बड़ी-छोटी—देवेन्द्र कुमार –बाल कहानी
बसंत का सुहाना मौसम था। हल्की हवा में
फूल धीरे-धीरे सिर हिला रहे थे। दो तितलियां साथ-साथ फूलों पर मंडरा रही थीं।
उनमें से एक का आकार बड़ा था और दूसरी का छोटा। दोनों के पंखों पर अनेक रंग उभरे
हुए थे। ये दोनों साथ-साथ दिखाई देती थीं। फूलों ने कई बार पूछा-‘’अक्सर साथ-साथ
आती हो, क्या तुम दोनों बहनें हो?”
“नहीं।” बड़ी तितली ने कहा।
“हां, हम बहनें हैं।” छोटी तितली बोली।
फूल ने कहा-“यह कैसी अजीब बात है। एक अपने को दूसरी
की बहन बता रही है, पर
दूसरी इस बात से मना कर रही है। क्यों भला?”
सुनकर दोनों तितलियां परे चली गईं-बड़ी
तितली ने छोटी से कहा-“ तुमने
यह क्यों कहा कि हम दोनों बहनें हैं। झूठ नहीं बोलना चाहिए।‘’
“मैंने सच्चा झूठ बोला है।” छोटी तितली बोली।
“सच्चा झूठ। यह क्या होता है।” बड़ी ने कहा। “सच्चा झूठ भी तो आखिर झूठ ही होता है।”
“सच्चा झूठ वह होता है जिसमें सच की खुशबू
होती है।“ मैंने अपने को तुम्हारी बहन बताया तो
कुछ गलत नहीं कहा। जानती हो मेरी एक बड़ी बहन थी बिल्कुल तुम्हारे जैसी। एक दिन हम
दोनों फूलों से बातें कर रही थीं, तभी कुछ बच्चे वहां चले आए। वे हंस रहे थे- हमें बच्चों की हंसी
अच्छी लगी। बच्चे खेलकूद कर थक गए तो बाग के कोने में जा बैठे। मेरी बहन एक बच्चे
के बहुत पास चली गई। बस यही गलत हो गया। बच्चे ने झट मेरी बहन को अपनी मुट्ठी में
बंदकर लिया और वहां से भाग गया।”
“सचमुच यह तो बहुत बुरा हुआ।” बड़ी तितली ने कहा। “फिर क्या हुआ?”
छोटी तितली कहती रही-“माली वहां काम रहा था। उसने बच्चे को
भागते देखा तो पूछने लगा-“तुमने जरूर कुछ गड़बड़ की है। बताओ क्या बात है।” इस पर बच्चे के दोस्तों ने कहा-“माली भैया, इसने एक तितली को अपनी
मुट्ठी में बंद कर लिया है।”
“अरे छोड़ दो, तितली को- नन्हा कोमल जीव है। वह दम
घुटने से मर जाएगी।” कहकर
माली बच्चे को पकड़ने दौड़ा। मैं भी माली के साथ-साथ उड़ रही थी। मैं अपनी बहन को
पुकार रही थी-“दीदी,
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तुम ठीक तो हो? बताओ, जवाब
दो।” बच्चा मुट्ठी बंद किए हुए आगे-आगे दौड़
रहा था और माली पीछे-पीछे दौड़ता हुआ पुकार रहा था-“ओ शैतान, छोड़
दो तितली को नहीं तो बाग में आना बंद कर दूंगा।”
बच्चा तेजी से बाग के चक्कर लगा रहा
था। लेकिन माली उसके नजदीक पहुंच गया था। उससे बचने के लिए वह बच्चा और तेजी से
दौड़ा तो ईंट से टकराकर लड़खड़ाया और घास पर गिर गया।
“यह तो बुरा हुआ।” बड़ी तितली बोली।
“हां, जैसे ही वह गिरा, उसकी बंद मुट्ठी खुल गई। अरे यह क्या। उसकी मुट्ठी में मेरी दीदी थी
ही नहीं। तो फिर वह कहां चली गईं? मैं यही सोच रही थी, तभी माली ने बच्चे को उठा लिया। वह मेरी बहन को भूल गया था, क्योंकि एकाएक गिरने से बच्चे के माथे
से खून निकलने लगा था। माली ने आवाज दी तो बच्चे की मां दौड़ी हुई चली आई। कई लोग
इकट्ठे हो गए। पर चोट ज्यादा नहीं थी। जल्दी ही खून रुक गया। बच्चा मां के साथ घर
में चला गया और माली फिर से अपने काम में लग गया लेकिन...”
