Tuesday 11 June 2019

रंग कहाँ गए --कहानी--देवेन्द्र कुमर


रंग कहाँ गए-- देवेन्द्र कुमार--कहानी   

बाग में फूल खिले थे। धीमी हवा में फूलों से लदी टहनियाँ उन्हें जैसे झूला झुला रही थीं। रंगबिरंगी तितलियों के समूह फूलों पर मंडरा रहे थे। एक-एक सुंदर तितली देखने वालों को लुभा रही थी। तभी एक बड़े आकार की सफेद तितली वहाँ गई। उसे देख तितलियाँ आपस में फुसफुसाने लगीं, ‘देखो, देखो, कैसी विचित्र तितली है। पंखों पर जरा भी रंग नहीं। और बड़ी भी कितनी है। शायद यह तितली नहीं कोई और जीव है।
सफेद तितली ने दूसरी तितलियों की बातें सुनी तो बेहद दुखी हुईं। सोचने लगी-क्या तितली का रंग सफेद नहीं हो सकता। ये सब अपने रंगों पर इतना घमंड क्यों कर रही हैं। सफेद तितली ने देखा कि बाकी तितलियाँ उससे दूर-दूर उड़ रही थीं। वह अकेली रह गई। फिर उदास भाव से दूर चली गई। वह सोच रही थी, ‘क्या मेरे पंखों पर रंग नहीं लग सकते?”
तभी सफेद तितली ने एक पेड़ के नीचे बैठी एक बुढ़िया को देखा। बच्चे उसे घेरे बैठे थे और कह रहे थे, ‘नानी, कहानी सुनाओ, जल्दी सुनाओ।सफेद तितली पेड़ के तने पर जा बैठी और कहानी सुनने लगी। नानी की कहानी ने बच्चों को खूब हँसाया। बच्चों को हँसते-खिलखिलाते देख सफेद तितली भी मुस्करा दी। उसकी उदासी दूर हो गई। वह सोच रही थी, ‘क्या मेरे सफेद पंखों की भी कोई कहानी हो सकती है?’
अगले दिन सफेद तितली बाग में आई तो तितलियों के झुंड ने कहा, “जा भाग, तू हम जैसी नहीं है।
हाँ, मैं तुमसे अलग हूँ, सब तितलियाँ से अलग हूँ। जानती हो क्यों?”
क्यों? सब तितलियों को जानने की उत्सुकता हुई।
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देखो मेरे पंख कितने बड़े हैं और तुम्हारे कितने छोटे।सफेद तितली की यह बात तो रंगीन तितलियाँ को माननी ही पड़ी। सचमुच उसके पंख बहुत बड़े थे।
‘हाँ, तो भगवान मेरे पंख रंगने बैठे तो बस देर तक रंग लगाते रहे। उन्होंने रंग लगाए पर सारे रंग सूख गए। भगवान ने कहा, ‘कैसी तितली है तू। तुझ पर मैं अपने सारे रंग खर्च नहीं कर सकता। फिर बाकी तितलियों के पंख कैसे रंगीन बनाऊँगा।
फिर?” तितलियों को कथा में रस रहा था।
बस, मैंने भगवान से कहा, मैं सफेद ही ठीक हूँ। आप छोटी तितलियों के पंख रंगीन बना दें।“ और बस, इस तरह मेरे पंख सफेद रह गए और तुम सबको रंगीन पंख मिल गए।कहकर सफेद तितली चुप हो गई। यह कहानी उसने रात को बनाई थी। उसी तरह जैसे नानी बच्चों के लिए रोज नई-नई कहानियाँ बनाया करती थीं।
अब रंगीन तितलियों ने बड़ी सफेद तितली से दूर-दूर रहना छोड़ दिया। क्योंकि वह उन्हें नानी से सुनी कहानी सुनाया करती थी। सुनने के बाद तितलियाँ कहतीं, “कल भी ऐसी ही नई कहानी सुनाना हमें।
अब सफेद तितलीकहानी वाली तितलीके नाम से मशहूर हो गई थी।
एक दिन रंगीन तितलियों ने जानना चाहा कि सफेद तितली आखिर कहानी लाती कहाँ से है?
सफेद तितली ने नानी का नाम नहीं लिया। बोली, “मेरी बड़ी बहन है। उसके पंख मेरे पंखों से बड़े और सफेद हैं। उसी से मैं तुम्हारे लिए कहानी लेकर आती हूँ।
हमें भी ले चलो अपनी बहन के पास। हम भी कहानी बनाना सीखना चाहते हैं।तितलियों ने कहा। सफेद तितली परेशान हो गई। भला अपना रहस्य कैसे बताती। फिर तो सारा खेल ही बिगड़ जाता। वह सोचने लगी और फिर उसे एक तरकीब सूझी। बोली, “देखो, मेरी बहन यहाँ से बहुत दूर रहती है। तुम सब  वहाँ तक नहीं जा सकोगी।
क्यों भला?” तितलियों ने पूछा।
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इसलिए कि तुम्हारे पंख बहुत छोटे-छोटे हैं। रास्ते में तेज धूप होती है। आगे धुआँधार बारिश भी पड़ती है। धूप में तुम्हारे रंग उड़ जाएँगे। बारिश में तुम्हारे पंख गल जाएँगे। हो सकता है तुम उस यात्रा से वापस भी सको।
सारी तितलियाँ चुप! वे डर गईं थीं। सफेद तितली बोली, “ जब  मैं अपने बड़ी बहन को लेकर आऊँगी तब तुम सब मिल लेना उनसे। और हाँ तब तक रोज मैं तुम्हें कहानी सुनाया करूँगी। वैसे वहाँ चलना चाहो तो मुझे कोई एतराज नहीं।कहकर उसने अपने बड़े पंख हिलाए।
रंगीन तितलियों को सफेद तितली ने एक नई कहानी सुना दी थी। सचमुच अब वह नई-नई कहानियाँ गढ़ने में माहिर हो गई थी। वह सचमुच की कहानी वाली तितली बन गई थी।( समाप्त)

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