Tuesday 16 December 2014

बाल कहानी : डाक्टर प्याऊ


    मोड़ पर एक पेड़ के नीचे श्यामदास आने जाने वालों को पानी पिलाया करता था। एक पेड़ के इर्द गिर्द रेत फैलाकर मटके रखे हुए थे। वहीं पास में एक चने वाला बैठता था। चने वाला अक्सर ही श्यामदास से कहता था- ‘‘भैया, तुम्हारी प्याऊ के कारण ही मेरा काम भी चल जाता है।’’ सुनकर श्यामदास हंसकर रह जाता। पास में एक मोटर वर्कशाप था। प्याऊ के कारण मोटर वर्कशाप वालों को जगह कम पड़ती थी। वे कहते थे- ‘प्याऊ की क्या जरूरत है भला।’
    एक बार श्यामदास बीमार हो गया। वह कई दिन तक पानी पिलाने के लिए प्याऊ पर नहीं आ सका। वर्कशाप वालों ने इसे अच्छा मौका समझा। पेड़ के आसपास रखे पानी के मटके हटा दिए और वर्कशाप का सामान फैला दिया। अब वे खुश थे। तबीयत में सुधार हुआ तो श्यामदास प्याऊ पर लौट आया। लेकिन वहां से मटके गायब थे। सब तरफ मोटर वर्कशाप का सामान फैला हुआ था। श्यामदास की परेशानी देखकर मोटर वर्कशाप वाले हंसने लगे। श्यामदास समझ गया कि अब यहां फिर से प्याऊ शुरू करना मुश्किल होगा।
    पेड़ से हटकर धूप में नहीं बैठा जा सकता था। सड़क के पार एक घना पेड़ था। पेड़ के पीछे एक कोठी की दीवार थी। श्यामदास ने कुछ विचार किया, फिर सड़क के पार वाले पेड़ के नीचे मटके रखकर जा बैठा। चने वाला भी श्यामदास के साथ ही सड़क पार चला गया। नई जगह श्यामदास की प्याऊ शुरू हो गई। पास में एक बरतन में पानी भरकर खुले में रख दिया गया। प्यासे परिंदे अपनी प्यास बुझाने के लिए वहां आने लगे। पेड़ के पीछे वाली कोठी में कभी डाक्टर विवेक मित्रा रहा करते थे। कुछ समय पहले वह कहीं और चले गए, पर कोठी की चहारदीवारी पर उनके नाम का बोर्ड अब भी लगा हुआ था। उस बोर्ड के कारण ही लोग श्यामदास की नई प्याऊ को ‘डाक्टर वाली प्याऊ’ कहने लगे।
    एक दिन डाक्टर विवेक मित्रा वहां से गुजरे। उन्होंने भी उस प्याऊ को देखा। उसका नाम सुना तो वह हंस पड़े। डा0 विवेक ने श्यामदास से कहा- "देखता हूं, मैं यहां से भले ही चला गया हूं, पर लोग मुझे नहीं भूले हैं। यानी मैं जाकर भी नहीं गया हूं। मैं फिर आऊंगा।’’
    डाक्टर विवेक चले गए। श्यामदास ने उनकी बात सबको बता दी। रविवार का दिन आया। सुबह सुबह एक ट्रक में एक मेज और कुछ बैंचें वहां पहुंच गईं। फिर डाक्टर विवेक मित्रा सफेद कोट पहने आ पहुंचे। उन्होंने कहा-‘‘मैं रविवार की सुबह दो घंटे मरीजों को बिना फीस लिए देखा करूंगा।’’
    डाक्टर कुर्सी पर बैठे तो बहुत सारे मरीज भी आ गए। डाक्टर विवेक मित्रा उनकी  जांच करके दवाइयां देने लगे। मरीजों की भीड़ से श्यामदास खुश था। अब उसे ज्यादा लोगों को पानी पिलाने का मौका मिलता था। चने वाले के पास और भी कई छाबड़ी वाले आ गए। वहां खासी भीड़ रहने लगी थी।
    उधर सड़क पार जिस पेड़ के नीचे पहले श्यामदास की प्याऊ चलती थी, वहां सूना-सूना रहता था। श्यामदास कहता- ‘मेरी बीमारी ने सब कुछ बदल दिया- मोटर वर्कशाप वालों ने हमारी जगह हथिया ली। एक तरह से अच्छा ही हुआ। पहले हमारी प्याऊ को कोई नहीं जानता था लेकिन अब ‘डाक्टर प्याऊ’ को बहुत लोग जानते हैं।’ और फिर जोर से हंस पड़ता।सचमुच ‘डाक्टर प्याऊ’ दूर-दूर तक मशहूर हो गई थी।

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