Friday 1 November 2019

नहीं चाहिये खजाना--कहानी --देवेन्द्र कुमार


नहीं चाहिए खजाना—कहानी—देवेन्द्र कुमार

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समुद्र के तट पर बसा था मछुआरों का एक गाँव। वहाँ का मुखिया था भोलू। उसके बेटे का नाम था मोती। मछुआरे अपनी नौकाएँ लेकर समुद्र में मछलियाँ पकड़ने निकल जाते। बच्चे लहरों द्वारा रेत पर छोड़े गए शंख और सीपियों को इकट्ठा करते हुए घूमते।
एक शाम मोती अपने दोस्त के साथ तट पर सीपियों की खोज में घूम रहा था, तभी मछुआरे मछलियाँ पकड़कर लौट आए।
भोलू ने दूर से ही पुकारा, “मोती।
आवाज सुनकर मोती ने जमा की हुई सीपियाँ रेत पर ही छोड़ दीं और दौड़ता हुआ पिता के पास जा पहुँचा।
मछुआरों की टोली बस्ती में पहुँची तो घरों में चूल्हे जल चुके थे। छप्परों के ऊपर नीला-नीला धुआँ उठ रहा था। उसके साथ पकते हुए भोजन की सुगंध भी थी। उधर सूरज का लाल गोला समुद्र में डूबता जा रहा था।
रात को चारपाई पर लेटे-लेटे मोती को अपनी सीपियाँ याद आईं। उसे बहुत पछतावा हुआ। सोचने लगा, अब तो सीपियाँ शायद ही मिलें। लहरें बहा ले गई होंगी। कितनी सुंदर थीं सीपियाँ। एक बार चलकर देखने में क्या हर्ज है, शायद मिल ही जाएँ। माँ और बापू तो सो रहे हैं। यही सोचता हुआ मोती घर से बाहर निकल आया। कहीं कोई नहीं था। सब तरफ हल्की चाँदनी बिखरी हुई थी। सन्नाटे को तोड़ती हुई लहरें किनारे से टकरा-टकराकर शोर कर रही थीं। मोती को कुछ डर लगा, पर सीपियों का आकर्षण उसे तट की ओर खींचे लिए जा रहा था।
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सीपियाँ रेत पर वैसी ही पड़ी थीं, जैसी वह छोड़ गया था। मोती ने झट से सीपियाँ उठा लीं। वह मुड़कर चलने को हुआ, पर कोई आवाज सुनकर ठिठकगया                                एक नाव किनारे की ओर बढ़ रही थी। नाव रुकी। उसमें से तीन आदमी उतरे और एक तरफ बढ़ चले। वे गाँव से दूसरी दिशा में जा रहे थे, जहाँ ऊबड़-खाबड़ चट्टानें और झाड़ियाँ थीं। उन तीनों ने एक संदूक उठा रखा था।
मोती उन्हें देखता रहा। वह जानना चाहता था कि खिर वे अजनबी कौन थे। छिपता-छिपता वह उनके पीछे-पीछे चल दिया।
तभी उसने एक आवाज सुनी, “किसी को पता भी नहीं चलेगा कि सोना हमने यहाँ छिपाया है।मोती को समझते देर लगी कि वे तीनों डाकू थे और लूट का माल छिपाने के लिए वहाँ आए थे। उसने अपने पिता से समुद्री डाकुओं की अनेक कहानियाँ सुन रखी थीं।
आगे घनी झाड़ियाँ थीं। वहीं जाकर उन तीनों ने संदूक रखा और जमीन खोदने लगे। मोती छिपकर उन्हें देखता रहा। पर उसे डर भी लग रहा था, “अगर इन्होंने मुझे पकड़ लिया तो?” झाड़ियों के कारण वह साफ-साफ देख भी नहीं पा रहा था। क्योंकि वे तीनों झाड़ियों में बहुत अंदर चले गए थे। कुछ देर बाद वे तीनों झाड़ियों से बाहर निकले तो उनके हाथ खाली थे, उन्होंने संदूक को कहीं छिपा दिया था।
इसके बाद डाकू नाव में बैठकर चले गए। मोती उनकी नाव को समुद्र में दूर जाते देखता रहा। फिर हैरान-परेशान-सा वापस लौट आया। अम्मा-बापू अब भी गहरी नींद में डूबे थे। मोती भी चारपाई पर जा लेटा, पर उसे नींद नहीं रही थी। कुछ देर पहले की घटना बार-बार आँखों में घूम रही थी। फिर जाने कब वह सो गया।
सुबह उठते ही उसने पिता को रात वाली घटना बता दी। भोलू हँसकर बोला, “मोती, तुमने सपना देखा होगा। उसी को सच समझ बैठे।
मोती ने कहा, “नहीं बापू, सपना नहीं सच कह रहा हूँ। मैंने अपनी आँखों से उन तीनों को संदूक झाड़ियों में ले जाते देखा था। आप मेरे साथ खोजें तो
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 खजाना आपको मिल सकता है।भोलू मना करता रहा पर मोती पिता को उस जगह ले ही गया।
                                                    
