दूध का उफान—कहानी—देवेन्द्र कुमार
दूध तो नाली में बह गया, अब खीर कैसे बनेगी!
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गुलशहर
में रहते थे रमेश दत्त। उनके घर में बड़े बेटे की शादी थी। बहुत सारे मेहमान आए हुए थे। घर में सारा दिन जैसे मेला-सा लगा रहता था। बच्चे मिलकर शोर मचाते रहते थे। शादी के लिए दो अतिरिक्त नौकर थोड़े समय के लिए रख लिए गए थे, पर फिर भी ज्यादा जिम्मेदारी घर के नौकर रामू की ही थी।
सारा दिन घर में रामू-रामू की आवाज उठती रहती थी, “रामू चाय, रामू पानी लाओ। रामू जल्दी से बाजार जाकर सब्जी लाओ। रामू कहाँ चला गया...इतनी देर से पुकार रहे हैं। रामू, रामू, रामू।” वह सारा दिन जैसे चकरी की तरह इधर से उधर चक्कर लगाता रहता था। सुबह से लेकर आधी रात तक यही चलता रहता था।
शादी धूमधाम से हुई। मेहमान एक-एक करके विदा लेने लगे, फिर भी अभी कई लोग थे जो कुछ दिन और ठहरकर जाने वाले थे। जो दो नौकर शादी के काम के लिए रखे गए थे, उनका हिसाब कर दिया गया। रह गया रामू।
एक दिन मेहमानों को खीर खिलाने का कार्यक्रम बना। दूध वाले से ज्यादा दूध लेकर आने को कह दिया गया। रामू ने एक बड़े भगोने में दूध उबलने के लिए गैस पर रख दिया और एक तरफ बैठ गया। उसने सोचा, ‘चलो दूध के बहाने से ही सही, कुछ देर तो आराम कर सकेगा।’
कुछ देर बाद देखा गया कि रसोईघर की नाली से दूध बहकर बाहर आ रहा है। मालकिन ने रसोईघर में जाकर देखा, दूध उबल-उबलकर भगोने से बाहर गिरकर सब तरफ फैल रहा था और एक कोने में रामू मजे से सो रहा था। उसकी नाक से खर्राटों की आवाज आ रही थी, यानी वह गहरी नींद में था।
मालकिन
यानी रमेश दत्त की पत्नी शांता तो गुस्से से आग हो गईं। उन्होंने रामू का हाथ पकड़कर झिंझोड दिया। चिल्लाकर बोली, “इतने सारे दूध का नुकसान कर
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दिया। अब मेहमानों के लिए खीर कैसे बनेगी। यह कैसी हरामखोरी हो रही है। आने दे बाबूजी को, आज ही तेरा हिसाब करवा दूँगी!”
रामू हड़बड़ाकर जाग गया। कुछ पल के लिए तो मामला उसकी समझ में ही नहीं आया कि आखिर मालकिन चिल्ला क्यों रही है, हुआ क्या है। फिर जो बिखरा हुआ दूध देखा तो अपनी गलती पता चली। हाथ जोड़कर माफी माँगने लगा। पर मालकिन का पारा चढ़ा हुआ था। वह रामू की लापरवाही के लिए उसे खरी-खोटी सुनाती रहीं। रसोईघर के बाहर कई लोग आ जुटे। रामू लज्जित हो उठा। मेहमानों के सामने उसे ऐसी बात तो कभी नहीं सुननी पड़ी थी। कुछ देर तक सिर झुकाए चुप खड़ा रहा, फिर आँधी की तरह बाहर निकल गया। काफी समय बीतने पर भी वह नजर नहीं आया। घर में चर्चा होने लगी कि रामू कितना लापरवाह है। ऐसे नौकर से भला काम कैसे चल सकता है।
दोपहर
के बाद बाबूजी घर लौटे। वह सुबह-सुबह कहीं काम से चले गए थे। आते ही उन्हें रामू की करतूत पता चली। उन्हें पता चल गया कि अब वह मेहमानों के साथ खीर का स्वाद नहीं ले सकेंगे।
शांता
देवी ने रमेश दत्त से कहा, “रामू बहुत लापरवाह हो गया है। वह समझता है, उसके बिना हमारा काम नहीं चलेगा इसीलिए लापरवाही करने लगा है। आज इतने सारे दूध का नुकसान कर दिया। इससे पहले भी कई कीमती चीजें तोड़ चुका है। किसी दूसरे नौकर को रखना होगा।”
रमेश दत्त ने कहा, “ठीक है, पर वह है कहाँ? उसे बुलाओ तो सही। उसकी बात सुनकर ही तो कोई फैसला करूँगा।”
शांता
देवी ने क्रोध से कहा, “वह क्या कहेगा? यही न, माफ कर दीजिए गलती हो गई। ऐसा तो वह न जाने कितनी बार कह चुका है। ऐसे लापरवाह नौकर को घर में रखना ठीक नहीं।”
“ठीक है।” रमेश दत्त ने कहा।
सारा दिन रामू घर से गायब रहा। शाम को एक बच्चे ने खबर दी, “रामू घर के सामने वाले पार्क में बैठा है।”
“उसे बुला लाओ, मेरा नाम लोगे तो झट आ जाएगा।” रमेश दत्त बोले।
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रामू तुरंत चला आया। उसे देखते ही पूरा घर आ जुटा। सब कहने लगे, “कहाँ चला गया था इस तरह बिना कहे। यह तो अच्छी बात नहीं। एक तो दूध का नुकसान कर दिया ऊपर से नाराजगी का नाटक कर रहा है, ताकि बाबूजी कुछ न कहें।”
रामू सिर झुकाए खड़ा था। शांता देवी ने कहा, “रामू, अब इस घर में तुमसे काम चलने वाला नहीं। तुम दूध गैस पर रखकर मजे से खर्राटे लेने लगे और सारा दूध निकलकर नाली में बह गया।”
“जी, मैं...” रामू ने कहना चाहा।
रमेश दत्त ने कहा, “तो तुम दिन में सो रहे थे। काम के बीच रसोई में सो रहे थे। यह तो गलत बात है। ऐसे कैसे चलेगा। दिन में नींद आती है तो रात में क्या करते हो?”
