Friday 15 May 2020

उस दिन क्या हुआ था-कहानी-देवेन्द्र कुमार


उस दिन क्या हुआ था
                        कहानी- देवेन्द्र कुमार  
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 रमन एक गली से जा रहा था तभी  एक खिड़की पर लगे बोर्ड ने उसका ध्यान खींच लिया। उस पर लिखा था –‘हैप्पी स्कूल।’ पढ़ते ही उसके मन में  अपने बेटे जय  के बचपन से जुड़ी  एक याद कौंध गई। उसके कदम ठिठक गए। खुले दरवाजे से कई बच्चों की आवाजें सुनाई  दे रही थीं। उसने अन्दर झाँका तो सामने बैठी लड़की ने कहा-‘जी कहिये। वहीँ कुछ बच्चे पढ़ते दिखाई दिए। क्या आप अपने बच्चे को पढवाना चाहते हैं?’
  सुन कर रमन मुस्करा दिया,बोला-‘ मेरा बेटा जय तो अब बच्चा नहीं रहा। वह तो अब दो बच्चों  का पिता हो गया है।’
  ‘तब?’
  ‘असल में मेरे बेटे के स्कूल का नाम ‘हैप्पी स्कूल’ था। आपका बोर्ड देख कर कुछ याद आया तो मैं रुक गया।आपने यह नाम
   लड़की ने कहा-‘ यह नाम मेरे पापा ने रखा है।क्योंकि वह भी अपने बचपन में ‘हैप्पी स्कूल’ में ही पढ़े थे।’
  ‘ क्या मैं तुम्हारे पापा से मिल सकता हूँ?’-रमन ने पूछा।
  ‘ मैं दरवाज़ा खोलती हूँ,आइये।’ और लड़की उसे दूसरे कमरे में ले गई। वहां बैठा युवक कुछ लिख रहा था। ‘ये मेरे पिता हैं।’ लड़की ने कहा।
    ‘जी,मेरा नाम धीरज है और यह मेरी बेटी आभा है।’ युवक बोला.
     रमन ने अपना परिचय दिया, बताया कि वह हैप्पी स्कूल का बोर्ड देख कर रुक गए थे। ‘वहां  मेरा बेटा जय भी पढ़ता  था। एक दिन स्कूल में कोई दुर्घटना हो गई थी, जिसके बारे में मुझे जय ने बताया था, उसके बाद मैंने जय का दाखिला दूसरे स्कूल में करवा दिया था। बाद में मैंने सुना था कि और भी कई  बच्चे अन्य स्कूलों में चले गए थे।’
  धीरज ने कहा-‘ जहाँ तक मुझे याद है, जय नामक लड़का मेरा मेरा सहपाठी था। कहीं आपका बेटा जय मेरा वही सहपाठी तो नहीं।’
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  ‘अगर ऐसा है तो मुझे ख़ुशी होगी।’-कह कर रमन  मुस्करा दिए।
  धीरज ने बताया-‘एक दिन आधी छुट्टी के समय सब बच्चे स्कूल के बड़े आँगन में खेल रहे थे।तभी जोर की आवाज हुई और ऊपर से एक गमला नीचे आ गिरा।सब इधर उधर भाग गए।मैं बाल बाल बचा था।गमला  मेरे पैर पर गिरा था अगर’ कमरे में कुछ पल मौन छाया रहा। रमन  उस दुर्घटना को मन की आँखों से अपने सामने घटता हुआ देख रहे थे। वह काँप उठे।उन्होंने देखा धीरज के पैर पर चोट का गह्ररा निशान था।
  धीरज ने आगे कहा-‘ मुझे काफी समय तक अस्पताल में रहना पड़ा था। स्कूल के कई छात्र मेरा हाल चाल पूछने आये। बाद में पापा ने मुझे दूसरे स्कूल में प्रवेश दिला दिया। मैंने सुना था कि गमला जिस जंजीर से लटका हुआ था, वह टूट गई थी।’ रमन ने धीरज के सिर पर हाथ रख कर कहा- ‘ईश्वर ने खूब बचाया तुम्हें।’
   ‘लेकिन उसके बाद सब कुछ बदल गया।’
   ‘ऐसा क्या हुआ था?’—रमन ने पूछा।
   ‘ कुछ समय बाद मेरे पापा न जाने कहाँ चले गए, पता नहीं उनके साथ क्या हुआ। फिर माँ ने अकेले ही घर चलाया।वह ज्यादा पढ़ी लिखी नहीं थीं। तब हमारे मकान मालिक ने मदद की। मुझे अपनी किताबों की दुकान पर रख लिया। ज्यादा पैसे नहीं मिलते थे पर दुकान में  पढ़ने  का मौका खूब मिला। मैं ने लिखना शुरू कर दिया। तब से यही कर रहा हूँ। मेरी पत्नी शैला अध्यापिका की नौकरी करती हैं बेटी आभा पढाई के साथ बच्चों की ट्यूशन भी लेती है।’     
