पहाड़ कहाँ जाए—बाल कहानी –देवेन्द्र कुमार
चरवाहे
का गीत सुन कर पहाड़ ने सोचा कि उसे सफ़र पर निकलना चाहिए, लेकिन इसके बाद क्या होने
वाला था-क्या इसके बारे में भी सोचा था पहाड़ ने?
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एक था पहाड़। पहाड़ के अंदर रहता था पहाड़ देव। एक दिन एक चरवाहा एक चट्टान पर बैठा गा रहा था--उड़ जा पहाड़: बढ़ जा पहाड़-- चरवाहे का गीत पहाड़ देव ने सुना। कई बार सुना। ध्यान से सुना और सोचने लगा, “चरवाहे ने ठीक कहा। मुझे भी चलना चाहिए। “
यात्रा के लिए मचल उठा पहाड़ देव। चट्टानें लुढ़कने लगीं। गरज सुनाई दी। पहाड़ के ढलान पर बसे गाँव में हलचल मच गई। ग्रामवासी घबराकर घरों से निकल आए। सब सोच रहे थे, “यह क्या हुआ?” क्या कोई आफत आने वाली है? हमें यह गाँव छोड़कर कहीं दूसरी जगह चले जाना चाहिए।”
गाँव में रहती थी एक बुढि़या। धन्नी ताई कहते थे उसे सब। सारा दिन अपने आँगन में उतरने वाले पक्षियों के दाना चुगाती थी। लोगों को गाँव छोड़कर चले जाने की बातें करते सुना तो धन्नी घबरा गई। सोचने लगी, “मैं कहाँ जाऊँगी, परिंदों को दाना कैसे चुगाऊँगी।” सोचते-सोचते वह रो पड़ी।
एक काली चिड़िया धन्नी ताई के आँगन में रोज सुबह आती थी-दाना चुगने के लिए। उसे धन्नी अच्छी लगती थी, जो बिना किसी स्वार्थ के सब परिंदों को दाना चुगाती थी। काली चिड़िया ने सब कुछ सुना और समझ गई। सोचने लगी, “अगर गाँव खाली हो गया तो हमें दाना कौन चुगाएगा? फिर तो धन्नी भी चली जाएगी। नहीं, नहीं ऐसा नहीं होना चाहिए।”
काली चिड़िया उड़कर चट्टान पर जा बैठी। वह पहाड़ देव को जानती थी। कभी-कभी उड़कर एक दरार के अंदर चली जाती थी। वहाँ
से पहाड़ देव के साथ बातें करती थी।
काली चिड़िया वहीं जा पहुँची। उसने पूछा, “पहाड़ देव, क्या हो रहा है? चट्टानें क्यों गिर रही हैं? गाँव वाले घायल हो जाएँगे।”
पहाड़ देव ने कहा, “मैं यहाँ से कहीं और जाना चाहता हूँ। एक ही स्थान पर रहते-रहते ऊब गया हूँ।”
“यह कैसा पागलपन है। भला पहाड़ भी कभी चलते हैं।” काली चिड़िया ने सोचा “लेकिन अगर पहाड़ सचमुच ही चल पड़ा तब तो गाँव एकदम नष्ट हो जाएगा। जैसे भी हो पहाड़ को रोकना चाहिए। “
“कहाँ जाओगे?” चिड़िया ने पूछा।
“अरे, इतनी बड़ी दुनिया है। दिशाएँ
खुली हैं। कहीं भी जा सकता हूँ।” पहाड़ के अंदर से आवाज आई।
“ऐसे नहीं, पहले यात्रा का कार्यक्रम बनता है फिर यात्रा पर निकलते हैं।” चिड़िया ने कहा।
“तो फिर तुम्हीं बताओ मुझे कब और किधर जाना चाहिए?” पहाड़ देव ने पूछा।
1
“मैं देखकर आती हूँ कि तुम्हें किस दिशा में यात्रा करनी चाहिए। जब तक मैं न लौटूं तब तक हिलना-डुलना मत।” चिड़िया बोली।
“जल्दी आना।” पहाड़ देव ने कहा।
काली चिड़िया दरार से निकलकर एक तरफ जा बैठी। सोचने लगी, सोचती रही। उसने देखा धन्नी ताई अपने आँगन में बैठी परिंदों को दाना चुगाती हुई कह रही थी, “और कितने दिन तक...” काली चिड़िया दरार में जाकर फिर से पहाड़ देव से बातें करने लगी। बोली, “मैं देख आई...लेकिन...”
