Tuesday 8 May 2018

कमाऊ बेटा --देवेन्द्र कुमार-- कविता



कमाऊ बेटा –देवेन्द्र कुमार –कविता
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कमाऊ बेटा
दुलारा आंखों का तारा
कुछ खास छोटा भी नहीं
तीन माह, दस दिन का!
मैली कथरी पर
वह और कुछ सिक्के-
कुछ नहीं बोलता
आंख नहीं खोलता

 रो रही है मां
बाप पीटता है पेट
लुंज हाथों से-
ऐ बाबू लोगो!
सौगंध भगवान की
इसके नन्हे कलेजे में
हैं हजार छेद
सुनता भी नहीं
बेजुबान है
बुखार चढ़ गया
सिर में-सिर से ऊपर...
इलाज को मिल जाए
पैसा दो पैसा...

किसी ने फेंके कुछ सिक्के
कोई यूं ही गुजर गया
समाज ने बांट लिया उसे
इलाज लाइलाज
और चाहे कुछ हो न हो
सूखा कुआं
मां-बाप का
जरा तो
गीला हो ही जाएगा!

वह सहे जाएगा
धूप और तपिश
मां-बाप का दुलारा
आंखों का तारा
अभी से बन गया लाठी-
बुढ़ापा मां-बाप का
आए न आए
इसलिए चुप लेटा है
कमाऊ बेटा है।
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