बंद घडी—कहानी—देवेन्द्र
कुमार
पुरानी घडी न जाने कब से बंद थी और फिर एक दिन
घडी चलने लगी, यह चमत्कार कैसे हो गया था.
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अमित
के बाबा को पुरानी चीजें जुटाने का शौक है। उनके पास पुराने सिक्के, फोटो से लेकर कई नायाब चीजें हैं,
उन्हें बाबा ने संजो कर रखा है। इन्हें बाबा बार-बार कपड़े से चमकाते रहते हैं कि
देखने में एकदम नए से लगे। बाबा के पास कई पुराने फोटोग्राफ हैं जिनमें दिखाई देने
वाले चेहरे अमित नहीं पहचानता। पर बाबा बड़े चाव से बताते हैं‘‘देखो यह छोटा सा बच्चा मैं हूं। तब मैं
तुमसे भी छोटा था।’ पर
एक चीज सबसे अलग है। वह है पुरानी बंद घड़ी। बाबा बंद घड़ी को सदा ही भगवान जी की
तस्वीर के पास रखते हैं जबकि बाकी पुरानी चीजें उनकी पिटारी में बंद
रहती हैं। पिटारी को बाबा कभी-कभी खोलते हैं। खासकर तब जब कोई घर में उनसे मिलने आ
जाता है।
अमित कभी-कभी सोचता है कि बंद घड़ी न जाने कितनी पुरानी होगी। उसने बाबा से
कई बार पूछा उस घड़ी के बारे में, पर उन्होंने ठीक-ठीक कुछ नहीं बताया। घड़ी की बड़ी सूई ग्यारह के अंक
पर है तो छोटी चार पर अटकी है। सेकेंड वाली सूई आधी टूटी हुई है। अमित मम्मी से भी
कई बार घड़ी के बारे में पूछ चुका है, पर वह भी कुछ नहीं बतातीं। इतना कह देती हैं- ‘‘जा अपना काम कर।’
एक
दिन वह मम्मी से घड़ी के बारे में पूछ रहा था, तभी बाबा वहां आकर बोले- ‘चल,
आज
मैं बताता हूं।’ अमित का हाथ थामकर वे बंद घड़ी के पास
जा खड़े हुए। बोले-‘ग्यारह
के अंकों का मतलब है ग्यारह दिसंबर और चार के अंक का मतलब है चार बजे। ग्यारह
दिसंबर को शाम चार बजे तेरी दादी हम सबको छोड़कर चली गई थीं। यह बहुत पहले की बात
है। बस, यह घड़ी मुझे तेरी दादी की याद दिलाती
रहती है। इसीलिए सदा सामने रखता हूं।’
’
‘‘पर बाबा इससे यह पता नहीं चलता कि यह
कब हुआ था। वह कौन-सा साल था?’’
“हाँ
यह तो है, पर घड़ी में वर्ष कहां पता चलता है?’ बाबा बोले।
‘पर बाबा, घर की और सारी घडि़यां तो चलती रहती हैं, फिर यही बंद क्यों है?’ अमित ने कहा। बाबा ने कुछ कहा नहीं, बस धीरे से मुस्करा दिए। फिर अपने कमरे
में चले गए।
1
अगली सुबह अमित ने देखा, बंद घड़ी अपनी जगह पर नहीं थी। उसने कहा- ‘बाबा, बंद घड़ी कहां है?’
‘अरे भाई बंद घड़ी भी चलने लगी है, पता नहीं कहां चली गई है। तूने कहा था
न कि घर की सारी घडि़यां चलती हैं तो यही बंद क्यों है। इसीलिए घड़ी अपनी पुरानी
जगह नहीं है।’ बाबा ने कहा और जोर से हंस पड़े।
उस
दिन सुबह अमित की नींद खुली तो देखा- बाबा पलंग के पास खड़े हैं। अमित को जागा हुआ
देख कर बोले- ‘अमित, जन्मदिन शुभ हो। आज तुम आठ साल के हो गए।’ और वे अमित के बालों पर हाथ फेरने लगे।
फिर उसके माथे को प्यार से चूमकर बाहर चले गए।
कुछ
देर बाद अमित बाबा के कमरे में गया तो हैरान रह गया। बाबा की बंद घड़ी अपने पुराने
स्थान पर रखी थी। उसके शीशे पर एक कागज चिपका था। उस पर लिखा दिखाई दिया- ग्यारह
दिसंबर, अमित को उसका जन्मदिन शुभ हो।
‘लेकिन बाबा, ग्यारह दिसंबर को शाम चार बजे दादी
आपको छोड़ गई थीं न। तब आपने बंद घड़ी के शीशे पर यह मेरे जन्मदिन की बात क्यों
लिख दी?’