“लेकिन क्या...”
“कुछ मुश्किल है तुम्हारी यात्रा।”
“वह क्यों?”
“पूरब में तुमसे थोड़ी दूर पर एक लंबी-चौड़ी और गहरी झील है। तुमने तो देखी ही होगी।” चिड़िया बोली।
“मैं कैसे देखता...मैं तो आज तक कहीं गया ही नहीं।” पहाड़ देव ने कहा।
“यही तो मैं भी सोच रही हूँ गहरी झील कैसे पार करोगे? अगर तुम्हें तैरना न आता हो तो गहरी झील में डूब सकते हो।”
“और पश्चिम में...”
“हाँ, उधर रास्ता तो हैं पर वहाँ दूर-दूर तक दलदल फैला है। दलदल में डूबोगे तो नहीं, पर कीचड़ में से निकलोगे कैसे...”
“तो दक्षिण की तरफ चल दूँगा मैं...”
चिड़िया चहचहाई, “तुम भी कितने भोले हो पहाड़ देव...अरे उधर ही तो समुद है। इतना गहरा कि क्या बताऊँ...जब तुम झील के पानी पर नहीं तैर सकते तो गहरे समुद्र में तो तुम्हारा पता ही नहीं चलेगा।”
“तब तो फिर एक ही रास्ता बचता है कि मैं उत्तर दिशा में चलना शुरू कर दूँ...” पहाड़ देव बोला।
“हा, हाँ, जरूर जाओ...और उत्तर में खड़े हिमालय से टकराकर चूर-चूर हो जाओ...। अपने पड़दादा हिमालय का नाम नहीं सुना क्या?” कहकर चिड़िया फिर हँसी।
“तो तुम्हारा मतलब है मैं यहीं पड़ा रहूँ, कहीं न जाऊँ?” पहाड़देव ने परेशान स्वर में पूछा।
“जरूर जाओ अगर जा सको तो...। लेकिन यह तो कहो इस समय तुम्हरे मन में कहीं जाने का विचार आया कैसे?”
2
“मैंने चरवाहे को गाते सुना था।
उड़ जा पहाड़
बढ़ जा पहाड़...”
“अरे, चरवाहे ने तो मजाक किया था...वह चाहता है तुम यहाँ से हट जाओ तो उसे रोज-रोज चट्टानों पर न चढ़ना पड़े। “चिड़िया को लग रहा था अब बात बन रही है।
“तो यह बात है...मैं उस चरवाहे को...”पहाड़ देव ने गुस्से से कहा और पत्थर ढलान पर फिर लुढ़कने लगे।
“देखो संभालो अपने को...चरवाहे के चक्कर में गाँव बरबाद हो जाएगा-धन्नी ताई हमें दाना चुगाना छोड़ देगी।”
“धन्नी ताई...वह कौन है?” पहाड़ देव ने पूछा।
“ठीक है, एक दिन मैं धन्नी ताई को लेकर आऊँगी तुम्हारे पास...उसे बहुत-सी कहानियाँ
याद हैं। सुनोगे तो आने-जाने की बात सदा के लिए भूल जाओगे” चिड़िया ने पहाड़ देव को तसल्ली दी।
“तो अभी बुला लाओ न...मेरा मन कहानी सुनने का हो रहा है।”
“ठीक है, बुला लाऊँगी लेकिन वादा करो कहीं आने-जाने की बात नहीं करोगे...”
“मैं वादा करता हूँ” पहाड़ देव ने कहा तो पत्थर लुढ़कने बंद हो गए। आवाजें थम गईं| काली चिड़िया उड़ी और धन्नी ताई के आँगन में जा बैठी।”
क्या कोई है जो हमें एक-दूसरे की बात समझा सके। क्या धन्नी ताई को मालूम था कि काली चिड़िया ने उन लोगों को किस बड़े संकट से निकाल लिया था। (समाप्त)
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