Sunday 10 November 2019

कटी हुई मुस्कान-कहानी-देवेन्द्र कुमार


कटी हुई मुस्कानकहानी—देवेन्द्र कुमार
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होठों की मुस्कान को कोई कैसे काट सकता है! लेकिन जब ऐसा होता है तो....
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  सब तालियाँ बजा रहे हैं। आज बैंक मैनेजर रमन का जन्म दिन है। सब केक का आनंद ले चुके हैं, लेकिन नरेश उदास है, उसने केक भी नहीं खाया है,एक कोने में छिपा कर रख दिया है। रह रह कर उसकी नज़र रमन  की कुर्सी के पीछे दीवार पर लगे पोस्टर पर टिक जाती है, मन में जैसे कुछ होने लगता है। उस बड़े से पोस्टर में एक हंसती हुई बच्ची को दिखाया गया है। रोज बैंक में आते ही नरेश कुछ देर हंसती हुई लड़की के पोस्टर के सामने खड़े रह कर, एकटक उसे निहारता रहता है, और मन जैसे उड़ कर गाँव में अपनी माँ के साथ रहती बेटी मुनिया के पास पहुँच जाता है। उसे लगता है पोस्टर में दिखाई देती लड़की उसकी मुनिया ही है। वह मुनिया और उसकी माँ को दिल्ली लाकर अपने साथ रखना चाहता है लेकिन... उसे मालूम है कि यह बहुत ही मुश्किल है।
लेकिन आज पोस्टर देख कर उसे धक्का लगा, उसने देखा कि लड़की के हँसते हुए होंठों के ठीक ऊपर फिटिंग के काम आने वाली फट्टी ठोक कर उस पर बिजली का तार लगा दिया गया है।
इसकी वजह से बच्ची की मुस्कान जैसे दो हिस्सों में कट गई थी। बैंक में बिजली की फिटिंग दीपक मिस्त्री करता है। बिजली की फिटिंग लड़की के चेहरे को बचा कर भी की जा सकती थी। नरेश और दीपक गहरे दोस्त हैं, लेकिन दीपक ने नरेश के मन पर गहरी चोट की है। इसके लिए वह दीपक को कभी माफ़ नहीं करेगा। पूरे दिन उसने दीपक से बात नहीं की। दोपहर का भोजन दोनों साथ साथ करते हैं, लेकिन नरेश उस समय कहीं चला गया। दीपक भी महसूस कर रहा है कि नरेश का मूड ठीक नहीं है, लेकिन उसका कारण भला वह कैसे जान सकता था।
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शाम के समय दीपक ने पूछ ही लिया। नरेश ने दुखी स्वर में कहा—‘’यह तुमने क्या कर डाला।’’ अब दीपक ने पोस्टर की ओर देखा तो समझ गया कि सचमुच उससे गलती हो गई। बच्चीकी  हंसी दो हिस्सों में कट गई थी और बहुत बुरी लग रही थी। बोला—‘’मुझे आज पता चला कि हंसती हुई लड़की का पोस्टर तुम्हें इतना पसंद है। लेकिन ऐसे पोस्टर तो बाज़ार में आसानी से ख़रीदे जा सकते हैं, मैं अभी तुम्हें बाज़ार ले चलता हूँ। वहां हँसते-खिलखिलाते बच्चों के एक से एक सुंदर पोस्टर मिल जायेगे, जो चाहो ले लेना। और हाँ बच्ची का पोस्टर मेरी गलती से ख़राब हुआ है, तो तुम्हारी पसंद के पोस्टर के दाम मैं अपनी जेब से दूंगा। अब तो गुस्सा छोड़ दो मेरे दोस्त।’’
