Thursday 8 November 2018

मैं भैया जैसी --देवेन्द्र कुमार --कहानी बच्चों के लिए


===हर बहन अपने भाई जैसी बनना चाहती है, रचना भी तो यही चाहती थी, लेकिन उसका भाई ऐसा   
करने से मना करता है. क्यों किसलिए... 
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      === आखिर क्या हुआ था रचना को? बाज़ार में इस बारे में कई लोगों ने पूछा पर रामदास ने हाथ हिला दिया और ठेले को तेजी से धकेलता हुआ आगे चला गया. ठेले पर उसकी बेटी रचना बैठी थी. उसके माथे से खून निकल रहा था. रामदास बेटी को जल्दी से जल्दी डाक्टर के पास पहुँचाना चाहता था.                 कुछ देर बाद रचना की मरहम--पट्टी करवा कर लौटा तो उसने तसल्ली से लोगों को बताया कि गिरने                    से रचना को चोट लग गई थी. रामदास सब्जी बाज़ार में शाम के समय मलाई-कुल्फी का ठेला लगाता था. सब्जी के खरीदार उसकी कुल्फी भी चाव से खाते थे.
        बाज़ार में धन्नी ताई अपने सही भाव और तौल के लिए मशहूर थी. वह रचना से बहुत प्यार करती थी. रचना को भी धन्नी ताई अपनी दादी जैसी लगती थी. उन्होंने रचना के सिर पर हाथ फिराते  हुए पूछा –‘’ क्या हुआ बिटिया?’’
         रचना ने कहा—‘’दादी, मैं भैया ...’’ लेकिन वह अपनी बात पूरी नहीं कर पाई . रामदास चिल्ला कर बोला—‘’क्या भैया भैया कर रही है.’’ और ठेले को तेजी से आगे बढ़ा दिया.  ठेले को घर के बाहर लगा    कर वह रचना को लगभग घसीटता हुआ अंदर ले गया. वह बहुत गुस्से में था. रचना की माँ शोभा नेकहा  —‘‘एक तो बच्ची को इतनी चोट लगी है, ऊपर से तुम उसे इस तरह डांट रहे हो.’’ 
        रामदास ने कहा-- ‘’तुम्हें पता भी है कि मामला क्या है. यह धन्नी को अविनाश के बारे में बताने को ही थी कि मैंने रोक दिया, वर्ना पूरे बाज़ार में बदनामी हो जाती.’’  रचना की चोट के बारे में रामदास ने झूठ बोला था. रचना को चोट गिरने से नहीं लगी थी. रचना के भाई अविनाश ने उस पर गिलास फेंका था, जो उसके माथे से जा टकराया. रचना का माथा लहूलुहान हो गया. अविनाश रचना से चार साल बडा है. दोनों भाई-बहन हमेशा प्यार से रहते आये हैं, लेकिन इधर कुछ समय से अविनाश रचना से चिढने लगा है. रामदास और शोभा बेटे के इस बदले हुए व्यवहार का कारण नहीं समझ पा रहे थे. रचना भी हैरान थी.
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        कुछ समय पहले की घटना है. स्कूल में सीढियां उतरते समय अविनाश फिसल गया था. उससे पैरों में चोट आ गई था. दोनों पैरों पर प्लास्टर चढ़ने के कारण वह स्कूल नहीं जा पा रहा था. उसे दोस्तों के साथ मस्ती करना पसंद था,लेकिन अब तो घर से बाहर निकलना भी मुश्किल था. वह बैठा हुआ देखता रहता था कि घर के सारे काम पहले की तरह चल रहे हैं, जैसे उसकी ओर किसी का ध्यान ही नहीं है. शायद वह घर में होते हुए भी नहीं है. पर ऐसा बिलकुल नहीं था. माँ, पिता और रचना उसका पूरा ख्याल रखते थे. पर अविनाश सबसे नाराज़ ही रहता था, खास कर रचना से.  वह सदा गुनगुनाती रहती थी. रचना का गला सुरीला था. स्कूल की म्यूजिक प्रतियोगिता में वह कई बार पुरस्कार भी जीत चुकी थी.
