‘रोटी माँ’ और बेटियां—कहानी—देवेन्द्र कुमार
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रोटी परेशान थी। उसे बहुत गुस्सा आ रहा था। बात ही कुछ ऐसी थी। वह कई दिन से ऐसे ही डिब्बे में पड़ी थी। घर के सब लोग ताज़ी गरम रोटियाँ खाते थे पर उसे
कोई छूता नहीं था। क्यों भला! असल में एक दिन जब माँ ने रोटी को तवे पर डाला तो
उनका नन्हा जोर से रो पड़ा। माँ ने झट उसे गोद में उठा लिया, इतने में रोटी जल गई। माँ
ने देखा तो गैस बंद कर दी और बच्चे को बहलाने लगी। फिर जली हुई रोटी को तवे से उठा
कर रोटियों के डिब्बे में डाल दिया।
इस बात
को कई दिन बीत गए। जली हुई रोटी मन मसोस कर डिब्बे में पड़ी रही। एक दिन ऐसा भी हुआ
जब भोजन तैयार होने के बाद किसी बच्चे की फरमाइश पर घर के लोग होटल में खाना खाने चले गए। और गरम
रोटियां डिब्बे में पड़ी रह गईं। तब उन्होंने जली हुई रोटी से बात की,उसकी हालत पर
दुःख जताया, उसे अपनी दीदी कहा। लेकिन इससे
ज्यादा वे और कुछ न कर सकीं। अगली सुबह पिछली शाम को बनी रोटियों को गरम करके खा
लिया गया लेकिन जली हुई रोटी अकेली डिब्बे में पड़ी रह गई। वह एक ही बात सोच रही थी—क्या मैं किसी
काम की नहीं। रोटी का सबसे बड़ा सुख होता है किसी
की भूख मिटाना। पर उस दिन तो हद ही
हो गई,मालकिन ने सब्जी के छिलकों के साथ जली हुई बासी रोटी को भी प्लास्टिक की
थैली में डाल दिया,फिर कामवाली से कहा कि जाते समय थैली को कूड़ेदान में डालती जाए।
कामवाली
ने थैली को कूड़ेदान की तरफ फेंक दिया और चली गई। थैली कूड़ेदान के बाहर गिर कर फट
गई। रोटी को मौका मिला और वह थैली के फटे हिस्से से बाहर आ गई। अब वह आज़ाद थी और सोच रही थी कि क्या वह किसी
भूखे पेट के काम आ सकती थी। लेकिन कैसे!
यह तभी हो सकता था जब कोई भूख से परेशान बड़ा या बच्चा उसे खा ले। तभी सफाई वाला आया और कूड़े को हाथ गाडी में भर
कर ले गया। रोटी सोच रही थी-‘ मैं कूड़े का
हिस्सा बनने से तो बच गई,अब मुझे किसी भूखे पेट की खोज करनी चाहिए। ’
रात हो
गई,सब तरफ सन्नाटा था। रोटी किसी भूखे पेट
की खोज में चल दी। कुछ आगे उसने फुटपाथ पर
एक परिवार को बैठे देखा,माँ बाप और बच्चा। ‘माँ, रोटी दो, भूख लगी है। ’बच्चे ने कहा। पर
जली हुई रोटी को किसी ने नहीं उठाया। वह निराश
होकर आगे चल दी। रोटी किसी छोटे पहिये की तरह घूमती हुई बढ़ रही थी। अगर कोई रोटी
को इस तरह चलते हुए देखता तो भूत भूत कहता हुआ भाग जाता, लेकिन कहीं कोई नहीं था। आगे
एक ढाबा था। काम खतम करके नौकर सो रहे थे
लेकिन बची हुई तन्दूरी रोटियां जाग रही थीं। तभी उन्होंने जले हुए चेहरे वाली रोटी
को देख लिया और पास आकर पूछने लगीं, वे समझ नहीं पा रही थीं एक अकेली रोटी उस समय
