Saturday 24 February 2018

एक दो तीन- देवेन्द्र कुमार-- बाल कहानी



एक दो तीन
                          ---देवेन्द्र कुमार

कुछ दिन पहले की एक सुबह,  मैं दरवाजे से बाहर निकलता इससे पहले ही नयन ने टोक दिया—‘’बाबा, आपके जूतों का मुंह बहुत मैला हो रहा है..’’ और मुस्कराने लगा. मैंने देखा सचमुच जूते पालिश मांग रहे थे.मेरे बेटे अमित का बेटा नयन मुझे बहुत प्यारा है. कुछ ही दिनों में उसका जन्मदिन आ रहा है. मैंने कहा –‘’जरूर,वर्ना तुम मुझे अपने जन्मदिन की पार्टी में बुलाओगे नहीं.’’और बाहर चला आया.
गली के मोड़ पर  एक छोटी सी टपरी में जूते मरम्मत करने वाला चमन   बैठता है. मैं उसके पास चला गया.वह काम में व्यस्त था.मैंने कहा –‘’जल्दी से जूतों को चमका दो.’’ वह मेरी ओर देख कर मुस्कराया –‘अभी लो बाबूजी.’’—कह कर फिर काम में जुट गया. तभी आवाज आई—‘’मैं कब से इन्तजार कर रहा हूँ पर मेरा नंबर ही नहीं आ रहा है.पहले मेरे जूतों की मरम्मत और पालिश कर दो.’’ मैंने आवाज की दिशा में देखा—एक सोलह –सत्रह साल का किशोर पास की मुंडेर पर बैठा पैर हिला रहा था.
चमन बोला—‘’ तुझे किसी की शादी में जाना है क्या जो इस तरह हड़बड़ी मचा रहा है.’’और खिलखिला दिया.
‘’शादी में ही तो जाना है,मेरे सबसे पक्के दोस्त की शादी है. उसने मुझे खास तौर पर बुलाया है.’’—उस लड्के ने कहा, फिर फुसफुसा कर बोला—टाई बाँधने में उसकी मदद करनी है. उसे टाई बांधनी नहीं आती.’’
‘’तू तो जैसे रोज ही टाई बाँध कर मजदूरी करने जाता है!’’—चमन ने व्यंग्य पूर्ण स्वर में कहा.
लड़का कुछ देर चुप रहा फिर उदास स्वर में बोला—‘ठीक है मैं रोजनदारी पर काम करता हूँ, और कभी कभी काम नहीं मिलने पर खाली हाथ भी लौटना पड़ता है, पर मैंने एक साहब को देख  देख कर टाई बांधना सीखा है. क्या एक मजदूर को टाई बाँधने का हक़ नहीं होना चाहिए.’’
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 ‘’क्यों नहीं, तुम जो चाहो कर सकते हो. मजदूरी करने वाला किसी से कम नहीं होता.’’ फिर मैंने चमन से कहा—‘’इसे शादी में जाना है पहले इसका काम कर दो. मुझे कोई जल्दी नहीं है .’’ चमन ने मेरे जूते छोड़ कर उसके जूते चमका दिए.
                                                                         
