Saturday 24 February 2018

गलत आदमी --देवेन्द्र कुमार--बाल कहानी



गलत आदमी             
                  ---देवेन्द्र कुमार
मैं रिक्शा में बाजार जा रहा था. एकाएक आवाज आई—‘’ सर, प्रणाम.’’ और एक स्कूटर रिक्शा के पास आकर रुक गया. मैंने रिक्शा वाले से रुकने को कहा. स्कूटर सवार ने मेरे पैर छू लिए. मैंने उसे पहचान लिया ,वह मेरा पुराना छात्र यशपाल था. उसने कहा –‘’मैंने तो आपको दूर से पहचान लिया था,’’ फिर वह मेरे परिवार के हालचाल पूछने लगा .मैंने यशपाल के घर –परिवार की जानकारी ली. यशपाल ने बताया कि एक अच्छी नौकरी के लिए उसका सिलेक्शन हो गया है. मैंने उसे आशीर्वाद दिया . यशपाल ने एक बार फिर मेरे पैर छुए और चला गया.
अपने पुराने छात्र से मिलकर मुझे बहुत अच्छा लगा.मैंने रिक्शा वाले से आगे चलने के लिए कहा.पर वह रुका खड़ा रहा. मैंने कहा—‘’चलो रिक्शा बढाओ.’’
‘’क्या आप उस लड़के को जानते हैं जो आपके पैर छू कर गया है?’’
‘’जानूंगा क्यों नहीं, वह मेरा पुराना छात्र है. हमेशा अव्वल आता था. ऐसे छात्रों पर टीचर को बहुत गर्व होता है.’’—मैंने कहा—‘’खैर तुम रिक्शा आगे बढाओ.’’
‘’आप जिसे इतना अच्छा बता रहे हैं वह अच्छा नहीं गलत आदमी है.’’ –रिक्शा वाले ने कहा.
यशपाल के बारे में उसकी ऊल जलूल बातों से मुझे गुस्सा आ गया. ‘’ तुम ये क्या बकवास कर रहे हो. क्या तुम उसे पहले से जानते हो? ‘’ मैंने तेज स्वर में पूछा.
--‘’जी नहीं. मैंने तो बस दो दिन पहले इस लड़के को पहली बार देखा था बड़े बाज़ार के चौराहे पर.’’
--‘’ तब फिर ऐसी गलत बात क्यों कह रहे हो एक अनजान लड़के के बारे में!’’
‘’ मैं आपको पूरी बात बतलाता हूँ.’’—उसने कहा –‘’ मैं सवारी के इन्तजार में चौराहे पर खड़ा था.तभी एक स्कूटर सवार तेजी से आया और एक बच्ची को धक्का मार कर चला गया. बच्ची गिर
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पड़ी और जोर जोर से चीखने लगी. बच्ची की माँ चिल्लाई तो लोग स्कूटर सवार के पीछे दौड़े.पर वह रुका नहीं , आगे निकल गया. कोई उसे पकड़ नहीं पाया. पर मैंने उसका चेहरा देख लिया था. आज जब वह मेरे पास आकर रुका तो मैं उसे तुरंत पहचान गया.’’ रिक्शा चालक अमजद ने कहा. इसी बीच मैंने उसका नाम पूछ  लिया था.
       मुझे धक्का लगा. क्या अमजद सचमुच सच कह रहा है, शायद हाँ शायद नहीं. पर मेरा मन यह मानने को एकदम तैयार नहीं था कि यशपाल एक बच्ची को घायल करके इस तरह भाग सकता था. मेरे विचार से वह जो भी था उसे रुक कर घायल बच्ची को देखना चाहिए था. लेकिन यह भी तो हो सकता था कि अमजद को भ्रम हुआ हो. बच्ची को गिरा कर भाग जाने वाला यशपाल नहीं कोई और ही हो. मैंने अमजद से यही कहा –‘’ मुझे लगता है वह कोई और रहा होगा. तुमने दूर से उसका चेहरा देखा था,फिर इतने विश्वास से कैसे कह रहे हो कि यह लड़का वही था.’’
‘’मैंने उसे ठीक पहचाना है. यह वही था. क्या आप जानते हैं कि यह लड़का कहाँ रहता है?’’
 ‘’ मैं यशपाल से न जाने कितने सालों बाद मिला हूँ. मुझे पता नहीं कि वह कहाँ रहता है लेकिन अगर कभी मिला तो उस घटना के बारे में पूछूँगा जरूर. ‘’—मैंने अमजद से कहा.           
‘’ऐसे गलत लोगों को सज़ा जरूर मिलनी चाहिए .’’
‘’तुमने ठीक कहा, वह जो भी था उसे रुक कर घायल बच्ची को  डाक्टर के पास ले जाना चाहिये था.’’ मैंने कहा, पर मेरा मन अब भी यह मानने को तैयार नहीं था कि बच्ची को घायल कर के भाग जाने वाला यशपाल था.