वहां क्या कर रही थी। उन्होंने पूछा तो जवाब मिला-‘मैं दीदी हूँ,’ घर के डिब्बे में रोटियों ने इसी नाम से तो पुकारा था उसे,वैसे तो हर
रोटी को केवल ‘रोटी’ ही कहा जाता है। लेकिन जली हुई रोटी चाहती थी कि उसे दीदी ही
कहा जाये। आखिर सब रोटियों में वही तो उम्र में सबसे बड़ी थी।
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उसका हाल सुन कर तंदूरी रोटियां
अफ़सोस करने लगीं। लेकिन दीदी ने कहा-‘वह सब छोड़ो, हमें उस भूखे परिवार की मदद करनी चाहिए। ’ सबको मालूम था कि दुनिया
में कितने सारे बच्चे और बड़े हर दिन भूखे रह जाते हैं। दीदी के साथ तंदूरी रोटियां
उस परिवार के पास जा पहुंची। अपनी भूख
मिटा कर वह परिवार फुटपाथ पर ही सो गया। इतने
दिनों में दीदी को पहली बार कुछ चैन मिला। लेकिन यह तो आरम्भ था। दुनिया भर के
भूखों के खाली पेट की आग बुझाना बहुत बड़ा काम था। उसके लिए ये थोड़ी सी रोटियां भला क्या कर सकती
थीं। पर दीदी के सपने बहुत बड़े थे। वह कुछ
कहने को हुई तभी एक रोटी ने कहा-‘क्या तुमने ‘रोटी—माँ’ के बारे में सुना है?हमारे
ढाबे में काम करने वाले छोकरे उनके बारे में कई तरह की बातें करते हैं। कहते हैं
रोटी-माँ की कुटिया से कोई खाली पेट नहीं जाता। ’
‘रोटी-माँ’—कितना अजीब नाम है। दीदी ने सोचा और रोटियों की टोली के साथ
‘रोटी माँ’ के नाम से प्रसिद्ध बूढी माई की झोंपड़ी पर जा पहुंची। बिना दरवाजे वाली कुटिया में एक दीपक जल रहा था
और ‘रोटी माँ’ जमीन पर सो रही थी। कुटिया के बाहर एक थाली में कई रोटियां रखी थी ।
’कुटिया के बाहर रोटियां!’दीदी के मुंह से निकला’ तभी थाली में रखी एक रोटी ने
कहा-‘यह क्या!यहाँ तो हर रोज भूखे लोग पेट भरने के लिए आते हैं पर आप सब...’
दीदी ने
कहा—‘हम सब ‘रोटी माँ’ से मिलने आये हैं। उन्हें लोग इस विचित्र नाम से क्यों पुकारते हैं।
उनका असली नाम क्या है?’
जवाब
मिला-‘ यही अम्मा का असली नाम है। ’और फिर रोटी ने एक अजीब कथा सुनाई--
अम्मा इस
दुनिया में एकदम अकेली है। कभी भरा पूरा परिवार था,लेकिन अब कोई नहीं है। अम्मा
पूरे गाँव को अपना परिवार मानती है। हर
सुबह वह बारी बारी से घरों में जाकर कहती है-‘ आज मैं तुम सबको अपने हाथों से बना
खाना खिलाने आई हूँ। ’ और हाथ धोकर रसोई में खाना बनाने में जुट जाती है। पूरे गाँव को मालूम है कि अम्मा कितना स्वादिष्ट
भोजन बनाती है। सबको भोजन कराने के बाद अम्मा कहती है-‘तुम सबकी भूख तो शांत हो गई।
अब दूसरों की भूख मिटाने के लिए कुछ दो।’’फिर
चार रोटियां लेकर दूसरे घर में भोजन बनाने चली जाती है। जब थकी हारी अपनी कुटिया
पर लौटती है तो साथ लाई रोटियां एक थाली में कुटिया के बाहर रख कर आराम करने लेट
जाती है। फिर धीरे धीरे भूखे लोग रोटियां लेकर जाने लगते हैं। कुछ देर आराम के बाद अम्मा फिर गाँव के घरों में
जाकर खाना बनाने में जुट जाती है। और
