कान और हाथ—कहानी—देवेन्द्र कुमार
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आज रविवार है,एग्रो पब्लिक स्कूल में त्यौहार का वातावरण है, सरदी की गुनगुनी धूप में स्कूल के मैदान में बच्चों के रंग बिरंगे परिधान इंद्रधनुषी छटा बिखेर रहे थे। स्कूल में बच्चों की चित्र कला प्रतियोगिता हो रही थी। बाल चित्रकारों के हाथ और चेहरों पर रंग लग गए थे,पर इस सबसे बेखबर बच्चे चित्र बनाने में जुटे थे। स्कूल की अध्यापिकाएं बच्चो के बीच घूम घूम कर उनका उत्साह बढ़ा रही थीं।
आखिर प्रतियोगिता समाप्त हुई। बाल कलाकारों ने अपने अपने चित्र निर्णायकों को सौँप दिए। अब सबको परिणाम घोषित होने की प्रतीक्षा थी। सबसे अच्छे चित्र को प्रथम पुरस्कार के रूप में बहुत अच्छा इनाम मिलने वाला था। दस सांत्वना पुरस्कार भी दिए जाने वाले थे। चित्रकारी के बाद अब बच्चे नाश्ता कर रहे थे, लेकिन सबकी निगाहें निर्णायकों की ओर लगी थीं जो एक एक चित्र को परख रहे थे। लेकिन एक समस्या थी--कई बच्चों ने अपने बनाये चित्र पर अपने नाम नहीं लिखे थे।लेकिन परिणाम तो घोषित करने ही थे।
सब जजों की राय
में एक चित्र सबसे अच्छा था। लेकिन उसे बनाने वाले बच्चे ने एक विचित्र विषय चुना
था, और उस चित्र पर कोई नाम भी नहीं था। चित्र में दो कान बनाये गए थे जिन्हें दो हाथों ने पकड़ा हुआ था। निश्चय ही
चित्र में एक संकेत छिपा हुआ था। क्या बच्चा यह बता रहा था कि उसे दंड दिया जा रहा
था अथवा उसने किसी को दंड मिलते देखा था। आखिर सच क्या था? क्या नाम न लिखने के
पीछे यह डर काम कर रहा था कि उसकी पहचान उजागर होने पर उसे सजा मिल सकती थी।
कुछ देर तक आपस
में विचार करने के बाद स्कूल की प्रिंसिपल लताजी माइक पर आईं। उन्होंने कहा- ‘बच्चो,निर्णायकों ने सबसे अच्छे चित्र का चुनाव कर लिया
है,लेकिन एक समस्या है, चित्र पर उसे बनाने वाले ने अपना नाम नहीं लिखा है। हम
चाहेंगे कि इसका चित्रकार सामने आकर प्रथम पुरस्कार प्राप्त करे।’ प्रिंसिपल ने
‘कान पकड़ हाथ’ वाला चित्र नोटिस बोर्ड पर लगा दिया। वहां मौजूद सब बच्चे तालियाँ बजाने
लगे। सबको प्रथम पुरस्कार जीतने वाले अनाम बच्चे का इन्तजार था। लेकिन
काफी समय तक प्रतीक्षा करने के बाद भी कोई बच्चा पुरस्कार लेने नहीं आया।
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सब छात्र हैरान
थे कि प्रथम पुरस्कार विजेता इनाम लेने क्यों नहीं आ रहा है, लेकिन प्रिंसिपल
लताजी तथा अन्य अध्यापिकाएं इसका कारण
अच्छी तरह समझ चुकी थीं। निश्चय ही वह अपनी पहचान उजागर होने से डर रहा था। तब उस
बच्चे को पहचानने का क्या उपाय था?यह एक गंभीर बात थी। लताजी ने स्कूल की सब
टीचर्स की मीटिंग बुलाई। उन्होंने प्रत्येक टीचर से पूछा कि क्या उन्होंने कभी
किसी छात्र को कोई सजा दी है, उसके साथ मारपीट की है?क्योंकि स्कूल में इस पर
प्रतिबन्ध था। टीचर्स ने एक स्वर से छात्रों को कैसा भी दंड देने से इनकार किया। कहा-‘
