Monday 13 July 2020

तो फिर सच ही कहूं-कहानी-देवेन्द्र कुमार


                               
                                     तो फिर सच ही कहूँ—कहानी—देवेन्द्र कुमार
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    फ़्लैट के बंद दरवाजे के बाहर एक पौधे का गमला रखा है।लीला रोज सुबह गमले में पानी डालती है।उस समय मन में आता है कि न जाने इस फ़्लैट में कौन रहता होगा। इस समय वे कहाँ होंगे। इसके बाद  सामने वाले फ़्लैट के  बाहर रखे पौधों की बारी आती है। लीला इस फ़्लैट में साफ़-सफाई का काम करती है।उसकी मालकिन हैं प्रभा मैडम। वह कई बार कह चुकी हैं-‘तुम मेरे घर में काम करती हो या उस  बंद फ़्लैट में! तुम्हें पगार मैं देती हूँ या कोई और। तुम सबसे पहले बंद फ़्लैट वाले पौधे में पानी डालती हो,उसके बाद हमारे पौधों की बारी आती है। ऐसा क्यों!’
  प्रभा की बात गलत नहीं है।लीला इतना ही कह पाती है-माफ़ करना मैडम जी, मुझे लगता है कि कहीं वह पौधा सूख न जाए,बस
  ‘वह पौधा हरा भरा रहे या सूख जाए, इसकी चिंता तुम्हें क्यों होनी चाहिए।आगे से ऐसा न हो इसका ध्यान रखना।’-प्रभा कहती है। इसके लिए लीला को  कई बार माफ़ी  मांगनी पडी है। उसे लगता है कि कहीं उस अनाथ पौधे के कारण उसका काम न छूट जाए।इसलिए उसने पार्क के माली की  मदद ली। माली उस गमले को  नीचे ले गया। काम पर आते जाते  समय लीला उस पौधे के बारे में पूछना नहीं भूलती। माली मुस्करा कर कहता है –‘लगता है उस पौधे का तुम से कोई ख़ास रिश्ता है।’ क्या कहे लीला।वह तो बस इतना ही चाहती है कि वह पौधा सूख न जाए,क्योंकि इसका ध्यान रखने वाला कोई है नहीं। उस फ़्लैट का बंद दरवाजा कब खुलेगा इस बारे में लीला कुछ नहीं जानती।
  अब प्रभा को लीला से कोई शिकायत नहीं, सब ठीक चल रहा था,पर एक सुबह कुछ हुआ। लीला  पौधों में पानी डाल रही थी तो उसे एक चीख सुनाई दी।प्रभा का फ़्लैट चौथी मंजिल पर है।लीला ने झाँक कर देखा तो चौंक गई।जमीन पर एक बच्चा पड़ा दिखाई दिया। वह तुरंत नीचे उतर गई,बच्चे को देखा, उसके माथे से खून निकल रहा था।उसे तुरंत डाक्टर के पास ले जाना जरूरी था। लड़का सात आठ साल का रहा   होगा।
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  लीला ने एक बार ऊपर की ओर देखा, मन में आया कि बच्चे की चोट के बारे में प्रभा मैडम को खबर कर दे, फिर उसे मरहम पट्टी  के लिए ले जाए। उसने इधर उधर देखा पर कहीं कोई नज़र नहीं आया। बच्चे को इस हालत में अकेला छोड़ कर प्रभा के पास कैसे जाती। उसने कुछ सोचा और बच्चे को गोद में भर कर बाहर की ओर चल पड़ी। उसने सोच लिया था कि इस तरह बिना बताये चले  जाने के लिए वह  प्रभा से बाद में माफ़ी मांग लेगी।
   लीला घायल बच्चे को गोद में उठाये हुए सोसाइटी के गेट पर पहुंची तो गार्ड वचन पास चला आया और बोला-‘अरे,इसे चोट कैसे लगी?यह तो’ लीला ने कहा-‘ वह सब बाद में,अभी तो तुरंत इसकी चोट का इलाज जरूरी है।’
