Monday 9 December 2019

आशीर्वाद तो दीजिये--कहानी--देवेन्द्र कुमार


==कहानी==

                            आशीर्वाद तो दीजिये
                           --देवेन्द्र कुमार

    रामदास थक गए थे।  सोसाइटी की लिफ्ट ऊपर कहीं अटकी हुई थी, इसलिए लिफ्ट के सामने वाली सीढ़ियों की पैडी पर बैठ गए।  तभी कानों में आवाज आई—‘ लीजिये पानी पीजिये। ’ रामदास चौंक गए,देखा—सामने एक बच्चा पानी का गिलास लिए खड़ा है।  सचमुच प्यास से गला सूख रहा था।  उन्होंने पानी पी लिया फिर पूछा--‘ तुम्हें कैसे पता कि मुझे प्यास लगी है!’
    ‘मुझे बाबा ने बताया’—वह बोला और थोड़ी दूर पर बने पार्क की ओर इशारा किया।  रामदास ने उधर देखा तो एक व्यक्ति पार्क की रेलिंग के पास खड़ा नज़र आया।  वह इसी तरफ देख रहा था। नजरें मिलते ही उसने हाथ हिला दिया। रामदास ने सोचा—इस बच्चे के बाबा से जरूर मिलना चाहिए।  उस तरफ बढ़ते हुए  उन्होंने बच्चे से पूछा--‘तुम्हारा नाम क्या है।‘
    —‘ मेरा नाम अमर है, मैंने आपकी प्यास बुझाई लेकिन आपने आशीर्वाद तो दिया ही नहीं। ’ उसने कहा तो रामदास ने उसका सिर सहला कर कहा -–‘ जिस पल तुमने मुझे पानी का गिलास थमाया था तब से तुम्हें आशीर्वाद ही तो दे रहा हूँ। ’ और ठठा कर हंस पड़े।  उन्हें अमर का व्यवहार कुछ विचित्र लग रहा था।  बोले—‘अच्छा काम करने वाले को आशीर्वाद अपने आप मिल जाता है, मांगना नहीं पड़ता।’
   वह पार्क में जाकर अमर के बाबा अविनाश से मिले।  रामदास कुछ पूछते इससे पहले ही अविनाश ने कह दिया— आप को आश्चर्य हो रहा होगा अमर के व्यवहार पर लेकिन... ’
    ‘लेकिन क्या!’ रामदास ने जानना चाहा।
    अविनाश ने बताया—‘ अमर की माँ आरती बहुत दिनों से बीमार चल रही है। इधर कई हफ्ते से अस्पताल में भर्ती है। इलाज लम्बा चलेगा।  माँ के अस्पताल जाने के बाद से अमर बहुत उदास रहने लगा था। बार बार माँ से मिलने की जिद करता था, लेकिन बच्चों का अस्पताल जाना मना है। सुबह नींद खुलते ही इसका सबसे पहला सवाल यही होता था कि माँ अस्पताल से कब वापस आएगी।बस यही रट लगाये रखता था, न ठीक से खाता, न दोस्तों के साथ खेलता!   
    ‘ लेकिन इसका इस तरह अनजान व्यक्ति को पानी पिलाना और फिर... ’
                                   1
     ‘और फिर आशीर्वाद माँगना—इसी बारे में पूछना चाहते हैं न आप’—अविनाश ने कहा—‘निश्चय ही आपको उसका व्यवहार विचित्र, अटपटा लगा होगा। ’
      रामदास ने हाँ में सिर हिला दिया।
     ‘अमर की उदासी से पूरा घर परेशान था।  हम सोचते रहते थे कि इसकी उदासी कैसे दूर की जाए। आखिर मुझे एक उपाय सूझ ही गया।’
      ‘कैसा उपाय।‘
      अविनाश ने अमर को अपनी गोद में भर लिया फिर कहा—‘जाओ खेलो।’ अविनाश उसके सामने रामदास से कुछ नहीं कहना चाहते थे। अमर झट पार्क में खेलते बच्चों की ओर दौड गया।
       ‘हाँ तो आपको कौन सा उपाय सूझ गया था।’ रामदास ने पूछा।
       अविनाश ने बच्चों के साथ खेलते अमर की ओर देखते हुए कहा—‘ कितने दिनों बाद मैं अमर को बच्चों के बीच खुश देख रहा हूँ।’ फिर बताने लगे— ‘हाँ तो एक सुबह जब अमर ने अपनी माँ के बारे में पूछा तो मुझे मौका मिल गया। मैंने कहा-‘अमर, तुम्हारी मम्मी की तबियत पहले से ठीक है,लेकिन अगर तुम चाहते हो कि वह और भी जल्दी  स्वस्थ होकर तुम्हारे पास आ जाये तो तुम्हें भी कुछ करना होगा।’
      ‘क्या?’—अमर ने पूछा था। ‘तब मैंने उसे समझाया कि उसे अपनी माँ के लिए आशीर्वाद इकट्ठे करने चाहिएं। इलाज और लोगों के आशीर्वाद मिल कर उसकी माँ को और भी जल्दी स्वस्थ कर देंगे। फिर मैंने बताया कि आजकल गर्मी का मौसम है। अगर वह प्यासे लोगों को पानी पिलाएगा तो वे उसे आशीर्वाद देंगे। बस तभी से मैं उसे लेकर शाम को पार्क में आ जाता हूँ। साथ में एक बड़े थर्मस में ठंडा पानी रहता है। वह घूम घूम कर लोगों को ठंडा पानी पिलाता है। पानी पीकर लोग कहते हैं—शाबाश बच्चे, खुश रहो, घर लौट कर मैं पूछता हूँ—‘आज कितने आशीर्वाद मिले?’ अमर कहता है कि  उसने चार लोगों को ठंडा पानी पिलाया। मैं कहता हूँ—‘वाह,तुमने चार आशीर्वाद इकट्ठे कर लिए अपनी माँ के लिए। देखना वह और भी जल्दी ठीक हो जाएगी। ’ सुन कर वह खुश हो जाता है। बस इस तरह अमर की उदासी दूर हो गयी। अब वह माँ की बीमारी के बारे में नहीं पूछता,  अपनी माँ के लिए आशीर्वाद इकट्ठे करने की धुन में रहता है।’   
      ‘वाह!  अमर की उदासी दूर करने की क्या खूब तरकीब निकली आपने। ’—कह कर रामदास हंस पड़े।
      अविनाश भी मुस्करा दिए।  बोले—‘ मैंने ही अमर को यह कहकर आपके पास भेजा था कि  पानी पिलाने के बाद आशीर्वाद लेना मत भूलना।’
                                               2 
               
