पहाड़ कहां जाए
एक था पहाड़।
पहाड़ के अंदर रहता था पहाड़ देव। एक दिन एक चरवाहा एक चट्टान पर बैठा गा रहा था।
उड़ जा पहाड़
बढ़ जा पहाड़
चरवाहे का गीत
पहाड़ देव ने सुना। कई बार सुना। ध्यान से सुना और सोचने लगा, ‘चरवाहे ने ठीक कहा। मुझे भी चलना चाहिए।’
बस, यात्रा के लिए मचल उठा पहाड़ देव। चट्टानें
लुढ़कने लगीं। गरज सुनाई दी। पहाड़ के ढलान पर बसे गांव में हलचल मच गई। ग्रामवासी
घबराकर घरों से निकल आए। सब सोच रहे थे, ‘‘ये क्या हुआ?’’ क्या कोई आफत आने
वाली है? हमें यह गांव छोड़कर कहीं
दूसरी जगह चले जाना चाहिए।
गांव में रहती थी
एक बुढि़या। धन्नी ताई कहते थे उस सब। सारा दिन अपने आंगन में उतरने वाले पक्षियों
के दाना चुगाती थी। लोगों को गांव छोड़कर चले जाने की बातें करते सुना तो धन्नी
घबरा गई। सोचने लगी, ‘‘मैं कहां जाऊंगी
परिंदों को दाना कैसे चुगाऊंगी।’’ सोचते-सोचते वह
रो पड़ी।
एक काली चिडि़या
धन्नी ताई के आंगन में रोज सुबह आती थी- दाना चुगने के लिए। उसे धन्नी अच्छी लगती
थी, जो बिना किसी स्वार्थ के
सब परिंदों को दाना चुगाती थी। काली चिडि़या ने सब कुछ सुना और समझ गई। सोचने लगी,
‘‘अगर गांव खाली हो गया तो हमें दाना कौन चुगाएगा?
फिर तो धन्नी भी चली जाएगी। नहीं, नहीं ऐसा नहीं होना चाहिए।
काली चिडि़या
उड़कर चट्टान पर जा बैठी। वह पहाड़ देव को जानती थी। कभी-कभी उड़कर एक दरार के
अंदर चली जाती थी। वहां से पहाड़ देव के साथ बातें करती थी।
काली चिडि़या
वहीं जा पहुंची। उसने पूछा, ‘‘पहाड़ देव,
क्या हो रहा है? चट्टानें क्यों गिर रही हैं? गांववाले घायल हो जाएंगे।’’
पहाड़ देव ने कहा,
‘‘मैं यहां से कहीं और जाना चाहता हूं। एक ही
स्थान पर रहते-रहते ऊब गया हूं।’’
‘‘यह कैसा पागलपन
है। भला पहाड़ भी कभी चलते हैं।’’ काली चिडि़या ने
सोचा ‘लेकिन अगर पहाड़ सचमुच ही
चल पड़ा तब तो गांव एकदम नष्ट हो जाएगा। जैसे भी हो पहाड़ को रोकना चाहिए।’
‘‘कहां जाओगे?’’
चिडि़या ने पूछा।
‘‘अरे, इतनी बड़ी दुनिया है। दिशाएं खुली हैं। कहीं भी
जा सकता हूं।’’ पहाड़ के अंदर से
आवाज आई।
‘‘ऐसे नहीं,
पहले यात्रा का कार्यक्रम बनता है फिर यात्रा
पर निकलते हैं।’’ चिडि़या ने कहा।
‘‘तो फिर तुम्हीं
बताओ मुझे कब और किधर जाना चाहिए?’’ पहाड़ देव ने पूछा।
‘‘मैं देखकर आती
हूं कि तुम्हें किस दिशा में यात्रा करनी चाहिए। जब तक मैं न लौटूं तब तक
हिलना-डुलना मत।’’ चिडि़या बोली।
‘‘जल्दी आना।’’पहाड़ देव ने कहा।
काली चिडि़या
दरार से निकलकर एक तरफ जा बैठी। सोचने लगी, सोचती रही। उसने देखा धन्नी ताई अपने आंगन में बैठी परिंदों
को दाना चुगाती हुई कह रही थी, ‘‘और कितने दिन
तक...’’ काली चिडि़या दरार में
जाकर फिर से पहाड़ देव से बातें करने लगी। बोली-‘‘मैं देख आई...लेकिन...’’