“लेकिन....” बड़ी तितली ने पूछा।
“लेकिन मेरी बहन का कुछ पता नहीं था। मैं
बहन को पुकारती हुई पूरे बाग में चक्कर लगा गई।
“बस वह दिन था और आज का दिन है, मेरी बहन का कुछ पता नहीं है। उनका क्या हुआ, वह कहां गईं? मेरे पास वापस क्यों नहीं आई?”
कहकर छोटी तितली चुप हो गई। फिर उसने
उदास स्वर में कहा-“मैं
एकदम अकेली रह गई हूँ। पता नहीं बहन कहां है, किस हाल में है। आपकी सूरत मेरी बहन से बहुत मिलती है, इसीलिए मैं अपने को आपकी बहन बतलाती
हूँ।”
बड़ी तितली ने दिलासा देते हुए कहा-“अब मैं सारा मामला समझ गई। दुख मत करो।
मुझे लगता है तुम्हारी बहन जरूर वापस आ जाएगी। हो सकता है वह किसी मुसीबत में फंस
गई हो। समझो मैं तुम्हारी बड़ी बहन हूँ। तुम मुझ पर भरोसा कर सकती हो। मुझे अपनी
बहन कहने के लिए मैं तुम्हें कभी नहीं डांटूगी।“ फिर दोनों साथ-साथ बाग में फूलों के ऊपर मंडराने लगीं
एक फूल ने पूछा-“क्या तुम दोनों में समझौता हो गया?”
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“कैसा समझौता। हमारे बीच झगड़ा ही कब हुआ था। मैं अपनी छोटी बहन से
बहुत प्यार करती हूं। और मैं बड़ी हूं
इसलिए इसे कभी कभी डांट भी देती हूं। लेकिन इससे क्या।” कहकर दोनों तितलियां दूसरी क्यारी के
फूलों के पास चली गईं। बड़ी तितली ने छोटी से कहा-“ कई फूल शरारती हैं वे उन मनुष्यों जैसे हैं जो दूसरां के झगड़े का मजा
लेते हैं। हमें ऐसे फूलों से दूर रहना चाहिए।”
“बिल्कुल ठीक।” छोटी तितली ने कहा।
“आओ कहीं और चलें।” बड़ी तितली ने कहा।
“कहां?” छोटी ने पूछा।
बड़ी तितली छोटी को एक मकान की खुली
खिड़की के पास ले गई। बोली-“जानती हो, इस
घर में एक बच्चा रहता है, जो बहुत बीमार है। जब वह स्वस्थ था जो रोज बाग में आकर फूलों से
बातें किया करता था। बाकी बच्चे फूल तोड़ते थे तो वह उन्हें मना करता था। मैंने उसे
कभी फूल तोड़ते नहीं देखा।”
“वह कब स्वस्थ होगा?” छोटी तितली ने पूछा।
“यह तो कोई डाक्टर ही बता सकता है, पर पहले से उसकी तबीयत में सुधार है।” बड़ी ने कहा।
“दीदी, तुम्हें कैसे मालूम है यह बात?” छोटी ने पूछा।
“जानती है छोटी, मैं सिर्फ फूलों से ही बातें नहीं करती, खिड़कियों से होकर घरों में भी जाती हूँ,
वहां बच्चे रहते हैं। ऐसे लोग रहते हैं जो पेड़-पौधों से, हम तितलियों से प्यार करते हैं। ऐसे
लोग हमारे मित्र होते हैं। उनकी खोजखबर तो लेनी चाहिए।”
इस तरह आपस में बातें करती हुई दोनेां
तितलियां बीमार बच्चे के कमरे में जा पहुंची और खिड़की की चौखट से चिपककर देखने
लगीं। सामने बच्चा बिस्तर पर लेटा था। अभी-अभी उसे डाक्टर देखकर गया था। जब डाक्टर
देखने आया तो बच्चा फूलों और तितलियों के बारे में एक किताब पढ़ रहा था।
पिता ने कहा-“बेटा, डाक्टर साहब तुम्हें आराम करने के लिए कह गए हैं। अब किताब रख दो, नहीं तो थक जाओगे।”
“डैडी, मुझे ऐसी किताबों से थकान नहीं होती।” बच्चा बोला- “मैं कितने दिन से बाग में नहीं गया हूं, फूलों और तितलियों को नहीं देखा है।
मुझे पलंग पर लेटे लेटे अच्छा नहीं लगता है।” तभी बड़ी तितली
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ने
छोटी से कहा-“तुमने सुना, बच्चा क्या कह रहा है। वह बेहद उदास है