  लेकिन नरेश की उदासी कम न हुई। दीपक को क्या पता कि हंसती हुई लड़की में वह अपनी बेटी मुनिया का अक्स देखता था। जब दीपक ने  कई बार बाज़ार चलने के लिए कहा तो उसने अपने मन की पीड़ा उसे बता ही दी। आज से पहले इस बारे में नरेश ने किसी से कुछ नहीं कहा था, लेकिन  मजबूरन बताना ही पड़ा। नरेश सोच रहा था कि कहीं दीपक उसकी हंसी न उड़ाने लगे।
  लेकिन वैसा कुछ न हुआ। दीपक नरेश के मन की पीड़ा को तुरंत समझ गया। दीपक भाग्यशाली था कि अपने परिवार के साथ रहता था। उसने नरेश का हाथ थाम लिया। बोला—‘’ माफ़ करना दोस्त, सचमुच मैंने तुम्हारे मन को गहरी चोट पहुंचाई है। मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि अपनी भूल को कैसे ठीक करूं।’’ नरेश चुप खड़ा था। क्या कहता बेचारा।
  उस रात नरेश सो नहीं पाया। वह तीन लोगों के साथ एक कमरे में रहता था। उसके तीनों साथी समझ गए कि नरेश किसी बात पर गहरी परेशानी में है। अगली सुबह नरेश बैंक गया तो हर दिन की तरह उसने हंसती हुई लड़की के पोस्टर की ओर देखा और फिर झट आँखें फिरा लीं। वह उस ओर  देखने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था। आखिर क्या कर सकता था नरेश। कुछ सोच कर वह रमन के पास गया। बोला—‘’सर,इसके ऊपर बिजली की फिटिंग होने के कारण यह पोस्टर खराब हो गया है, देखने में बुरा लगता है।’’ रमन ने घूम कर पीछे देखा तो उसे नरेश की बात ठीक लगी। उसने कहा—‘’बात तो तुम ठीक कह रहे हो। इसे हटा कर फेंक दो और बाज़ार से नया सुंदर पोस्टर ले आओ।’’
 नरेश ने तुरंत पोस्टर को हटा दिया, पर फेंका नहीं। शाम को छुट्टी के बाद पोस्टर को कमरे पर ले गया। दीपक उसके साथ था। दोनों ने मिल कर सावधानी से उसे दीवार पर लगा दिया। बिजली की फट्टी के कारण पोस्टर दो हिस्सों में कट गया था। सावधानी से लगाने के बावजूद बदनुमा जोड़ साफ़ दिखाई दे रहा था।                                  2
 दीपक ने कहा—‘’दोस्त, मेरे मन में एक विचार आया है। इस बारे में मैं कल बताऊंगा।’’ कह कर वह चला गया। उस रात भी नरेश सो नहीं पाया, यही सोचता रहा –आखिर दीपक कल क्या बताने वाला है।
  अगले दिन रविवार था। दीपक सुबह जल्दी चला आया। उसके साथ एक व्यक्ति और था। दीपक ने परिचय कराया। कहा—‘’ ये मेरे मित्र अविनाश हैं,एक स्कूल में बच्चों को ड्राइंग सिखाते हैं। बहुत अच्छी पेंटिंग बनाते हैं। मैंने इन्हें तुम्हारी परेशानी के बारे में सब कुछ बता दिया है। इस बारे में यह जरूर हमारी मदद कर सकते हैं।’’
   अविनाश कुछ देर तक पोस्टर के सामने खड़े होकर देखते रहे। फिर अपने झोले से कई ब्रश और रंगों का डिब्बा निकाल लिया। फिर पोस्टर के दो भागों के बीच के जोड़ को  रंग और ब्रश से संवारने  लगे। नरेश और दीपक एकटक उन्हें काम करते देखते रहे। जब उन्होंने काम पूरा किया तो बच्ची की हंसी अब पहले की तुलना में ठीक लग रही थी, लेकिन बीच की कटी फटी, टेढ़ी मेढ़ी रेखा अब भी साफ़ देखी जा सकती थी। अविनाश ने कहा—‘’में इससे ज्यादा इसे नहीं सुधार सकता। लेकिन एक काम हो सकता है।’’
