Saturday 13 June 2020

एक सुंदर रुमाल-कहानी-देवेन्द्र कुमार




             एक सुंदर रुमाल—कहानी—देवेन्द्र कुमार
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   सुंदर फूलदार  कपड़े से बना रुमाल क्या किसी कहानी का हिस्सा बन सकता है?मैं सुनाता हूँ,आप सुनिए। 
  एक दोपहर मैं बाज़ार में एक  दुकान से कुछ सामान ले रहा था,तभी एक लड़की वहां आ खड़ी हुई। उसने परचा सेल्समेन को थमाया तो मैंने देखा कि कई चीजों के नाम गलत लिखे हुए थे।पता नहीं मुझे क्या सूझा,मैंने बाल पेन से गलत नामों को सही कर दिया।लड़की तुनक कर बोली-‘आपने मेरे बापू के लिखे पर कलम क्यों चलाई।वह कभी गलत नहीं लिख सकते।आप बुरे मास्टर हैं।’ और सामान लेकर चली गई।मैं अचरज से देखता रह गया। उस लड़की का गुस्सा मेरी समझ में नहीं आया। पता नहीं क्यों उसने मुझे ‘बुरा मास्टर’ कहा था। न मैं अध्यापक था और न ही उसे जानता था।
 सेल्समेन ने कहा-‘ बाबू जी,सामान की लिस्ट जरूर इसके बापू ने बनाई होगी।मैं उन्हें जानता हूँ । उनका नाम गोपू है और वह रिक्शा चलाते हैं,शायद वह कम पढ़े लिखे हैं।’ मैंने कहा-‘ तुम्हारी बात का उस लड़की के गुस्से से भला क्या सम्बन्ध हो सकता है।’ मैंने सामान लिया और सड़क पर आ गया। वहां मैंने उसी लड़की को एक रिक्शा वाले से बात करते देखा। मुझे देखते ही वह रिक्शा वाले से कुछ कहने लगी। निश्चय ही वह मेरे बारे में बात कर रही थी।  
  रिक्शा वाले ने मुझे रुकने का इशारा किया,रिक्शा की सीट से उतर कर मेरे पास आ खड़ा हुआ।हाथ जोड़ कर बोला-‘बाबू जी, मैं अपनी बेटी कोयल की ओर से आपसे माफ़ी मांगता हूँ। मेरा जिक्र आते ही यह लड़ने लगती है,मैंने इसे कई बार समझाया है, पर यह है कि मानती ही नहीं।’
  मुझे लगा कि कोयल की उम्र मेरी बेटी सीमा जितनी ही होगी। मैंने पूछा-‘यह मुझे बुरा मास्टर’ कह रही थी,पता नहीं क्यों!’
  ‘जी,यह सब भी मेरी वजह से हुआ है।’-गोपू बोला।’आइये आपको घर छोड़ दूं।’ पर मेरा मन कोयल की बगल में बैठ कर सफ़र करने का न हुआ,न जाने फिर क्या बोल दे।मेरी नज़र उसकी फ्राक पर टिक गई, जो बहुत सुंदर दिख रही थी।मैंने कहा-‘कोयल, तुम्हारी फ्राक बहुत अच्छी है,’वह चुप रही, जवाब गोपू ने दिया।’ इसकी माँ टेलरिंग बहुत अच्छी करती  है, मेरे आस पास के कई जने अपने बच्चों की ड्रेस उसी से बनवाते हैं।’ उसने दोबारा  मुझसे अपनी रिक्शा में बैठने को कहा पर मैंने मना  कर दिया।
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  घर लौटने के बाद मैं काफी देर तक कोयल और गोपू के बारे में सोचता रहा।आखिर कोयल ने मुझे ‘बुरा मास्टर’ क्यों कहा था। क्या सच में किसी अध्यापक ने कोयल के साथ दुर्व्यवहार किया था,और इस कारण उसके मन में हर  अध्यापक के  लिए गलत धारणा बन गई है। और फिर गोपू के शब्द कानों में गूंजने लगे-‘जी,यह सब मेरी वजह से हुआ है।’ आखिर उसने ऐसा क्या किया था जिससे कोयल के मन पर ‘अध्यापक’ समाज की गलत छवि अंकित हो गई है।पता नहीं मैं और  कितनी देर तक इसी ऊहापोह में उलझा रहता, तभी सीमा आ कर गले से लिपट गई।वह खिलखिला रही थी।और फिर कोयल का गुस्सैल चेहरा भी सामने तैर  गया।दोनों की उम्र लगभग बराबर ही है पर दोनों में कितना फर्क है।क्या कोयल के गुस्सैल स्वभाव के  पीछे कोई गहरा कारण है?
