Tuesday 31 March 2020

मिठास--कहानी--देवेन्द्र कुमार


मिठास—कहानी—देवेन्द्र कुमार
                       =====    
                             

  सोमू ने ध्यान से उधर देखा –अगल बगल रोशनी से चमकती दुकानों के बीच दबी सहमी सी संकरी छोटी सी जगह में पीला बल्ब जल रहा था। एक फट्टे पर दो थालियों में समोसे और गुलाब जामुन रखे थे। उनके पीछे दो जने बैठे थे – एक बूढी औरत और सात आठ साल का एक बच्चा।
   सोमू ने आस पास की दुकानों में पता किया था, गली में खड़े फेरी वालों से पूछा था। वह खस्ता हाल दुकान किसी नरेश की थी। वह अक्सर बीमार रहा करता था। इसलिए दुकान खुलती कम लेकिन बंद ज्यादा रहती थी। और नरेश की जगह उसकी बूढी माँ रामवती अपने पोते परेश के साथ बैठी नजर आती थी-- सामने समोसे और गुलाब जामुन रखे हुए, जो देखने से ही बासी लगते थे। सोमू ने कई दिन तक देखा और सोचा और फिर एक शाम रामवती के सामने जा खड़ा हुआ। वह दुकान पर कब्जा करने की स्कीम बना रहा था, क्योंकि नरेश तो अब नहीं रहा था।  
    ‘ माई, राम राम, समोसा और गुलाब जामुन तो देना।’
     रामवती ने झट पास रखी प्लेट उठा कर अपने आँचल से पोंछी और एक समोसा और एक गुलाब जामुन रख कर सोमू की ओर बढ़ा दी। सोमू प्लेट लेकर परेश के पास बैठ गया। वह खाना शुरू करता इसके पहले ही रामवती ने हडबडा कर कहा -–‘बेटा, माफ़ करना, ये गरम नहीं हैं।’
    ‘माई, भूख में सब चलता है,वैसे गरम होते तो...’—अपनी बात अधूरी छोड़ कर सोमू ने समोसा खाना शुरू कर दिया। फिर दूसरे हाथ से परेश के बाल सहला दिए। रामवती ध्यान से देख रही थी। परेश ने दादी की ओर देखा तो बोल उठी—‘ तेरे मामा हैं।’ अब परेश ने सोमू की ओर नजर घुमाई तो सोमू ने उसका कन्धा थपकते हुए कहा ‘माई ने सच कहा—मैं तेरा मामा ही तो हूँ।’ फिर झोले से प्लास्टिक का डिब्बा निकाल कर रामवती को थमा दिया। बोला—‘गुलाब जामुन इसमें और समोसे कागज की थैली में रख दो। मैं दोस्त के घर जा रहा हूँ। गरम करके खायेंगे तो मज़ा आएगा।’
                                                                           1
  रामवती असमंजस में थी। सोमू बोला—‘ क्या सोच रही हो। जितने गुलाब जामुन और समोसे  हैं, सब रख  दो।’
  ‘क्या सच! सारे लोगे,लेकिन...’  सोमू ने डिब्बा रामवती के हाथ से ले कर उस की मुश्किल आसान कर दी, फिर जेब से सौ रुपये का नोट निकाल कर उसे थमा दिया।
  वह बोली -–‘लेकिन मेरे पास छुट्टे नहीं हैं।’ ऐसा पहली बार हुआ था कि कोई  ग्राहक इतना सारा सामान ले रहा था। हंस कर सोमू ने कहा— ‘माई,चिंता मत कर। माँ –बेटे का हिसाब लम्बा चलेगा।  जल्दी चुकता होने वाला नहीं। बकाया फिर ले लूँगा।’ रामवती सोमू को जाते हुए देखती रही। परेश भी उधर ही ताक रहा था। दुकान बंद करके घर की ओर जाते हुए भी इसी बारे में सोच रही थी। कौनथा   यह अजनबी लड़का, जिसने नरेश की तरह माई पुकार कर उसके साथ बेटे का रिश्ता जोड़ लिया था।  रामवती घर पहुँच कर बहू रचना को कुछ बतलाती इससे पहले परेश बोल उठा—‘आज मामा आये थे और दादी को सौ का नोट दे गए।’  
    अब सोमू को अगली चाल चलनी थी। दूसरी शाम वह दुकान पर पहुंचा तो हडबडा गया—दुकान बंद थी। कुछ देर सोचता खड़ा रहा। अब क्या करे। तभी दूसरी तरफ खड़े फेरी वाले ने कहा – ‘आज दुकान नहीं खुली। शायद घर में किसी की तबीयत ख़राब हो। वैसे बेटे की मौत ने उसे तोड़ कर रख दिया है। पता नहीं किस उम्मीद में पोते के साथ यहाँ बैठी रहती है। मैंने तो कई बार समझाया है कि दुकान किसी को किराए पर दे दे या बेच कर छुट्टी करे। दुकान चलाना उसके बस की बातनहीं’   
