Thursday 19 October 2017

मैं और तुम



तुमने  शब्द चुने
मैं पराया हो गया।
एक एक शब्द में
हजार अर्थ
हर अर्थ में
मैं और मेरा सब
न जाने
कितनी कितनी बार व्यर्थ।

ये अर्थ हैं?
तो वह क्या था?
हर कहीं
हर समय
हम निःशब्द निकट,
बांसों की बांसुरी
चहक पंखों की
झीलों के दरपन
पोंछती धूप
कभी घुलते
चांद-तारे.
ये सब
कैसे कैसे
पुल बनाएं
हम और तुम
दौडे चले जाएं!
-लेकिन
तुम्हारा सार्थक होने का मोह!
क्या कहूं...
तुमने अर्थ चुने
मैं पराया हो गया!

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