आपको जरूर आना है-कहानी-देवेंद्र कुमार
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अनुज खुश है और क्यों न हो। अगले रविवार को उसका जन्मदिन है। वह बेसब्री से दिन गिन रहा है। उसने उन मित्रों की लिस्ट बना ली है जिन्हें वह बुलाना चाहता है। मौसी, बुआ, मामा लोगों को बुलाना नहीं होता। वे अपने आप आ जाते हैं। पापा राजेश उसके लिए नई ड्रेस ले आये हैं। ड्रेस बहुत सुंदर है। अनुज का मन है कि तुरंत पहन ले। लेकिन उसे जन्मदिन की प्रतीक्षा करनी होगी। इसके साथ ही बाबा, मम्मी, बहन रश्मि के लिए भी नए कपडे आ गए हैं।
उस शाम राजेश दफ्तर से आये तो बहुत खुश थे उन्होंने अनुज से कहा—‘’ हम लोग तुम्हें एक
सरप्राइज देने की सोच रहे हैं।’’ फिर अनुज की मम्मी जया को कमरे बुलाया और धीरे धीरे कुछ कहने लगे। अनुज ने देखा पापा मम्मी को एक कागज दिखा रहे हैं। फि र मम्मी की हंसी सुनाई दी। इसके बाद दोनों बाबा के कमरे में गए। बाबा बाहर आये। उन्होंने अनुज की पीठ थपथपा कर कहा— ‘’अनुज, तुम्हारे पापा बड़े अफसर बन गए हैं। इस ख़ुशी में इस बार तुम्हारे जन्मदिन की विशेष पार्टी होने जा रही है।’’
‘’ अरे वाह!’’ अनुज ने कहा। वह सोच रहा था—‘ कैसी होगी विशेष पार्टी। कौन- कौन आयेगा?’ हर बार वह अपने सब दोस्तों को बुलाना चाहता है लेकिन कर नहीं पाता। वह यही सोच रहा था, तभी पापा ने कहा—‘‘अनुज, इस बार तुम अपने सब मित्रों को पार्टी में बुला सकते हो, सोसाइटी के ग्राउंड में होगी तुम्हारे जन्मदिन की पार्टी। ‘’ सुनते ही अनुज अपने दोस्तों की लिस्ट बनाने में जुट गया। फिर बारी-बारी से फ़ोन करने लगा। इस बीच पार्टी की तैयारियां चल रही थीं। टेंट वाला, हलवाई, फूलों की सजावट करने वालों को बुला कर काम समझा दिया गया था। अनुज खुद भी कई बार ग्राउंड के चक्कर लगा कर देख आया था। वह बहुत खुश था। दोस्तों को बार फ़ोन पर याद दिला रहा था कि उन्हें जरूर आना है उसके जन्मदिन की पार्टी में, और यह भी कि कोई गिफ्ट भी नहीं लाना है। पर उसे अच्छी तरह पता था कि कोई भी खाली हाथ नहीं आयेगा।
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आखिर रविवार आ गया, अनुज पापा के साथ ग्राउंड में ही बना रहा। हलवाई के आदमी आ गए थे। टेंट लगना शुरू हो गया था। अनुज के दादाजी भी हर काम पर नजर रख रहे थे। शाम घिर आई। ग्राउंड रंगबिरंगी रोशनियों से जगमगा उठा। मेहमान आने लगे थे। सब अनुज को बधाई दे रहे थे। तभी अनुज के दादाजी ने बेटे राजेश को पास बुला कर कहा—‘’ सब इंतजाम बहुत अच्छा है पर एक बात है। ‘’
‘’वह क्या?’’—राजेश ने पूछा। अनुज के दादाजी ने कहा –‘’कई बार बच्चों और बूढों को वाश रूम की जरूरत पड़ती है। मैंने जाकर देखा है वाश रूम दूर एक कोने में है। वहाँ रोशनी भी बहुत कम है। मेंहमानों को दिक्कत हो सकती है। ‘’
राजेश सोच में पड़ गए। अनुज के दादाजी ठीक कह रहे थे। कुछ सोच कर बोले –‘’ मैंने सोसाइटी के गार्ड से तेज रोशनी का बल्ब लगाने को कहा था, मैं अभी जाकर फिर कहता हूँ।’’ और तेज क़दमों से बाहरी गेट की बढ़ गए। गार्ड ने कहा— ‘’बाबूजी, इस समय तो बल्ब बदलना मुश्किल है। हाँ, मैं सुबह वाले गार्ड से वाश रूम के पास बैठने को कह सकता हूँ।’’ सुबह वाला गार्ड अभी गया नहीं था। उसने राजेश से कहा—‘’ आप जरा भी चिंता न करें। मैं वाश रूम के पास कुर्सी डाल कर बैठ जाऊँगा। आपके मेहमानों को कोई दिक्कत नहीं होगी। आप बस एक तौलिया और साबुन रखवा दें, आप मेहमानों का ख्याल रखें, यहाँ मैं संभाल लूँगा।’’ राजेश ने कहा—‘’इसके लिए मैं तुम्हें पैसे दे दूंगा। बस मेहमानों को दिक्कत न हो।’’
राजेश निश्चिन्त होकर आने वाले मेहमानों के स्वागत सत्कार में जुट गए। केक काटा जा चुका था। मेहमान खाना खा रहे थे। तभी एक महिला राजेश के पास आईं। उन्होंने एक बच्चे का हाथ पकड़ रखा था। बच्चा रो रहा था। महिला ने कहा –‘’राजेशजी, अब मुझे जाना होगा। गिरने से बच्चे के कपडे गंदे हो गए हैं।’’ राजेश ने देखा कि बच्चे की पोशाक गीली हो रही थी और उस पर कीचड के दाग लगे थे। उन्होंने राजेश को बताया कि वाश रूम के पास अँधेरा था, वहीँ उनका बेटा फिसल कर गिर गया। राजेश को अपने कान गरम होते लगे। बोले—‘लेकिन मैंने वहाँ गार्ड की ड्यूटी लगाईं थी। पता नहीं वह कहाँ चला गया, मैं आपसे माफ़ी मांगता हूँ।’’
‘’ नहीं नहीं इसमें आपका कोई दोष नहीं हैं।’’ -–कह कर महिला रोते हुए बच्चे को चुप कराती हुई समारोह से चली गईं। राजेश ने एक बार घूम कर पंडाल में मौजूद मेहमानों की देखा और फिर तेज क़दमों से वाश रूम की ओर चले गए। गार्ड के प्रति मन में गहरा रोष उबल रहा था। वाश रूम के
पास पहुँच कर राजेश चौंक गए। कुर्सी पर गार्ड नहीं, कोई महिला बैठी थी, राजेश को देख कर वह उठ खड़ी हुई और मुस्करा दीं।
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‘’आप...आप... ‘’ राजेश हडबडा गए । ‘’ मैंने तो यहाँ गार्ड की ड्यूटी लगाईं थी लेकिन वह नहीं दिखाई दे रहा है, और आप...’’
