माँ, मुझे दोनों चाहिएं —कहानी—देवेन्द्र कुमार
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मैं कैमिस्ट की
दुकान से दवाई ले रहा था।मेरे पीछे एक लड़का खड़ा था,काउंटर पर भीड़ थी , उसकी बारी
नहीं आ रही थी। वह बार बार दवा के लिए कह रहा था।मैंने उसका परचा लेकर काउंटर पर
दिया और दवा लेकर उसे थमा दी। उसने एक हाथ में दवा की थैली पकड़ी और दूसरे में बाकी
बचे पैसे थाम कर चल दिया,एक बार उसने घूम कर मेरी ओर देखा,तभी एक आदमी ने उसकी मुट्ठी
में दबे पैसे छीने और भाग गया।धक्के से लड़का गिर गया और दवाइयां सड़क पर बिखर गईं।वह
रोने लगा।मैंने शोर मचाया पर चोर को पकड़ा नहीं जा सका।
मैंने दौड़ कर उसे
उठाया, बिखरी हुई दवाएं दोबारा थैली में
डाल दीं और उसका हाथ पकड़ कर ले चला। उसका नाम था जलज और उसका घर पास में ही था।
दरवाजा उसकी माँ रीता ने खोला। मुझे देख कर वह कुछ घबरा गई। मैंने रीता को पूरी
घटना बता दी फिर कहा कि शाम के समय बच्चे को यों बाज़ार में भेजना ठीक नहीं। तभी अंदर के कमरे से आवाज आई।
रीता मुझे कमरे में ले गई।वहाँ एक बूढ़े
सज्जन बैठे थे। मैंने अपना परिचय दिया,तब तक रीता ने उन्हें पूरी घटना बता दी।
मुझे चाय के लिए
रुकना पड़ा, इस बीच परिवार के बारे में काफ़ी कुछ पता चला। जलज के पिता नहीं थे, बूढ़े सज्जन जलज के
दादा रामजी थे। रीता के पिता शंकर गाँव में अकेले रहते थे।रीता ने बताया कि उसके
भैया –भाभी अमरीका जाकर बस गए हैं।वे साल में एक बार गाँव आते हैं और पिता जी से
साथ चलने के लिए कहते हैं। पर जलज के नाना जी हमेशा
मना कर देते हैं। उनका एक ही जवाब होता है
कि वह अपने गाँव को नहीं छोड़ेंगे। मैंने रीता से कहा कि उसे गाँव जाकर अपने पिता
जी को शहर आने के लिए मनाना चाहिए।
रीता मुश्किल में
थी। उसके पिता शंकर गाँव छोड़ने को तैयार नहीं थे। इधर वह बीमार भी रहने लगे थे।
गाँव में अच्छा इलाज उपलब्ध नहीं था। वैसे गाँव वाले उनका ध्यान रखते थे लेकिन
रीता ने पिता से कई बार कहा कि उन्हें शहर आकर रहना चाहिए,ताकि वह उनका और जलज के दादा जी दोनों का ध्यान रख सके। उसका मन दो फाड़ हो कर
रह गया था।वह गाँव में अकेले रह रहे पिता को लेकर गहरी चिंता में थी।लेकिन जलज के
दादा जी को भी नहीं छोड़ सकती थी।और जलज चाहता था कि नाना और दादा दोनों उसके साथ
रहें। रीता का मन गहरी उलझन में था।
समस्या का कोई हल नहीं सूझ रहा था उसे।
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मैं उस परिवार का कुछ नहीं था।लेकिन मन कह रहा
था कि मुझे उनकी मदद करनी चाहिए।एक साधारण घटना ने मुझे जलज के परिवार से विचित्र
ढंग से जोड़ दिया था।एक दिन मैं जलज के दादा जी से मिला। मैंने उनसे कहा कि शंकर जी
बेटी की बात नहीं मान रहें हैं,क्यों न वह खुद गाँव जाकर उन्हें शहर आकर रहने के लिए समझाएं। रामजी को मेरी बात
ठीक लगी,पर न जाने क्यों उन्होंने मुझे भी
साथ चलने को कहा।
और फिर एक सुबह
मैं भी रामजी के परिवार के साथ गाँव जा पहुंचा।छोटे से गाँव में शंकर जी का मकान
पुराना लेकिन काफी बड़ा था। जलज जाकर अपने नाना से लिपट गया।बोला-‘ नाना जी, आप को
मेरे साथ चलना होगा।’ यह कहते हुए वह रोने लगा।राम जी ने उनसे कहा-‘आप बेटी
के साथ नहीं पर उसके आस पास तो रह सकते
हैं।’ रीता ने उन्हें मेरे बारे में सब बता दिया था। मैंने कहा-‘जलज को दादा के
साथ नाना भी चाहियें। रीता आपके साथ रहना चाहती है पर अपने ससुर जी को भी अकेला
नहीं छोड़ सकती।’ उस समय रीता पास ही खड़ी थी। वह रोने लगी। आखिर शंकर जी गाँव छोड़ने
के लिए राजी हो ही गए।उन्होंने भावुक स्वर में कहा-‘इस मकान से मेरी न जाने कितनी
स्मृतियाँ जुडी हुई हैं।मैं पास के कसबे