          इस बार भी रचना कार्यक्रम की तैयारी कर रही थी. इसलिए वह स्कूल से आने के बाद भी  अभ्यास करती रहती थी. लेकिन अविनाश माँ से कहता था -–‘’मेरे सिर में दर्द होता है इसकी आवाज़ से, इससे कहो कहीं और जाकर गाना-–बजाना करे.’’  माँ ने उसे बहुत समझाया पर वह किसी भी तरह मानने को तैयार नहीं हुआ. भाई के इस बेतुके व्यवहार से रचना का मन बहुत दुखी हुआ. उसने सोच लिया कि इस बार प्रतियोगिता में भाग नहीं लेगी.
          रात को सब सो गए लेकिन रचना को नींद नहीं आ रही थी. अचानक उसकी रुलाई फूट पड़ी. उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि अविनाश ऐसा व्यवहार क्यों कर रहा था. माँ ने बेटी का रोना सुना तो पास आकर चुप कराने लगी. अविनाश भी जाग रहा था. रचना ने सिसकते हुए कहा—‘’भैया मुझसेइसी  लिए खफा है न कि उसे चोट लगी है और मैं भलीचंगी हूँ. लेकिन अब तो मैं भी भैया जैसी हो गई हूँ. क्या अब भी वह मुझ से नाराज रहेगा? ‘’ रचना के सिर में गिलास का कोना चुभने से गहरा घाव होगया था. डाक्टर ने आराम करने की सलाह दी थी. वह भी स्कूल नहीं जा सकती थी.
       माँ ने पूछा-–‘’क्या तू धन्नी ताई से अविनाश की शिकायत करने वाली थी? तेरे बापू तो यही  बता रहे थे.’’
      ‘’ नहीं माँ, बापू ने गलत समझा. मैं कभी भैया की शिकायत नहीं कर सकती. मैं तो उनसे यही कह रही थी कि चोट लगने से मैं भी भैया जैसी हो गई. पर बापू पूरी बात सुने बिना ही गुस्सा हो गए.’’
       फिर सन्नाटा हो गया. रचना की माँ सो गई पर रचना नहीं सो सकी. वह उठ कर अविनाश की चारपाई के पास जा खड़ी हुई. उसे लगा अविनाश सो गया है, पर वह जाग रहा था. उसने सुना—रचना धीरे धीरे कह रहीं थी—‘’भैया, अब तो गुस्सा छोड़ दो. देखो ना, अब तो मैं भी तुम्हारे जैसी हो गई हूँ. तुम यही तो चाहते थे.’’
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      एकाएक अविनाश उठ कर बैठ गया. उसने रचना का हाथ पकड़ लिया. उसकी उँगलियाँ काँप रही थीं. उसने रुंधे गले से कहा— ‘’नहीं रचना,कभी नहीं. मेरे जैसी कभी मत बनना. जैसी हो वैसी ही रहना. तुम्हें पता नहीं मैं कैसा हूँ. मैंने कितनी बार बापू की जेब से पैसे चुराए हैं. कई बार स्कूल से भाग कर दोस्तों के साथ फिल्म देखी है. उनके साथ सिगरेट पी है.’’ वह रो रहा था. रचना भाई से लिपट गई—‘’मेरा भैया बहुत अच्छा है. तुम कभी कोई गलत काम नहीं कर सकते.’’ दोनों की आँखों से आंसू बह रहे थे.
       उन दोनों की बातें माँ ने भी सुन ली थीं. वह आकर उन्हें प्यार करने लगी. अविनाश से कहा -–‘’बेटा,गलती सबसे होती है. तेरे बापू भी अपने बचपन की ऐसी ही बातें सुनाया करते हैं. जो हुआ उसे भूल जाओ, दोनों भाई-बहन प्यार से रहो.’’
         ‘’लेकिन माँ मैंने रचना के सिर पर गिलास फैंक कर मारा, इसे बहुत चोट लगी है.’’
          ‘’कहाँ है चोट! वह तो कब की ठीक हो गई.’’-- अँधेरे में रचना की हंसी सुनाई दी. माँ की हथेलियाँ दोनों के सिर सहला रही थीं.  ( समाप्त )                         
            
                                       

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