क्योंकि वह बाग में जाकर फूलों और तितलियों से बातें नहीं कर सकता।”
“तब इसके लिए हम क्या कर सकते हैं?”- छोटी ने पूछा दोनों उड़कर बच्चे के पलंग
पर मंडराने लगीं और फिर पलंग पर रखी पुस्तक पर जा उतरीं। पुस्तक के आवरण पर दो फूल
और दो तितलियों के चित्र बने हुए थे। दोनों तितलियां ठीक तितलियों के चित्रों पर जा
बैठी थीं। बच्चा उठा और उसने किताब की ओर देखा। तभी तितलियां पुस्तक पर बने
चित्रों से उठकर हवा में उड़ने लगीं। बच्चा खुषी से चिल्ला उठा-“डैडी-डैडी, यह तो जादू हो गया। पुस्तक के आवरण पर
बनी तितलियां जीवित हो गईं। देखो, देखो ये हवा में उड़ रही हैं।”
बच्चे के पिता ने देखा तो वह भी चकित
रह गए। दोनों पिता- पुत्र अचरज भरी आंखो से देख रहे थे। दोनों तितलियां पहले हवा
में मंडरातीं फिर पुस्तक के आवरण पर बने तितली-चित्रों पर आ बैठतीं। ऐसा कई बार
हुआ। तभी बच्चे ने कहा-“ऐसा
तो पहले कभी नहीं देखा। यह तो जादू हैं।”
”हां, बेटा तितलियां तुमसे मिलने आई हैं। तुम बीमार हो और बाग में नहीं जा
सकते। इसीलिए तितलियां तुमसे खुद मिलने आ गईं।” कहकर बच्चे के पिता हंस पड़े।
बड़ी तितली ने छोटी से कहा-“तुमने सुनी इनकी बातें। बच्चा कितना खुश
है। मैं सोचती हूं जब तक बच्चा स्वस्थ न हो जाए, हमें रोज यहां आना चाहिए इससे मिलने के लिए।”
“लेकिन अगर इसने भी उस शैतान बच्चे की
तरह हमें अपनी मुट्ठी में कैद कर लिया तो?” छोटी ने शंकालु स्वर में पूछा।
“प्यार करने वाले दूसरों को कभी दुख
नहीं देते, खास तौर से वे लोग जिन्हें फूलों और
तितलियों से प्यार होता है।”
तभी बच्चे ने पिता से कहा-“डैडी, तितलियां तो मुझसे मिलने आ गई हैं, पर फूल तो नहीं आ सकते।”
“हां, बेटा, फूलों
के पंख नहीं हैं। अगर उनके पंख होते तो वे भी जरूर आते तुमसे मिलने के लिए। वैसे
तितलियां उड़ते हुए फूल ही तो हैं। देखो, इनके पंखों पर कितनी सुंदर चित्रकारी की है प्रकृति ने।”
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इसके बाद दोनों तितलियां वहां से बाग में चली
आईं। पीछे पीछे बच्चे के पिता भी थे। वह
माली से कुछ बात कर रहे थे, तितलियों ने माली को कहते सुना-“हां, बाबूजी, जब
तितलियां बीमार बेटे से मिलने पहुंचती है तो फूल भी जा सकते हैं वहां।”
छोटी तितली ने बड़ी से कहा-“यह माली कैसी बात कर रहा है- क्या यह
फूलों को तोड़कर उनका गुलदस्ता बीमार बच्चे के पास ले जाएगा?” बड़ी तितली भी माली की बात सुनकर कुछ
परेशान हो गई थी।
पर वैसा कुछ नहीं हुआ। माली ने फूलों
के दो गमले उठाए और बीमार बच्चे के कमरे में ले गया। उसने बच्चे से कहा-“लो भैया, आज फूल भी तुमसे मिलने आ गए हैं। अब ये रोज तुमसे बातें करने आया
करेंगे।”
“क्या सच।” बच्चे ने चहककर पूछा।
“हाँ , एकदम सच।” कहकर
बच्चे के पिता ने उसका माथा सहला दिया। माली ने उनसे कह दिया था-- जब तक बच्चा स्वस्थ होकर बाग में नहीं आने लगता, तब तक वह रोज थोड़े समय के लिए फूलों के
गमलों को कमरे में ले आया करेगा।
माली बीमार बच्चे के कमरे में हर दिन
दो नए गमले रख आता और पुराने वापस ले जाता और तितली बहनें तो रोज ही उससे मिलने
जाया करती थीं। बच्चे की उदासी भाग गई थी। वह तेजी से स्वस्थ हो रहा था। ( समाप्त
)
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