Monday 7 September 2020

सच बोलने वाली मेज,कहानी,देवेन्द्र कुमार

 सच बोलने वाली मेज,कहानी,देवेन्द्र कुमार

                                

                                सच बोलने वाली मेज—कहानी—देवेन्द्र कुमार

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 रामदास बाज़ार के लिए निकला तो देखा-घर के पास वाली खुली जगह में कई कारीगर लकड़ी का फर्नीचर बना रहे हैं ।उसने महसूस किया कि एक  कारीगर उसकी ओर अपलक देख रहा है। उसने ज्यादा ध्यान नहीं दिया। दो घंटे बाद लौटा तो फिर उसे अपनी ओर ताकते पाया। रामदास ने कुछ सोचा और उसे पास आने का इशारा किया।

  वह कारीगर झट पास चला आया।नमस्ते करके बोला-‘ साहब, मैं जीतू हूँ, सरस फर्नीचर मार्ट में काम करता था,आपने शायद मुझे पहचाना नहीं।आपने वहां से मेज खरीदी थी। कैसी है मेज की क्वालिटी?’

  अब पहचान गया रामदास उसे। बोला-‘ मेज तो अच्छी नहीं है,पुरानी लकड़ी की बनी हुई है।कुछ ही दिनों  में जगह जगह से पालिश उतरने के कारण दरारें दिखने लगी हैं। मैंने सरस मार्ट के मालिक दयाराम से शिकायत की थी। उसने नई मेज देने का वादा किया था,पर कुछ नहीं हुआ। अब पछता रहा हूँ।’

  जीतू ने कहा-‘जब आप मेज का मोल भाव कर रहे थे तब मैं आपके पास ही खड़ा था।मैंने धीरे से आप  को मना  भी किया था।पर शायद मेरी बात आपने सुनी नहीं| दयाराम ने मेज पर आपको डिस्काउंट दिया   और आपने मेज खरीद ली। दयाराम ऐसे ही काम करता है।पुराना फर्नीचर खरीद कर उस पर पालिश करके बेच देता है।मुझे यह धोखा धड़ी अच्छी नहीं लगती, लेकिन नौकरी का सवाल है,यह मेरी  सबसे बड़ी मुश्किल है। आपने तो मेरी बात नहीं सुनी,पर दयाराम के तेज कानों ने सुन लिया था। उसने कहा-‘मैंने सब सुन लिया है। तुम तो मेरा धंधा बंद करा दोगे। बस बहुत हुआ,तुम कहीं दूसरी जगह काम देख लो।’

  ‘तो दयाराम ने तुम्हें काम से  निकाल दिया। मुझे अच्छी सलाह देने के कारण ही तुम्हारी नौकरी छूट गई।एक तरह से मैं ही तुम्हारा दोषी हूँ।यह तो गलत हुआ।’ –रामदास ने कहा।

  जी,बिलकुल नहीं। मैं तो अच्छा महसूस कर रहा हूँ कि एक गलत आदमी के संग साथ से छुटकारा मिल गया। जब दयाराम मेरा हिसाब कर रहा था तो मेरा एक साथी कारीगर रोशन आकर बोला कि अभी अभी घर से फोन मिला है,उसकी  बेटी की तबीयत ठीक नहीं है,उसे डाक्टर को दिखाना होगा।इसलिए  छुट्टी चाहिए। इस पर दयाराम बोला-‘रोशन,तुम जिस कुरसी पर काम कर रहे हो उसकी डिलीवरी मुझे आज ही देनी है। तुम चले जाओगे तो काम कैसे पूरा होगा।’

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 रोशन कुछ कहता इससे पहले ही मैंने कह दिया—‘रोशन को जाने दो। उसकी बेटी बीमार है, इसका अधूरा काम मैं पूरा कर दूंगा।’ रोशन चला गया। मैंने कुरसी को फिनिश कर दिया। दयाराम ने मेरा हिसाब किया, फिर बोला-‘ तुमने रोशन का अधूरा काम फिनिश किया है,उसके पैसे भी मैं तुम्हें दे रहा हूँ,मैं रोशन की पगार से काट लूँगा।’

 ‘ पर मैंने रोशन के बदले काम करने के पैसे नहीं लिए,कह दिया –‘ उसके पैसे मत काटना,वह  मेरा दोस्त है। उसकी बेटी बीमार है इसीलिए वह छुट्टी लेकर गया है।’ इसके बाद दुकान से बाहर निकल कर मुझे लगा जैसे किसी कैद से मुक्ति मिली हो।’

   ‘फिर?’

