Tuesday 3 December 2019

पुराना दोस्त--कहानी--देवेन्द्र कुमार


 पुराना दोस्त—कहानी—देवेन्द्र कुमार

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दीवाली पर घर की सफाई चल रही थी। निशीथ काम में मम्मी-पापा का हाथ बँटा रहा था। स्कूल की छुट्टी थी। बाबा भी अपनी पुरानी चीजें देखभाल रहे थे। घर की काफी पुरानी चीजें बाहर निकाली जा चुकी थीं। जब भी कोई पुरानी चीज बाहर निकाली जाती तो बाबा कह देते, ‘उसे मत छुओ, अभी रखी रहने दो! फिर बताने लगते--कौन-सी चीज कितनी पुरानी थी और बातों-बातों में बाबा सबको अपने बचपन में ले जाते। अक्सर ही वह सबको अपने बाबा-दादी की बातें बताकर हँसाया करते थे। पर निशीथ ने कई बार देखा था कि हँसते हुए बाबा की आँखों से आँसू टपक पड़ते थे।
इसी बीच निशीथ बाबा के कमरे में रखा पुराना छाता बाहर निकाल लाया। छाता बहुत मुश्किल  से खोला जा सका। उसकी हालत देखकर निशीथ, उसकी मम्मी और पापा खूब हँसे। बाबा भी हँसने लगे, क्योंकि बात ही हँसने की थी। छाते पर लगे काले कपड़े में जगह-जगह छेद थे। बाबा ने कहा, “तुम लोगों ने ऐसा छाता इससे पहले कभी नहीं देखा होगा।
सबने कहा, “हाँ।
जिसमें जगह-जगह गोल-गोल खिड़कियाँ हों धूप और हवा आने के लिए।बाबा बोले और खूब जोर से हँस पड़े।
निशीथ ने कहा, “बाबा, इस गोल खिड़कियों वाले छाते को अब घर से गोल करना पड़ेगा।और वह बाबा के पुराने छाते को बाहर फेंकने के लिए चल दिया।
बाबा चिल्ला उठे, “अरे क्या हर पुरानी चीज को फेंक देगा। नहीं, नहीं, ठहर जा, छाते को मत फेंक। मेरे दिमाग में एक बात है। पर पहले छाता इधर ला।
पुराने छाते के लिए बाबा की बेचैनी देखकर निशीथ के पापा जोर से हँसे। उन्होंने कहा, “पिताजी, आप तो छाते के लिए इस तरह बेचैन हो रहे हैं जैसे वह आपका कोई पुराना दोस्त हो।
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तुमने एकदम ठीक कहा, यह छाता मुझे बहुत प्रिय है। किसी ने मुझे उपहार में दिया था। बहुत पुरानी बात है। तब मैं निशीथ से थोड़ा ही बड़ा था। मैं कहीं से घर रहा था तो बारिश होने लगी। धीरे-धीरे बारिश बहुत तेज हो गई। एक जगह ठहरकर बारिश रुकने का इंतजार करने लगा, पर बारिश तो रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी। उल्टे उसकी तेजी ज्यादा ही बढ़ती जा रही थी। सड़क पर भी पानी भर गया था। मैं सोच रहा था घर पर माँ चिंता कर रही होंगी। उन्हें कैसे खबर दूँ। तब आजकल की तरह हरेक के हाथ में मोबाइल तो होते नहीं थे। तभी एक आदमी मेरे पास आया। उसने मुझसे कहा, ‘बच्चे, यह बारिश जल्दी नहीं रुकेगी और तुम पहले ही काफी भीग चुके हो। यह कहते हुए उसने एक छाता मेरे हाथ में थमा दिया। बोला, ‘जाओ, अब आराम से घर चले जाओ।
लेकिन मैं कुछ कह सका क्योंकि मेरे हाथ में छाता थमाकर वह आदमी बारिश में कहाँ चला गया कुछ पता चला। मैं काफी देर तक वहाँ खड़ा इधर-उधर देखता रहा कि वह अजनबी मिल जाए तो उसका छाता उसे वापस कर दूँ। पर वह मुझे कहीं नजर नहीं आया। और उस दिन क्या, बाद में भी वह आदमी मुझे कभी दिखाई नहीं दिया। तब से मैं इस छाते को सदा अपने पास रखता हूँ। यह मुझे एक ऐसे आदमी की याद दिलाता है जो जाने क्यों मुझे अपना छाता देकर खुद भीगता हुआ चला गया था।
निशीथ और उसके मम्मी-पापा समझ गए कि यह छाता चाहे एकदम ही टूट क्यों जाए, बाबा इसे  कभी अपने से दूर नहीं करेंगे।