  इसके कई दिन बाद की बात है, बाज़ार में मुझे गोपू दिखाई दिया। वह तुरंत मेरे पास आकर बोला-   ‘कहाँ जा रहे हो बाबू जी। बैठिये ले चलूँ।’ तब मैं दरजी से सीमा की फ्राक को ठीक करवा कर लौट रहा था। दरजी ने  मुझे सीमा की नई  फ्राक के लिए एक फूलदार प्रिंट का कपडा पसंद करवाने के लिए भी दिया था। गोपू ने फूलदार प्रिंट को देख कर कहा-‘ इससे मिलते जुलते कपडे की कई फ्राकें कोयल की माँ ने हाल ही में तैयार की हैं।’फिर कुछ संकोच भरे स्वर में बोला-‘ क्या  आप कोयल की माँ को एक मौका देना पसंद करेंगे।बस एक बार नाप के लिए  आपकी  बिटिया को आना होगा।‘
  मैं तुरंत कुछ न कह सका। पर मैं कोयल के गुस्से का कारण जरूर जानना चाहता था,मैंने सीमा की फ्राक तथा नया कपड़ा गोपू को देकर कहा-‘ नाप के लिए मेरी बेटी की जरूरत नहीं पड़ेगी। मैंने  
जो फ्राक तुम्हें दी है वह सीमा को एक दम फिट आती  है, इसी के अनुसार बनवा दो।’ असल में मैं सीमा को कोयल से मिलवाने से बचना चाहता था।न जाने वह सीमा के सामने क्या अंटसंट कह दे। क्योंकि वह तो सीमा को एक ‘बुरे मास्टर’ की बेटी ही समझेगी।
  कुछ दिन बीत गए।फिर एक दोपहर दरवाजे की घंटी बजी ,बाहर गोपू खड़ा था। मुझ लगा कि मीना की नई फ्राक लाया होगा। लेकिन वह खाली हाथ था। मेरे पूछने से पहले ही उसने कहा-‘आप तुरंत मेरे साथ चलिए। बड़ी गड़बड़ हो गई है,आपसे कुछ कहना है।’
  ‘हाँ,कहो क्या बात है?’
  ‘आप को मेरे साथ चलना होगा,आपको कुछ दिखाना भी है।’—गोपू ने कहा।
  मैं सोच विचार में डूबा गोपू के साथ चल दिया। किस गड़बड़ की बात कर रहा था गोपू!उसके घर जाकर  मैंने देखा कि उसकी पत्नी सिलाई मशीन के  आगे चुपचाप बैठी थी, फर्श पर वह फूलदार डिजायन वाला कपडा कटा फटा पडा  था,जिसे मैंने मीना की फ्राक बनाने के लिए गोपू को दिया था।और कोयल खिड़की के सामने खड़ी बाहर देख रही थी|
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 इससे पहले मैं कुछ पूछता, गोपू की पत्नी ने कहा-‘आज सुबह मैं आपकी मुनिया की फ्राक सीने के लिए  बैठी तो कोयल ने कपडा मेरे हाथ से छीन लिया और बोली कि तुम बुरे मास्टर की बेटी की फ्राक नहीं बनाओगी। इस पर मुझे गुस्सा आ गया और मैंने इसे झिड़क कर भगा दिया।बस इसनेगुस्से में भर कर  कैंची से नया कपडा काट डाला।तभी इसके बापू आपको बुलाने चले गए। मैं माफ़ी मांगती हूँ। इस कपडे की क्या कीमत होगी?’
  मैं अचरज से फर्श पर पडे कटे फटे कपडे को देखता रह गया।कोयल इतनी गुस्सैल है, इसका मुझे जरा भी अनुमान नहीं था। मैंने कहा-‘ फ्राक के कपडे की बात छोड़ो, इस बच्ची को इतना गुस्सा क्यों आता है,यह अध्यापक से इतना चिढ़ती क्यों है।’                                   
    ‘ बाबू जी, इसके लिए मैं अपने को ही कसूरवार मानता हूँ,’गोपू ने कहा। ‘मैंने जो बात आज तक किसी को नहीं बताई , उसे कहे बिना मुझे चैन नहीं मिलेगा,’ फिर वह बताने लगा –‘एक रात हमें सामान समेट कर शहर आना पड़ा था।कोयल की माँ को मैंने यही कहा  कि  एक मास्टर जी से मेरा झगडा हो गया है और उन्होंने मुझे जान से मारने की धमकी  दी है।इसलिए हमें गाँव छोड़ देना चाहिए। बस तभी से कोयल के मन में अध्यापक के लिए नफरत का भाव भर गया है।’
 ‘तब तो कोयल को दोष देना गलत है।अगर कोई मास्टर इसके पिता को जान से मारने की धमकी दे तो फिर पूरे  अध्यापक वर्ग के प्रति इसके कोमल मन में यही भाव आयगा ही।’मैंने कहा।फिर पूछा कि वह मास्टर जी कौन थे?