मोती पिता को पहले वहाँ ले गया जहाँ नौका आकर रुकी थी। वहाँ रेत गीली थी। उस पर कई जूतों के निशान साफ दिखाई दे रहे थे। अब तो मोती की बात भोलू को भी सच लगने लगी। वे दोनों गीली रेत पर जूतों के निशान देखते हुए बढ़ चले। एक जगह निशान खत्म हो गए थे, पर मोती ने हिम्मत हारी। वह अनुमान से पिता को लेकर बढ़ता रहा।
एकाएक भोलू रुक गया। रेत पर एक चमचमाता सिक्का पड़ा था। पास में ही दो सिक्के और मिले। अब भोलू को मोती की बात सच होने का विश्वास हो गया। वह सोच रहा था, “जरूर ये सिक्के डाकुओं के संदूक से गिरे होंगे। वरना गरीब मछुआरों के गाँव में सोने के सिक्के कहाँ से आए।
भोलू ने झाड़ियों के अंदर वाली जगह में अनुमान से एक जगह पर खुदाई की। मोती ने भी इस काम में पिता का हाथ बँटाया, पर खुदाई में कुछ निकला। शाम तक भोलू ने कई जगह खुदाई की पर कहीं कुछ मिला। शाम को दोनों बाप-बेटा घर लौटे तो बहुत थके हुए थे, फिर भी मन में एक अजीब-सी खुशी थी। भोलू को खजाना मिलने का पूरा भरोसा हो गया था।
उस दिन के बाद से भोलू ने मछली पकड़ने का काम बंद कर दिया। भोलू और मोती सुबह मुँह अँधेरे निकल जाते और रात में लौटते। कई दिन ऐसे ही होता रहा तो भोलू के साथियों ने पूछताछ की। भोलू ने कुछ बताया, पर मोती छिपा सका। उसने अपने एक मित्र को उस रात वाली पूरी घटना बता दी।
अगले दिन भोलू और मोती खजाने वाले संदूक की खोज में खुदाई करने पहुँचे तो चौंक उठे। बस्ती के कई लोग वहाँ पहले से ही खुदाई में लगे हुए थे। भोलू को देखकर एक गाँव वाले ने कहा, “भोलू भाई, हमें भी खजाने के बारे में पता चल गया है। इसमें हमारा भी तो हिस्सा है। लेकिन तुम तो अकेले ही चुपचाप सारा खजाना हथियाना चाहते थे।
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अब मोती को महसूस हुआ कि उसने दोस्त को बताकर गलती की। पर अब क्या हो सकता था। भोलू कुछ देर चुपचाप वहाँ खड़ा रहा, फिर मोती को लेकर लौट आया।
दूसरे दिन गाँव से कोई भी मछली पकड़ने नहीं गया। सुबह होते ही सब कुदालें-फावड़े लेकर खुदाई में जुट गए। भोलू ने जाकर देखा सभी गाँव वाले तेजी
                                                              
