बूढ़ी
बुहारी—देवेन्द्र
कुमार –बाल गीत
बूढ़ी
बुहारी आफत की मारी
घूरे
पर पड़ी हुई रोती है चुप-चुप
कौन
पोंछे आंसू, किससे कहे दुख
जीवन
में इसने पाया न सुख
सीकें
घिसकर टूट गईं
बंधी
डोरी टूटकर गिर गई
पर
कभी थी सुंदर, चमकदार
लड़ती
थी कूड़े से बार-बार
काम
था घर को साफ सुथरा बनाना
फिर
थक हार कर कोने में चले जाना
घिसते
घिसते घिस कर टूट गई
तो
फेंक दी गई घर से बाहर
चलो
एक म्यूजियम बनाएं
बूढ़ी
बदरंग झाड़ुओं को उसमें सजाएं
लोगों
से कहें बूढ़ों को भूल मत जाओ
उन्हें
परेशान देखो तो झट हाथ बढ़ाओ
--देवेन्द्र
कुमार