  ‘वहाँ  से मैं रोशन की बेटी को देखने के लिए उसके घर चला गया।बच्ची को तेज बुखार था। रोशन की पत्नी दामिनी उसके माथे पर गीली पट्टी रख रही थी। मुझे देखते ही बोली-‘तुम्हारे दोस्त कहाँ हैं?मैंने तो उन्हें बहुत देर पहले फोन किया था। बच्ची की दवा खत्म हो गई है|’ मैं समझ न सका कि काम से छुट्टी लेने के बाद रोशन घर क्यों नहीं आया। मैंने दामिनी से कहा-‘लाओ दवा का परचा मुझे दो, तब तक रोशन भी आ जायेगा।’ मैं दवा लेकर आया और दामिनी को बता दिया कि दवा कैसे देनी है।’

  ‘तुमने रोशन से नहीं पूछा कि उसे देर क्यों हुई थी’। रामदास ने जानना चाहा तो उसनेकहा कि रोशन तब तक भी घर नहीं लौटा था। अगली सुबह मैं दामिनी की बेटी को देखने उनके घर गया, तब तक रोशन काम पर जा चुका था।पता चला कि वह रात में देर से लौटा था, उसने दामिनी को बताया था कि रास्ते में किसी से झगडा हो गया था इसलिये देर हो गई थी।’

  ‘तो फिर तुम्हें काम मिल गया। यहाँ किसके साथ काम कर रहे हो?’

   ‘मेरे गाँव के परिचित ठेकेदार हैं, उन्हीं के लिए काम कर रहा हूँ। अच्छे आदमी हैं, मुझे कोई परेशानी नहीं है।’ जीतू की बात सुन कर रामदास के मन का बोझ कम हो गया। तभी जीतू ने कहा-‘बाबू जी,अगर आप कहें तो मैं आपके लिए बढ़िया लकडी  की मेज यहीं आपके सामने  तैयार कर सकता हूँ।’

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 रामदास ने कहा-‘ मुझे नई मेज की जरूरत नहीं है। मेज जैसी भी है ठीक है,कभी कभी आप ठगे जाते हैं, यह तो होता ही रहता है।’

 ‘लेकिन आप ठगे गए, यह बात मुझे परेशान कर रही है। मैं चाहता हूँ कि पुरानी लकड़ी की घटिया मेज की जगह नई बढ़िया मेज आ जाये।’

  ‘यह कैसे होगा।’-रामदास ने जानना चाहा।

 ‘क्या आप सरस मार्ट से खरीदी गई मेज मुझे दे सकते है? मैं उतने दाम दे दूंगा जितने आपने दयाराम      

  को चुकाए हैं।’-जीतू ने कहा।

  ‘लेकिन तुम उस मेज को क्यों  लेना चाहते हो जिसे बार बार घटिया कह रहे हो। मैं समझ नहीं पा रहा हूँ।’ –रामदास ने अचरज के भाव से कहा।    

   जीतू बोला-‘मेरे घर में ढंग की मेज नहीं है,जिस पर बच्चे किताब-कापी रख क्रर पढाई कर सकें| है एक छोटी मेज। अगर आप सरस मार्ट वाली मेज दे दें तो मैं उसकी मरम्मत करके नई पालिश करवा लूँगा। मुझे घर में ताने सुनने पड़ते हैं कि मैं फर्नीचर की दुकान में काम करने के बावजूद बच्चों के पढने के लिए एक ढंग की मेज भी नहीं ला सकता। दुकान में अच्छी मेज काफी महंगी है।आप को दयाराम ने डिस्काउंट इसलिए दिया कि वह घटिया मेज से पीछा छुड़ाना चाहता था। आपके लिए उम्दा लकड़ी की सुंदर और टिकाऊ मेज तैयार करने का जिम्मा मेरा।ठेकेदार से आप को कम दाम में दिलवा दूंगा।’