  ‘’क्या काम?’’—नरेश और दीपक ने एक स्वर में पूछा।
 अविनाश बोले—‘’ मैं इस पोस्टर को देख कर इस लड़की की एक पेंटिंग बना सकता हूँ। वह इस पोस्टर जितनी बड़ी तो नहीं होगी, पर पोस्टर वाली लडकी की हंसी और उसके चेहरे के अन्य भाव पेंटिंग में पूरी तरह दिखाई देंगे। ’'
    ‘’ यह तो बहुत अच्छा होगा।’’--नरेश ने कहा।
     ‘’लेकिन पेंटिंग पूरी होने में कई दिन लग सकते हैं। मैं हर दिन स्कूल के बाद शाम के समय आकर पेंटिंग पूरी कर सकता हूँ।’’—अविनाश ने कहा।
     ‘’तब तो इसमें आपका काफी समय नष्ट होगा।’’—नरेश ने सकुचाते हुए कहा।
     ‘’ नहीं पेंटिंग बना कर मुझे अच्छा लगेगा, जानते हो दीपक ने मुझे तुम्हारे परिवार के बारे में  सब बता दिया है।’’                
  कमरे में मौन छा गया। अविनाश पोस्टर के  सामने बैठ कर पेंटिंग बनाने लगे। कुछ देर बाद उन्होंने नरेश से पूछा—‘’तुम्हारे पास बेटी मुनिया का फोटो तो होगा।’’
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नरेश ने मुनिया के कई फोटो अविनाश के सामने रख दिए। वह समझ नहीं पाया कि अविनाश ने पेंटिंग बनाते हुए बीच में हाथ रोक कर मुनिया के फोटो क्यों मांगे थे। लेकिन वह पूछ पाता, इससे पहले ही अविनाश ने कहा—‘’ देखो नरेश, पोस्टर वाली बच्ची के बारे में हम कुछ नहीं जानते,पर मुनिया तो हमारी अपनी है। मेरे मन में यह विचार आया है कि इस अनजान चेहरे में मुनिया को उसकी हंसी और उसके भोले हाव भाव के साथ शामिल किया जा सकता है। तब तुम्हे पोस्टर की अनजान लड़की के चेहरे में अपनी मुनिया की छवि नहीं खोजनी पड़ेगी।’’
अविनाश की बात सुन कर नरेश का मन खुशी से उछल पड़ा। क्या सच ऐसा चमत्कार हो सकता है! उसे विश्वास नहीं हो रहा था। लेकिन अविनाश की उँगलियाँ ब्रश और रंगों से मुनिया का मुस्कराता चेहरा उभारने का चमत्कार कर रही थीं, कई दिन की मेहनत के बाद मुनिया की पेंटिंग पूरी हुई। नरेश अपलक ताकता रह गया। मुनिया के होंठों पर पोस्टर वाली लड़की की मुस्कान हंस रही थी। नरेश ने भावुक होकर अविनाश के पैर छूने को हाथ बढ़ाये पर अविनाश ने उसके हाथ थाम लिए। बोले—यह् सब करने की जरूरत नहीं। अगर इस पेंटिंग से तुम्हारा मन शांत हो सके तो मैं अपनी कला को सार्थक मानूंगा।’’                 
अगली सुबह नरेश पेंटिंग लेकर रमन के पास गया। रमन ने कहा –‘’अद्भुत, अनुपम कलाकृति—इसे तुरंत पुराने पोस्टर के स्थान पर लगा दो।’’ मुनिया की पेंटिंग लगा दी गई। हर कोई कलाकार की तारीफ़ कर रहा था। सबसे ज्यादा खुश था नरेश। सबके लिए मुनिया का चेहरा भी पोस्टर वाली लड़की की तरह अनजान था। लेकिन नरेश जब जब पेटिंग की तरफ देखता तो उसे लगता जैसे मुनिया ठीक उसके सामने खड़ी हंस रही हो। उसके जीवन की सबसे बड़ी ख़ुशी मिल गई थी। (समाप्त)    
         

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