क्या वे दोनों आपस में दोस्त थे? एक जना दूसरे को अपना मित्र कह रहा था. लेकिन
दूसरे को इस बारे में कुछ पता नहीं था. वह तो इस सम्बन्ध की कल्पना भी नहीं कर
सकता था. क्या यह दोस्ती कुछ अजीब नहीं थी? थी जरूर थी, लेकिन फिर भी वह लगातार
गहरी होती जा रही थी.
‘’ पापा,क्या सचमुच यह आपका
दोस्त है!’—विमल ने रिक्शा वाले की पीठ की
ओर इशारा करते हुए शायद पांचवीं बार पूछा था. और पिता रजत ने होठों पर ऊँगली रख कर
चुप रहने का संकेत करके धीरे से कहा था—‘हाँ.’ लेकिन विमल की
तसल्ली न हुई, उसे जैसे पापा की बात पर विश्वास नहीं हो रहा था. और हो भी कैसे
सकता था. उसने पापा के सभी दोस्तों को देखा है ,उनके परिवार के बच्चों के साथ खेला
है. पापा के कई मित्र दफ्तर में साथ काम करते हैं. आज से पहले रजत ने किसी रिक्शा
वाले को अपना दोस्त नहीं कहा था. तो फिर इसके साथ पापा की मित्रता कब और कैसे हो
गई थी, यही बात विमल को हैरान कर रही थी.
सोसाइटी के गेट पर रिक्शा
से उतर कर रजत अंदर की ओर बढ़ चले. विमल ने रुक कर ध्यान से रिक्शा वाले की ओर देखा—
कंधे पर अंगोछा ,बदन पर मैली कमीज़ और पाजामा, चेहरे पर बढ़ी हुई दाढ़ी,क्या सच में
यह पापा का नया दोस्त है! यही सोचता हुआ विमल घर में चला गया. एकाएक उसे ध्यान आया
कि पापा ने रिक्शा वाले को किराया नहीं दिया था ,पर उसने माँगा भी नहीं था. उसने
सबसे पहले यह बात माँ विभा को बताई तो वह भी चौंक गईं.
दोपहर में भोजन करते हुए
विभा ने रजत से कहा—‘’ सुना है आजकल आपने एक रिक्शा वाले से दोस्ती की है.’’
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‘’ हां खिलावन रिक्शा चलाता
है.’’—कह कर रजत चुप हो गए. पर वह जानते थे कि पूरी बात बताये बिना मामला शांत नहीं
होने वाला. सुबह वह हेयर कटिंग सैलून जाने लगे तो विमल भी साथ चल दिया. रविवार के
कारण सैलून में भीड़ थी. विमल सैलून के बाहर बरामदे में चला गया. उसे देख कर सड़क पर
खड़ा रिक्शा वाला मुस्करा उठा.विमल को याद आया कि वह पापा के साथ उसकी रिक्शा में
आया था. विमल को लगा शायद पापा रिक्शा वाले को किराये के पैसे देना भूल गए हैं
इसीलिए वह इन्तजार कर रहा है.उसने सैलून में जाकर रजत को बताया तो वह हंस पड़े ,कहा—‘
मैंने ही उससे रुकने को कहा था.हमें उसी की रिक्शा में घर वापस जाना है.वह मेरा
दोस्त है. मैं आज कल उसी के साथ बाज़ार आता जाता हूँ.’
विभा ने इस अजीब दोस्ती का
कारण जानना चाहा तो रजत ने बताया—‘एक दिन मैं इसी की रिक्शा में बाज़ार जा रहा
था.एकाएक रिक्शा केमिस्ट की दुकान के सामने रुक गई. मेरे पूछने पर खिलावन ने कहा
कि उसका बेटा अस्पताल में है. उसके लिए दवाई लेनी है. वह केमिस्ट के पास गया और दवा
लेकर लौट आया. वह रिक्शा चलाने को हुआ तो मैंने रुकने को कहा. मैंने केमिस्ट की
आवाज सुन ली थी –‘पूरे पैसे लेकर आया करो.’’ मैं रिक्शा से उतर कर केमिस्ट के पास
गया. वह मेरा परिचित है, कई बार दवाइयां लेता हूँ .उसने बताया कि रिक्शा वाले के
पास पैसे पूरे नहीं थे इसलिए ... मैंने देखा काउंटर पर कुछ दवाइयां रखी थीं ,ये
वही थीं जिन्हेँ पैसे कम होने के कारण केमिस्ट ने रोक लिया था.