वह चला गया. जाते जाते उसने मेरी ओर देखा. मुझे लगा जैसे वह कुछ कहना चाहता हो. आखिर  कौन था वह लड़का? मैंने चमन से पूछा तो वह बताने लगा—इस लड़के का नाम रमेश है. इसके माँ-बाप गाँव में रहते हैं. यहाँ अपने चाचा के साथ मेहनत—मजूरी करता है .’’
      मैंने कहा—‘’ तुम इसके बारे में इतना कैसे जानते हो?’’
      चमन बोला—‘’सुबह काम पर जाने से पहले और शाम को रमेश मेरे पास जरूर आता है, अपने गाँव –घर की बात करता है , मेरे पूछने पर एक ही जवाब देता है  कि मुझे देख कर उसे अपने गाँव के काका की याद आती है. मैं सुनी अनसुनी कर देता हूँ ,अपने काम में लगा रहता हूँ. उसकी किसी बात पर कुछ नहीं कहता, पर वह मुंडेर पर  बैठा अपने आप से बतियाता रहता है. लगता है उस समय वह यहाँ नहीं कहीं और होता है.’’   मैं सोच रहा था –आखिर वह कौन सी डोर है जिसने दो अनजान जनों को आपस में एक दूसरे से इस तरह जोड़ दिया है.
             दो दिन बाद की बात है, मैं बाज़ार जा रहा था तो आवाज़ आई—‘बाबूजी नमस्ते.’ यह चमन था. मैं उसके पास चला गया—‘’  क्या हाल है चमन? और तुम्हारा दोस्त कहाँ है.’’
       ‘’ आप रमेश की बात कर रहे हैं न, वह शादी —पार्टी तो गड़बड़ा गई उस दिन.’’
        ‘’ क्या हुआ?’’
         ‘’कह रहा था कि बीच में ही बच कर भागना पड़ा,खाना भी नहीं मिला. ‘’
        ‘’ऐसा क्या हो गया था ?’
         ‘’लो वह आ गया. उसी से पूछ लो. ’’ -–चमन बोला.
                    रमेश पास आकर खड़ा हो गया था. मुझे मुंडेर पर बैठे देख कर कुछ सकुचा गया. मैंने कहा—‘’ शादी की दावत कैसी रही, चमन बता रहे हैं...’ मेरी बात पूरी होने से पहले ही वह कहने लगा—‘’ सब गड़बड़ हो गया, मेरे दोस्त के मामा ने शराब पी रखी थी,वह जोर जोर से चिल्लाने लगे,
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सब तरफ शोर मच गया, उस भाग दौड़ में एक बच्चा गिर गया और रोने लगा. मैंने दौड़ कर उसे उठाया,बच्चे के माथे पर खून झलक आया था. मैंने चोट पर अपना रूमाल बाँध दिया. बस मामा जी मुझ पर बरस पड़े. बोले –‘ तू हमारी बारात में रहने लायक नहीं है. ‘ और मुझे मारने भागे .मैं क्या करता,वहां से भाग आया. और हो गयी दोस्त की शादी.’’ मैंने देखा उसके चेहरे पर गहरी उदासी का भाव था. मैंने उसका कन्धा सहला दिया.कहा –‘’यह तो बुरा हुआ तुम्हारे साथ. लेकिन इस तरह हिम्मत मत हारो. दावत के और भी मौके आयेंगे.’’
        ‘’यही तो मैं इसे समझा रहा हूँ.’’—चमन बोला.            
               कुछ सोच कर मैंने कहा—‘’ दो दिन बाद मेरे बेटे के बेटे यानी मेरे पोते का जन्मदिन है, क्या तुम आना पसंद करोगे ?’’
          रमेश मेरी ओर ताकता रह गया, शायद उसे मेरी बात पर विश्वास नहीं हो रहा था. ‘’लेकिन..’’ इतना कह कर चुप हो गया.
        ‘ लेकिन वेकिन छोड़ो, शाम को सात बजे आ जाना, मैं पास ही रहता हूँ. चमन तुम्हें मेरा पता बता देगा.’
          ‘’ जरूर बता दूंगा.’’—चमन ने कहा.
        वह असमंजस में लग रहा था. बोला—‘लेकिन..’’
         मैं समझ रहा था उसके संकोच को. आखिर किसी जन्मदिन पार्टी में खाली हाथ तो नहीं जाएगा कोई. मैंने कहा—‘संकोच मत करो. मैं नयन के लिए एक उपहार लाया हूँ. उसे सतरंगी फ्रेम का चश्मा पसंद है.’और बैग से निकाल कर चश्मे का पैकेट उसे दिखाया. ‘’तुम अपनी ओर से उसे दे देना.’’
        ‘’लेकिन इस तरह आपसे लेकर बच्चे को कैसे दे सकता हूँ, मुझे अपनी जेब से पैसे खर्च करने चाहियें .’’—रमेश ने कहा. निश्चय ही उसे मेरा प्रस्ताव अच्छा नहीं लगा था.
         चमन ने भी उसकी बात को सही माना. बोला—‘ बाबूजी, ऐसा भी होता है क्या. ’’
       मुझे अपनी भूल का अहसास हो गया. शायद मैंने उसके आत्म सम्मान को चोट पहुंचाई थी अपने प्रस्ताव से. मैंने कहा—‘’उपहार की बात छोड़ो, तुम बस आ जाना.’’
        मैं चलने लगा तो रमेश सतरंगी फ्रेम वाले चश्मे का पैकेट हाथ में लेकर देखने लगा.फिर मुझे लौटा दिया. चमन बोला—‘’बाबूजी,क्या आपको पता है रमेश का गला बहुत मीठा है.कई बार मैंने इसे गुनगुनाते हुए सुना है.’
         ‘’वाह तब तो हमारी जन्मदिन पार्टी का रंग जम जाएगा,’ मैंने रमेश का कन्धा थपथपा दिया और लौट आया.
                                      3

         नयन की जन्मदिन पार्टी में हमारे कई रिश्तेदार और मित्र आ गये थे,पर मैं मन ही मन रमेश की प्रतीक्षा कर रहा था. केक काटा जा चुका था, पार्टी लगभग ख़त्म हो चली थी,तभी बाहर से कोई अंदर आया,लेकिन वह तो कोई और था. उसने मेरे हाथ में एक थैली थमा दी,मैं कुछ पूछ पाता इससे पहले ही वह बिना कुछ कहे चला गया. थैली मैं दो पैकेट थे सतरंगी फ्रेम वाले चश्मे के.एक पर चमन का नाम लिखा था और दूसरे पर रमेश का. चमन और रमेश ने नयन के लिए उपहार भेज दिए थे पर खुद नहीं आये थे. मैं काफी देर तक इस बारे मैं सोचता रहा.
             मैंने रमेश को बुलाया था,लेकिन चमन को नहीं. फिर चमन ने गिफ्ट क्यों भेजा था                 नयन के लिए. गिफ्ट भेजना पर खुद न आना –आखिर मुझे क्या सन्देश देना चाहते थे दोनों! क्या चमन को न बुला कर मैंने भूल की थी और और यही बताने के लिए ही रमेश और चमन नहीं आये थे.                                                                        (समाप्त )  
                               

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