रामू चुप रहा। शांता देवी बोली, “हाँ, बताओ?”
“दिन में और कौन-कौन सोता है?” रमेश दत्त ने सबसे सवाल किया।
“कोई भी नहीं।” जवाब आया।
“तो फिर रामू ही क्यों दिन में सो रहा था? क्या यह रात में नहीं सोता?”
“जी, इधर रात में काम खत्म करते-करते बारह बज ही जाते हैं। सोने में दो बजते हैं।” रामू ने जवाब दिया।
“और सुबह कितने बजे उठते हो।”
“जी, साढ़े पाँच बजे...”
सब खामोशी से दोनों की बातें सुन रहे थे। “इसका मतलब यही हुआ कि तुम रात की अधूरी नींद दिन में पूरी कर रहे थे। रात की अधूरी नींद दिन में तुम्हारी आँखों में घुस गई और तुम सो गए। उधर दूध निकलकर नाली में बह गया। जाओ, तुम ऊपर छत पर बने कमरे में जाकर अधूरी नींद को पूरी होने दो। उसके बाद मैं कल सुबह तुम्हारा हिसाब करूँगा।” रमेश दत्त ने कहा।
रामू कुछ देर चुपचाप खड़ा रहा, फिर धीरे-धीरे सीढ़ी चढ़कर छत पर चला गया। उसके जाते ही शांता देवी ने रमेश दत्त से कहा, “यह क्या! आपने तो उसे
डांटने के बजाए, आराम से सोने के लिए भेज दिया। उसे नौकरी से निकाले बिना काम नहीं चलेगा।”
3
रमेश दत्त ने हँसकर कहा, “देखो कसूर रामू का नहीं, नींद का है। वह सुबह मुँह अँधेरे से जो काम में लगता है तो आधी रात के बाद ही उसे फुरसत होती है। दूध गैस पर उबलने के लिए रखकर रामू जो बैठा तो बस नींद आ गई, क्योंकि कई रातों से नींद पूरी नहीं हुई थी। तो असली कसूर नींद का हुआ या रामू का?”
“लेकिन...” शांता देवी ने कहना चाहा।
“लेकिन वेकिन कुछ नहीं। जब किसी इंसान की नींद रात में पूरी नहीं होगी तो वह दिन में सोएगा। रामू के साथ भी यही हुआ। वह काफी दिनों से सुबह जल्दी उठकर रात को देर से सोता है। क्या यह सच नहीं।”
“हाँ, बात तो ठीक है, पर शादी के कारण काम ज्यादा था, इसीलिए ऐसा हुआ।” शांता देवी ने कहा।
“यहीं तो मैं भी कह रहा हूँ, रात को पूरी नींद न सो पाने के कारण ही ऐसा हुआ। क्या इसे हम रामू का कसूर मान सकते हैं?” रमेश दत्त ने पूछा।
“यह बात तो मैंने सोची ही नहीं थी।” शांता देवी बोलीं।
“और तुमने उसे नौकरी से निकालने की बात कह दी। नौकर होने के साथ-साथ वह मनुष्य भी तो है। और मैं घर का मालिक होने के साथ इंसान भी हूँ। इसीलिए मेरा फैसला है- दोष अधूरी नींद का है तो सजा रामू को नहीं मिलनी चाहिए।”
रामू ऊपर सोता रहा, रमेश दत्त ने सबसे कह दिया कि उसे कोई न जगाए। अगली सुबह रामू छत से नीचे आया तो उसके चेहरे पर ताजगी थी। रसोईघर में दूध से भरा भगोना गैस पर रखा था उबलने के लिए।
शांता
देवी ने कहा, “रामू, आज खीर बनेगी। जल्दी से आ जाओ।” उन्होंने बीते कल की बात का कोई जिक्र नहीं किया। रामू हाथ धोकर रसोई में आ गया। उस दिन उसे नींद ने नहीं घेरा क्योंकि अधूरी नींद पूरी हो गई थी। उसने बढ़िया खीर बनाई। मेहमानों ने जमकर खाई और रामू की खूब तारीफ हुई। उसके बाद फिर कभी ऐसा नहीं हुआ कि रामू को दिन में इस तरह नींद ने परेशान किया हो। अब उससे किसी को कोई शिकायत नहीं थी।( समाप्त)
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