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छोटे बच्चों को समझाया जाता है कि दीवार पर कुछ न लिखें,
उसे गन्दा न करें,पर न जाने किसने दीवार पर दो आँखों का चित्र बना दिया था. और
प्रिया ने कुछ ऐसा कर दिया जिसे देख कर घर की मालकिन प्रेमाजी बुरी तरह भड़क गई.
आखिर ऐसा क्या कर दिया था बेचारी प्रिया ने !===
रेखा ने कॉल बेल बजा दी फिर दरवाज़ा खुलने का
इन्तजार करती हुई इधर--उधर देखने लगी, दरवाजे के ठीक सामने वाली दीवार पर एक चित्र
बना दिखाई दिया, किसी ने वहां नीली पेंसिल से दो आँखें बना दी थीं. तभी दरवाज़ा खुल
गया और रेखा अंदर चली गई. रेखा वहां सफाई का काम करती है. काम करते हुए वही चित्र आँखों
के सामने घूमता रहा. उसकी बेटी प्रिया दूसरी क्लास में पढ़ती है. वह बहुत अच्छी ड्राइंग
बनाती है. रेखा सोच रही थी—‘क्या प्रिया भी ऐसी सुंदर ड्राइंग बना सकती है.’ घर की
मालकिन का नाम प्रेमा है.
अगले दिन रविवार था. रेखा बेटी को भी अपने साथ ले आई. उसे आँखों के चित्र के
पास सीढ़ी पर बैठा दिया. कहा—“स्लेट पर चाक
से ऐसा ही सुंदर चित्र बना.” फिर काम करने अंदर चली गई. कुछ देर बाद उसे प्रेमाजी
के चिल्लाने की आवाज़ सुनाई दी. उसने बाहर निकल कर देखा प्रेमाजी प्रिया को डांट
रही हैं-“अरे तूने तो सारी दीवार गन्दी कर दी.” प्रिया ने आँखों के चित्र के पास
एक आदमी का चित्र बना दिया था. उसे एक बैसाखी के सहारे खड़ा दिखाया गया था. रेखा ने
प्रिया के गाल पर एक थप्पड़ जड़ दिया और बोली—“ अरे यह क्या कर डाला. मैने तो स्लेट
पर बनाने को कहा था, दीवार पर क्यों बना दिया.’’ बेटी रोते हुए बोली—‘‘ स्लेट पर मिट जाता है.’’
उसी समय अंदर से प्रेमा का बेटा अनुज बाहर निकल आया. वह स्कूल में ड्राइंग का
अध्यापक है. उसने दीवार पर बने चित्रों को देखा--‘’अरे वाह ! सुंदर. किसने बनाए
हैं ये चित्र.’’ तब तक प्रेमा अंदर चली गई थी. रेखा ने अनुज को पूरी बात बता दी.
वह मुस्कराया और प्रिया का हाथ थाम कर अंदर ले गया. उसे बैठा कर उसके सामने
ड्राइंग की शीट और रंगों वाली पेंसिलों का डिब्बा रख कर बोला—‘’ प्रिया, आराम से
ड्राइंग बंनाओ.’’ कह कर वह दूसरे कमरे में चला गया. रेखा भी काम में लग गई. प्रिया
शीट पर ड्राइंग बनाने में जुट गई.
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कुछ देर बाद अनुज ने आकर देखा--प्रिया ने ड्राइंग शीट पर बैसाखी वाले आदमी का
चित्र बना दिया था. एकदम वैसा जैसा बाहर दीवार पर बनाया था. वह कुछ समझ न सका ...आखिर
उसने रेखा को बुला कर पूछा तो बोली –“ पिछले साल इसके पिताजी का एक्सीडेंट हो गया
था. उस कारण उनका एक पैर घुटने के नीचे काटना पड़ा था. प्रिया जब भी उन्हें बैसाखी
के सहारे चलते हुए देखती है तो रोने लगती है. मैंने इसे कई बार समझाया है कि पिता
का वैसा चित्र न बनाया करे, पर यह सुनती ही नहीं.’’ अनुज चुप रहा. वह वह कुछ सोच रहा
था.
अगले दिन रेखा काम पर आई तो अनुज घर में मौजूद था. उसने रेखा को एक कागज़ दिया.
उस पर एक पता लिखा था. उसने कहा—“ तुम अपने पति को लेकर इनके पास जाना. वहां जाकर
तुम्हें सब पता चल जाएगा.” उस कागज पर एक संस्था का पता लिखा था, जहां अंगहीनों को
कृत्रिम अंग लगाए जाते थे.
दो दिन बाद रेखा काम पर आई तो बहुत खुश लग रही थी, प्रेमा ने पूछा—“ क्या कोई
खज़ाना मिल गया है जो इतनी खुश लग रही है.” पर रेखा ने कुछ न कहा. वह प्रेमा का
स्वभाव अच्छी तरह जानती थी. वैसे भी अनुज
ने अभी किसी को भी कुछ बताने से मना किया था.
अगले दिन रेखा उस संस्था में गई तो अनुज भी वहां मौजूद था. डॉक्टर ने रेखा के
पति की अच्छी तरह जांच की. तभी रेखा ने अनुज से कहा—“आपसे कुछ कहना है.” अनुज ने
हंस कर कहा—“ तुम्हें कुछ कहने की जरूरत नहीं है. इसका पूरा खर्च संस्था और मैं
मिल कर उठाएंगे.’’ रेखा के चेहरे पर हलकी
मुस्कान आ गई.
संस्था में रेखा अपने पति के साथ कई दिनों तक जाती रही. इस बीच वह काम पर नहीं आ सकी. प्रेमा जी से उसने बीमार होने का बहाना बनाया
था. और फिर एक रविवार के दिन वह बेटी के साथ काम पर आई तो उसके पोर पोर से हंसी
फूट रही थी. अनुज ने प्रिया से कहा—“आज तुम्हें अपने पापा का नहीं, फूलों का चित्र
बनाना है. ’’ और उसने सामने रखे गमले की ओर संकेत किया जिसमें फूल मुस्करा रहे थे.
प्रिया हंस कर फूलों की ड्राइंग बनाने लगी. लेकिन अनुज को पता नहीं था कि
फ्लैट में आने से पहले, उसने दीवार पर बने पिता के रेखा चित्र में कुछ परिवर्तन कर
दिया था. अब चित्र में बैसाखी कहीं नज़र नहीं आ रही थी. उसमें दिखाई देता आदमी अपने
दोनों पैरों पर खड़ा था.
बाद में जब प्रेमाजी ने दीवार को दोबारा पेंट करवाने की बात कही तो अनुज ने
मना कर दिया. उसने कहा—“ मां, यह दीवार अब सदा ऐसे ही रहेगी. इन दो चित्रों के पास
मैं भी ड्राइंग किया करूंगा.” बात प्रेमाजी की समझ में नहीं आ रही थी. पर जिन्हें समझना
था वह जान चुके थे. यह पता नहीं चल सका कि दीवार पर दो आँखों का चित्र किसने बनाया
था. ( समाप्त )
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