अमजद ने रिक्शा आगे बढ़ा दी. मैंने पूछा—‘’अब बच्ची कैसी है? क्या तुम्हें कुछ पता है?’’’
 ‘’हाँ मैं जानता हूँ दोनों माँ –बेटी को. वहीँ पास में रहती हैं.’’
‘’तब तो तुमने जाकर जरूर बच्ची का हाल चाल लिया होगा.’’
अमजद कुछ देर की चुप्पी के बाद बोला—‘’नहीं मैं बच्ची का हाल पूछने नहीं जा सका. उस घटना के बाद एक लम्बी सवारी मिल गयी और मैं रात में बहुत देर से लौटा था.’’
‘मुझे ले चलो बच्ची के पास.’’ –मैंने कहा. मैं सोच रहा था –मान लो अगर बच्ची स्कूटर से ही घायल हुई है तो मुझे उसकी मदद जरूर करनी चाहिए. यशपाल से झूठ सच का हिसाब बाद में भी लिया जा सकता है.
अमजद मुझे बच्ची के पास ले गया. बच्ची की माँ उसे गोद में लिए बैठी थी. अमजद को देखते ही वह रोकर बोली—‘ भैया तुम भी मदद को नहीं आये. ‘’
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मैने देखा –बच्ची का पैर सूजा हुआ था. अमजद चुप खड़ा था. मेरे पूछने पर बच्ची की माँ ने पूरी घटना के बारे में बताया. एक कमरे के उस घर में गरीबी की छाप थी. मैंने बच्ची के पिता के बारे में पूछा तो माँ ने कहा—‘ मुनिया के बापू परदेस में नौकरी करते हैं. दो दिन में आयेंगे.’
मुझे यह समझने में देर नहीं लगी कि अभी तक मुनिया की चोट का इलाज नहीं हुआ है. मैंने मुनिया की माँ से कहा—‘’मुनिया का इलाज तुरंत होना चाहिए. एक डाक्टर मेरे जानकार हैं. आओ इसे उनके पास ले चलें.’’
‘’लेकिन ...’’ मुनिया की माँ ने कहना चाहा पर तब तक अमजद मेरे इशारे पर मुनिया को  घर से बाहर ले आया. मुनिया की माँ उसे गोदी में लेकर रिक्शा में जा बैठी. डाक्टर का दवाखाना पास ही था. डाक्टर मुझे अच्छी तरह जानते थे. उन्होंने मुनिया की अच्छी तरह जांच की, पैर का एक्सरे किया. पता चला कोई फ्रैक्चर नहीं था. डाक्टर ने घाव साफ़ करके पट्टी कर दी.  मुझे बताया कि कई दिन तक दवा लेनी होगी. मैंने उन्हें सारी बात समझा दी.—यही कि मुनिया की माँ इलाज का खर्च नहीं उठा सकती.मैंने कहा—मुनिया के इलाज का सारा पैसा मैं दूंगा, लेकिन यह बात मुनिया की माँ के सामने नहीं आनी चाहिए.इससे उसके स्वाभिमान को चोट पहुँच सकती है.
डाक्टर साहब ने मुनिया की माँ को अंदर बुला कर कहा—‘’तुम्हें मुनिया के इलाज के पैसे नहीं देने होंगे. मैं उसका इलाज मुफ्त करूंगा.’ सुनकर वह डाक्टर के पैर छूने बढ़ी तो उन्होंने कहा—यह सब छोड़ो,बस अपनी बच्ची का ध्यान रखो, बीच बीच में दिखाने आती रहो.’’
मैंने मुनिया की माँ को अमजद से कहते सुना—‘दुनिया में अभी भी अच्छे लोग मौजूद हैं.’’यही बात उसने मुझसे कही तो मैंने इतना ही कहा—‘’वह ठीक ही तो कह रही हैं,’’
अब मुझे मुनिया की ओर से तो तसल्ली थी लेकिन यशपाल को लेकर मन परेशान था. बार बार अमजद की कही बात मन में कांटे की तरह चुभ जाती थी.क्या सच मुनिया को घायल करके भाग जाने वाला यशपाल ही था.मन जैसे दो हिस्सों में बंट गया था. एक अमजद की बात को सही ठहरा रहा था तो दूसरा मन कहता था कि यह सच नहीं हो सकता.मेरा योग्य छात्र ऐसा कभी नहीं करेगा.मैं नहीं जानता कि यशपाल मुझे कब और कहाँ मिल्रेगा. बाजार आते जाते हुए कई बार अमजद दिख जाता है. लेकिन मैं उससे बच कर चलता हूँ.मुझे मालूम है कि वह मुझसे क्या पूछेगा. मैं यशपाल के बारे में बिलकुल भी सोचना नहीं चाहता लेकिन....     ( समाप्त )  
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