के स्कूल में गणित का टीचर था।
इस पर राम जी हंस
कर बोले-‘ तो मैं क्या आपसे कम हूँ –मैंने भी उम्र भर बच्चों को अंग्रेजी पढाई है।’ उस समय
हम सब घर के बड़े आँगन में बैठे थे। आँगन की चारदीवारी के साथ साथ उगे पौधे सूख गए
थे।हाँ वहां खड़े तीन पेड़ जरूर हरे भरे थे। उनके डोलते पत्ते हवा में शोर कर रहे थे।
शंकर जी ने कहा-‘मैं चाहता हूँ कि आज की रात हम सब इस घर में बिताएं।’मुखिया जी ने
भोजन भेज दिया फिर फिर सोने के लिए
चारपाइयां।वैसे रीता आँगन के खुले चूल्हे पर खाना बनाना चाहती थी। उस रात आँगन में
तारों भरे खुले आकाश के नीचे हम सब देर तक बातें करते रहे।शंकर जी ने कहा-‘मैं
सोचता हूँ कि अब इस घर को बेच दूं।क्योंकि अब तो मेरा रिश्ता गाँव से सदा के लिए
खत्म होने जा रहा है।’
मैंने झट कहा-‘जरूर बेच दीजिये लेकिन किसी और
को नहीं,मैं लेना चाहता हूँ इसे।’
‘लेकिन तुम क्या
करोगे?तुम ठहरे शहर वाले।क्यों लेना चाहते हो इस मकान को ।’
मैं दिन में गाँव
में घूम चुका था। मैंने कहा-‘गाँव के स्कूल की खस्ता हालत देखी है मैंने।टूटी हुई खपरैल,गायब ब्लैक बोर्ड और
फटी हुई टाट पट्टियाँ।पंचायत ने सरकार को मदद के लिए लिखा तो है,पर जल्दी सुधार की
उम्मीद नहीं।सरकार ऐसे ही चलती है। मैंने
सोचा है कि यदि आप मकान बेचना ही चाहते हैं तो मैं इसे स्कूल के लिए लेना चाहता
हूँ।’
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शंकर जी ने
कहा-‘तुमने मुझे ठीक राह दिखा दी है, मेरे न रहने के बाद यहाँ स्कूल चले इससे
अच्छा और भला क्या हो सकता है।’ अगली सुबह वह मुखिया से मिलने गए और अपनी इच्छा
बताई।मुखिया ने उन्हें गले से लगा लिया। बोले –‘वाह शंकर ,क्या बात कही है। इस तरह आप गाँव से जाकर भी यहाँ से सदा के लिए जुड़ जायेंगे।आपका
मकान ठीक हालत में है,थोड़ी बहुत मरम्मत के बाद गाँव का स्कूल वह खूब मजे से चलेगा।लेकिन
एक शर्त है।’
‘वह क्या?’
यही कि आपको
महीने में एक बार यहाँ जरूर आना पडेगा अपने स्कूल से मिलने के लिए।’
‘एक ही बार
क्यों,मेरा जब मन करेगा आया करूंगा अपने स्कूल से मिलने और वह भी पूरे परिवार के
साथ।’कह कर शंकर जी खिलखिला दिए।
इसके बाद हम सब शहर चले आये। शंकर जी रीता के साथ दो ही दिन रहे। इस बीच मैंने
एकदम पास ही उनके लिए रहने की व्यवस्था कर दी।और हाँ रीता ने पिता को कसम दिला दी कि वह ढाबे में खाना नहीं खायेंगे।उसने
हँसते हुए कहा कि वह ढाबेवाले से दोगुने दाम लिया करेगी।
एक दोपहर मैं रीता के घर गया तो दोनों अध्यापको को शतरंज
खेलते पाया। मैंने मजाक में पूछ लिया कि क्या शतरंज सारा दिन चलती है। शंकर जी ने
कहा-‘और कुछ करने के लिए है भी तो नहीं।’ तब मैंने अपने मन की बात कह दी,बताया कि
पास में एक सरकारी स्कूल है।वहां समाज के पिछड़े वर्गों के बच्चे आते हैं पर वे
पढाई में अच्छे नहीं हैं,क्योंकि स्कूल के बाद वे परिवार की मदद के लिए कुछ काम
करते हैं। ‘ क्या आप पढाई का स्तर सुधारने में उनकी मदद कर सकते हैं।’
‘जरूर।’-दोनों ने एक स्वर में कहा। ‘हम रोज शाम को
उन बच्चों को पढाया करेंगे।’
लेकिन वे बच्चे केवल रविवार की छुट्टी के दिन ही
आ सकते थे। मैं ऐसे कई परिवारों को जानता था।वे तुरंत तैयार हो गए।इसके लिए उन्हें
कुछ देना भी नहीं था। और फिर एक रविवार की दोपहर में कई बच्चे पढने आ गए। पढाई के बीच
रीता ने उन्हें चाय नाश्ता भी दिया। इस बीच हम सब एक दो बार गाँव का स्कूल देखने भी
गए। शंकर जी के घर में स्कूल के छात्र बहुत खुश थे। और सबसे ज्यादा खुश था जलज –उसकी सबसे बड़ी इच्छा पूरी हो गई थी-
नाना और दादा एक साथ मिल गये थे उसे। (समाप्त)
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