  रामदास के मन में आया कि वह मेज मुफ्त में जीतू को दे दे, पर फिर कहते कहते रुक गया।यह तो जीतू  के स्वाभिमान पर चोट मारने जैसा होगा। आखिर उसने जीतू का प्रस्ताव मान लिया। जीतू उसके लिए मेज बनाने में जुट गया। एक सप्ताह बाद नई मेज बन कर तैयार हो गई। रामदास नई मेज देखकर खुश हो गया। अब जीतू सरस मार्ट वाली पुरानी मेज की मरम्मत में लग गया।और फिर एक दिन नीचे सन्नाटा छा गया। कारीगर काम पूरा करके जा चुके थे। लगता था कि अच्छी और घटिया  मेजों का अध्याय बंद हो चुका था, पर शायद नहीं।

  एक दिन रामदास को जीतू बाज़ार में मिल गया। रामदास उसके परिवार के बारे में पूछने लगा।जीतू ने कहा—‘मेरा घर पास में ही है|’ और रामदास को जीतू अपने घर ले गया। रामदास उसकी पत्नी और बच्चों से मिला,उसकी नज़रें उस मेज को ढूंढ रही थीं, जिसे जीतू बच्चों की पढाई के नाम पर उससे लाया था। लेकिन मेज कहीं दिखाई नहीं दी। उसने पूछ लिया-‘ वह मेज कहाँ है जिसे बच्चो की पढाई के नाम पर मुझसे लिया था।’

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जीतू ने मुस्कराते हुए कहा-‘उस मेज को देखने के लिए आपको रात में यहाँ आना होगा। क्योंकि दिन के समय वह मेज घर से बाहर रहती है।’

  ‘कैसी बहकी बहकी बात कर रहे हो।’-रामदास ने आश्चर्य से कहा।

   ‘जी,मैं ठीक ही कह रहा हूँ।’ फिर जो कुछ जीतू ने बताया,उसका सार यही था कि मेज को घर में लाने से बच्चे बहुत खुश हुए। फिर  एक दिन पत्नी ने कहा-‘सरूप के बेटे शंकर के साथ पाल चाय वाले ने मार पीट की है।’ सरूप जीतू के घर के पास, फुटपाथ पर एक पुरानी मेज लगा कर पकोड़े बेचता था| पकोड़े उसके घर में बनते थे जो पास ही था। कुछ दिन पहले सरूप न जाने कहाँ चला गया और एक महीना बीतने के बाद  भी नहीं लौटा था। इसलिए शंकर ने उसका काम संभाल लिया था, हांलाकि शंकर अभी छोटा ही था, पर घर तो चलाना ही था।

  पाल सड़क के पार, पकोड़ों का ठेला लगता था | पता नहीं क्यों ग्राहक शंकर के पास ज्यादा आते थे।पाल इसीलिए शंकर से चिढ़ता था। एक दिन मौका पा  कर, उसने शंकर की मेज को तोड़ कर फैंक दिया।  शंकर की मदद किसी ने नहीं की। शंकर अब फुटपाथ पर ही पकोड़ों का थाल रखता है।वहां गंदगी रहती है।जानवरों का भी डर रहता है। जीतू ने रामदास से कहा –‘बस मैंने शंकर की मदद करने का फैसला कर लिया।सरूप मेरा मित्र है और शंकर उसका बेटा। मैं मेज को शंकर के पास ले गया और पकोड़ों का थाल उस पर रखवा दिया | मैंने शंकर को मदद का भरोसा दिया,कहा-‘अगर पाल तुमसे कुछ कहे तो मुझे बताना,मैं देख लूँगा उसे।’ तब से मैं और शंकर हर रोज  रात के समय मेज को घर में ले आते हैं,ताकि रात में पाल कोई शरारत न कर सके।’

  ‘तुमने शंकर की  सहायता करके सही काम किया है। लेकिन बच्चो के लिए पढने की मेज का क्या इंतजाम करोगे?’

   जीतू ने रामदास की बात काटते हुए कहा-‘बच्चों के लिए मेज तो फिर कभी आ सकती है पर इस समय शंकर की मदद जरूरी थी। जीतू के घर से बाहर आते समय रामदास ने शंकर को देखा, वह ग्राहकों से घिरा हुआ था।रामदास सोच रहा था-‘क्या मैं भी किसी के लिए कुछ कर सकता हूँ?’ (समाप्त )

     

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