     रामदास सारी बात समझ गए। उनकी आँखों के सामने अस्पताल के पलंग पर लेटी एक युवती का चित्र तैर गया—अमर की माँ। उन्होंने मन ही मन उसके शीघ्र स्वस्थ होने का आशीर्वाद दिया—एक बार नहीं कई बार। फिर अविनाश से बोले—‘‘मैं भी अमर की माँ को देखना चाहता हूँ। आपके साथ चल सकता हूं क्या।‘
      ‘आप क्यों तकलीफ़ करेंगे। आरती मेरा मतलब अमर की माँ पहले से काफी ठीक है। मुझे उम्मीद कि उसे कुछ ही दिन में अस्पताल से छुट्टी मिल जाएगी।’ फिर मिलने की बात कह कर रामदास लौट आये।  
       अगली शाम रामदास पार्क जा पहुंचे पर अविनाश और अमर नहीं दिखाई दिए। उन्होंने सोसाइटी के गार्ड से उनके फ़्लैट का पता लिया और जाकर दरवाजे की घंटी बजा दी। रामदास को देख कर अविनाश अचरज में पड़ गए। रामदास ने कहा –‘ अमर और आपको पार्क में नहीं देखा तो पता करने चला आया। मैं आज आपके साथ अस्पताल चलना चाहता था।‘
       ‘आज मैं अस्पताल नहीं जाऊंगा।  अमर की तबियत ठीक नहीं है। इसके पापा और दादी गए   हैं।‘ कहते हुए अविनाश उन्हें कमरे में ले गए। अमर पलंग पर लेटा था। उसकी आँखें बंद थीं।  रामदास पलंग के खड़े हुए कुछ देर उसकी ओर देखते रहे। फिर अविनाश के साथ बाहर आ गए।  उनसे कहा— ‘आजकल मौसम बहुत गरम है, बीमार माँ के लिए आशीर्वाद जुटाने के उत्साह में इसने बहुत भागदौड कर डाली है, इसीलिए ज्वर आ गया है। अब तो इसे देख भाल की जरूरत है।’
      ‘मैं भी यही सोच रहा हूँ। वैसे भी अब आरती की तबियत में काफी सुधार हो गया है। हो सकता है कि उसे जल्दी छुट्टी मिल जाए|’ तभी अमर की आवाज आई—‘ बाबा।’ अविनाश के साथ रामदास भी कमरे में चले गए। रामदास ने बढ़ कर अमर के सिर पर हाथ रख दिया—‘ तुम्हारा एक आशीर्वाद मेरे पास रह गया था, वही देने आया हूँ।’
      ‘तो क्या उस दिन आप आशीर्वाद देना भूल गए थे।’—अमर ने पूछा।
       ‘भूला नहीं था। तुम्हारी मम्मी के लिए तो आशीर्वाद उस दिन दे दिया था, तुम्हारे लिए आज देने आया हूँ। ’—रामदास ने हंस कर कहा।
      ‘पर आशीर्वाद मुझे दिखाई क्यों नहीं देता?’
                                      3  
       ’क्या तुम हवा को देख सकते हो?’
       ‘नहीं|’
       ‘और फूलों की सुगंध?’
       ‘वह भी नहीं दिखाई देती।’   
       ‘उसी तरह आशीर्वाद होता है। वह हमारे मन में रहता है। जब हम किसी के अच्छे काम से प्रसन्न हो कर उसे आशीर्वाद देते हैं तो वह तुरंत पाने वाले को मिल जाता है हवा और खुशबू की तरह।’—कह कर रामदास ने हौले से अमर के कपोल थपथपा दिए, फिर बाहर चले आए।
                अविनाश और रामदास हर शाम पार्क में मिलते रहे। अब अविनाश अमर को साथ नहीं लाते थे, क्योंकि मौसम अब भी बहुत गरम था। और फिर एक शाम अविनाश ने रामदास को बताया कि आरती को अस्पताल से छुट्टी मिल गई है। रामदास ने हंस कर कहा—‘आखिर अमर की मेहनत रंग ले आई।’ दोनों हंस पड़े।  अमर ने उन दोनों के बीच दोस्ती का पुल बना दिया था—पुल के एक छोर पर अमर था और दूसरे पर आशीर्वाद। ( समाप्त)     

No comments:

Post a Comment