हरा भरा—कहानी—देवेन्द्र कुमार
‘’ पापा, देखो पेड़।’’—रमा ने
पिता से कहा तो राजेश सड़क के दोनों ओर खड़े पेड़ों की ओर देखने लगे। सांझ ढल चुकी थी।
हवा में हिलते पत्तों के शोर के बीच परिंदे घोंसलों में उतर रहे थे। राजेश समझ न
सके कि रमा किस पेड़ की बात कर रही थी। तभी रमा ने कहा—‘’सामने फर्नीचर की दुकान
में देखिये।’’ अब राजेश की नज़र दुकान में एक तरफ पड़े टेढ़े मेढे ठूंठ पर जा टिकी।
वह सोचने लगे कि यह ठूंठ यहाँ कैसे आया होगा। रमा बोली—‘’हमारी किताब में लिखा है
कि पेड़ नहीं काटने चाहियें, उनकी रक्षा करनी चाहिए।’’
राजेश बोले—‘’तुमने ठीक कहा, भले ही यह सूखा ठूंठ है, पर
इसे जंगल से यहाँ काट कर ही लाया गया होगा। पता नहीं फर्नीचर वाला इसका क्या
करेगा?’’ उसी समय दुकानवाला बाहर चला आया और पूछने लगा—‘’ क्या चाहिए आपको?’’
राजेश ने कहा—‘’लेना कुछ नहीं है, हम उस सूखे पेड़ के बारे
में जानना चाहते हैं।‘’
फर्नीचर वाले ने कहा—‘’ ओह, तो आप उस ठूंठ को सूखा पेड़ कह
रहे हैं। इसे मेरे परिचित राम मेहरा यहाँ डाल गए हैं। उन्हें अजीब–अजीब चीजें जमा
करने का शौक है। वह इस ठूंठ को सोफे में तब्दील करवाना चाहते हैं।’’
‘’ है तो वह सूखा पेड़ ही, पर लोग ऐसे सूखे पेड़ को अक्सर ठूंठ
ही कहते हैं। तो तुम्हारे मेहरा साहब इसका सोफा बनवाना चाहते हैं, उन्हें और कुछ
नहीं मिला सोफा बनवाने के लिए।’’ राजेश ने अचरज के भाव से कहा।
‘’हाँ इसका सोफा बनवाने के लिए ही इसे यहाँ डाल गए हैं। और इसके
लिए मेहरा जी मुझे मुंहमांगा मेहनताना भी देने को तैयार हैं।’’
तो तुम इस सूखे पेड़ पर आरी चलाओगे और इसमें कीलें ठोकोगे
?’’
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‘’इसे सोफे का रूप देने के लिए तो ऐसा ही कुछ
करना होगा।’’—फर्नीचर वाले ने कहा। वह ठूंठ की ओर देखता हुआ बोल रहा था। “ मुझे
इसे मेहराजी के मन मुताबिक तैयार करने में बहुत मेहनत करनी पड़ेगी।”
रमा ने कस कर राजेश का हाथ पकड़ लिया। उसकी उँगलियाँ काँप
रही थीं। ’’यह तो गलत है।’’—वह फुसफुसाई। राजेश ने बेटी का हाथ थपथपा दिया, फिर
दुकानदार से कहा—‘’ ऐसा करना गलत होगा।
क्या तुम मेहरा को ऐसा करने से मना नहीं कर सकते।’’
फर्नीचर वाले ने कहा—‘’बाबूजी,यह मेरा धंधा है, मैं तरह तरह
का फर्नीचर बनाता हूँ,और फिर वह मुझे मुंहमांगा मेहनताना भी देने को तैयार हैं। मेरे
पुराने ग्राहक ठहरे, मैं उन्हें क्यों मना करूं?’’