से जमीन की खुदाई में लगे हैं। भोलू को देखकर सब हँसने लगे। बोले, “भोलू, तुम हमसे पहले यहाँ कई दिन तक खुदाई कर चुके हो। अब हमें भी भाग्य आजमाने दो।
भोलू चुपचाप लौट आया। उस दिन खजाने की बात पर गाँव वाले आपस में लड़ पड़े। कई लोग घायल हो गए। पर अब तक सोने के सिक्कों वाला संदूक किसी को नहीं मिला था। मछुआरों ने मछली पकड़ने का काम बंद कर दिया। अब तो हर गाँव वाला खजाने की खोज में जमीन खोदने में जुटा रहता था। जगह-जगह गड्ढे दिखाई देने लगे। बस्ती के लोग पहले हेल-मेल से रहते थे। अब तो हर रोज झगड़ा होने लगा।
भोलू ने उस ओर जाना बंद कर दिया। वह सारा दिन अकेला बैठता सोचता रहता। कभी-कभी समुद्र की ओर निकल जाता। वहाँ नौकाएँ बेकार खड़ी थीं। मोती की समझ में कुछ नहीं रहा था। एक दिन उसने भोलू से कहा, “बापू, आप खजाने की तलाश क्यों नहीं करते? अगर डाकुओं का खजाने का संदूक किसी दूसरे के हाथ लग गया तो क्या होगा।भोलू मुस्कराने लगा, पर बोला कुछ नहीं। उस शाम भोलू ने गाँव वालों को चौपाल में बुलाया। शाम को सभी वहाँ जमा हो गए। भोलू ने देखा कि कई लोगों के बदन पर चोट के निशान थे, पट्टियाँ बँधी थीं। उसने हाथ जोड़कर कहा, “मैं आप सबसे क्षमा माँगना चाहता हूँ।
किस बात की माफी‌” सब पूछने लगे।
भोलू ने मोती का हाथ पकड़कर बीच में खड़ा कर दिया। बोला, “मैं इसकी शैतानी पर शर्मिंदा हूँ। खजाने की मनगढंत कहानी सुनाकर इसने हम सबको खूब मूर्ख बनाया। आज जब मैंने इससे पूछा तो इसने अपनी गलती मान ली।
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सब गाँव वाले मोती को खरी-खोटी सुनाने लगे। पर मोती को तो अपने कानों पर ही भरोसा नहीं हो रहा था। उसने तो पिता से सच ही कहा था। फिर पिता सबके सामने उसे झूठा क्यों कह रहे हैं? उसने आश्चर्य से पिता की ओर देखा। वह कुछ कहने को हुआ, पर भोलू ने हाथ के इशारे से उसे चुप रहने को कह दिया।
                                      
तभी एक गाँव वाला बोला, “भोलू, कहीं ऐसा तो नहीं कि ये बातें तुम हमारा ध्यान खजाने की तरफ से हटाने के लिए कह रहे हो!”
भोलू ने कहा, “ऐसी कोई बात नहीं। मैं तो हरदम आप सबके साथ ही रहता हूँ। मैं वादा करता हूँ, आज के बाद कभी उस तरफ खुदाई करने नहीं जाऊँग। और हाँ, कल सुबह हम सब मछलियाँ पकड़ने चलेंगे।
सब चौपाल से चले गए। भोलू और मोती भी चल दिए। रास्ते में मोती ने पूछा, “बापू, मैंने आपसे कब कहा था कि खजाने वाली बात झूठ है।
हाँ, मैं जानता हूँ कि खजाने की बात सच है।भोलू ने कहा।
तब फिर आपने सबके सामने मुझे झूठा क्या कहा?” कहकर मोती रोने लगा।
भोलू ने बेटे की पीठ थपथपा दी। बोला, “बेटा, तुम देख रहे हो कि अभी खजाना मिला नहीं है पर सब गाँव वाले आपस में झगड़ने लगे हैं। मान लो अगर खजाना मिल जाए तो क्या सब एक-दूसरे की जान के दुश्मन नहीं हो जाएँगे।
मोती ध्यान से पिता की बात सुन रहा था। भोलू ने आगे कहा, “इस घटना से पहले हम सबका जीवन कितने सुख से बीत रहा था। गरीबी में हम रूखा-सूखा खाते थे, कड़ी मेहनत करते थे पर आपस में कितने प्यार से रहते थे। ऐसा खजाना भला किस काम का जो दोस्तों को आपस में दुश्मन बना दे।
मोती कुछ देर चुप खड़ा रहा। वह पिता की बात समझ गया। बोला, “बापू, तुमने ठीक कहा। हमें ऐसा खजाना एकदम नहीं चाहिए।
अगली सुबह गाँव के पुरुष पहले की तरह नावों में मछलियाँ पकड़ने चल दिए। वे हँस रहे थे। भोलू खुश था।(समाप्त)

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