  वचन ने कहा-‘ इतनी सुबह तो डाक्टर मिलेगा नहीं,पास में कम्पाउण्डर शीतल रहता है।आओ उसके घर  ले चलें।’ रास्ते में वचन ने बताया कि बच्चे का नाम आशु है और यह राज मिस्त्री जैराम का बेटा है जो अपनी सोसाइटी के एक फ़्लैट में काम कर रहा है।कुछ देर पहले ही तो यह जैराम को पूछता हुआ मेरे पास आया था और मैंने इसे जैराम के पास भेज दिया था,फिर इसे यह चोट  कैसे लग गई!’ लीला ने बताया कि कैसे उसने चीख सुन कर नीचे देखा तो यह जमीन पर गिरा दिखाई दिया था।
  आशु की मरहम पट्टी करवाने के बाद वचन ने कहा-‘ मैं जैराम का घर जानता हूँ।’ और वह लीला को वहां ले गया।जैराम की पत्नी लता बिस्तर पर लेटी हुई थी । बेटे को वचन की बांहों में देख कर वह झटके से उठी तो डगमगा गई,लीला ने बढ़ कर उसे सहारा देकर लिटा दिया और बोली-‘अरे, तुम्हें तो तेज ज्वर है।’ जवाब देने की जगह लता ने हडबडा कर पूछा-‘आशु को चोट कैसे लगी!’
  वचन ने आशु को संभाल कर लता के पास लिटा दिया और कहा-‘ घबराओ मत, तुम्हारा बेटा एक दम ठीक है,बस दो दिन पट्टी करवानी होगी।’लीला ने धीरे से कहा-‘ आशु की माँ की तबीयत ठीक नहीं है।’
  इतने में जैराम भी आ पहुंचा। उसे सोसाइटी में किसी से आशु के बारे में पता चल गया था।
  लता जैराम से बोली-‘ दवा ख़त्म हो गई है, सुबह की खुराक भी नहीं ले सकी।इसीलिए मैंने आशु को  तुम्हारे पास भेजा था कि तुरंत दवा ले आओ।पर यह तुमसे मिलने से पहले ही चोट खा बैठा।’
  जैराम ने वचन से कहा-‘भैया,तुम्हारा उपकार रहेगा मुझ पर।’
    इस पर वचन ने लीला की ओर इशारा करते हुए कहा-‘ आशु को लीला ही मेरे पास लेकर आई थी। अगर इसने आशु को न  देखा होता तो परेशानी बढ़ सकती थी।
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  ‘जैराम भैया,आशु की चिंता छोड़ो,अभी तो इसकी माँ की दवा लेकर आओ।इनकी तबियत ठीक नहीं है,इन्हें दवा और देखभाल-दोनों की जरुरत है।’लीला बोली।
  जैराम ने कहा-‘लता की देखभाल के लिए मैंने इनकी छोटी बहन रश्मि को बुलाया है।वह आज शाम तक आ जाएगी। दिन के समय तो मैं घर में होता नहीं।’
  तभी वचन ने लीला से कहा-‘ मैं चलता हूँ, मेरी ड्यूटी गेट पर होती है इसलिए ज्यादा देर तक गायब नहीं रह सकता। तुम्हारा क्या प्रोग्राम है? कितनी देर में आओगी।’
  लीला ने कहा-‘ मुझे शायद दिन में रुकना पड़ेगा,क्योंकि और तो कोई है नहीं इनकी देख भाल करने के लिए।आशु की मौसी तो शाम को ही आने वाली है। क्या तुम प्रभा मैडम को इस बारे में बता दोगे।क्योंकि    मैं सुबह उन्हें नहीं बता सकी थी।’ वचन दरवाजे से निकला, तभी लीला ने पुकारा-‘वचन,जरा रुकना। मैं सोचती हूँ कि मैडम को आशु की चोट वाली बात बताना सही नहीं होगा।तुम कह देना कि एकाएक मेरी तबियत खराब होने से मुझे बिना बताये चले जाना पड़ा।’ वचन चला गया. इसके बाद लीला काम में लग गई.    