राजेश सोच रहे थे-‘ व्यापारी को पैसे का लालच होता ही है। इस
पेड़ को कटने--पिटने से कैसे बचाया जाए।’ इस बीच दुकानदार अन्दर जाकर अपने एक
ग्राहक के साथ व्यस्त हो गया। राजेश और रमा दुकान के बाहर खड़े रहे। “ अब आप इस पेड़
को कैसे बचायेंगे? दुकानदार तो आपकी बात सुन ही नहीं रहा।’’ रमा ने निराश स्वर में
कहा।
‘’बात तो ऐसी ही है पर हमें इस सूखे पेड़ को कटने और उसमें
कीलें ठोकने से बचाना ही चाहिए।’’—कहते हुए राजेश ने बेटी का सिर सहला दिया। उनके
मन में कई विचार घुमड़ रहे थे। आखिर कुछ सोच कर उन्होंने दुकानदार से कहा—‘’ देखो,
अगर मैं चाहूँ तो अभी पुलिस को खबर कर सकता हूँ। वे लोग आकर तुम्हारा चालान करके
तुम पर जुरमाना ठोक सकते हैं। हो सकता है तुम्हारा काम बंद जाए। लेकिन मैं ऐसा कुछ
नहीं करूंगा,क्योंकि इस मामले में तुम्हारा कोई दोष नहीं है।’’
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राजेश की बात सुन कर दुकानदार का चेहरा फीका पड गया। बोला—‘’
इस सब में मेरा कोई दोष नहीं है, लेकिन मैं मेहराजी को कैसे मना करूं यही समझ में
नहीं आ रहा है।’’
राजेश बोले—‘’ मैं चाहता हूँ कि तुम यह सूखा पेड़ मुझे सौंप
दो और इसके एवज में जो चाहो मैं तुम्हें दे सकता हूँ।‘’
‘’आप कैसी बात कर रहे हैं। जो चीज मेरी नहीं है उसे मैं भला
कैसे बेच सकता हूँ। यह तो सरासर चोरी करना होगा।’’
‘’यह सूखा पेड़ भी तो मेहरा का नहीं हो सकता। पेड़ काटना और
बेचना दोनों ही अपराध हैं। देखो, अगर यह सूखा पेड़ या ठूंठ तुम्हारे पास रहा तो तुम
मुश्किल में पड सकते हो।’’
‘’ मान लो अगर मैं इस ठूंठ को आपको सौंप दूं तो फिर मेहराजी
को क्या जवाब दूंगा। नहीं नहीं मैं ऐसा कुछ भी नहीं करूंगा। असल में तो आपका मेरी
दुकान पर आना ही मेरी मुसीबत बन गया है। और वैसे भी आप इस ठूंठ का क्या करेंगे?’’
‘’अगर तुम इस सूखे
पेड़ को मुझे सौंपते हो तो मैं इसके साथ ऐसा कुछ नहीं करूंगा जो तुम इसके साथ करने
वाले हो। मैं इसे सुरक्षित रखूंगा यह वादा करता हूँ।’’ राजेश ने कहा।
‘’लेकिन मेहरा जी... उनसे क्या कहूँगा मैं?’’
‘’उनसे वही सब कह देना जो कुछ मैने तुमसे अभी अभी कहा है।
कह देना कि पर्यावरण वाले आये थे और इस सूखे पेड़ को उठा ले गए। साथ ही यह भी कि
उन्होंने तुम्हारा चालान करने की धमकी
भी दी थी।’’
‘’और फिर ...’’ फर्नीचर वाला असमंजस में था। राजेश ने कहा—‘’मैं
समझता हूँ इसके बाद वह तुमसे कुछ नहीं कह सकेंगे और चुपचाप लौट जायेंगे ।’’
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‘’लेकिन अगर फिर भी,,,’’—फर्नीचर वाला अब भी परेशान लग रहा
था।” तो वह जितने पैसे मांगे उन्हें दे देना।’’—राजेश ने उसे आश्वस्त किया| वह्
पूरी रकम मैं तुम्हें दे दूंगा।’’ फिर बात बदलते हुए कहा—‘’वह सब छोड़ो, चलो मुझे
फर्नीचर दिखाओ। घर का सोफा पुराना हो गया है।’’
दुकानदार उन्हें अंदर ले गया। तभी रमा ने कहा—‘’ पापा,देखो
कितना सुंदर झूला !’’ राजेश ने देखा एक तरफ सुंदर खिलौना--झूला रखा था, उस पर लटकी
नन्हे बल्बों की रंगीन झालर जल बुझ रही थी।रमा बोली—‘’मैं इस झूले में अपने गुड्डे
–गुडिया को बैठा कर कर उनकी शादी रचाऊँगी।।’’
‘’गुडिया रानी, उस शादी में मुझे जरूर बुलाना।’’ दुकानदार
ने हंस कर कहा। ‘’जरूर फर्नीचर अंकल।‘’ रमा चहक कर बोली और उसने झूले को बाँहों
में भर लिया।
‘’अब तो मैं भी तुम्हें रमा
की तरह ‘फर्नीचर अंकल’ कहा करूंगा।’’—राजेश ने हँसते हुए कहा। दुकानदार भी
मुस्कराए बिना न रह सका। राजेश ने सोफा पसंद कर लिया। दुकानदार ने कहा—‘’ मैं सोफे
और बिटिया के झूले के साथ इस सूखे पेड़ को भी जल्दी ही आपके घर भिजवा दूंगा।’’