‘’ और फिर वे दवाएं तुमने
रिक्शा वाले को थमा दीं और इस तरह वह तुम्हारा नया दोस्त बन गया.’’—विभा ने हंस कर
कहा.
‘ऐसा बिलकुल नहीं हुआ. उसने
लेने से इनकार कर दिया. उसने जो कुछ कहा उसका मतलब इतना ही था कि मैं उसे भीख दे
रहा था जिसे वह कभी नहीं लेगा.यानि मैंने उसके स्वाभिमान पर चोट की थी.’
‘शायद तुम्हारे व्यवहार से
उसे ऐसा लगा हो.’—विभा बोली.
‘’मेरा व्यवहार वैसा नहीं था
जैसा तुम सोच रही हो .पर बीमार बच्चे को पूरी दवाइयां तो मि लनी ही चाहिए थीं. पर
वह जिद पर अडा था.’’
‘ फिर आपने क्या किया?’’—विमल
ने पूछा.
‘’मैंने उसे समझाया कि उसकी
जिद के कारण उसके बेटे की बीमारी बढ़ सकती है.मुझे एक उपाय सूझ गया. मैंने कहा—‘ये
दवाएं मैं तुम्हें उधार दे रहा हूँ. तुम मेरा उधार चुका सकते हो. ‘
‘’वह कैसे?’—उसने पूछा.
‘मैं रोज शाम को बाजार जाता
हूँ. तुम मुझे अपनी रिक्शा में ले जा सकते हो. मैं तुम्हे किराया नहीं दूंगा .उन
पैसों को मैं तुम्हारे उधार में से काट लूँगा. इस तरह तुम्हारा उधार हर रोज उतरता
जाएग और बच्चे को पूरी दवाएं मिलती रहेंगी.’’ खिलावन के चेहरे का तनाव कुछ कम होता
लगा. बस तब से यही हो रहा है.’’ रजत ने विभा और विमल को एक कापी दिखाई जिसमें खिलावन
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का हिसाब लिखा हुआ था.
विमल ने पूछा – ‘क्या आप यह
हिसाब खिलावन को दिखाते हैं?’
वह अनपढ़ है.’
‘’तब तो हिसाब में गड़बड़ी भी
हो सकती है.’’—विभा ने कहा.
‘’हो सकती है,पर मैं...’’
‘’तो इसीलिए आपने आज रिक्शा
वाले को किराया नहीं दिया था.’ –विमल बोला.
‘’ तुम रिक्शावाले की जगह
खिलावन दादा भी कह सकते हो.’’ रजत ने गम्भीर स्वर में
कहा.
‘’सॉरी पापा. क्या आप मुझे
उनके घर ले चलेंगे? मैं उनके बेटे से मिलना चाहता हूँ,’’
‘’कभी ले चलूँगा. अब उनका
बेटा रमेश ठीक है.उस दिन मैं सड़क पर निकला तो खिलावन ने पुकार लिया—‘’बाबूजी, खुश
खबरी है.रमेश को अस्पताल से छुट्टी मिल गई है.’ मैंने कहा—वाह तब तो पार्टी होनी
चाहिए,’ वह मुझे चाय पिलाने ले गया. एक चाय वाले की दूकान पर हम चाय पीते हुए देर
तक बातें करते रहे. उसने बताया कि उसे गाँव क्यों छोड़ना पड़ा. वही जात पांत
ओर् रोजगार न मिलना. लेकिन गाँव की याद बहुत आती है.’’
‘तुम खिलावन को विमल की
जन्म दिन की पार्टी में बुला सकते थे.’ –विभा ने कहा.
‘’ उसे बुला कर मैं तुम्हें
और खिलावन दोनों को संकट में नहीं डालना
चाहता था. उनकी और हमारी दुनिया में अभी काफी दूरी है.बीच में पुल बनने में न जाने
कितना समय लगने वाला है पर उस दिन मैंने अपने दोस्त को पार्टी जरूर दी थी. ‘’
‘’कहाँ?’
उसी चाय की दूकान पर जहाँ
रमेश के स्वस्थ होने की दावत हुई थी.’’—कह कर रजत मुस्करा दिए. विभा और विमल भी
हंस रहे थे. (
समाप्त )
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