    घर में सफाई के बाद लीला ने गैस ऑन की और दूध गरम करके आशु को पिला दिया. सब्जी काट कर चढ़ा दी और आटा गूंध कर रोटी  बनाने लगी। फिर जैराम के लिए भोजन पैक कर दिया।जैराम दवा लेकर आया तो लीला ने भोजन का डिब्बा उसे देकर कहा-‘भैया, तुम आराम से काम पर जाओ। मैं लता दीदी को दवा देकर खाना खिला दूँगी।‘ जैराम अचरज से देखता रह गया।लता ने लीला से कहा-‘बहन, हमारे  कारण तुम्हें बहुत तकलीफ हुई।’
  लीला ने हंस कर कहा –‘बहन कह कर गैर की तरह क्यों बोल रही हो।अब से तुम दो बहनों में मैं तीसरी भी शामिल हो गई हूँ।’और लता का सर सहलाने लगी।आशु अब ठीक लग रहा था। जब जैराम काम से लौटा तो रात का खाना बन चुका था।पर रश्मि अभी तक नहीं आई थी।लीला ने कहा-‘मैं सुबह काम पर जाते समय मिलती जाउंगी।’और वह अपने घर चली गई।सोच रही थी कि कल प्रभा मैडम से कैसे निपटेगी।पर मन में ख़ुशी थी कि आशु की चोट में आराम था और लता का ज्वर भी कुछ कम हो गया था।आज का दिन अच्छा बीता था।
  अगली सुबह लता से मिलने गई तो पता चला कि उसकी बहन रश्मि अभी तक नहीं आई थी।लीला ने कहा-‘तो चिंता क्यों?मैंने अपनी तबियत ठीक न होने का सन्देश प्रभा मैडम को कल ही भिजवा दिया था।ठीक होने में दो तीन दिन तो लग ही जाते हैं।’और मुस्कराने लगी,फिर जैराम से कहा-‘तुम बेफिक्र होकर काम पर जाओ।आज लता दीदी की तबियत पहले से ठीक लग रही है।मैं संभाल लूंगी।’ फिर साफ़ सफाई और कपडे बदलने में लता की मदद करने के बाद खाना बनाया और लता को खिला कर दवा दे दी।शाम तक लता की तबियत काफी सुधर गई।और फिर रश्मि भी आ गई। लता ने उसे लीला का परिचय दिया तो दोनों एक दूसरे से लिपट गई।
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     अगली सुबह वह प्रभा के पास गई तो उसने व्यंग्य से पूछा- ऐसी क्या तबियत बिगड़ गई थी जो मुझे बताने का भी ध्यान नहीं आया।मैं देख रही हूँ कि इन दिनों तुम कुछ ज्यादा ही लापरवाह हो गई हो।खैर,मेरी तरफ से तुम्हारी पूरी छुट्टी, अब जी भर के आराम करना। और हाँ दो दिन बाद आकर  अपनी पगार ले जाना।’
     लीला ने कहा-‘क्या मुझे बीमार होने का भी अधिकार नहीं है!वैसे सच कहूँ तो मैं बीमार नहीं थी। हाँ बीमार की देखभाल कर रही थी। मेरे लिए वह ज्यादा जरूरी था।’ कह कर वह नीचे उतर आई। माली से उस अनाथ पौधे के बारे में पूछा तो उसने गमलों की ओर संकेत कर दिया। हरियाली के बीच रंग बिरंगे फूल मुस्करा रहे थे। अब कोई पौधा अनाथ नहीं था।
    लीला को देख कर लता चौंक गई।पूछा –‘इतनी जल्दी क्यों लौट आईं।’
    ‘तुम्हारा हालचाल पूछने  और रश्मि की बनाई  चाय का आनंद लेने।’फिर लता के पीछे बैठ कर उसके केश संवारने लगी।(समाप्त)                                                    

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