सवेरे की तरह शाम को भी रोटियां लेकर लौटती है। शाम को भी भूखे लोग रोटियां ले जाते हैं।
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बड़ी
विचित्र थी ‘रोटी माँ’ की सच्ची कहानी। तब
दीदी ने कहा-‘यहाँ भूखे लोग रोटियां लेने आते हैं,अगर हम मिलकर भूखे लोगों की खोज
में जाएँ तो कैसा रहे।’ और फिर वैसा ही हुआ। सब रोटियां दीदी के पीछे भूखे लोगों
की खोज में चल दीं। ’रोटी माँ’ की कुटिया के बाहर रखी रोटियां भी साथ चल पड़ी। उस रात रोटियों ने कई भूखे लोगों की भूख
मिटाई,तब तक सुबह होने लगी थी। सबकी लीडर
दीदी ने कहा-‘दिन में हम इस तरह सड़क पर
पहियों की तरह चलेंगे तो लोग भूत प्रेत समझ कर डर जायेंगे। हमें दिन भर कहीं छिप कर रहना होगा। ’
‘क्यों
न हम ‘रोटी माँ’ की कुटिया में छिप जाएँ। ’ एक रोटी ने कहा और सब रोटियां जाकर अम्मा
की कुटिया के छप्पर में जा छिपी। किसी को कुछ पता न चला। किसी ने सड़क पर घूमती रोटियों को नहीं देखा। कुछ देर में अम्मा की नींद खुली तो उसे छप्पर
में सर सर की आवाज सुनाई दी। अम्मा ने कहा—‘लगता
है छप्पर में चूहे घुस गए हैं। ’ अम्मा की बात सुन कर रोटियों को हंसी आ गई। लगा
जैसे बहुत सारी लड़कियां खिल खिला रही हों। हैरान अम्मा कुटिया बाहर निकल कर इधर
उधर देखने लगी। पर कहीं कोई नहीं था। अम्मा ने इसे अपने बूढ़े कानों का वहम समझा और
साफ़-सफाई में जुट गई। और कुछ देर बाद गाँव की तरफ चल दी। उसने सोच लिया था कि आज
किन घरों में भोजन बनाना है। दिन भर रोटियां छप्पर में छिपी रहीं।
रात में
अम्मा के सो जाने के बाद रोटियां भूखों की भूख मिटाने के सफ़र पर चलीं तो कुटिया के
बाहर थाली में रखी रोटियों ने भी साथ चलना चाहा,पर दीदी ने मना कर दिया,कहा-‘यहाँ
हर दिन कई जनेभूख मिटाने
के लिए आते हैं। उन्हें निराश नहीं होना
चाहिए। तुम सब रोज की तरह यहीं रहो। ’
उस रात
भी रोटियों ने कई लोगों को भूखे पेट सोने से बचाया। एक रोटी ने कहा—दीदी, आखिर हम
कितने लोगों की भूख मिटा सकते हैं। मुझे लगता है कि इस तरह रोज भूखों की भूख
मिटाते मिटाते सारी रोटियां खत्म न हो जाएँ। ’ दीदी कुछ कहती इससे पहले किसी ने
कहा—‘ऐसा कभी नहीं होगा। ’ यह मक्का की रोटी बोल रही थी, जो अभी अभी उन सबके बीच
आई थी। उसने बताया-‘इस ‘भूख मिटाओ’ यात्रा की खबर अब हमारी पूरी बिरादरी को मिल
चुकी है। उसकी यह बात सच लग रही थी,क्योंकि उसके साथ और भी कई रोटियां थीं जो पहली
बार वहां आई थीं। और यह सिलसिला अब रुकने
वाला नहीं था। शहर की सब रोटियों ने पक्का निश्चय कर लिया था कि जब भी मौका मिलेगा
वे दीदी के साथ ‘भूख मिटाओ’ सफ़र में जरूर शामिल होंगी।
दीदी की ख़ुशी का ठिकाना नहीं था। उसे अपना सपना
सच होता हुआ लग रहा था। (समाप्त)
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