बाबा मुस्कराए-‘ठीक
है तेरी दादी इस दिन हमें छोड़ गई थीं, पर ग्यारह दिसंबर तेरा जन्मदिन भी तो है। यह पुरानी घड़ी वहां से
चलकर नए दिन पर आ गई है। जानता है, तेरे बार-बार पूछने पर भी मैं इसीलिए तुझे दादी वाली बात नहीं बताया
करता था। कहीं दादी के चले जाने की बात सोचकर तेरे जन्मदिन का आनंद कम न हो जाए, पर कई बार पूछने पर मुझे बताना ही
पड़ा।’
अगली सुबह अमित स्कूल जाने लगा तो देखा बाबा कुछ ढूंढ़ रहे हैं। बोले ‘अमित, आज पुरानी घड़ी अपनी जगह पर नहीं है। न जाने कहां चली गई। तुमने तो
नहीं देखा घड़ी को?’
‘देखा है बाबा।
’
‘अरे कहां देखा है?’ बाबा उतावले स्वर में पूछ रहे थे।
‘बाबा, अब बंद घड़ी चलने लगी है तो फिर वह एक ही तारीख पर क्यों टिकने लगी? कह कर अमित मम्मी की अलमारी से बाबा की
पुरानी घड़ी निकाल लाया। उस पर नया कागज चिपका था-बाबा का जन्मदिन शुभ हो।
2
‘शैतान। मुझे तो अपना जन्मदिन ही याद
नहीं।’ बाबा हंस पड़े।
‘तो बता दीजिए।’ अमित ने कहा।
‘शाम को बताऊंगा।’ बाबा बोले।
शाम
के समय बाबा ने अमित के हाथ में एक कागज थमा दिया। उसने देखा-कागज पर सब घर वालों
के नामों के आगे उनके जन्मदिन लिखे हुए थे- पापा, मम्मी, चाचा, चाची और चाचाजी की बेटी रेखा के।
‘बाबा, आपका नाम क्यों नहीं लिखा है?” अमित ने कहा। ‘अपना जन्मदिन भी इस सूची में लिख
दीजिए न।‘
बाबा कुछ देर चुप खड़े रहे। फिर धीरे से बोले- ‘ग्यारह दिसंबर
’
‘ग्यारह दिसंबर! वाह! तब तो मेरा और
आपका जन्मदिन एक ही हुआ। और आपने मुझे बताया ही नहीं।
’
‘अरे, अब मैं बूढ़ा हुआ।
’
अमित बाबा को देखता रहा। उनका सिर झुका हुआ था। वह बोला ‘दादी के हमें छोड़ कर जाने तथा मेरे और आपके जन्मदिन की तारीख एक ही है।
दादी की बात आप इसलिए नहीं बताते थे कि कहीं मेरे जन्मदिन का आनंद कम न हो जाए,
लेकिन अपने जन्मदिन की बात भी क्या इसीलिए छिपाते हैं कि कहीं.......’ और अमित के होंठ कांप उठे। उसकी आंखें
भीग गई। वह सारी बात समझ गया था। बाबा के ऊपर प्यार और गुस्सा दोनों आ रहे थे। वह
जान गया था कि बाबा उससे कितना प्यार करते हैं।
बाबा ने झट उसे गोद में उठा लिया और प्यार करने लगे।
बंद
घड़ी सचमुच चलने लगी थी।(समाप्त)
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