‘’ मैं रमा हूँ और सामने पहली मंजिल वाले फ्लैट में रहती हूँ।’’-- महिला ने पहली मंजिल के एक फ्लैट की ओर इशारा कर दिया।
‘’लेकिन आप यहाँ क्यों और गार्ड...’’ -–राजेश कुछ समझ नहीं पा रहे थे|
रमा ने कहा -–‘’ मैं भोजन करने के बाद बालकनी में टहल रही थी, तभी मैंने किसी के कराहने की आवाज सुनी। पहले मैंने कुछ ध्यान नहीं दिया पर आवाज फिर आई तो मैंने आवाज की दिशा में देखा-- वाश रूम के पास कुर्सी पर बैठा आदमी पेट पकडे हुए कराह रहा था।’’
रमा ने आगे कहा—‘’ मैं नीचे आई और उससे पूछा तो पता चला कि उसके पेट में दर्द हो रहा था। मैंने उसे घर से दवा लाकर दी। उससे एक तरफ लेटने को कहा। लेकिन वह कहने लगा कि आपने उसे ड्यूटी दी है। जब उसका दर्द कम नहीं हुआ तो मैंने उसे घर जाकर आराम करने को कहा। उसने कहा कि अगर वह ड्यूटी छोड़ कर चला गया तो आप उससे नाराज हो जायेंगे और पैसे भी नहीं देंगें।’’
‘’हाँ मैंने उसे पैसे देने की बात कही तो थी पर...’’
‘’ मैं समझ गई कि वह दर्द के बावजूद वहां से जाने वाला नहीं। इसलिए मैंने उसे कुछ पैसे देकर जबरदस्ती उसके घर भेज दिया और उसकी जगह खुद यहाँ आकर बैठ गई। ‘’—रमा ने कहा और मुस्करा दी।
राजेश ने पूछा --‘’आपने कितने पैसे दिए गार्ड को?’’ और जेब में हाथ डालने लगे ।
‘’ बस बस रहने दीजिये।’’—रमा ने कहा। ‘’जो होना था हो गया। सुबह हमें गार्ड की खोज खबर लेनी होगी।’’
‘’ मैं खुद जाकर पता करूंगा उसके बारे में।’’ राजेश ने कहा फिर लज्जित स्वर में बोले —‘’मैं आपसे माफ़ी मांगता हूँ कि मैंने आपको बेटे की जन्मदिन पार्टी में आमंत्रित नहीं किया।’’
रमा फिर हंस दी।बोलीं—‘’ राजेशजी, हमारी सोसाइटी में तीन सौ फ्लैट हैं। हर कोई हर किसी को नहीं बुला सकता। ‘’
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राजेश ने कहा—‘’ जन्मदिन की पार्टी लगभग समाप्त हो चुकी है। फिर भी मैं आपको निमंत्रण दे रहा हूँ। अगर आप आएँगी तो मुझे अच्छा लगेगा।’’
‘’मैं जरूर आऊँगी ।’’—रमा ने कहा। ‘’आप जाकर मेहमानों को देखिये, मैं तैयार होकर आती हूँ।’’ कहकर रमा अपने फ्लैट की ओर बढ़ गईं ।
कुछ देर बाद राजेश ने रमा को एक लड़की का हाथ थामे हुए आते देखा। रमा ने कहा—‘‘यह मेरी बेटी पायल है।’’ पायल ने अनुज के हाथ में एक गफ्ट देकर कहा —‘‘हैप्पी बर्थ डे।’’
रमा ने राजेश को एक कार्ड दिया —‘’ राजेशजी, अगले रविवार को इसी जगह पायल का जन्मदिन मनाया जाएगा। समारोह के कार्ड आज ही छप कर आये हैं। पहला निमंत्रण आपको दे रही हूँ।’’
राजेश कार्ड हाथ में लिए खडे रहे देर तक। जाते जाते रमा ने कहा था—‘’ कल सुबह अगर गार्ड ड्यूटी पर न आये तो मैं आपके साथ उसके घर चलूंगी उसका हाल जानने के लिए। ‘’
''सुबह की प्रतीक्षा क्यों ,हम इसी समय चल सकते हैं। मैं उसका घर जानता हूँ| ''-राजेश ने कहा|
अगले ही पल वह और रमा बाहर की ओर चल दिए| अनुज के जन्म दिन की पार्टी इस तरह समाप्त होगी,इसकी कल्पना कौन कर सकता था भला.(समाप्त )
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