‘‘लेकिन क्या...’’
‘‘कुछ मुश्किल है
तुम्हारी यात्रा।’’
‘‘वह क्यों?’’
‘‘पूरब में तुमसे
थोड़ी दूर पर एक लंबी-चैड़ी और गहरी झील है। तुमने तो देखी ही होगी।’’ चिडि़या बोली।
‘‘मैं कैसे
देखता...मैं तो आज तक कहीं गया ही नहीं।’’ पहाड़ देव ने कहा।
‘‘यही तो मैं भी
सोच रही हूं गहरी झील कैसे पार करोगे? अगर तुम्हें तैरना न आता हो तो गहरी झील में डूब सकते हो।’’
‘‘और पश्चिम में...’’
‘‘हां, उधर रास्ता तो हैं पर वहां दूर-दूर तक दलदल
फैला है। दलदल में डूबोगे तो नहीं, पर कीचड़ में से
निकलोगे कैसे...’’
‘‘तो दक्षिण की तरफ
चल दूंगा मैं...’’
चिडि़या चहचहाई-‘‘तुम भी कितने भोले हो पहाड़ देव...अरे उधर ही
तो समुद है। इतना गहरा कि क्या बताऊं... जब तुम झील के पानी पर नहीं तैर सकते तो
गहरे समुद्र में तो तुम्हारा पता ही नहीं चलेगा।’’
‘‘तब तो फिर एक ही
रास्ता बचता है कि मैं उत्तर दिशा में चलना शुरू कर दूं...’’ पहाड़ देव बोला।
‘‘हा,ं हां,जरूर जाओ... और उत्तर में खड़े हिमालय से टकराकर चूर-चूर हो जाओ...। अपने
पड़दादा हिमालय का नाम नहीं सुना क्या?’’ कहकर चिडि़या फिर हंसी।
‘‘तो तुम्हारा मतलब
है मैं यहीं पड़ा रहूं, कहीं न जाऊं?’’
पहाड़देव ने परेशान स्वर में पूछा।
‘‘जरूर जाओ अगर जा
सको तो...। लेकिन यह तो कहो इस समय तुम्हरे मन में कहीं जाने का विचार आया कैसे?’’
‘‘मैंने चरवाहे को
गाते सुना था।
उड़ जा पहाड़
बढ़ जा पहाड़...’’
‘‘अरे, चरवाहे ने तो मजाक किया था...वह चाहता है तुम
यहां से हट जाओ तो उसे रोज-रोज चट्टानों पर न चढ़ना पड़े। ‘‘चिडि़या को लग रहा था अब बात बन रही है।
‘‘तो यह बात
है...मैं उस चरवाहे को...‘‘पहाड़ देव ने
गुस्से से कहा और पत्थर ढलान पर फिर लुढ़कने लगे।
‘‘देखो संभालो अपने
को...चरवाहे के चक्कर में गांव बरबाद हो
जाएगा-धन्नी ताई हमें दाना चुगाना छोड़ देगी।’’
‘‘धन्नी ताई...वह
कौन है?’’ पहाड़ देव ने पूछा।
‘‘ठीक है, एक दिन मैं धन्नी ताई को लेकर आऊंगी तुम्हारे
पास... उसे बहुत-सी कहानियां याद हैं। सुनोगे तो आने-जाने की बात सदा के लिए भूल
जाओगे’’ चिडि़या ने पहाड़ देव को
तसल्ली दी।
‘‘तो अभी बुला लाओ
न...मेरा मन कहानी सुनने का हो रहा है।’’
‘‘ठीक है, बुला लाऊंगी लेकिन वादा करो कहीं आने-जाने की बात नहीं करोगे...’’
‘‘मैं वादा करता
हूं’’ पहाड़ देव ने कहा तो
पत्थर लुढ़कने बंद हो गए। आवाजें थम गईं काली चिडि़या उड़ी और धन्नी ताई के आंगन
में जा बैठी।’’
क्या कोई है जो हमें एक-दूसरे की बात समझा सके। क्या
धन्नी ताई को मालूम था कि काली चिडि़या ने उन लोगों को किस बड़े संकट से निकाल
लिया था।
Beautiful.....thankyou for sharing nanaji..
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