गधों के कान—कहानी—देवेन्द्र
कुमार
एक था राजा। एक दिन घूमने निकला। साथ में कई दरबारी थे। मौसम सुहावना था। राजा का रथ नदी के पास से गुजरा। उसने रथ रुकवा लिया। कहा, “कुछ देर नदी तट पर घूमेंगे।” सैनिकों ने वहाँ मौजूद लोगों को भगा दिया। घोषणा हुई,“राजाजी की सवारी आ रही है।” जिसने सुना, वही डरकर भाग गया। न जाने क्या आफत आ जाए।
दूर एक धोबी कपड़े धो रहा था। उसके पास दो गधे खड़े थे। राजा ने देखा तो उसे कुछ विचित्र लगा। उसने देखा एक गधे के कान नीचे की तरफ लटके हुए थे, जबकि दूसरे गधे के कान ऊपर उठे हुए थे।
राजा ने दरबारियों से पूछा, “गधों के कान कैसे होते हैं?”
“जी...” दरबारी घबरा गए। किसी की समझ में नहीं आया कि राजा यह विचित्र सवाल क्यों पूछ रहे हैं? भला एक मनुष्य गधों के कानों के बारे में क्या बता सकता था। राजा को अपने सवाल का जवाब नहीं मिला। वह जानना चाहता था कि ऐसा क्यों था?एक गधे के कान नीचे क्यों लटके थे और दूसरे के कान आकाश की ओर क्यों उठे थे? जैसे मनुष्यों के कान एक तरह के होते हैं तो गधों के कान अलग-अलग क्यों थे? क्या हर गधे के कान दूसरे गधे से अलग तरह के होते हैं?
यह एक नई समस्या थी। जब कोई जवाब न दे सका तो राजा ने धोबी को बुलवाया। उससे पूछा, “तुम्हारे एक गधे के कान ऊपर उठे हैं तो दूसरे के कान नीचे की तरफ क्यों लटकें हैं?”
बेचारा
धोबी! वह तो पहले ही घबराया हुआ था। राजा के इस सवाल ने उसकी सिट्टी-पिट्टी गुम कर दी। बेचारा हकलाकर रह गया। उसे कोई उत्तर न सूझा। डर के मारे घिग्घी बँध गई। हाथ जोड़कर सिर झुकाए खड़ा रह गया।
1
राजा को क्रोध आ गया। उसने कहा, “गधे रखते हो, पर उनके बारे में कुछ नहीं जानते।” राजा ने उसे कोड़ों से पीटने का दंड दिया।
अगले दिन यही सवाल दरबार में विद्वानों के समने रखा गया। धोबी के दोनों गधे वहाँ लाए गए। सबने गधों के कान देखे। वाकई यह तो एक विचित्र बात थी। गधों के कान तो ऊपर की ओर उठे हुए होते हैं। लेकिन यह गधा कैसा था जिसके कान धरती की ओर झुके हुए थे।
कई दिन तक दरबार में यही गंभीर चर्चा होती रही। राजा का मंत्री संदेश लेकर दूसरे राजा के पास गया हुआ था। वह लौटा तो राजा ने उससे कहा, “बाकी बातें बाद में, पहले गधों के कान वाली समस्या हल करो।”
मंत्री
को नगर में घुसते ही इस समस्या का पता चल गया था। उसे पता था कि राजा के सवाल का जवाब उसी को देना होगा। आखिर वह मंत्री जो था। उसने राजा से कहा, “महाराज, समस्या गंभीर है। कुछ समय दीजिए।”
“समय जितना चाहो लो, पर जवाब हर हालत में चाहिए।” राजा ने कहा।
“जो आज्ञा।” मंत्री ने हाथ जोड़ दिए। फिर वह गधों को देखने गया। धोबी तो मंत्री को देखते ही रोने लगा। हाथ जोड़ने लगा। वह गधों की आफत से पीछा छुड़ाने के लिए राज्य से भागना चाहता था। मंत्री ने उसे समझाया। कहा, “कोई न कोई रास्ता निकल ही आएगा।”
मंत्री
रात भर अपनी हवेली की छत पर चहलकदमी करता रहा। आखिर उसे एक जवाब सूझ ही गया। वह उसी समय राजा के पास जा पहुँचा। राजा को भी नींद नहीं आ रही थी। प्रहरी ने कहा, “मंत्री जी, गंधों के कानों के बारे में मिलना चाहते हैं।”
“गधों के कानों के बारे में!” राजा ने उतावले स्वर में पूछा, “जल्दी बुलाओ, तुरंत बुलाओ।”
मंत्री
ने राजा के सामने झुककर प्रणाम किया। बोला, “अन्नदाता की जय हो। गधों के कानों की समस्या हल हो गई है।”
“बताओ, जल्दी बताओ।” राजा ने कहा।
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“अन्नदाता, वैसे तो हर गधे के कान ऊपर की ओर उठे हुए होते हैं। इस तरह वे आकाश से आने वाली आवाजें सबसे पहले सुनते हैं।”
“क्या हमसे भी पहले?” राजा ने पूछा।
“जी, यह कहना तो मुश्किल है, पर ऊपर उठे हुए कान ऊपर से आने वाली आवाजें सुनने में गधे की मदद करते हैं।”
“और दूसरे गधे के नीचे लटके हुए कान?”