      रमन  ने कहा-‘धीरज,तुम  से मिल कर मुझे बहुत  अच्छा लगा है। मैं यह सुखद समाचार जय को सुनाऊंगा तो उसे भी जरूर अच्छा लगेगा। हो सकता है कि  किसी दिन वह तुमसे मिलने आ जाए। मैं आशा करता हूँ कि मेरा बेटा जय तुम्हारा सह पाठी ही हो।’
    ‘अगर ऐसा हुआ तो हम दोनों फिर से बचपन के स्कूल वाले दिनों में पहुँच जायेंगे। पर उस दिन जैसी दुर्घटना किसी के साथ न हो,मैं यही कामना करता हूँ।’
  कुछ देर बाद रमन वहां से घर चले आये। उन्होंने जय को  बताया कि कैसे ‘हैप्पी स्कूल’ का बोर्ड उन्हें धीरज के पास ले गया! सुनकर जय चकित हो उठा। उसने कहा –‘पापा,जरूर यह मेरा सहपाठी धीरज ही है। क्योंकि चोट उसी को लगी थी।’
  ‘ तो फिर तुम्हें अपने स्कूल के दोस्त से जरूर मिलना चाहिए। मैं उससे कह कर आया हूँ कि तुम्हें  लेकर आऊंगा।’-रमन ने कहा।
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  ‘मैं भी धीरज से जरूर मिलना चाहता हूँ लेकिन
  ‘लेकिन क्या जय?’रमन ने पूछा पर जय ने कोई जवाब नहीं दिया। इसके बाद रमन ने कई बार उससे धीरज के पास चलने को कहा पर जय काम में व्यस्त होने की बात कह कर टाल गया। रमन को प्रतीत हुआ जैसे जय धीरज के पास जाने में संकोच कर रहा है।एक दिन उन्होंने निश्चय कर ही लिया कि धीरज से मिलने में जय के संकोच का कारण जान कर रहेंगे। उन्होंने जय से अपने मन की  बात कही फिर पूछा –‘धीरज से मिलने में तुम्हारे मन का संकोच मैं समझ पा रहा हूँ। उस बारे में क्या मुझे नहीं बताओगे।’
  कुछ पल की चुप्पी के बाद जय ने कहा-‘ पापा,मैं और धीरज अच्छे दोस्त थे। धीरज हमेशा क्लास में फर्स्ट आता था। मैं बहुत कोशिश करता था पर मैं कभी उससे आगे नहीं निकल पाया। यह बात कहते हुए मुझे अच्छा नहीं लग रहा है,पर मेरे मन में उसके प्रति ईर्ष्या का भाव आ गया था। मुझे लगता था जैसे मेरे नंबर कम आने के पीछे उसका हाथ है।’
    ‘ क्या धीरज को चोट लगने से तुम्हें ख़ुशी हुई थी,’-रमन  ने पूछा।
  ‘ नहीं नहीं,यह बुरा विचार मेरे मन में एक पल के लिए भी नहीं आया।मैं ईश्वर से बार बार यही प्रार्थना कर रहा था कि धीरज जल्दी स्वस्थ हो जाए।’
  ‘क्या तुम उसे देखने अस्पताल गए थे?’ रमन ने पूछा।
   जय ने सर झुका लिया पर कुछ बोला नहीं।
   ‘इसका अर्थ तो यही हुआ कि तब भी तुम्हारे मन में धीरज के प्रति ईर्ष्या का भाव था जो तुम्हें अस्पताल नहीं जाने दे रहा था।’ जय ने पिता की इस बात का जवाब नहीं दिया, फिर बोला--‘ कुछ समय बाद मैं समझ गया कि धीरज के प्रति मेरा भाव गलत था। इसे आप मेरे बचपन की भद्दी भूल कह सकते हैं।’ जय ने धीमे स्वर में कहा।
  ‘जो हुआ उसे भूल जाओ।धीरज से खुल कर मिलो। समझो जैसे कुछ हुआ ही नहीं था।’ रमन ने जय का कन्धा थपथपा दिया।
   अगले दिन जय और रमन धीरज से मिलने गए। दोनों इतने समय बाद मिल रहे थे,पर दोनों ने ही झट एक दूसरे को पहचान लिया। और पुराने दिनों की यादों में खो गए। तब तक धीरज की पत्नी और बेटी भी दोनों की बात चीत में शामिल हो गईं । दो घंटे साथ बिताने के बाद चलते समय जय ने धीरज परिवार को रविवार का निमंत्रण दे दिया। रमन  महसूस कर रहे थे कि पुराने सहपाठियों के बीच अब कोई दीवार नहीं रह गई थी। वैसे सच यही था कि  दीवार तो उनके बेटे जय ने ही खड़ी की थी। रमन  ने  एक बार फिर जय का सिर सहला दिया। जैसे वह बेटे को सन्देश दे रहे थे कि उसके बचपन का रहस्य उनके अंदर पूरी तरह सुरक्षित हैं ।(समाप्त)       

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