ने जैसे अपने आप से कहा. उसकी नज़रें घोंसले पर टिकी हुई थीं.कुछ देर दोनों चुप
रहे.’ पता नहीं क्या हुआ होगा.’ नयन ने धीरे से कहा.
‘ क्यों चिंता कर रहे हो.
सब कुछ अच्छा ही हुआ होगा. अब तुम अपनी गेंद ले सकते हो
‘’—विमल बोला.
‘’इस घोंसले को ऐसे ही रहने
दो गेंद के साथ , मुझे अपनी क्रिकेट बाल नहीं चाहिए. ‘’—नयन ने कहा. कह कर वह जाने
के लिए मुड़ा तो विमल ने कहा—‘ अब तो तुम मेरे घर आओगे नहीं क्योकि अण्डों से निकले
बच्चे बड़े होकर उड़ गए हैं. अब क्या बचा है यहाँ तुम्हारे लिए. ‘
‘’परिंदे उड़ गए तो क्या , अपने
पीछे दोस्ती का घोंसला तो छोड़ गए हैं.’—नयन बोला. कमरे में दोनों की हंसी खिलखिला
रही थी. ( समाप्त )
’
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