  फेरी वाले के शब्द सोमू के कानों में जैसे मिठास घोल रहे थे। अगर ऐसा हो जाए तो...तो... पल भर में मन न जाने कितनी दूर उड़ गया। फिर अचकचा कर बोला—‘तुम किसी की बीमारी के बारे में कह रहे थे। पता ठिकाना मालूम होता तो जा कर देख आता।’
  ‘मैंने शायद तुम्हें कल भी देखा था। मैं रामवती के घर के पास ही रहता हूँ। आओ ले चलूँ।’गलियाँ पार करके फेरीवाला एक दरवाजे के सामने रुक गया। उसने आवाज लगाईं और दरवाज़ा खडका दिया। दरवाज़ा परेश ने खोला। सोमू को देखते ही मुड़ कर चिल्लाया—‘दादी, मामा आये हैं।’ सोमू अंदर घुसा तो देखा—रामवती चटाई पर हाथ टेक कर उठने की कोशिश कर रही थी। बोला—‘माई,लेटी रहो।बताओ तबीयत कैसी है।’  
   ‘मैं ठीक हूँ। तू अपनी बता।’—कहते हुए रामवती ने मुस्कराने का प्रयास किया।
                               2
  ‘तेरा हाथ मेरे सिर पर है तो मुझे क्या चिंता।’—कहते हुए सोमू ने रामवती  का हाथ पकड़ कर अपने सिर पर रखा तो चौंक पड़ा। उसे तेज बुखार था। परेश से बोला—‘ तेरी दादी को तो डाक्टर को दिखाना होगा।’ जवाब में रचना ने कहा—‘ मैं तो सुबह् से कई बार डाक्टर को दिखाने की बात कह चुकी हूँ ,लेकिन...’
  ‘अभी आया।’—कह कर सोमू बाहर निकल गया। कुछ देर बाद लौटा तो रामवती की बांह पकड़ कर बोला –‘रिक्शा बाहर खड़ी है,आओ।’ फिर साथ में परेश को भी ले लिया। रामवती के लौटने तक रचना ने इखरे-- बिखरे घर को कुछ संवार दिया। सोमू ने रामवती को दवा दी और कहा—‘अब चलता हूँ, कल फिर आऊंगा।’ लेकिन रामवती की पुकार ने रोक लिया। बोली—‘ उस दिन ठन्डे समोसे और गुलाब जामुन ले गया था। आज गरम चाय है, पीकर जाना।’ वह रामवती के पास ही बैठ गया। उसके मन ने कहा—‘सोमू ,तेरा काम हो गया।’
  चाय पीते पीते सोमू ने घर को अच्छी तरह निरख परख लिया। उसने एक बर्तन में रखे गुलाब जामुन देखे और कुछ कहने को हुआ, पर रचना पहले ही बोल पड़ी—‘मैंने गुलाब जामुन बहुत पहले ही बना लिए थे, फिर अम्माजी की तबियत बिगड़ गयी। समोसे नहीं बन सके।’
  ‘कोई बात नहीं। एक काम करो, यह गुलाब जामुन वाला बर्तन मुझे दे दो।’
  ‘पर आप इतने सारे गुलाब जामुनों का क्या करेंगे?’
  ‘यह भी खूब कहा। खुद खाऊंगा और दोस्तों को खिलाऊंगा।’फिर रामवती से बोला-‘माई, अब कुछ दिन दुकान पर मत बैठना, वर्ना तबीयत ज्यादा बिगड़ जायेगी।’
‘लेकिन...’
‘लेकिन वेकिन रहने दो। मैंने दुकान ठीक ढंग से चलाने के बारे में कुछ सोचा है।’
  फिर आने की बात कह कर सोमू बाहर चला आया।वह कई बार रामवती का हाल चाल लेने गया। उसे देख कर रामवती जैसे निहाल हो जाती थी।उसके जीवन में ऐसा पहली बार था कि किसी गैर ने उसके मन में इतनी गहरी जगह बना ली थी।और फिर एक दिन सोमू सबको दुकान पर ले गया, आसपास की चहल पहल के बीच अपनी उदास,उजाड़ दुकान रामवती और रचना को दुखी कर गई। सोमू बड़े ध्यान से उनके हाव भाव परख रहा था। कुछ देर की चुप्पी के बाद सोमू ने कहा- ‘मैंने परेश के बारे में कुछ सोचा है।’    
‘परेश के बारे में क्या...’
‘यही कि दुकान के चक्कर में नरेश की माई परेश का जीवन नष्ट कर रही है।’ –सोमू ने गंभीर स्वर में कहा।’बचपन पढाई और खेल कूद के लिए होता है। लेकिन तुम उसे सारा दिन दुकान पर अपने साथ बांधे रखती हो। हमें परेश के बचपन के बारे में भी तो सोचना चाहिए। हमें इसे स्कूल भेजना चाहिए।’
                                       3
‘पर मैं अकेली तो दुकान चला नहीं सकती।’
‘मैं भी यही चाहती हूँ कि परेश पढाई करे। इसके पापा की भी यही इच्छा थी।’—रचना बोली।
‘हमारे घर के पास एक अध्यापक रहते हैं। मैंने परेश के बारे में उनसे बात की थी। उनका कहना है कि पहले परेश को उनके पास भेजा जाए, ताकि वह समझ सकें कि परेश को किस क्लास में प्रवेश मिल सकता है।’
                            