अगर कोई छात्र कभी गलत आचरण करता है तो वे प्यार और समझाने का तरीका अपनाती हैं,
दंड का नहीं।’
तो क्या उस बच्चे
को घर पर या कहीं और परेशान किया जाता है? इस बात को पता करने का क्या तरीका था? लताजी
ने काफी सोच विचार के बाद एक तरीका अपनाया। उन्होंने ‘कान और हाथ’ वाला चित्र
स्कूल के प्रवेश द्वार पर एक नोटिस बोर्ड पर लगा दिया। और फिर कुछ टीचर्स से वहां
नज़र रखने को कहा। उन्हें यह देखना था कि क्या कोई छात्र बार बार उस चित्र के सामने
आकर खड़ा होता है। यह उपाय कारगर साबित हुआ। ऐसे तीन छात्र थे जो बार बार आकर उस
चित्र को देखते थे। उनके नाम थे-अमर, विनीत और रजत।
लताजी उन तीनों के
के पेरेंट्स से बात चीत करना चाहती थीं लेकिन स्कूल में नहीं। वह समझ रही थीं इस
बात का पता स्कूल में किसी को भी नहीं लगना चाहिए। उन्होंने तीनों के माँ बाप को बारी
बारी से अपने घर बुलाया। और उन्हें सावधान कर दिया कि इस बारे में किसी से कुछ न
कहें। अमर और विनीत के माता पिता ने कसम खाकर कहा कि वे
अपने बच्चे को कभी कैसा भी दंड नहीं देते। हमेशा प्यार से पेश आते हैं। लेकिन रजत
के पैरेंट्स लताजी के इस प्रश्न का सही उत्तर नहीं दे सके। आखिर रजत की माँ ने पति
के सामने ही बताया—‘ इन्हें जल्दी गुस्सा आ जाता है। मेरे बार बार समझाने पर भी
उसे मारने लगते हैं।‘ जब रजत की माँ लताजी से बात कर रही थी तो रजत के पिता एकदम
चुप बैठे थे।
लताजी ने रजत के
पिता से प्रश्न किया तो कुछ देर चुप रहने के बाद उन्होंने कहा—‘ मैं मानता हूँ कि
मुझे जल्दी गुस्सा आ जाता है। मैं अपने गुस्से पर काबू करने की बहुत कोशिश करता
हूँ लेकिन फिर भी... ’ कमरे में कुछ देर
मौन छाया रहा। रजत के पिता के अटपटे व्यवहार से सारी बात साफ़ हो गई। लताजी ने उन्हें शांत करते हुए
कहा-‘ आपके गलत व्यवहार का रजत के कोमल मन पर बुरा प्रभाव पड रहा है। यह उसके लिए
अच्छा नहीं है।’ मुझे आशा है कि आप रजत के साथ प्यार और समझदारी से पेश आयेंगे।‘
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मैं उससे माफ़ी
मांग लूँगा।’ रजत के पिता ने कहा तो लताजी ने उन्हें टोकते हुए कहा-‘ ऐसी गलती भूल
कर भी मत करना। इस बारे में रजत को कुछ भी पता नहीं चलना चाहिए। हम सबको इस बात को
एकदम भूल जाना चाहिए।’
और ऐसा ही हुआ। स्कूल
के नोटिस बोर्ड पर लगा चित्र गायब हो गया। सुबह की प्रार्थना सभा में लताजी ने कहा–‘
न जाने वह चित्र कहाँ गया। पता नहीं यह किसने किया है। हम बहुत कोशिश करने पर भी
उस चित्र को बनाने वाले बच्चे की पहचान नहीं कर पाए।’
लताजी रजत के
माता पिता से निरंतर बात करती रहीं। रजत की माँ के अनुसार उसके पिता का व्यवहार
एकदम बदल गया था। रजत के ‘कान पकड़ हाथ’ वाले चित्र ने अपना काम कर दिया था। और कोई कुछ भी नहीं जान पाया था। वैसे रजत के
बनाये चित्र को लताजी ने अपने पास संभाल कर रख लिया था। लताजी किसी को कुछ
बताने वाली नहीं थीं। ( समाप्त)
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