  ‘असल में ऐसे कोई मास्टर जी थे ही नहीं।’
  गोपू की बात सुन कर मैं चौंक गया,’तो फिर ऐसा क्या हुआ था जो तुम्हें रात के अँधेरे में चोर की तरह गाँव छोड़ना  पड़ा?’
  ‘चोरी के कारण।गाँव में एक नाटक मण्डली थी।उसमें हम तीन दोस्त काम करते थे । दूसरे गाँवों में भी नाटक करने जाते थे। एक दिन मण्डली से कुछ रकम चोरी ही गई,उसके बाद मेरे दोनों दोस्तों का कुछ पता नहीं चला।सब पुलिस को बुलाने की मांग करने लगे।तब गाँव के मुखियाजी ने मुझे बुला कर कहा था-‘गोपू, मैं जानता हूँ कि तुमने चोरी नहीं की,लेकिन पुलिस को खबर दी गई तो तुम से भी जरूर पूछ ताछ होगी। पुलिस का तरीका हम सभी जानते हैं। मेरी यही सलाह है कि रात में ही गाँव छोड़ कर चले जाओ।नाटक का मोह छोड़ो,शहर में कोई काम कर लेना।’ बस मैंने परिवार के साथ गाँव छोड़ दिया सदा के लिए।पर पत्नी को असली कारण नहीं बताया।बस बुरे मास्टर जी की धमकी को ही असली कारण मान लिया गया।
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  ‘मैं चुप सुन रहा था गोपू की विचित्र कथा।
   गोपू ने आगे कहा, ‘जब आज मैंने कोयल को गुस्से में कैंची से फ्राक के नए कपडे को यों नष्ट करते देखा तो फिर असली कारण बताने का निश्चय कर लिया।’ कमरे में कुछ देर मौन छाया रहा। फिर गोपू की पत्नी की आवाज सुनाई  दी-‘अगर तुम सच्चे हो तो फिर गाँव छोड़ने का सही कारण मुझे और कोयल को क्यों नहीं बताया।देख रहे हो कि तुम्हारे झूठ ने कोयल के मन में बेचारे अध्यापकों के लिए बिन  बात इतनी नफरत भर दी।’ गोपू लज्जित भाव से सिर झुकाए खड़ा था।
   फिर कोयल मी पास आ खड़ी हुई,धीरे से बोली-‘अंकल,मुझे माफ़ करना।’ मैंने उसका सिर सहला कर कहा-‘तुम मेरी बेटी सीमा जैसी हो। मैं एक दिन उसे तुमसे मिलाने लाऊंगा।’
   तभी गोपू की पत्नी ने कहा-‘बाबूजी, आपने फ्राक के कपडे की कीमत नहीं  बताई.’  मैंने फर्श पर पड़ा कपडा उठाकर कहा-‘ तुम तो  सिलाई की जादूगर हो,इसकी पोशाक  तो नहीं बन सकती, लेकिन कुछ न कुछ  तो जरूर बन सकता होगा।’
 गोपू की पत्नी कटे फटे कपडे को कुछ देर हाथ में उलट पलट कर देखती रही फिर उसके कई छोटे बड़े सुंदर रुमाल तैयार कर दिए। मैं रुमाल लेकर चलने लगा तो गोपू ने कहा-‘ बाबू जी, मैं फिर से अपनी  और  कोयल की ओर से माफ़ी मांगता हूँ।’ मैंने कहा-‘तुम कोयल से माफ़ी मांगो,तुम्हारे झूठ ने बिना बात उसके मन में अध्यपकों की बुरी छवि बना दी।अच्छा हुआ अब वह किसी टीचर को बुरा नहीं कहेगी। वादा करो,चाहे जो हो जाए तुम अपने परिवार से कोई  बात नहीं छिपाओगे।’
  शायद अब तो आप भी मान जायेंगे कि एक सुंदर रुमाल किसी भी कहानी का पात्र बन सकता है,(समाप्त) 

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