निशीथ ने कहा, “बाबा, आप इस छाते को सँभालकर रखिए, पर प्लीज इसे बारिश में लेकर मत निकलिए, पता नहीं देखने वाले क्या सोचेंगे।तभी निशीथ के पापा ने एक नया छाता उन्हें थमा दिया। बोले, “बारिश या धूप में आप नया छाता लेकर जाया करें।
निशीथ के बाबा देर तक नए छाते को देखते रहे, कुछ बोले नहीं।
उस दिन बाबा धूप में निकले तो निशीथ ने कहा, “बाबा, आप आज नया छाता लेकर जाइए।
बाबा ने नए छाते के साथ पुराना छाता भी हाथ में उठा लिया।
बाबा, दो छाते किसलिए?” निशीथ ने पूछा।
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ताकि बारिश और धूप दोनों से बचाव हो सके।बाबा हँसकर बोले और बाहर चले गए। उन्होंने धूप से बचने के लिए नया छाता लगा लिया, पुराना छाता दूसरे हाथ में था। चलते-चलते सोच रहे थे, ‘नया छाता सिर पर है तो पुराना किसलिए? समय बदलता हे तो पुराने की जगह नया जाता है- लेकिन क्या पुराने को छोड़ना इतना आसान होता है?’
वह सड़क पर चले जा रहे थे तो एक बच्चे की आवाज कानों में पड़ी।वह रुककर इधर-उधर देखने लगे। सोच रहे थे, ‘इतनी कड़ी धूप में बच्चा कहाँ से आया।आवाज एकदम पास सुनाई दी थी। बाबा ने देखा एक औरत फुटपाथ पर बैठी कपड़े प्रेस कर रही थी। उसका मुँह पसीने से भीगा हुआ था, पास ही एक झाड़ी की ओट में जमीन पर बिछे कपड़े पर एक नन्हा-मुन्ना लेटा हुआ हाथ-पैर चला रहा था। औरत प्रेस करते-करते झाड़ी की ओट में लेटे बच्चे को बार-बार देख लेती थी। झाड़ी की पत्तियों से छनकर धूप की बिंदियाँ नन्हे बच्चे के बदन पर गिर रही थीं, वह गरमी से बेचैन था। बाबा कुछ पल खड़े-खड़े देखते रहे फिर अपना पुराना छाता खोलकर बच्चे के ऊपर लगा दिया। छाते के फटे हिस्सों से धूप बच्चे पर गिर तो रही थी पर पहले से बहुत कम।
बाबा छाता लगाकर सीधे खड़े हो गए। उन्होंने प्रेस करती हुई औरत की ओर देखा। वह हौले-से मुस्कराई जैसे उन्हें धन्यवाद दे रही हो। बाबा थोड़ा आगे बढ़ गए। मन में एक बहुत पुरानी तस्वीर कौंध गई। तेज बारिश में एक आदमी उन्हें छाता देकर जाने कहाँ चला गया था। उनकी नजर फिर छाते के नीचे लेटे हाथ-पैर चलाते बच्चे पर टिक गई। धूप के टुकड़े छाते के छेदों से होकर बच्चे पर गिर रहे थे।
बाबा फिर से बच्चे के पास जा पहुँचे। पुराना छाता हटाकर उसकी जगह नया छाता लगा दिया। अब बच्चे का पूरा शरीर छतरी की छाया में गया था। धूप बिलकुल नहीं पड़ रही थी उसके ऊपर। उन्होंने हौले-से बच्चे के गाल थपथपाए और आगे बढ़ चले। उन्होंने पुराना छाता खोल कर लगा लिया था। पीछे से प्रेस करने वाली औरत पुकार रही थी, “बाबूजी, बाबूजी आपका छाता... बाबूजी...” लेकिन बाबा रुके नहीं, बढ़ते चले गए।
सबसे पहले निशीथ ने बाबा को देखा जो पुराना छाता लगाए चले आ रहे थे। वह बोला, “बाबा, नए छाते का क्या हुआ जो यह पुराना छाता लगा रखा है?”
उस दिन झूठ बोलने में बाबा को जरा भी दिक्कत नहीं हुई। बोले, “अरे भाई, एक जगह पानी पीने के लिए रुका था। वहीं छाता एक तरफ टिका दिया था। बस फिर उठाना भूल गया। यह ध्यान देर में आया कि मैंने पुराना छाता सिर पर लगा रखा है। मैं लौटकर उस जगह गया भी, पर भला नए छाते को कौन छोड़ता है।
झूठ बोलते हुए बाबा मुस्करा रहे थे। आँखों में नए छाते की छाया में आराम से लेटे नन्हे बच्चे की छवि उभर रही थी।(समाप्त)

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