“जी, उससे वह जमीन के अंदर से आने वाली आवाजें सबसे पहले सुनता है।” मंत्री ने कहा। राजा को मंत्री की बात ठीक लग रही थी।
“तब तो नीचे लटके हुए कानों वाला गधा विशेष है।”
“जी महाराज!” मंत्री ने हाथ जोड़े।
“तो गधे के मालिक धोबी को इनाम दिया जाए। धरती के अंदर से आने वाली आवाजों के बारे में हमें हर रोज खबर दी जाए।”
“जी, अन्नदाता!” मंत्री ने कहा, पर वह चिंता में पड़ गया। अब हर दिन धरती के अंदर का हाल वह कैसे सुनाएगा राजा को! उसने निश्चय किया कि गधों की आफत से जल्दी छुटकारा पाना चाहिए, वरना न जाने कौन-सी नई मुसीबत गले आ पड़े।
राजा के आदेशानुसार नीचे लटके हुए कान वाले गधे को एक बड़े हवादार कमरे में रखा गया। कई नौकर उसकी देखभाल करते थे। उसका मालिक धोबी भी दूसरे गधे के साथ वहीं रहता था। वैसे उसे कोई परेशानी नहीं थी। पैसे मिलते थे, हर बात का आराम था। पर मंत्री चिंतित था। उसे हर शाम राजा को जमीन के अंदर से आने वाली आवाजों की खबर देनी होती थी।
एक रात वह जागता रहा, सोचता रहा, और फिर उसे तरकीब सूझ गई। अगली शाम उसने राजा से कहा, “महाराज, गधे को जमीन के अंदर से आने वाली आवाजें सुनाई नहीं दे रही हैं।”
“ऐसा क्यों?”
“जी, कमरे का फर्श पत्थर का है। आवाजें खुले में, मिट्टी से होकर आसानी से सुनाई देती हैं। उसे वहीं रखा जाना चाहिए जहाँ वह पहले था। वरना मुझे डर है
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उसे जमीन के अंदर से आने वाली आवाजें सुनाई देनी बंद हो जाएँगी। वह बहरा हो जाएगा।”
“बात तो तुम ठीक कह रहे हो। तो धोबी को गधों के साथ उसके घर भेज दिया जाए। और कुछ दिन बाद फिर से बुला लिया जाए।”
मंत्री
मुसकराया। उसने राजा के पास से वापस आकर धोबी से कहा, “अपने दोनों गंधों को लेकर इसी वक्त यहाँ से भाग जा। राज्य की सीमा से बाहर चला जा। और फिर कभी भूलकर भी यहाँ मत आना।”
धोबी तुरंत अपने दोनों गधों को लेकर वहाँ से भाग गया। उसने एक बार भी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
अगली शाम मंत्री उदास मुँह बनाए राजा के पास पहुँचा। उसने कहा, “महाराज, गजब हो गया!”
“क्यों क्या हुआ?” राजा ने पूछा।
“अन्नदाता, दोनों गधों को शेर खा गया रात में।”
“वह कैसे?” राजा ने गुस्से से कहा।
“यह उनके कानों के कारण हुआ।” मंत्री ने बताया।
“पूरी बात खोलकर कहो।” राजा ने कहा।
“रात को एक गधा आकाश की ओर कान खड़े करके ऊपर से आने वाली आवाजें सुन रहा था। और दूसरा अपने लटके हुए कानों से जमीन के अंदर से आने वाली आवाजें सुन रहा था।”
“फिर क्या हुआ?”
“इतने में शेर आया और दोनों को खा गया। क्योंकि वे शेर के आने की आवाज नहीं सके। क्योंकि दोनों के कान आकाश और पाताल से आने वाली आवाजें सुन रहे थे। इसलिए जमीन पर होने वाली शेर की पदचाप नहीं सुन सके।”
“ओह, यह तो बुरा हुआ और वह धोबी?” राजा ने पूछा।
“अन्नदाता, गधों की मौत ने उसे पागल कर दिया। वह तो जंगल में न जाने कहाँ चला गया।”
राजा सिर झुकाए चुप बैठा रहा, गहरे सोच में डूबा हुआ।
“कहिए तो धोबी को पकड़ने के लिए सैनिक भेजूँ?” मंत्री ने पूछा।
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“जब विचित्र गधा ही नहीं रहा तो फिर धोबी को पकड़कर पूछना बेकार
है,छोड़ो, जाने दो।”
मंत्री
ने चुप रहने में ही भलाई समझी।
धीरे-धीरे राजा गधों के उठे हुए और लटके हुए कानों की बात भूल गया। इस बात से सबसे ज्यादा अगर कोई खुश था तो मंत्री। धोबी अपने दोनों गंधों को लेकर फिर से काम में जुट गया था, लेकिन कहीं बहुत दूर... इसी में सबकी भलाई थी। उसकी भी और उसके गधों की भी।(समाप्त)
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