राजेश बोले—‘’सोफे और बिटिया का झूला तुम जब चाहो भिजवा
देना लेकिन इस सूखे पेड़ को तो मैं आज और अभी अपने साथ ले जाऊँगा।’’
‘’इस सूखे पेड़ के लिए इतनी हड़बड़ी किसलिए।’’—दुकानदार ने
पूछा।
‘’इसलिए कि इस बीच अगर मेहराजी आ गए तो तुम मुश्किल में पड
सकते हो। वे तुम पर तुरंत काम शुरू करने का दबाव बना सकते हैं। तब क्या
करोगे?तुम्हें मुश्किल से बचाने के लिए ही मैं इसे यहाँ से तुरंत ले जाना चाहता
हूँ। ‘’ –राजेश ने समझाया। अब दुकानदार ने कोई विरोध नहीं किया। कुछ देर बाद सूखे
पेड़ को ट्रक में लदवा कर राजेश अपने घर ले आए। रास्ते भर रमा कहती रही—‘’पापा,आप
बहुत अच्छे हो। आपने पेड़ को बचा लिया, नहीं तो बेचारे का सोफे बन जाता।’’सूखे पेड़
को काट-पीट और कीलों के दर्द से बचा कर राजेश को भी अच्छा लग रहा था, लेकिन आगे उस
सूखे पेड या ठूंठ का क्या करना है यह कुछ साफ़ नहीं था उनके मन में।
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राजेश के घर के बाहर दोनों तरफ खाली जमीन की संकरी पट्टी पर
क्यारियों में फूलों के पौधे और नन्हे लाल
पीले फूलों वाली बेलें उगी हुई थीं। मेन
गेट के सामने जगह खाली थी।राजेश ने सूखे पेड़ को वहीँ एक तरफ रखवा दिया। रमा की माँ
रश्मि ने देखा तो पूछने लगीं –‘’यह बेकार ठूंठ कहाँ से उठा लाये।’’
राजेश ने कहा—‘’रश्मि,कम से कम तुम तो इसे बेकार ठूंठ मत
कहो। कभी यह एक हरा भरा पेड़ रहा होगा,जिसे मौसम की मार ने इस हालत में पहुंचा दिया।
मैंने इसके साथ होने वाली काट पीट की दुर्दशा से इसे बचाया है। आगे इसे कैसे
संवारा जाए इस बारे में अभी सोच विचार करना है।’’
रमा ने भी राजेश की हाँ में हाँ मिलते हुए कहा—‘’माँ, पापा
ने बहुत अच्छा काम किया है। सबसे पहले मैंने इस सूखे पेड़ को फर्नीचर की दुकान में
देखा था और पापा को बताया था। हमें इस अकेले और बीमार पेड़ की मदद करनी चाहिए। इसे
बेकार ठूंठ कभी मत कहना।’’
‘’कभी नहीं कहूँगी मेरी गुडिया।’’—माँ रश्मि ने रमा को
आलिंगन में बाँध लिया। फिर राजेश से पूछा—‘’तो इस सूखे पेड़ को कैसे संवारेंगे
आप?’’
‘’यही सोच विचार कर रहा हूँ।‘’राजेश ने कहा, तभी उनकी
नज़र रामसिंह पर पड़ी, जो एक तरफ खड़ा उनकी बात सुन रहा था। रामसिंह पेशे से माली है
और राजेश के घर में उगे पौधों की देख भाल करता है।राजेश ने कहा—‘’रामसिंह, अब तुम
ही कोई तरीका निकालो इस सूखे पेड़ को सँवारने का। ‘’
‘’मैं आपकी बात समझ गया हूँ बाबूजी, इस बारे मैं
कल ही कुछ कर सकता हूँ।’’कह कर माली रामसिंह चला गया।
अगली सुबह रामसिंह अपने एक साथी को लेकर आया। फिर
उसने घर के आगे की खाली जमीन में चाहरदीवारी के पास गड्ढा खोदकर ठूंठ को उसमें
मजबूती से खड़ा कर दिया। फिर उसके साथ साथ लकड़ी की पतली डंडियाँ ज़मीन में गाड कर उन
के साथ क्यारी में फैली फूलवाली लताएँ बाँध दी। फिर बोला—‘’बाबूजी, बरसात का मौसम
है। लताएँ बहुत जल्दी फ़ैल जाएँगी। फिर मैं इन्हें आपके पेड़ के तने पर चढ़ा दूंगा।आप देखना,लाल-नीले
फूलों वाली ये बेलें बहुत जल्दी पेड़ को ढक लेंगी,दूर से यह हरा भरा दिखाई देगा। तब
इसे कोई भी ठूंठ नहीं कह सकेगा।’’और सच बरसात बीतते न बीतते फूलवाली लताओं ने ठूंठ
को पूरी तरह ढक लिया।
ठूंठ के दोनों तरफ फफोले जैसी गांठें बाहर की तरफ
निकली हुई थीं,रामसिंह माली ने उनमें दो छींके लटका कर मिटटी के कटोरों में पानी
और बाजरे के दाने रख दिए। फिर तो चिड़ियों को वहां आते देर न लगी। उनके पंखों की फड़
फड़ और चूं चिर्र दिन भर सुनाई देने लगी। ठूंठ का सचमुच कायाकल्प हो गया था। (
समाप्त ) email-devendrakumar755@gmail।com
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