‘यह तो बहुत अच्छा रहेगा।’—रचना ने उत्साहित स्वर में कहा।
‘ लेकिन दुकान...’ –रामवती बीच में रुक गई।
‘माई, मैंने इसका भी इंतजाम कर लिया है।’—सोमू ने रामवती का हाथ पकड़ कर कहा—‘मैं एक कारीगर को जानता हूँ जो अच्छी मिठाई बना सकता है,’ फिर रचना की ओर देख कर बोला –‘अब तुम्हें घर पर गुलाब जामुन और समोसे बनाने की जरूरत नहीं। माई सुबह आकर दुकान खोल देगी,फिर कारीगार गुलाब जामुन और समोसे बना देगा।’
‘मैं अकेली’—रामवती ने कहना चाहा।
‘तुम्हारे साथ रचना भी रह सकती है। मास्टरजी से पढ़ कर परेश भी यहीं आ जाया करेगा।’  
रामवती ने कहा—‘अब मेरी भी सुन ले। मैं इतना झंझट नहीं कर सकती। तू दुकान संभाल, हमें आराम से रहने दे।’
सोमू के मन में ख़ुशी फूटने लगी। अरे,उसकी योजना कितनी आसानी से सफल हो गई थी। लेकिन कुछ तो कहना ही था। ‘माई, तुम चाहती हो कि मैं तुम्हारी मुसीबत अपने गले में डाल लूं। ना माई ना। मैं इतना पागल नहीं। तुम जानो तुम्हारा काम। हाँ परेश को अध्यापक से जरूर मिला दूंगा। मिठाई बनाने वाला कारीगर भी कल से आ जायेगा। मैं यह चला।’ और वह चुपचाप उठ कर चला गया।
’अरे सुन तो।’—रामवती पुकारती रह गई, पर सोमू रुका नहीं। ‘अब शायद नहीं आयेंगे।’—रचना ने उदास स्वर में कहा। लेकिन अगली सुबह वह परेश को अध्यापक के पास ले जाने के लिए आगया,    बोला—‘परेश को मास्टरजी के पास छोड़ कर मैं मिठाई वाले कारीगर के साथ दुकान पर पहुँचता हूँ,  तुम दोनों भी आ जाओ।’
हलवाई ने समोसे और गुलाब जामुन बना दिए। कई ग्राहक मिठाई ले गए। दोपहर में सोमू परेश को दुकान पर छोड़ गया। रचना से बोला—‘अब तुम्हें मेरी जरूरत नहीं पड़ेगी। हलवाई का हिसाब सप्ताह के अंत में करती  रहना।’                                 
‘ पर तू कहाँ जा रहा है?’—रामवती ने कहा। ‘मैंने तुझ से दुकान सँभालने को कहा और तू है कि डर कर भाग रहा है।’
               
‘हाँ मैं डरता हूँ तो बस अपने से। वैसे मैं कहीं जा नहीं रहा हूँ। बीच बीच में आकर देखता रहूँगा कि तुम अपने बेटे का नाम कितना आगे बढ़ा रही हो, और परेश की पढाई कैसी चल रही है।’—कह कर सोमू रामवती के पैरों पर झुक गया। उसका हाथ पकड़कर अपने सर पर रख लिया, फिर     तेजी से चला गया।
नरेश की दुकान अब अच्छी चल रही है। परेश को स्कूल में प्रवेश मिल गया है। लेकिन दुकान को हथियाने के इरादे से आया सोमू कहाँ है? वह रामवती के साथ छल करना चाहता था,पर जरूरत नहीं पड़ी।रामवती तो खुद उसे दुकान देना चाहती थी, फिर क्यों नहीं ली! बेटे की याद में तड़पती माँ से उसका सहारा छीनने की उलझन में सोमू रामवती और परेश के कितना निकट चला गया था, यह उसे पता ही नहीं चला।और जब मालूम हुआ तो...                                 ( समाप्त )

No comments:

Post a Comment